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चौपाल से लेकर संसद तक / अनामी शरण बबल

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रांची एक्सप्रेस के लिए पहला विशेष संपादकीय /

 15अक्टूबर 2016


 

 


जमाना बदल रहा है। जमाने के साथ साथ समाज की रीति नीति, पारिवारिक रस्म रिवाज संस्कार और धार्मिक पारिवारिक सामाजिक मान्यताओं के अर्थ भी बदल रहे है। गांव देहात कस्बों से लेकर शहरों नगरो बड़े शहरों और महानगरों का रूप रंग आकार चेहरा जरूरत समस्याओं और सुविधाओं के मायने भी बदल रहे है। 21वी सदी के पहले ही चरण में संचार क्रांति के विस्फोट ने घर परिवार समय समाज और संबंधों के सारे समीकरण बदल डाले है। वर्तमान समय और समाज के साथ आज कदमताल करके रहना और चलना भी जरूरी है। मगर, बदलाव की इस आंधी के बीच एक नया रास्ता बनाना और उसको लक्ष्य मानकर अपनाना आज ज्यादा जरूरी होकर भी खतरनाक सा लगता है।

यह कैसा बदलाव है कि चौपाल से लेकर संसद तक की गरिमा रंगरूप और महत्व पर भी इसका असर दिखने है। संसद और चौपाल जनता के अधिकारों का आईना सा नहीं रह गया प्रतीत होता है। आईना कभी झूठ नहीं बोलता, मगर संसद से लेकर चौपाल यानी जनता के हर वैधानिक अदालत में जनता ही लगातार सबसे पीछे छूटती जा रही है। यों कहें कि चर्चाओं में अब समाज के आखिरी कतार में खड़े लोग की आवाज अब संसद और विधानसभा की गूंज से बाहर हो गए है।  ।

 महान भारत देश को कई नामों से जाना जाता है, मगर हिन्दुस्तान और इंडिया से तुलना करे तो भारत पर इंडिया का दबदबा लगातार बढ़ता जा रहा है। इंडिया यानी मॉल मेट्रो मोबाइल म्यूजिक मल्टीप्लेक्स और मैकड़ी (मैकडोनॉल्ड) वाले इंडिया में चमक दमक के साथ मोटर मनी, मल्टी नेशनल कंपनियों, मल्टी स्टोरी अपार्टमेंट, मल्टी जॉब, मल्टी रिलेशन और मल्टी इंकम सोर्स का जलवा ही जलवा है। समाज के ज्यादातर नवधनिको कुबेरों और उधोगपतियों के इंडिया में ही विकास और नौकरियों की सारी संभावनाएं निहित है। यही वह वर्ग है जो सत्ता को कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं अप्रत्यक्ष तौर पर संचालित और संबोधित कर रहा है। इंडिया के दमदार लोगों की वजह से ही आज भारत रंगीन चमक दमक के साथ  महक रहा है। हम दुनियां के सबसे संभावनाशील देशों की कतार में आगे है।  125 करोड़ की आबादी और दुनिया के सबसे यंग देश को लेकर पूरे संसार की आंखे इंडिया पर लगी है और वे यहां कारोबार की अपार संभावनाओं को देखकर भारत में ही पूंजी निवेश करने को उतावला या एकदम व्यग्र भी कह सकते है

इंडिया के प्रभामंडल से भारतीय मीडिया भी लगभग नतमस्तक सा हो गया है। खासकर खबरिया चैनलों जिसे लोगों ने अब भोकाली मीडिया भी कहना चालू कर दिया है। खबरों को लेकर इनके समाजशास्त्रीय समीकरण में खबरों की क्लास और सामाजिक अर्थशास्त्र पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है। सही मायने में तो इन न्यूज चैनलो के पास आज न्यूज का गंभीर अकाल है। खासकर खबरों के चौखटे में सी 5 का प्रभाव जगजाहिर है। सी यानी कॉमेडी क्रिकेट क्राइम सिनेमा और सेलेब्रेटी के चमक दमक के बाद ही खबरों का नंबर आता है। मगर सी के कैदखाने से जकड़े तमाम न्यूज चैनलों में न्यूज की बजाय सी का तिलिस्म ही अपने अलग रंग ढंग में दिखता है। सी के फैलते दायरे में कोर्ट सोशल इकॉनामिक्स क्लास कॉरपोरेट कंपनियों कैरेक्टर और करप्शन की  यानी सी की ही धमक तेज हुई है।

 खासकर भोकाली चैनलों में किसी को कैरेक्टलेस या करप्ट बता देना सबसे आसान हो गया है।  खबरो को लेकर भी सी यानी क्लास देखा जाता है। यदि किसी मलीन बस्ती की किसी गरीब मासूम के साथ रेप करने के बाद भी बंदा बहादुर छुट्टा घूम रहा हो तो भी यह खबरिया चैनलों के क्लास के अनुसार खबर  नहीं है। मगर यही घटना किसी सभ्रांत इलाके के किसी अमीरजादी के संग हो जाए तो खबर देने से लेकर पुलिस प्रशासन पर भोकाली रिपोर्टरों का गुस्सा देखने  लायक होता है।

मीडिया के लिए खबरों के साथ यह रंगभेद नीति आज फैशन सा हो गया है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में दिमागी बुखार से करीब 400 लोगों की मौत भी फटाफट चैनलों की नजर में कोई खबर नहीं होती है, मगर किसी अभिनेत्री के नाक टूटने की खबर इन चैनलो के लिए ब्रेकिंग न्यूज से लेकर आधे आधे घंटे की स्पेशल स्टोरी बन जाती है। न्यूज चैनलों में भारत की छवि एक हंसते खेलते मस्त देश की है, जहां पर समस्याओं का होना अजूबा सा है।  इसका खामियाजा भी इनको ही भुगतना पड़ा है। चैनलो ने आम आदमी और उनके सुख दुख की खबरों को क्या काटा कि हिन्दुस्तान में रहने वाले गरीब भारत के करोड़ो लोगो ने अपनी पसंद के जीआरपी से इन चैनलों को ही काट डाला। जिसके तमाम चैनलों के सामने टीआरपी राक्षस भयानक संकट बनकर प्रकट हुआ है।  जितने चैनल चालू हुए उससे कहीं अधिक बंद हो गए और जो चल भी रहे हैं तो उनमें भी ज्यादातर की सांसे उखड़ रही है।

अपने रिपोर्टरों को मौके पर भेजकर समाचार की प्रस्तुति का जमाना भी लद चुका है। अघोषित सरकारी मदद से यह और बात है कि प्रधानमंत्री के पहले अमरीका दौरे की खबर देने के लिए सभी चैनलों के रिपोर्टर एक सप्ताह पहले ही अमरीका में घूम घूमकर माहौल बनाने लगे, और इसका फायदा भी हुआ कि प्रधानमंत्री की पहली अमरीका यात्रा के ग्लोबल और ग्लैमरस न्यूज से अमरीका भी चकाचौंध रह गया। यही हाल नेपाल में आए भीषण भूकंप में भी देखने को मिला। देश के तमाम बड़े चैनलों के रिपोर्टर नेपाल में घूम घूमकर खबरदेने लगे। पांच दिन के बाद भी मलवे में दबे रहकर भी किसी बच्चे के जीवित होने की खबर भी पाठकों तक पहुंची, मगर भूकंप से भारत में मरे 400 लोगों और प्रभावित 250 से ज्यादा शहरों की तबाही को जानने के लिए न किसी चैनलों के पास समय था न संवेदना कि अपने घर आंगन में पसरे मातम पर भी खबरों के दो बूंद आंसू बहा दे ।

 अब इन चैनलों में खबर देने का पूरा अंदाज ही बदल गया है। गिनती पहाड़ा गुना और भाग अंदाज में खबरे दी जाने लगी। पांच मिनट में 50 न्यूज 10 मिनट में 100 और 20 मिनट 200 न्यूज । और वो भी इस गूमान भरे दावे के साथ बिना ब्रेक 200 खबरों देने वाला दुनिया का सबसे तेज बुलेटिन है। फटाफट स्पीड खबरों का नुकसान यह हुआ कि समाज में खबरों का असर ही समाप्त हो गया। चैनल में एकंर चिल्लाता रहे और दूसरी तरफ तमाम नौकरशाहों पर अब कोई असर नहीं पड़ता। चैनलों ने खबरों को ही आत्मदाह सा कर दिया।

खबरों के इस मछली बाजारी भागमभाग के बीच खबरों और आखिरी आदमी तक की खबर तक अपनी पहुंच बनाने पर खास ध्यान दिया जाएगा। दुनिया के सबसे यंग देश भारत के इस राज्य के नागरिकों और नौजवानो को यह भरोसा भी दिलाना चाहेंगे कि समसामयिक जरूरतों के साथ साथ आने वाले कल आज और कल पर भी हमारा ध्यान रहेगा। प्राकृतिक भौगोलिक तौर पर असहज आबाद इस राज्य में हर जगह पहुंचना आज भी एक बड़ी चुनौती है, मगर प्राकृतिक संपदा इस राज्य की सबसे बड़ी निधि  भी है। आर्थिक सामाजिक तौर पर सबसे कमजोर लोग हमारे लिए हमेशा सबसे बड़ी खबर की तरह रहेंगे। संसद की खबरें तो सभी मीडिया छापती है  मगर तमाम सामयिक खबरों के साथ कदमताल करते हुए रांची एक्सप्रेस की नजर में हाशिए पर रह गए लोग भी रहेंगे। खासकर गांव देहात चौपाल से संचालित स्थानीय स्तर की सबसे नीचली प्रशासनिक व्यवस्था ग्राम पंचायत की चौपाली खबरों से लेकर संसद तक की खबरे इसकी निरंतर शोभा बनेंगी।   

         











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