Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

होली पर सोशल मीडिया के चटकारे / अनूप शुक्ल

$
0
0













सोशल मीडिया पर बरस रही हास्य-व्यंग्य की नई फुहार : अनूप शुक्ल 

प्रस्तुति- स्वानी शरण



image
[आज राष्ट्रीय सहारा के हस्तक्षेप में ’हास्य के बदलते रंग-ढंग’ पर चार पेज के परिषिष्ट में अपन का लेख भी छपा। इसके संयोजक आलोक पुराणिक रहे। लेख छपने की खुशी जो है सो तो है ही सबसे ज्यादा मजे की बात यह है कि इसी बहाने हम युवा लेखक हो गये। टाइपिंग की गलतियां जो रहीं सो रहीं लेकिन सम्पादकीय कतरनी से कई गलतबयानी टाइप भी हो गयीं। ब्लॉगों लेखकों के पंच संतोष त्रिवेदी के खाते में जमा हो गये। अरविन्द जी से तिवारी उड़ गया। नाम तो कई लोगों के छूट गये। जिसके भी छूटे उससे यही कहना है- आपके बारे में अलग से विस्तार से लिखना है इसलिये सबके साथ शामिल नहीं किया। फ़िलहाल बांचिये हमारा लेख। बाकी के भी पोस्ट करते हैं जल्दी ही। ]
आज सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का सबसे शक्तिशाली मंच है। फ़ेसबुक, ट्विटर पर किसी भी समसामयिक घटना पर आम जनता की चुटीली टिप्पणियां देखने को मिलती हैं। पहले यह काम ब्लॉग पर होता था। हिन्दी ब्लॉगिंग की शुरुआती दिनों के लेखन पर टिप्पणी करते हुये कवि, संपादक अनूप सेठी ने जनवरी ,2005 में नया ज्ञानोदय में अपने लेख, ’अभिव्यक्ति का नया चैप्टर-ब्लॉग’ में लिखा था:
“जहां साहित्य के पाठक कपूर की तरह हो गये हैं, लेखक ही लेखक को और संपादक ही संपादक की फिरकी करने में लगा है, वहां इन पढ़े-लिखे नौजवानों का गद्य लिखने में हाथ आजमाना कम आह्लादकारी नहीं है। वह भी मस्त मौला, निर्बंध लेकिन अपनी जड़ों की तलाश करता मुस्कराता, हंसता, खिलखिलाता, जीवन से सराबोर गद्य। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय। लोकल और ग्लोबल। यह गद्य खुद ही खुद का विकास कर रहा है, प्रौद्योगिकी को भी संवार रहा है। यह हिंदी का नया चैप्टर है।”
ब्लॉग ने अनगिनत लोगों को अभिव्यक्ति का मौका दिया है। लेखक और पाठक के बीच से संपादक हट गया। इधर लिखा, उधर छाप दिया। कानपुर से कोई लेख होते ही उधर कुवैत से जीतेन्द्र चौधरी की चुलबुली टिप्पणी पर अनूप शुक्ल मुस्कराते हुये कोई जबाब देने की सोचे तब तक उधर अमेरिका से ई-स्वामी या अतुल अरोरा की फ़ड़कती टिप्पणियां आ गयीं। टिप्पणियों का सिलसिला आगे बढते हुये देखते हैं कि घंटे भर में पोर्टलैंड से इन्द्र अवस्थी जबाबी लेख का लिंक सटा हुआ है। इस लेख अन्त्याक्षरी में रविरतलामी के गजल की तर्ज पर व्यंजल या फ़िर कनाडा से समीर लाल की मुंडलिया भी जुड जाती।
अभिव्यक्ति की सहजता और आजादी ब्लॉगिंग का प्राणतत्व रहा। ब्लॉग की इस खूबी के चलते ही हास्य-व्यंग्य के लेखकों का विस्फ़ोट सा हुआ। कुमायूंनी चेली के नाम से ब्लॉग लिखने वाली शेफ़ाली पाण्डेय ’मजे का अर्थशास्त्र’ की लेखिका बन जाती हैं, ’बैसवारी’ और ’टेड़ी उंगली’ के नाम से ब्लॉगिंग करने वाले संतोष त्रिवेदी ’सब मिले हुये हैं’ छपाकर उदीयमान व्यंग्यकार बनते हैं।
ब्लॉग के माध्यम से जो लेखक सामने आये उनकी अभिव्यक्ति की अनगढ ताजगी गजब की लगती रही। पंच जबरदस्त हैं। 2006 में आवारा आशिका का चित्रण करते हुये निधि श्रीवास्तव लिखती हैं- ’मौसम की तरह कुछ लोग भी चिपचिपे होते हैं ।’ पेशे से चार्टेड एकाउंटेंट शिवकुमार मिश्र ने ’दुर्योधन की डायरियां’ लिखीं। आज घटित हुई किसी घटना को दुर्योधन के नजरिये से देखा। भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर शिवकुमार मिश्र के दुर्योधन अपनी डायरी में लिखते हैं:
“पता नहीं ये किसान क्या चाहते हैं. ये साल भर चिल्लाते रहते हैं कि खेती-बाड़ी से इनका पेट नहीं भरता और जब ज़मीन को रथ उद्योग के लिए ले लिया गया ओ बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं. मैं पूछता हूँ; ऐसी ज़मीन में खेती करने का क्या फायदा जो पेट न भर सके? खेती-बारी से किसानों को ही जब खाने को नहीं मिलता तो ऐसी ज़मीन से मालगुजारी उगाहना राजमहल के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन जाती है. कितना अच्छा होता अगर ये ज़मीन हस्तिनापुर में रह जाती और इन किसानों को ले जाकर किसी सागर को अर्पण कर सकते.”
पढाई से आई.आई.टी. कानपुर से गणित-ग्रेजुएट अभिषेक ओझा अपनी नौकरी में किसी लोन की मंजूरी करने में खतरे की गणना से जब भी मौका पाते हैं अपने पटनिहा किस्से में बदलते समय की दास्तान लिखते हैं:
“माने इतना तेजी से हमेशा बदलाव आता है कि हमीं लोग इतना कुछ देख लिए? पंद्रह पैसा के पोस्ट कार्ड से व्हाट्सऐप तक ! हमको लगता है पहिले ज़माना धीरे धीरे अपडेट होता था. ई फ़ोन के देखिये पता नहीं भीतरे भीतर दिन भर का अपडेट करते रहता है. हमारे खाने पीने के फ्रिकवेंसी से जादे इसका अपडेट होता है. ओहि गति से दुनिया भी अपडेट हो रही है.”
शेफ़ाली पांडेय ’ये क्या लगा रखी है असहिष्णुता, असहिष्णुता ?’ में साहित्यकार के मुंह से कुछ बयान दिलाने के पहले उसका परिचय कराती हैं। देखिये क्या स्तर है पढाई का साहित्यकार का:
“साहित्य क्या होता है यह सवाल आप मुझसे कर रहे हैं मुझसे ? साहित्य के क्षेत्र में मेरा दखल इतना है साहब कि आप सुनेंगे तो चौंक जाएंगे । मैं रोज़ सुबह दो अखबार पढता हूँ । एक - एक खबर को बारीकी पढता हूँ । अपहरण, बलात्कार,छेड़छाड़ और हत्या की सारी ख़बरें मुझे मुंहजबानी याद रहती हैं ।“
बाद में पोस्ट लिखने की और सहजता के चलते हिन्दी ब्लॉगिंग से जुडे लोग फ़ेसबुक से जुड गये। लेखन की आवृत्ति बढी पोस्ट का साइज घटा। लम्बी पोस्टों की जगह छुटकी टिप्पणियों ने ले ली और हास्य व्यंग्य के घराने में वनलाइनर की धमाकेदार इंट्री हुई।
ब्लॉगिग से फ़ेसबुक की तरफ़ आने की प्रक्रिया में हास्य-व्यंग्य लेखकों का महाविस्फ़ोट हुआ। देखा-देखी लोग लेखन के मैदान में आये। साल भर तक पाठक की हैसियत से टिप्पणी करने वाले राजेश सेन धड़ल्ले से अखबारों में छपने लगते हैं। लोग इंतजार करते हैं कि आज रंजना रावत किस विषय पर अपनी चुटीली टिप्पणियां करती हैं या फ़िर अंशुमाली रस्तोगी आज किसकी फ़िरकी लेने वाले हैं।
ये तो कुछ उदाहरण हैं जिनका जिक्र किया यहां मैंने इसके अलावा अनगिनत लेखक प्रतिदिन हास्य-व्यंग्य लिख रहे हैं सोशल मीडिया की सुविधा का उपयोग। हरेक के सैकडों पाठक हैं जो उनके लेख का इंतजार करते हैं। शंखधर दुबे ऐसे ही एक लेखक हैं जो शिक्षा व्यवस्था की राजनीति पर लिख रहे हैं। अब तक सत्तर से ऊपर किस्से लिख चुके हैं। बस पालिश करते ही छपने लायक। आंचलिक तेवर में लिखा गया ’लप्पूझन्ना’ नेट पर मौजूद एक बेहतरीन उपन्यास अनछपा उपन्यास है।
सोशल मीडिया ने नये हास्य-व्यंग्य लेखक को लिखने, छपने का मौका देने के हास्य व्यंग्य के लेखकों को आपस में जोड़ने का काम भी किया है। अरविन्द तिवारी, प्रेम जन्मेजय, सुभाष चन्दर, सुशील सिद्धार्थ, निर्मल गुप्त अर्चना चतुर्वेदी, इन्द्रजीत कौर, अलंकार रस्तोगी, अनूप मणि त्रिपाठी , अभिषेक अवस्थी से लेकर सुरजीत , आरिफ़ा अविस से परिचय ही न हुआ होता अगर इनकी रचनायें फ़ेसबुक पर न पोस्ट हुई होती। यहां लेखकों का जमावड़ा न हुआ होता तो न ’शेष अगले अंक में’ (अरविन्द) और न ही ’ब से बैंक’ (सुरेश कान्त) । न ’नारद की चिन्ता’( सुशील सिद्धार्थ) खरीद पाते न ही हरामी चरित्रों का बेतरतीब कोलाज ’अक्कड़-बक्कड’ (सुभाष चन्दर) से रूपरू हो पाते।
सोशल मीडिया में लेखकों के आपस में जुड़ने के क्रम में तमाम पुराने प्रयोग नये रूप में भी हो रहे हैं। लतीफ़ घोंघी और ईश्वर शर्मा (दोनों दिवंगत) की नब्बे के दशक में की हुई व्यंग्य की जुगलबंदी की तर्ज पर सितम्बर’2016 को शुरु हुई व्यंग्य की जुगलबंदी में अब तक लगभग 200 लेख लिखे जा चुके हैं। इसमें हर रविवार को दिये विषय़ पर व्यंग्य लेख व्यंग्य लेख लिखे जाते हैं। इन लेखकों में पुरानी पीढी के अरविन्द तिवारी से लेकर सबसे नयी पीढी की आरिफ़ा एविस लेख लिखती हैं। देखा देखी तमाम सिद्ध और फ़ेसबुकिया साथी लेखक देवेन्द्र पाण्डेय, राजीव (विवेक) रंजन श्रीवास्तव, मनोज कुमार , कमलेश पाण्डेय आदि भी अपने लेख लिखते हैं। ’व्यंग्य की जुगलबंदी’ का स्तर इस बात से समझा जा सकता है कि हर बार इसमें शामिल कोई न कोई लेख किसी न किसी राष्ट्रीय दैनिक अखबार में किसी न किसी रूप में छपता है।
सोशल मीडिया ने लेखक ही नहीं प्रकाशक भी बनाये हैं। अनूप शुक्ल (फ़ुरसतिया) और पल्लवी त्रिवेदी के हास्य-व्यंग्य पढते-पढते जयपुर के कुश रुझान प्रकाशन बनाकर इनकी किताबें छापते हैं। छह महीने में बिना किसी तामझाम के ’बेवकूफ़ी का सौंदर्य’ और ’अंजाम-ए-गुलिश्तां क्या होगा’ की पंद्रह सौ से ऊपर प्रतियां आनलाइन बेच लेते हैं। दो अनजान से लेखकों को सेलिब्रिटी लेखक टाइप बना देते हैं। फ़िर आज के सबसे लोकप्रिय व्यंग्यकार आलोक पुराणिक का ’कारपोरेट प्रपंचतंत्र’ छापते हैं।
यह सोशल मीडिया पर हास्य-व्यंग्य के लेखन को मिली स्वीकार्यता ही है कि अब ’ईबुक’ और ’प्रिन्ट आन डिमांड’ की सुविधा के बाद तो लेखक अपनी किताब खुद छाप और बेच सकता है। अनूप शुक्ल अपनी पहली किताब ’पुलिया पर दुनिया’ और हाल ही में अलंकार रस्तोगी का दूसरा व्यंग्य संग्रह ’सभी विकल्प खुले हैं’ इस बात का उदाहरण है कि लोग ई-बुक और प्रिंट ऑन डिमांड की किताबें भी खरीदकर बांचते हैं।
सोशल मीडिया की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें लेखक की रेपुटेशन को नहीं उसके लेखन को भाव मिलता है। नाम नहीं काम चलता है। अगर आप ठीक-ठाक और नियमित लिखते हैं तो आपको देर-सबेर पाठक मिलेंग॥ पाठक जो अपनी टिप्पणियों से आपके लेखन को सराहता तो है ही इशारों ही इशारों आपको ठोंक पीट कर सराहता (संवारता) भी है और अगर जमे रहे और सीखते रहे मजाक-मजाक में आपको अच्छा लेखक भी बना सकता है।
तो सोच क्या रहे हैं? आज से ही लिखना शुरु कीजिए अपना हास्य-व्यंग्य लेखन और शामिल होईये नामचीन लेखकों की कतार में। देखिये अनगिनत पाठकों की टिप्पणियां और पसंद आपके लेख का इंतजार कर रही हैं। आपका समय शुरु होता है अब !
(अनूप शुक्ल के फ़ेसबुक वाल से साभार)
रचना कैसी लगी:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ वर्ष पहले तक होली के अवसर पर हास्य-व्यंग्य से भरपूर कविताएँ प्रकाशित हुआ करती थीं. आज ऐसी रचनाओं का अभाव खलने लगा है. हास्य छ्पता भी है तो उसमें भरपूर फूहड़पन होता है, आप इस दिशा में भी कुछ कीजिए. (गिरिराज शरण अग्रवाल)

रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

1.5 लाख गूगल+ अनुसरणकर्ता, 1500से अधिक सदस्य
/ 2,500से अधिक नियमित ग्राहक
/ प्रतिमाह 10,00,000(दस लाख)से अधिक पाठक
/ 10,000से अधिक हर विधाकी साहित्यिक रचनाएँ प्रकाशित
/ आप भी अपनी रचनाओं कोविशाल पाठक वर्ग कानया विस्तार दें, आज ही नाकासेजुड़ें.नाकामें प्रकाशनार्थ रचनाओं का स्वागत है.अपनी रचनाएँ rachanakar@gmail.com पर ईमेल करें.अधिक जानकारी के लिएयह लिंकदेखें - http://www.rachanakar.org/2005/09/blog-post_28.html
विश्व की पहली, यूनिकोडित हिंदी की सर्वाधिक प्रसारित, समृद्ध व लोकप्रिय ई-पत्रिका - नाका



मनपसंद रचनाएँ खोजकर पढ़ें
गूगल प्ले स्टोर से रचनाकार ऐप्प https://play.google.com/store/apps/details?id=com.rachanakar.orgइंस्टाल करें. image

रचनाकार की रचनाएँ अपने ईमेल में नियमित पढ़ने के लिए अपना ई-मेल पता नीचे दिए बक्से में भरें तथा सदस्यता लें पर क्लिक करें:

Follow by Email

Enter your email address to subscribe to this blog and receive notifications of new posts by email.








Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>