मेरे जीवन के कुछ और इडियट्स-6
केवल किताबी ज्ञान से बनी सेक्स की प्रकांड़ ज्ञाता
अनामी शरण बबल
तेरे साथ मैं हूं कदम कदम, मैं सुकूने दिल हूं, करार हूं
तेरी जिंदगी का चिराग हूं , तेरी जिंदगी की बहार हूं
अहमदाबाद से लेकर अमरीका तक कभी अपनी कविता गजल शेरो शायरी से कभी मुशायरे की जान बन जाने वाली तो अमरीका में जाकर हिन्दी सीखाने के लिए हिन्दी सिनेमा के गानों को अपना माध्यम बनाकर अमरीकी भारतीय समाज में सालों तक बेहद लोकप्रिय रही डा. अंजना संधीर एक मल्टी टैंलेंट विमेन का नाम है । गैर हिन्दी भाषी राज्य गुजरात से होने के कारण हिन्दी गजल शायरी से ये एक जिंदादिल रोचक मोहक और यादगार महिला की तरह समाज में काफी लोकप्रिय है। अलबत्ता शान शऔकत और शोहरत्त के बावजूद काफी सामान्य तथा खासकर मेरके साथ इनका घरेलू बहनापा सा नाता है। जिसके तलते मैं इनकी शोहरत की परवाह किए बिना एक अधिकार के साथ जोर जबरन तक अपनी बात मनवा लेता हूं। माफ करना अंजना दी मैं तुम्हारे नाम के आगे अब डा. नहीं लिख रहा हूं । 56 साल की अंजना संधीर के साथ मेरा नाता भी एकदम अजीब है। हमदोनों 1983 यानी 33 साल से एक दूसरो के जानकार होकर पारिवारिक परिचय के अटूट धागे में बंधे है। मेरे घर के सारे लोग इनको बहुत अच्छी तरह से जानते भी है।
हम भले ही केवल एक बारही मिले पर फोन और जरूरत पड़ने पर उनके ज्ञान और संपर्को से घर बैठे बहुत सारी जानकारी भी हासिल किए। यह मैं भी मानता हूं कि अंजना से मेरा संबंध हमेळा कई रास्तों को जोड़ने वाली पुल की तरह दिखता रहा है।
मेरी अंजना संधीर से पहली आखिरी या इकलौती मुलाकात दिल्ली क्नॉट प्लेस के पास बंगला साहिब रोड के फ्लैट एस- 91 में 1991 में हुई थी। यहां पर मैं दो सबसे घनिष्ठ दोस्त पार्थिव कुमार और परमानंद आर्या के साथ रहता था। इस मुलाकात के 25 साल हो जाने के बाद फिर दोबारा मिलना संभव नहीं हो पाया। अहमदाबाद जाने का मुझे कोई चार पांच मौके मिले , मगर उन दिनो वे अमरीका में शादी कर बाल बच्चों के साथ हिन्दी की मस्ती में मस्त थी। और जब वापस अहमदाबाद लौटी तो फिर मेरा जाना नहीं हो पा रहा है। यानी एक मुलाकात के बाद दोबारा कोई संयोग ही नहीं बना ।
यहां पर भी एक रोचक प्रसंग है कि मेरे दो छोटे भाई उनदिनों अहमदाबाद में ही रहता था। (एक भाई तो आज भी अहमदाबाद में ही है) मेरे और भी कई भाई और रिश्तेदार अभी गुजरात और अहमदाबाद में भी है। पर मेरा संयोग फिलहाल नहीं बन रहा है। मेरे भाई लोग किसी मुशायरा को सुनने गए, तो अंजना संधीर के नाम सुनते ही मेरे भाईयों ने जाकर अपना परिचय दिया। मेरे भाईयों का घरेलू नाम टीटू और संत को तो अंजना भी जानती थी। भरपूर स्वागत करती हुई अंजना ने माईक से पूरे जन समुदाय को बताया कि बिहार में मेरा एक दोस्त भाई है अनामी शरण बबल जिसे मैं कब मिली हूं यह याद भी अब नहीं पर आज अनामी के दो छोटे और मेरे प्यारे भाई यहां पर आए हैं जिनका स्वागत करती हुई मै इनसे गाना गाने का आग्रह भी करती हूं। ना नुकूर के बाद गायन में एक्सपर्ट मेरे भाईयों ने दो गाना सुनाकर महफिल की शोभा में दो एक चांद लगा दिया।
केवल मेरा नाम लेकर भी मेरे करीब पांच सात दोस्तों ने भी अंजना से मुलाकात की और सबके अपने रिश्ते चल भी रहे है। मैं इन बातों को इतना इसलिए घसीट रहा हूं ताकि 30-32 साल पुराने संबंधों की गरमी महसूस की जाए। मगर जब वो एक यौन विशेषज्ञ के रूप में मेरे सामने एक नये चेहरे नयी पहचान और नयी दादागिरी के साथ 1991 में मात्र 31 साल की उम्र में एक अविवाहित सेक्स स्पेशलिस्ट की तरह मिलने जा रही हों तब किसी भी पत्रकार के लिए शर्म हय्या संकोच का कोई मायने नहीं रह जाता। यौन एक्सपर्ट की नयी पहचान मेरे को थोड़ी खटक रही थी, यह एक संवेदनशील प्रसंग है जिस पर बातूनी जंग नही की जा सकती। मेरे मन में भी इस सवाल के साथ दर्जनों सवाल रेडीमेड माल की तरह तैयार थे। दोपहर के बाद अंजना संधीर जब बंग्ला साहिब गुरूद्वारा रोड वाले फ्लैट मे आई। उस समय मेरे दोनों दोस्त मौजूद थे, मगर बातचीत में कोई खलल ना हो इस कारण हमारे प्यारे दोनों दोस्त पास के रीगल या रिवोली सिनेमाघर में पिक्चर देखने निकल गए। ताकि बात में कोई बाधा न हो।
कंडोम को लेकर नागरिकों की प्रतिक्रिया पर डा. अंजना संधीर ने जब लिंटास कंपनी के लिए एड को जब अपनी रिपोर्ट दी। तो जैसा कि उन्होने बताया कि वैज्ञानिक और सामाजिक आधार यौन संबदऔक कंडोम की भूमिका जरूरतऔर सामाजिक चेतना पर इनकी रिपोर्ट से एड कंपनी वाले बहुत प्रभावित हुए और एक विशेष प्रशिक्षम के बाद इनको अपना सेक्स कंसलटेंट के तौर पर अपने साथ जोड़ लिया। सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार महिलाओं की रूचि लालसा जिज्ञासा पसंद नापसंद चाहत मांग इच्छा आदि नाना प्रकार की मानसिक दुविधाओं पर इनके काम को पसंद किया गया और इस शोध को बड़े फलक पर काफी प्रचारित करके मेडिकल शोध की स्वीकृति को वैधानिक मान्यता दी गयी। यानी यौन जीवन के बगैर ही यौन की मानसिकता पर पर डा. अंजना संधीर की ख्याति में इजाफा हुआ।
रसोई ज्ञान के रूप में केवल चाय कॉफी तक ही मैं ज्ञानी था। बातचीत की गरमी के बीच मैं चाय और अल्प खानपान के साथ अंजना जी के प्रवचन को लगातार कायम बनाए रखने के लिए एक ही साथ टू इन वन जैसा काम करता रहा। सेक्स को लेकर एक पुरूष, की उत्कंठा जिज्ञासा मनोभाव से लेकर मानसिक प्रतिबंध और शरम बेशर खुलेपन झिझक की सामाजिक धारणा पर भी मैं प्रहार करता रहा। वे निसंकोच एक बेहद बोल्ड लड़की ( उस समय अविवाहित अंजना जी की उम्र केवल 31 साल) की थी। मैने उनके ज्ञान पर बार बार संदेह जताया और बगैर किसी प्रैक्टिकल के सेक्स पर इतना सारा या यों कहे कि बहुत सारा साधिकार बोलना मुझे लगातार खटका। इसके बावजूद वे तमाम भारतीय यानी करोड़ो विवाहित महिलाओं की सेक्स जिज्ञासा अनाड़ीपन और झिझक शर्म पर भी निंदात्मक वार करती रही।
सेक्स विद्वान बनने की प्रक्रिया के अनुभव पर ड़ा. अंजना ने कहा कि यह एक बेहद अपमानजनक अनुभव सा रहा। बहुत सारी लड़की दोस्तों ने तो साथ छोड़ दी,तो कई लड़कियों के मां पिता ने तो अंजना को अपने घर से निकाल बाहर कर दिया। जिससे इनका मन और दृढ हुआ और लगा कि अब तो सेक्स पर एक गंभीर काम कर लेना ही इसका सर्वोत्तम जवाब होगा। अंजना ने कहा कि सेक्स को लेकर आज भी भारतीय महिलाओं से बात करना सरल नहीं है। भाग्य को मानकर अधिकांश महिलाएं सबकुछ शांति के साथ सहन कर लेती है। सेक्स को लेकर भारतीय महिलाएं शांत निराशावादी होती है जबकि भारतीय पुरूष शक्की आक्रामक और सेक्स में स्वार्थी होता है। सेक्स सर्वेक्षण के बारे में इनका कहना है कि लंबे विवाहित जीवन के बाद भी 60 फीसदी महिलाएं संभोग में संतुष्टि या चरम सुख के दौर से कम या कभी नहीं गुजरी है। ज्यादातर महिलाओं का सेक्स ज्ञान भी लगभग ना के समान ही होता है जबकि पुरूष केवल अपनी संतुष्टि के लिए ही इसमें लिप्त होता है।
सेक्स को जीवन और समाज में किस तरह देखा जाना चाहिए इसपर अंजना का मंतव्य है कि हमारे धर्म शास्त्रों में भी धर्म अर्थ काम मोक्ष में काम को स्थान दिया गया है। सामाजिक संरचना और वंशपरम्परा की वृद्धि में केवल सेक्स ही मूल आधार है। शादी विवाह की अवधारणा भी सेक्स से समाहित है। इसे सामान्य और स्वस्थ्य नजर से देखा जाना चाहिए । मगर सेक्स को लेकर आज भी समाज में हौव्वा है। बगैर सेक्स मानव जीवन रसहीन नीरस चिंताओं कुंठाओं और तनावों से भरा है। सेक्स को अंधेरे बंद कमरे से बाहर निकालकर चर्चा संगोष्ठी और सामाजिक बहस का मुद्दा बनाना होगा तभी सेक्स को लेकर भारतीय समाज का नजरिया बदलेगा। भारत में सेक्स शिक्षा की जरूरत पर भी जोर देती हुई अंजना संधीर का मानना है कि ज्ञान के अभाव में लड़कियों को सेक्स का कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं मालूम है। एक कन्या तन परिपक्व होने से पहले नाना प्रकार के दौर से गुजरती है ,मगर खासकर ग्रामीण भारत में तो माहवारी की सही अवधारणा तक का ज्ञान नहीं है। कंड़ोम की जानकारी पर हंसती हुई डा. अंजना कहती है कि ग्रामीण भारत के पुरूषों में भी सेक्स का मतलब केवल शरीर का मिलन माना जाता है। कंडोम के बारे में इनका कहना है कि गांव देहात में सरकारी वाहन से कभी परिवार नियोजन के प्रचार में लगे स्वास्थ्यकर्मी कंडोम के प्रयोग विधि की जानकारी देते हुए कंडोम को हाथ के अंगूली में लगाकर लगाने की विधि को दिखाकर इस्तेमाल करने की सलाह देते है, मगर मजे कि बात तो यह है कि ज्यादातर पुरूष कंडोम को अपने लिंग में लगाने की बजाय संभोग के दौरान भी कंडोंम को अपनी अंगूली में लगाकर ही अपने पार्टनर के साथ जुड़ते है। और यह मामला भी तब खुला जब कंडोम के उपयोग के बाद भी महिलाओं का गर्भ ठहर गया और पूछे जाने पर ग्रामीण भारत के अबोध लोग यह जानकारी देते। गरीब अशिक्षित ग्रामीण भारत के अबोधपन को यह शर्मसार करती है तो ज्ञान के अभाव को भी दर्शाती है।
भारतीय समाज में सेक्स को लेकर आज भी कुंठित नजरिया है। हस्तमैथुन को लेकर भी समाज में नाना प्रकाऱेण गलत धारणाएं है। डा. संधीर के अनुसार लगभग 100 प्रतिशत लड़के अपनी युवावस्था में किसी न किसी तरह इससे ग्रसित होते है। केवल पांच प्रतिशत लड़के इससे मना करते हैं और मेरी मान्यता है कि वे सारे झूठ बोलते है। एकदम एकखास उम्र में इससे युवा संलग्न होते ही है। और झूठ बोलना उनकी नैतिकता का तकाजा है। डा. संधीर के अनुसार लड़कियों के साथ भी यही हिसाब है और उनका व्यावहारिक समानते का समीकरण भी समान है।
पाश्चात्य देशो के बाबत पूछे जाने पर इनका मानना है कि वहां पर भी लोग अब सेक्स को लेकर अपनी धारणा भारतीयों की तरह संकीर्ण कर रहे है। सेक्स को लेकर खुलेपन और मल्टी रिलेशन को लेकर भी कोई खराबी नहीं माना जाता , मगर अब रोग और अपने आप को सेफ रखने के लिए ही सही वे सेक्स को लेकर अपने साथी पर साथ के अनुसार ही अब विचार करती हैं। संधीर का मत है कि सेक्स जीवन समाज और सामाजिक नैतिकता का सबसे सरस प्रसंग है। इसको दबाने का ही यह गलत परिणाम है कि तमम रिश्तों को सेक्स से जोड दिया गया है। आज के जमाने में ज्यादातर मर्द 45-50 की उम्र पार करते करते सेक्स की कई मानसिक बीमारी और भ्रांतियों से ग्रसित हो जाते है। अपनी इस उम्र के अनुसार होने वाली कमी का इलाज कराने की बजाय इसको छिपाते है। मानसिक तौर पर बीमार समाज की गंदी सोच और सड़क छाप अनपढ़ नीम हकीमों ने यौनरोग को इस तरह आक्रांत कर दिया है कि लोग इसका इलाज कराने की बजाय शक्ति वर्द्धक गोलियों से राहत की तलाश करते है। जिससे बना बनाया खेल और बिगड़ जाता है। पावर गोलियों की शरण में जाकर मरीज इसके जाल से मुक्त नहीं होता और पावरलेस होकर कुंठित हो जाता है। समाज को नीम हकीमी डाक्टरों से सेक्स रोग को मुक्त कराने की जरूरत है तभी सेक्स को लेकर नागरिक सहज सरल और निर्भय होकर अपनी बात सामूहिक चर्चा में करके एक बेहतर इलाज पर एकमत हो सकता है।
उन्मुक्त यौनाचार की नजर में सेक्स को देखे तो जीवन में चरित्र का कोई मायने रहता है ? इच्छा के खिलाफ यौन कर्म एक अपराध है। और जीवन में चरित्र कातो बड़ा महत्व है मगर यह सब पुरूष सत्ता को और प्रबल बनाने की साजिश का हिस्सा है। सेक्स तो मनुष्य को जोडता है। रंग भेद जाति की गहरी छाप समाज में है पर यौन संबंध के समय कोई धर्म कर्म जाति रंग नहीं होता। इसे स्वार्थपूर्ण लाभ का एक नजरिया भी कह सकते हैं, मगर सेक्स की कोई जाति रंग और भेद नहीं होता । यह इसका एक सार्थक पहलू है कि प्यार से समाज में समरसता बढ़ेगी ।
सेक्स पर अंकुश को आप किस तरह देखती है ?
यह भी पुरूष के स्वार्थी पन का उदाहरण है। अपने लिए तो चरित्र का अर्थ कुछ और है और महिलाओं के लिए इनके मायने अलग हो जाते है। यह दबाकर रखने की कुचेष्टा का अंजाम है।
श्लीलता और अश्लीलता को आप किसतरह परिभाषित करेंगी ?
सेक्स अश्लील नहीं होता. यह तो मानव सृजन का मूल आधार है। जीवन की एक सहज जरूरत है। इसे अश्लील कहा और बताया जाता है खजूराहों मंदिर के प्रेमपूर्ण कलाकृतियों को इसीलिए पावन माना जाता है।
प्रेम और संभोग तथा अपनी पत्नी तथा वेश्या के साथ के संबंधों में आप क्या अंतर स्पष्ट करेंगी ?
प्रेम की चरम अभिव्यक्ति का नाम संभोग है। अपने साथी के प्रति पूर्ण निष्ठा समर्पण और भावनात्मक लगाव की सबसे आत्मीय संवाद का ही नाम प्यार भरा संभोग है या आत्मीय समर्पण ही प्यार भरा संभोग होता है। जबकि वेश्या के साथ तो एक पुरूष केवल अपने तनाव को शिथिल करता है। पुरूष मूलत पोलीगेम्स (विविधता की चाहत) और महिलाएं मोनोगेम्स (एकनिष्ठ) होती है।
आज विवाहेतर संबंधों में बढ़ोतरी हो रही है? इसकी मानसिकता और यह कौन सी मोनोगेम्स गेम है ?
आज महिलाएं खुद को जानने लगी है और पुरूषों द्वारा जबरन लगाए गए वर्जनाओं से मुक्ति की चाहत से उबलने लगी है। पुरूषसता के खिलाफ महिलाएं खड़ी हो रही है ।
प्रतिशोध का यह कौन सा समर्पण तरीका है कि किसी और पुरूष की गोद में जाकर खो जाए ?
सेक्स के प्रति समाज में एक स्वस्थ्य और स्वाभाविक नजरिए के साथ सोचने और विचारने की जरूरत है ।
ओह चलिए आप भारतीय सेक्स नीति रीति दर्शन और पाश्चात्य सेक्स में क्या मूल अंतर पाती है ?
हमारे यहां सेक्स एक बंद कमरे का सबसे गोपनीय कामकला शास्त्र की तरह देखा और माना जाता है। वेस्ट में सेक्स मौज और आनंद का साधन है। आम भारतीयों में सेक्स को लेकर तनाव रहता है सेक्स से मन घबराता भी है। वेस्ट में सेक्स को लेकर कोई वर्जना नहीं है वे इसको खुलेपन से स्वीकारते हैं मगर भारत में तो इसको सहज से लिया तक नहीं जाता । जीवन में इसकी अनिवार्यता को भी लोग खुलकर लोग नहीं मानते।
क्या यह नहीं लगता कि पाश्चात्य समाज में औरत की भूमिका एक अति कामुक सेक्सी गुड़िया सी है ?
नर नारी की यौन लालसा और संतुष्टि के निजी आजादी को यौन कामुकता का नाम नहीं दे सकते।
हमारे यहां यौन शिक्षा की जरूरत पर बारबार जोर दिया जाता है भारत में इसका क्या प्रारूप होना चाहिए ?
अश्लील विज्ञापनवों की तरह ही हमा
रे यहां यौन की गंदी विकृत और सतही जानकारी ही समाज में फैला है। सेक्स की पूरी जानकारी को परिवार के साथ जोड़ा जाना चाहे तथा विवाह से पूर्व कोई जानकारी भरे आलेख की जरूरत पर विचार होना चाहिए ताकि एकलस्तर पर भी पढकर लोग अपने बुजुर्गो से इस बाबत विमर्श कर सके। बच्चों की जिज्ञासा शांत हो इसके लिए मां पिता की भूमिका जरूरी है। सेक्स की सही सूचना भर से भी यौन अपराध कुंठा हिंसा और गलत धारणाओं से बचाव संभव है।
क्या केवल अक्षर ज्ञान वाली शिक्षा में यौन शिक्षा को जोडने से समाज में और खासकर बड़े हो रहे बच्चों में निरंकुश आचरण का शैक्षणिक लाईसेंस नहीं मिल जाएगा ?
सेक्स एक बेहद संवेदनशील विषय है और जाहिर है कि इससे कई तरह की आशंकाए भी है । इसको वैज्ञानिक तरीके से लागू करना ही सार्थक और स्वस्थ्य समाज की अवधारणा को बल देगा. तभी कोई सकारात्मक परिणाम मिलेगा
और मान लीजिए कि यदि सेक्स शिक्षा को पढ़ाई में ना जोडा जाए तो क्या समाज में किस तरह का भूचाल आ जाएगा ?
(हंसकर) तुम अब इस सवाल पर मजाक करने पर आ गए हो।
कमाल है अंजना जी सदियों से अनपढ़ निरक्षर हमारे पूर्वजों ने बगैर शिक्षा ग्रहण किए ही इसकी तमाम संवेदनाओं को समझा जाना और माना , तो अब 21 वी सदी से ठीक पहले इसे कोर्स में शामिल कराना कहीं बाजार का तो प्रेशर नहीं है लगता कि सेक्स और कामकला को ही सेल किया जाए। ?
नहीं बाजार के प्रेशर से पहले इसको सेहत के साथ जोडकर देखना होगा कि इससे कितना नुकसान होगा।.
मैं भी तो यहीं तो कह रहा हूं कि बाजार में दवा और औषधि भी आता है. एक भय और हौव्वा को प्रचारित करके अरबों खरबों की दुकानदारी तय की जा रही है और आप इसकी सैद्धांतिक व्याख्या कर रही है ?
नहीं आप काम सेक्स यौन संबंधों को एकदम बाजार की नजर से देख रहे हैं जबकि यह बाजारू नहीं होता।
कमाल है अंजना जी एक तरफ आपका तर्क कुछ और कहता है और दूसरी तरफ आप बाजार विरोधी बातें करने लगती है ?
नहीं तुम इसके मर्म को नहीं समझ रहे हो।
कमाल है अंजना जी मैं तो केवल इसके मर्म और धर्म की बात कर रहा हूं केवल आप ही तो हिमायती बनकर संसार से तुलना करके भारतीय महिलाओं की अज्ञानता पर चिंतित हो रही है। पर चलिए बहुत सारी बाते या यों कहे कि बकवास कर ली आपको बहुत सारी जानकारी देने के लिए शुक्रिया । और इस तरह 1991 में की गयी यह बात उस जमाने की थी संसार में मेल नेट और गूगल अंकल पैदा नहीं हुए थे। टेलीफोन रखना स्टेटस सिंबल होता था और केवल तीन सेकेण्ड बात करने पर एक रूपया 31 पैसे सरकारी खजाने में लूटाने पड़ते थे। यानी यह इंटरव्यू भी बाबा आदम के जमाने की है जहां पर किसी लड़की को सेक्सी कह देने पर अस्पताल जाने की सौ फीसदी संभावना होती थी। यह अलग बात है कि इन 25 साल में अब इतना बदलाव आ गया है कि जब तक किसी लड़की को कोई लड़का सेक्सी ना कहे तबतक लड़की को भी लगता है कि उसके रंग रूप पर कोई सही कमेंट्स ही नहीं की गयी है ।
तेरे साथ मैं हूं कदम कदम, मैं सुकूने दिल हूं, करार हूं
तेरी जिंदगी का चिराग हूं , तेरी जिंदगी की बहार हूं
यदि इस गजल को सेक्स की जरूरत पर भी जोड़ दें तो इसकी खासियत पर कोई असर नहीं पडेगा ।
नोट अपन देश में बढ़ते पोर्न को देखते हुए ही मुझे लगा कि डा, अंजना संधीर के मनभावन प्रवचनों से और लोगों को बताया जाए। हालांकि मैने इस बातचीत को दर्जनों जगह इस्तेमाल कर चुका हूं पर पिछले 15- 16 साल से यह बातचीत अंधेरे में कहीं धूल खा रही थी लिहाजा इसका पाठन सुख ले।
अनामी
27 अक्टूबर 2016