प्रबन्धन
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व्यवसाय एवंसंगठनके सन्दर्भ मेंप्रबन्धन (Management) का अर्थ है - उपलब्ध संसाधनों का दक्षतापूर्वक तथाप्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए लोगों के कार्यों में समन्वय करनाताकि लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। प्रबन्धन के अन्तर्गतआयोजन (planning), संगठन-निर्माण (organizing), स्टाफिंग (staffing), नेतृत्व करना (leading या directing), तथा संगठन अथवा पहल का नियंत्रण करनाआदि आते हैं।संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवाप्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबंधइसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपनाश्रेष्ठतम योगदान दे सकें। प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्यसम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं। प्रबंधक अलग-अलग कार्यों परभिन्न समय लगाते हैं। संगठन के उच्चस्तर पर बैठे प्रबंधक नियोजन एवं संगठनपर नीचे स्तर के प्रबंधकों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं।
अनुक्रम
- 1प्रबंध की परिभाषाएँ
- 2प्रभावपूर्णता बनाम कुशलता
- 3प्रबंध की विशेषताएँ
- 4प्रबंध के उद्देश्य
- 5प्रबंध का महत्त्व
- 6प्रबंध की प्रकृति
- 7प्रबंध के स्तर
- 8प्रबंध के कार्य
- 9समन्वय, प्रबंध का सार है
- 10इक्कीसवीं शताब्दी में प्रबंध
- 11प्रबंधन के क्षेत्र, श्रेणियां और कार्यान्वयन
- 12इन्हें भी देखें
- 13सन्दर्भ
- 14बाहरी कड़ियाँ
प्रबंध की परिभाषाएँ
पूर्वानुमान करना तथा योजना बनाना, संगठन बनाना, आदेश देना, समन्वय करना ही प्रबन्धन है। -- हेनरी फेयोल[1]
("to manage is to forecast and to plan, to organise, to command, to co-ordinate and to control.")
प्रबंध परिवर्तनशील पर्यावरण में सीमित संसाधनों का कुशलतापूर्वकउपयोग करते हुए संगठन के उद्देश्यों को, प्रभावी ढंग से प्राप्त करने, केलिए दूसरों से मिलकर एवं उनके माध्यम से कार्य करने की प्रक्रिया है। -- क्रीटनर
"प्रबंध यह जानने की कला है कि क्या करना है तथा उसे करने का सर्वोत्तम एवं सुलभ तरीका क्या है "----एफ.डब्ल्यू.टेलर "अवधारणा
कईलेखकों ने प्रबंध की परिभाषा दी है। प्रबंध शब्द एक बहुप्रचलित शब्द हैजिसे सभी प्रकार की क्रियाओं के लिए व्यापक रूप से प्रयुक्त किया गया है।वैसे यह किसी भी उद्यम की विभिन्न क्रियाओं के लिए मुख्य रूप से प्रयुक्तहुआ है। उपरोक्त उदाहरण एवं वस्तुस्थिति के अध्ययन से यह स्पष्ट हो गयाहोगा कि प्रबंध वह क्रिया है जो हर उस संगठन में आवश्यक है जिसमें लोग समूहके रूप में कार्य कर रहे हैं। संगठन में लोग अलग-अलग प्रकार के कार्य करतेहैं लेकिन वह अभी समान उद्देश्य को पाने के लिए कार्य करते हैं। प्रबंधलोगों के प्रयत्नों एवं समान उद्देश्य को प्राप्त करने में दिशा प्रदानकरता है। इस प्रकार से प्रबंध यह देखता है कि कार्य पूरे हों एवं लक्ष्यप्राप्त किए जाएँ (अर्थात् प्रभाव पूर्णता) कम-से-कम साधन एवं न्यूनतम लागत (अर्थात् कार्य क्षमता) पर हो।अतः प्रबंध को परिभाषित किया जा सकता है कि यह उद्देश्यों को प्रभावीढंग से एवं दक्षता से प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्यों को पूरा करानेकी प्रक्रिया है। हमे इस परिभाषा के विश्लेषण की आवश्यकता है। कुछ शब्द ऐसेहैं जिनका विस्तार से वर्णन करना आवश्यक है। ये शब्द हैं-
(क) प्रक्रिया (ख) प्रभावी ढंग से एवं (ग) पूर्ण क्षमता से।
परिभाषा में प्रयुक्त प्रक्रिया से अभिप्राय है प्राथमिक कार्य अथवाक्रियाएँ जिन्हें प्रबंध कार्यों को पूरा कराने के लिए करता है। ये कार्यहैं- नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन एवं नियंत्रण जिन पर चर्चा इसअध्याय में एवं पुस्तक में आगे की जाएगी।प्रभावी अथवा कार्य को प्रभावी ढंग से करने का वास्तव में अभिप्रायः दिएगए कार्य को संपन्न करना है। प्रभावी प्रबंध का संबंध सही कार्य को करने, क्रियाओं को पूरा करने एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने से है। दूसरे शब्दोंमें, इसका कार्य अंतिम परिणाम प्राप्त करना है। लेकिन मात्र कार्य कोसंपन्न करना ही पर्याप्त नहीं है इसका एक और पहलू भी है और वह हैकार्यकुशलता अर्थात् कार्य को कुशलतापूर्वक करना।
कुशलता का अर्थ है कार्य को सही ढंग से न्यूनतम लागत पर करना। इसमें एकप्रकार का लागत-लाभ विश्लेषण एवं आगत तथा निर्गत के बीच संबंध होता है। यदिकम साधनों (आगत) का उपयोग कर अधिक लाभ (निर्गत) प्राप्त करते हैं तो हमकहेंगे कि क्षमता में वृद्धि हुई है। क्षमता में वृद्धि होगी यदि उसी लाभके लिए अथवा निर्गत के लिए कम साधनों का उपयोग किया जाता है एवं कम लागतव्यय की जाती है। आगत साधन वे हैं जो किसी कार्य विशेष को करने के लिएआवश्यक धन, माल उपकरण एवं मानव संसाधन हों। स्वभाविक है कि प्रबंध का संबंधइन संसाधनों के कुशल प्रयोग से है क्योंकि इनसे लागत कम होती है एवं अन्तमें इनसे लाभ में वृद्धि होती है।
प्रभावपूर्णता बनाम कुशलता
यहदोनों शब्द अलग-अलग होते हुए भी एक दूसरे से संबंधित हैं। प्रबंध के लिएप्रभावी एवं क्षमतावान दोनों का होना महत्त्वपूर्ण है। प्रभावपूर्णता एवंकौशल दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लेकिन इन दोनों पक्षों में संतुलनआवश्यक है तथा कभी-कभी प्रबंध को कुशलता से समझौता करना होता है। उदाहरणके लिए प्रभावपूर्ण होना एवं कुशलता की अनदेखी करना सरल है जिसका अर्थ हैकार्य को पूरा करना लेकिन ऊँची लागत पर। उदाहरण के लिए, माना एक कंपनी कालक्ष्य वर्ष में 8,000 इकाइयों का उत्पादन करना है। इस लक्ष्य को पाने केलिए अधिकांश समय बिजली न मिलने पर प्रबंधक प्रभावोत्पादक तो था लेकिनक्षमतावान नहीं था क्योंकि, उसी निर्गत के लिए अधिक आगत (श्रम की लागत, बिजली की लागत) का उपयोग किया गया। कभी-कभी व्यवसाय कम संसाधनों से माल केउत्पादन पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है अर्थात् लागत तो कम कर दी लेकिननिर्धारित उत्पादन नहीं कर पाए। परिणामस्वरूप माल बाजार में नहीं पहुँचपाया इसलिए इसकी माँग कम हो गई तथा इसका स्थान प्रतियोगियों ने ले लिया। यहकार्यकुशलता लेकिन प्रभावपूर्णता की कमी की स्थिति है क्योंकि माल बाजारमें नहीं पहुँच पाया। इसलिए न्यूनतम लागत पर (कुशलतापूर्वक) प्रबंधक लिएलक्ष्यों को प्राप्त करना (प्रभावोत्पादकता) अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसकेलिए प्रभावपूर्णता एवं कुशलता में संतुलन रखना होता है।साधारणतया उच्च कार्य कुशलता के साथ उच्च प्रभावपूर्णता होती है जो किसभी प्रबंधकों का लक्ष्य होता है। लेकिन बगैर प्रभावपूर्णता के उच्च कार्यकुशलता पर अनावश्यक रूप से जोर देना भी अवांछनीय है। कमजोर प्रबंधनप्रभावपूर्णता एवं कार्यकुशल दोनाें की कमी के कारण होता है।
प्रबंध की विशेषताएँ
कुछ परिभाषाओं के अध्ययन के पश्चात् हमें कुछ तत्वों का पता लगता है जिन्हें हम प्रबंध की आधारभूत विशेषताएँ कहते हैं।- (क)प्रबंध एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है- किसी भी संगठन केकुछ मूलाधार उद्देश्य होते हैं जिनके कारण उसका अस्तित्व है। यह उद्देश्यसरल एवं स्पष्ट होने चाहिएँ। प्रत्येक संगठन के उद्देश्य भिन्न होते हैं।उदाहरण के लिए एक फुटकर दुकान का उद्देश्य बिक्री बढ़ाना हो सकता है लेकिन‘दि स्पास्टिकस सोसाइटी ऑफ इंडिया’ का उद्देश्य विशिष्ट आवश्यकता वालेबच्चों को शिक्षा प्रदान करना है। प्रबंध संगठन के विभिन्न लोगों केप्रयत्नों को इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु एक सूत्र में बाँधता है।
- (ख)प्रबंधसर्वव्यापी है- संगठन चाहे आर्थिक हो या सामाजिक याफिर राजनैतिक, प्रबंध की क्रियाएँ सभी में समान हैं। एक पेट्रोल पंप केप्रबंध की भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी की एक अस्पताल अथवा एक विद्यालय कीहै। भारत में प्रबंधकों का जो कार्य है वह यू- एस- ए-, जर्मनी अथवा जापानमें भी होगा। वह इन्हें कैसे करते हैं यह भिन्न हो सकता है। यह भिन्नता भीउनकी संस्कृति, रीति-रिवाज एवं इतिहास की भिन्नता के कारण हो सकती है।
- (ग)प्रबंध बहुआयामी है- प्रबंध एक जटिल क्रिया है जिसके तीन प्रमुख परिमाण हैं, जो इस प्रकार हैं-
· (अ)कार्य का प्रबंध-सभी संगठन किसी न किसी कार्य को करने केलिए होते हैं। कारखाने में किसी उत्पादक का विनिर्माण होता है तो एक वस्त्रभंडार में ग्राहक के किसी आवश्यकता की पूर्ति की जाती है जबकि अस्पताल मेंएक मरीज का इलाज किया जाता है। प्रबंध इन कार्यों को प्राप्य उद्देश्योंमें परिवर्तित कर देता है तथा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के मार्गनिर्धारित करता है। इनमें सम्मलित हैं-समस्याओं का समाधान, निर्णय लेना, योजनाएँ बनाना, बजट बनाना, दायित्व निश्चित करना एवं अधिकारों काप्रत्यायोजन करना।
· (आ)लोगों का प्रबंध- मानव संसाधन अर्थात् लोग किसी भी संगठन कीसबसे बड़ी संपत्ति होते हैं। तकनीक में सुधारों के बाद भी लोगों से कामकरा लेना आज भी प्रबंधक का प्रमुख कार्य है। लोगों के प्रबंधन के दो पहलूहैं-
(१) प्रथम तो यह कर्मचारियों को अलग-अलग आवश्यकताओं एवं व्यवहार वाले व्यक्तियों के रूप में मानकर व्यवहार करता है।
(२) दूसरे यह लोगों के साथ उन्हें एक समूह मानकर व्यवहार करता है।प्रबंध लोगों की ताकत को प्रभावी बनाकर एवं उनकी कमजोरी को अप्रसांगिकबनाकर उनसे संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए काम कराता है।
· (इ)परिचालन का प्रबंध-संगठन कोई भी क्यों न हो इसका आस्तित्वकिसी न किसी मूल उत्पाद अथवा सेवा को प्रदान करने पर टिका होता है। इसकेलिए एक ऐसी उत्पादन प्रक्रिया की आवश्यकता होती है जो आगत माल को उपभोग केलिए आवश्यक निर्गत में बदलने के लिए आगत माल एवं तकनीक के प्रवाह कोव्यवस्थित करती है। यह कार्य के प्रबंध एवं लोगों के प्रबंध दोनाें सेजुड़ी होती है।
- (घ)प्रबंध एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है- प्रबंध प्रक्रियानिरंतर, एकजुट लेकिन पृथक-पृथक कार्यों (नियोजन संगठन, निर्देशननियुक्तिकरण एवं नियंत्रण) की एक शृंखला है। इन कार्यों को सभी प्रबंधक सदासाथ-साथ ही निष्पादित करते हैं। तुमने ध्यान दिया होगा फैबमार्ट मेंसुहासिनी एक ही दिन में कई अलग-अलग कार्य करती हैं। किसी दिन तो वह भविष्यमें प्रदर्शनी की योजना बनाने पर अधिक समय लगाती हैं तो दूसरे दिन वहकर्मचारियों की समस्याओं को सुलझाने में लगी होती हैं। प्रबंधक के कार्योंमें कार्यों की शृंखला समंवित है जो निरंतर सक्रिय रहती है।
- (ङ)प्रबंध एक सामूहिक क्रिया है- संगठन भिन्न-भिन्न आवश्यकतावाले अलग- अलग प्रकार के लोगों का समूह होता है। समूह का प्रत्येक व्यक्तिसंगठन में किसी न किसी अलग उद्देश्य को लेकर सम्मिलित होता है लेकिन संगठनके सदस्य के रूप में वह संगठन के समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्यकरते हैं। इसके लिए एक टीम के रूप में कार्य करना होता है एवं व्यक्तिगतप्रयत्नों में समान दिशा में समन्वय की आवश्यकता होती है। इसके साथ हीआवश्यकताओं एवं अवसरों में परिवर्तन के अनुसार प्रबंध सदस्यों को बढ़ने एवंउनके विकास को संभव बनाता है।
- (च)प्रबंध एक गतिशील कार्य है- प्रबंध एक गतिशील कार्य होता हैएवं इसे बदलते पर्यावरण में अपने अनुरूप ढालना होता है। संगठन बाह्यपर्यावरण के संपर्क में आता है जिसमें विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवंराजनैतिक तत्व सम्मिलित होते हैं सामान्यता के लिए संगठन को, अपने आपको एवंअपने उद्देश्यों को पर्यावरण के अनुरूप बदलना होता है। शायद आप जानते हैंकि फास्टफूड क्षेत्र के विशालकाय संगठन मैकडोनल्स ने भारतीय बाजार में टिकेरहने के लिए अपनी खान-पान सूची में भारी परिवर्तन किए।
- (छ)प्रबंध एक अमूर्त शक्ति है- प्रबंध एक अमूर्त शक्ति है जोदिखाई नहीं पड़ती लेकिन संगठन के कार्यों के रूप में जिसकी उपस्थिति कोअनुभव किया जा सकता है। संगठन में प्रबंध के प्रभाव का भान योजनाओं केअनुसार लक्ष्यों की प्राप्ति, प्रसन्न एवं संतुष्ट कर्मचारी के स्थान परव्यवस्था के रूप में होता है।
प्रबंध के उद्देश्य
प्रबंधकुछ उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कार्य करता है। उद्देश्य किसी भीक्रिया के अपेक्षित परिणाम होते हैं। इन्हें व्यवसाय के मूल प्रयोजन सेप्राप्त किया जाना चाहिए। किसी भी संगठन के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैंतथा प्रबंध को इन सभी उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से पानाहोता है। उद्देश्यों को संगठनात्मक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य एवंव्यक्तिगत उद्देश्यों में वर्गीकृत किया जा सकता है।संगठनात्मक उद्देश्य
प्रबंध, संगठन के लिए उद्देश्यों के निर्धारण एवं उनको पूरा करने के लिए उत्तरदायीहोता है। इसे सभी क्षेत्रें के अनेक प्रकार के उद्देश्यों को प्राप्त करनाहोता है तथा सभी हितार्थियों जैसे-अंशधारी, कर्मचारी, ग्राहक, सरकार आदिके हितों को ध्यान में रखना होता है। किसी भी संगठन का मुख्य उद्देश्य मानवएवं भौतिक संसाधनों के अधिकतम संभव लाभ के लिए उपयोग होना चाहिए। जिसकातात्पर्य है व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करना। ये उद्देश्य हैं-अपने आपको जीवित रखना, लाभ अर्जित करना एवं बढ़ोतरी।जीवित रहना
किसीभी व्यवसाय का आधारभूत उद्देश्य अपने अस्तित्व को बनाए रखना होता है।प्रबंध को संगठन के बने रहने की दिशा में प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिएसंगठन को पर्याप्त धन कमाना चाहिए जिससे कि लागतों को पूरा किया जा सके।लाभ
व्यवसायके लिए इसका बने रहना ही पर्याप्त नहीं है। प्रबंध को यह सुनिश्चित करनाहोता है कि संगठन लाभ कमाए। लाभ उद्यम के निरंतर सफल परिचालन के लिए एकमहत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन का कार्य करता है। लाभ व्यवसाय की लागत एवंजोखिमों को पूरा करने के लिए आवश्यक होता है।बढ़ोतरी
दीर्घअवधि में अपनी संभावनाओं में वृद्धि व्यवसाय के लिए बहुत आवश्यक है। इसकेलिए व्यवसाय का बढ़ना बहुत महत्त्व रखता है। उद्योग में बने रहने के लिएप्रबंध को संगठन विकास की संभावना का पूरा लाभ उठाना चाहिए। व्यवसाय केविकास को विक्रय आवर्त, कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि या फिर उत्पादोंकी संख्या या पूँजी के निवेश में वृद्धि आदि के रूप में मापा जा सकता है।सामाजिक उद्देश्य
समाजके लिए लाभों की रचना करना है। संगठन चाहे व्यावसायिक है अथवा गैरव्यावसायिक, समाज के अंग होने के कारण उसे कुछ सामाजिक दायित्वों को पूराकरना होता है। इसका अर्थ है समाज के विभिन्न अंगों के लिए अनुकूल आर्थिकमूल्यों की रचना करना। इसमें सम्मिलित हैं- उत्पादन के पर्यावरण भिन्नपद्धति अपनाना, समाज के लोगों से वंचित वर्गों को रोजगार के अवसर प्रदानकरना एवं कर्मचारियों के लिए विद्यालय, शिशुगृह जैसी सुविधाएँ प्रदान करना।आगे बॉक्स में एक निगमित सामाजिक दायित्व को पूरा करने वाले संगठन काउदाहरण दिया गया है।व्यक्तिगत उद्देश्य
संगठनउन लोगों से मिलकर बनता है जिनसे उनका व्यक्तित्व, पृष्ठभूमि, अनुभव एवंउद्देश्य अलग-अलग होते हैं। ये सभी अपनी विविध आवश्यकताओं को संतुष्टि हेतुसंगठन का अंग बनते हैं। यह प्रतियोगी वेतन एवं अन्य लाभ जैसी वित्तीयआवश्यकताओं से लेकर साथियों द्वारा मान्यता जैसी सामाजिक आवश्यकताओं एवंव्यक्तिगत बढ़ोतरी एवं विकास जैसी उच्च स्तरीय आवश्यकताओं के रूप मेंअलग-अलग होती हैं। प्रबंध को संगठन में तालमेल के लिए व्यक्तिगत उद्देश्योंका संगठनात्मक उद्देश्यों के साथ मिलान करना होता है।प्रबंध का महत्त्व
प्रबंधएक सार्वभौमिक क्रिया है जो किसी भी संगठन का अभिन्न अंग है। अब हम उन कुछकारणों का अध्ययन करेंगे जिसके कारण प्रबंध इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है-- (क)प्रबंध सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है- प्रबंध की आवश्यकता प्रबंध के लिए नहीं बल्कि संगठन के उद्देश्यों कीप्राप्ति के लिए होती है। प्रबंध का कार्य संगठन के कुल उद्देश्य कोप्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत प्रयत्न को समान दिशा देना है।
- (ख)प्रबंध क्षमता में वृद्धि करता है- प्रबंधक का लक्ष्य संगठनकी क्रियाओं के श्रेष्ठ नियोजन, संगठन, निदेशन, नियुक्तिकरण एवं नियंत्रणके माध्यम से लागत को कम करना एवं उत्पादकता को बढ़ाना है।
- (ग)प्रबंध गतिशील संगठन का निर्माण करता है- प्रत्येक संगठन काप्रबंध निरंतर बदल रहे पर्यावरण के अंतर्गत करना होता है। सामान्यतः देखागया है कि किसी भी संगठन में कार्यरत लोग परिवर्तन का विरोध करते हैंक्योंकि इसका अर्थ होता है परिचित, सुरक्षित पर्यावरण से नवीन एवं अधिकचुनौतीपूर्ण पर्यावरण की ओर जाना। प्रबंध लोगों को इन परिवर्तनों को अपनानेमें सहायक होता है जिससे कि संगठन अपनी प्रतियोगी श्रेष्ठता को बनाए रखनेमें सफल रहता है।
- (घ)प्रबंध व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है- प्रबंधक अपनी टीम को इस प्रकार से प्रोत्साहित करता है एवं उसका नेतृत्वकरता है कि प्रत्येक सदस्य संगठन के कुल उद्देश्यों में योगदान देते हुएव्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त करता है। अभिप्रेरणा एवं नेतृत्व केमाध्यम से प्रबंध व्यक्तियों को टीम-भावना, सहयोग एवं सामूहिक सफलता केप्रति प्रतिबद्धता के विकास में सहायता प्रदान करता है।
- (ङ)प्रबंध समाज के विकास में सहायक होता है- संगठनबहुउद्देश्यीय होता है जो इसके विभिन्न घटकों के उद्देश्यों को पूरा करताहै। इन सबको पूरा करने की प्रक्रिया में प्रबंध संगठन के विकास में सहायकहोता है तथा इसके माध्यम से समाज के विकास में सहायक होता है। यह श्रेष्ठगुणवत्ता वाली वस्तु एवं सेवाओं को उपलब्ध कराने, रोजगार के अवसरों को पैदाकरने, लोगों के भले के लिए नयी तकनीकों को अपनाने, बुद्धि एवं विकास केरास्ते पर चलने में सहायक होता है।
प्रबंध की प्रकृति
प्रबंधइतना ही पुराना है जितनी की सभ्यता। यद्यपि आधुनिक संगठन का उद्गम नया हीहै लेकिन संगठित कार्य तो सभ्यता के प्राचीन समय से ही होते रहे हैं।वास्तव में संगठन को विशिष्ट लक्षण माना जा सकता है जो सभ्य समाज को असभ्यसमाज से अलग करता है। प्रबंध के प्रारंभ के व्यवहार वे नियम एवं कानून थेजो सरकारी एवं वाणिज्यिक क्रियाओं के अनुभव से पनपे। व्यापार एवं वाणिज्यके विकास से क्रमशः प्रबंध के सिद्धांत एवं व्यवहारों का विकास हुआ।‘प्रबंध’ शब्द आज कई अर्थों में प्रयुक्त होता है जो इसकी प्रकृति केविभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं। प्रबंध के अध्ययन का विकास बीते समय मेंआधुनिक संगठनों के साथ-साथ हुआ है। यह प्रबंधकों के अनुभव एवं आचरण तथासिद्धांतों के संबध समूह दोनों पर आधारित रहा है। बीते समय में इसका एकगतिशील विषय के रूप में विकास हुआ है। जिसकी अपनी विशिष्ट विशेषताएँ हैं।लेकिन प्रबंध की प्रकृति से संबंधित एक प्रश्न का उत्तर देना आवश्यक है किप्रबंध विज्ञान है या कला है या फिर दोनों है? इसका उत्तर देने के लिए आइएविज्ञान एवं कला दोनों की विशेषताओं का अध्ययन करें तथा देखें कि प्रबंधकहाँ तक इनकी पूर्ति करता है।
प्रबंध एक कला
कलाक्या है? कला इच्छित परिणामों को पाने के लिए वर्तमान ज्ञान का व्यक्तिगतएवं दक्षतापूर्ण उपयोग है। इसे अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव से प्राप्त कियाजा सकता है। अब क्योंकि कला का संबंध ज्ञान के व्यक्तिगत उपयोग से है इसलिएअध्ययन किए गए मूलभूत सिद्धांतों को व्यवहार में लाने के लिए एक प्रकार कीमौलिकता एवं रचनात्मकता की आवश्यकता होती है। कला के आधारभूत लक्षण इसप्रकार हैं-सैद्धांतिक ज्ञान का होना
कलायह मानकर चलती है कि कुछ सैद्धांतिक ज्ञान पहले से है। विशेषज्ञों नेअपने-अपने क्षेत्रों में कुछ मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है जो एकविशेष प्रकार की कला में प्रयुक्त होता है। उदाहरण के लिए नृत्य, जनसंबोधन/भाषण, कला अथवा संगीत पर साहित्य सर्वमान्य है।व्यक्तिगत योग्यतानुसार उपयोग
इसमूलभूत ज्ञान का उपयोग व्यक्ति, व्यक्ति के अनुसार अलग-अलग होता है। कला, इसीलिए अत्यंत व्यक्तिगत अवधारणा है। उदाहरण के लिए दो नर्तक, दो वक्ता, दोकलाकार अथवा दो लेखकों की अपनी कला के प्रदर्शन में भिन्नता होगी।व्यवहार एवं रचनात्मकता पर आधारित
सभीकला व्यवहारिक होती हैं। कला वर्तमान सिद्धांतों को ज्ञान का रचनात्मकउपयोग है। हम जानते हैं कि संगीत सात सुरों पर आधारित है। लेकिन किसीसंगीतकार की संगीत रचना विशिष्ट अथवा भिन्न होती है यह इस बात पर निर्भरकरती है कि इन सुरों का किस प्रकार से संगीत सृजन में प्रयोग किया गया है, जो कि उसकी अपनी व्याख्या होती है।प्रबंध एक कला है क्योंकि, यह निम्न विशेषताओं को पूरा करती है-
- (क) एक सफल प्रबंधक, प्रबंध कला का उद्यम के दिन प्रतिदिन के प्रबंधमें उपयोग करता है जो कि अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव पर आधारित होती है।प्रबंध के विभिन्न क्षेत्र हैं जिनसे संबंधित पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है।ये क्षेत्र हैं- विपणन, वित्त एवं मानव संसाधन जिनमें प्रबंधक को विशिष्टताप्राप्त करनी होती है। इनके सिद्धांत पहले से ही विद्यमान हैं।
- (ख) प्रबंध के विभिन्न सिद्धांत हैं जिनका प्रतिपादन कई प्रबंधविचारकों ने दिया है तथा जो कुछ सर्वव्यापी सिद्धांतों को अधिकृत करते हैं।कोई भी प्रबंधक इन वैज्ञानिक पद्धतियों एवं ज्ञान को दी गई परिस्थितिमामले अथवा समस्या के अनुसार अपने विशिष्ट तरीके से प्रयोग करता है। एकअच्छा प्रबंधक वह है जो व्यवहार, रचनात्मकता, कल्पना शक्ति, पहल क्षमता आदिको मिलाकर कार्य करता है। एक प्रबंधक एक लंबे अभ्यास के पश्चात् संपूर्णताको प्राप्त करता है। प्रबंध के विद्यार्थी भी अपनी सृजनात्मकता के आधार परइन सिद्धांतों को अलग- अलग ढंग से प्रयुक्त करते हैं।
- (ग) एक प्रबंध इस प्राप्त ज्ञान का परिस्थितिजन्य वास्तविकता केपरिदृश्य में व्यक्तिनुसार एवं दक्षतानुसार उपयोग करता है। वह संगठन कीगतिविधियों में लिप्त रहता है, नाजुक परिस्थितियों का अध्ययन करता है एवंअपने सिद्धांतों का निर्माण करता है जिन्हें दी गई परिस्थितियों के अनुसारउपयोग में लाया जा सकता है। इससे प्रबंध की विभिन्न शैलियों का जन्म होताहै। सर्वश्रेष्ठ प्रबंधक वह होते हैं जो समर्पित हैं, जिन्हें उच्चप्रशिक्षण एवं शिक्षा प्राप्त हैं, उनमें उत्कट आकांक्षा, स्वयं प्रोत्साहनसृजनात्मकता एवं कल्पनाशीलता जैसे व्यक्तिगत गुण हैं तथा वह स्वयं एवंसंगठन के विकास की इच्छा रखता है।
प्रबंध एक विज्ञान के रूप में
प्रबंधकएक क्रमबद्ध ज्ञान-समूह है किन्हीं सामान्य सत्य अथवा सामान्य सिद्धांतोंको स्पष्ट करता है विज्ञान की मूलभूत विशेषताएँ निम्न हैं-क्रमबद्ध ज्ञान-समूह
विज्ञान, ज्ञान का क्रमबद्ध समूह है। इसके सिद्धांत कारण एवं परिणाम के बीच मेंसंबंध आधारित हैं। उदाहरण के लिए, पेड़ से सेब का टूटकर पृथ्वी पर आने कीघटना गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को जन्म देती है।परीक्षण पर आधारित सिद्धांत
वैज्ञानिकसिद्धांतों को पहले अवलोकन के माध्यम से विकसित किया जाता है और फिरनियंत्रित परिस्थितियों में बार-बार परीक्षण कर उसकी जांच की जाती है।व्यापक वैधता
वैज्ञानिक सिद्धांत, वैधता एवं उपयोग के लिए सार्वभौमिक होते हैं।उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं प्रबंध विज्ञान के रूप में कुछ विशेषताओं को धारण करता है-
- (क) प्रबंध भी क्रमबद्ध ज्ञान-समूह है। इसके अपने सिद्धांत एवं नियमहैं जो समय-समय पर विकसित हुए हैं। लेकिन ये अन्य विषय जैसे-अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र, मनोविज्ञान शास्त्र एवं गणित से भी प्रेरित होता है। अन्यकिसी भी संगठित क्रिया के समान प्रबंध की भी अपनी शब्दावली एवं अवधारणाओंका शब्दकोश है। उदाहरण के लिए हम क्रिकेट अथवा फुटबॉल जैसे खेलों पर चर्चाके समय समान शब्दावली का उपयोग करते हैं। खिलाड़ी भी एक दूसरे से बातचीतकरने में इन्हीं शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार से प्रबंधकों को भीएक दूसरे से संवाद करते समय समान शब्दावली का प्रयोग करना चाहिए तभी वहअपने कार्य की स्थिति को सही रूप में समझ पाएंगे।
- (ख) प्रबंध के सिद्धांत, विभिन्न संगठनों में बार-बार के परीक्षण एवंअवलोकन के आधार पर विकसित हुए हैं। अब क्योंकि प्रबंध का संबंध मनुष्य एवंमानवीय व्यवहार से है, इसलिए इन परीक्षणों के परिणामों की न तो सहीभविष्यवाणी की जा सकती है और न ही यह प्रतिध्वनित होते हैं। इन सीमाओं केहोते हुए भी प्रबंध के विद्वान प्रबंध के सामान्य सिद्धांतों की पहचान करनेमें सफल रहे हैं। एफ- डब्ल्यू- टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत एवंहैनरी फेयॉल के कार्यात्मक प्रबंध के सिद्धांत इसके उदाहरण हैं।
- (ग) प्रबंध के सिद्धांत, विज्ञान के सिद्धातों के समान विशुद्ध नहींहोते हैं और न ही उनका उपयोग सार्वभौमिक होता है। इनमें परिस्थितियों केअनुसार संशोधन किया जाता है। लेकिन यह प्रबंधकों को मानक तकनीक प्रदान करतेहैं जिन्हें भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में प्रयोग में लाया जा सकता है। इनसिद्धांतों का प्रबंधकों को प्रशिक्षण एवं उनके विकास के लिए भी उपयोगकिया जाता है। स्पष्ट है कि प्रबंध विज्ञान एवं कला दोनों की विशेषताएँ लिएहुए है। प्रबंध का उपयोग कला है। लेकिन प्रबंधक और अधिक श्रेष्ठ कार्य करसकते हैं यदि वह प्रबंध के सिद्धांतों का उपयोग करें। कला एवं विज्ञान केरूप में प्रबंध एक दूसरे से भिन्न नहीं हैं बल्कि पूरक हैं।
प्रबंध एक पेशे के रूप में
सभीप्रकार की संगठन प्रक्रियाओं का प्रबंधन आवश्यक है। आपने यह भी अवलोकनकिया होगा कि संगठनों को उनका प्रबंध करने के लिए कुछ विशिष्ट योग्यताओंएवं अनुभव की आवश्यकता होती है। आपने यह भी पाया होगा कि एक ओर तो व्यवसायनिगमित स्वरूप में वृद्धि हुई है तो दूसरी ओर व्यवसाय के प्रबंध पर अधिकजोर दिया जा रहा है। क्या इसका अर्थ यह हुआ कि प्रबंध एक पेशा है? इसप्रश्न का उत्तर जानने के लिए आइए पेशे की प्रमुख विशेषताओं का अध्ययन करेंएवं देखें कि क्या प्रबंध इनको पूरा करता है। पेशे की निम्न विशेषताएँ हैंभली-भाँति परिभाषित ज्ञान का समूह
सभी पेशे भली-भाँति परिभाषित ज्ञान के समूह पर आधारित होते हैं जिसे शिक्षा से अर्जित किया जा सकता है।अवरोधित प्रवेश
पेशेमें प्रवेश, परीक्षा अथवा शैक्षणिक योग्यता के द्वारा सीमित होती है।उदाहरण के लिए भारत में यदि किसी को चार्टर्ड एकाउंटेंट बनना है तो उसेभारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट संस्थान द्वारा आयोजित की जाने वाली एक विशेषपरीक्षा को पास करना होगा।पेशागत परिषद्
सभीपेशे किसी न किसी परिषद् सभा से जुड़े होते हैं जो इनमें प्रवेश का नियमनकरते हैं कार्य करने के लिए प्रमाण पत्र जारी करते हैं एवं आधार संहितातैयार करते हैं तथा उसको लागू करते हैं। भारत में वकालत करने के लिए वकीलोंको बार काउंसिल का सदस्य बनना होता है जो उनके कार्यों का नियमन एवंनियंत्रण करता है।नैतिक आचार संहिता
सभीपेशे आचार संहिता से बंधे हैं जो उनके सदस्यों के व्यवहार को दिशा देतेहैं। उदाहरण के लिए जब डॉक्टर अपने पेशे में प्रवेश करते हैं तो वह अपनेकार्य नैतिकता की शपथ लेते हैं।सेवा का उद्देश्य
पेशेका मूल उद्देश्य निष्ठा एवं प्रतिबद्धता है तथा अपने ग्राहकों के हितों कीसाधना है। एक वकील यह सुनिश्चित करता है कि उसके मुवक्किल को न्याय मिले।प्रबंध, पेशे के सिद्धांतों को पूरी तरह से पूरा नहीं करता है। वैसे इसमेंकुछ विशेषताएँ होती हैं जो निम्न हैं-- (क) पूरे विश्व में प्रबंध विशेष रूप से एक संकाय के रूप में विकसितहुआ है। यह ज्ञान के व्यवस्थित समूह पर आधारित है जिसके भली-भाँति परिभाषितसिद्धांत हैं जो व्यवसाय की विभिन्न स्थितियों पर आधारित हैं। इसका ज्ञानविभिन्न महाविद्यालय एवं पेशेवर संस्थानों में पुस्तकों एवं पत्रिकाओं केमाध्यम से अर्जित किया जा सकता है। प्रबंध को विषय के रूप में विभिन्नसंस्थानों में पढ़ाया जाता है। इनमें से कुछ संस्थानों की स्थापना केवलप्रबंध की शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई है जैसे भारत मेंभारतीय प्रबंध संस्थान (IIM)। इन संस्थानों में प्रवेश साधारणायतः प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है।
- (ख) किसी भी व्यावसायिक इकाई में किसी भी व्यक्ति को प्रबंधक मनोनीतअथवा नियुक्त किया जा सकता है। व्यक्ति की कोई भी शैक्षणिक योग्यता हो उसेप्रबंधक कहा जा सकता है। चिकित्सा अथवा कानून के पेशे में डॉक्टर अथवा वकीलके पास वैध डिग्री का होना आवश्यक है लेकिन विश्व में भी प्रबंधक के लिएकोई डिग्री विशेष, कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है। लेकिन यदि इस पेशे काज्ञान अथवा प्रशिक्षण है तो यह उचित योग्यता मानी जाती है। जिन लोगों केपास प्रतिष्ठित संस्थानों की डिग्री अथवा डिप्लोमा हैं उनकी माँग बहुत अधिकहै इस प्रकार से दूसरी आवश्यकता की पूरी तरह से पूर्ति नहीं होती है।
- (ग) भारत में प्रबंध में लगे प्रबंधकों के कई संगठन हैं जैसे - आई. एम.ए. (ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोशिएसन)। जिसने अपने सदस्यों के कार्यों केनियमन के लिए आचार संहिता बनाई है। लेकिन प्रबंधकों के ऊपर इस प्रकार केसंगठनों का सदस्य बनने के लिए कोई दवाब नहीं है और न ही इनकी कोई वैधानिकमान्यता है।
- (घ) प्रबंध का मूल उद्देश्य संगठन को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति मेंसहायता करना है। यह उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना हो सकता है या फिर अस्पतालमें सेवा। वैसे प्रबंध का अधिकतम लाभ कमाने का उद्देश्य सही नहीं है तथा यहतेजी से बदल रहा है। इसलिए यदि किसी संगठन के पास एक अच्छे प्रबंधकों कीटीम है जो क्षमतावान एवं प्रभावी है, तो वह स्वयं वही उचित मूल्य परगुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध करा कर समाज की सेवा कर रहा है।
प्रबंध के स्तर
प्रबंधएक सार्वभौमिक शब्द है जिसे, किसी उद्यम में संबंधों के समूह में एक दूसरेसे जुड़े लोगों द्वारा कुछ कार्यों को करने के लिए उपयोग में लाया जाताहै। प्रत्येक-व्यक्ति का संबंधों की इस शृंखला में किसी न किसी कार्य विशेषको पूरा करने का उत्तरदायित्व होता है। इस उत्तरदायित्व को पूरा करने केलिए उसे कुछ अधिकार दिए जाते हैं अर्थात् निर्णय लेने का अधिकार। अधिकारएवं उत्तरदायित्व का यह संबंध व्यक्तियों को अधिकारी एवं अधीनस्थ के रूपमें एक दूसरे को बाँधते हैं। इससे संगठन में विभिन्न स्तरों का निर्माणहोता है। किसी संगठन के अधिकार शृंखला में तीन स्तर होते हैं-(क) उच्च स्तरीय प्रबंध-यह संगठन के वरिष्ठतम कार्यकारी अधिकारीहोते हैं जिन्हें कई नामों से पुकारा जाता है। यह सामान्यतः चेयरमैन, मुख्यकार्यकारी अधिकारी, मुख्य प्रचालन अधिकारी, प्रधान, उपप्रधान आदि के नामसे जाने जाते हैं। उच्च प्रबंध, विभिन्न कार्यात्मक स्तर के प्रबंधकों कीटीम होती है। उनका मूल कार्य संगठन के कुल उद्देश्यों को ध्यान में रखतेहुए विभिन्न तत्वों में एकता एवं विभिन्न विभागों के कार्यों में सामंजस्यस्थापित करना है। उच्च स्तर के ये प्रबंधक संगठन के कल्याण एवं निरंतरता केलिए उत्तरदायी होते हैं। फर्म के जीवन के लिए ये व्यवसाय के पर्यावरण एवंउसके प्रभाव का विश्लेषण करते हैं। ये अपनी उपलब्धि के नए संगठन के लक्ष्यएवं व्यूह-रचना को तैयार करते हैं। व्यवसाय के सभी कार्यों एवं उनके समाजपर प्रभाव के लिए ये ही उत्तरदायी होते हैं। उच्च प्रबंध का कार्य जटिल एवंतनावपूर्ण होता है। इसमें लंबा समय लगता है तो संगठन के प्रतिपूर्णप्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।
(ख) मध्य स्तरीय प्रबंध- ये उच्च प्रबंधकों एवं नीचे स्तर के बीचकी कड़ी होते हैं, ये उच्च प्रबंधकों के अधीनस्थ एवं प्रथम रेखीयप्रबंधकों के प्रधान होते हैं। इन्हें सामान्यतः विभाग प्रमुख, परिचालनप्रबंधक अथवा संयंत्र अधीक्षक कहते हैं। मध्य स्तरीय प्रबंधक, उच्च प्रबंधद्वारा विकसित नियंत्रण योजनाएँ एवं व्यूह-रचना के क्रियान्वयन के लिएउत्तरदायी होते हैं। इसके साथ-साथ ये प्रथम रेखीय प्रबंधकों के सभी कार्योंके लिए उत्तरदायी होते हैं। इनका मुख्य कार्य उच्च स्तरीय प्रबंधकोंद्वारा तैयार योजनाओं को पूरा करना होता है। इसके लिए
- (क) उच्च प्रबंधकों द्वारा बनाई गई योजना की व्याख्या करते हैं,
- (ख) अपने विभाग के लिए पर्याप्त संख्या में कर्मचारियों को सुनिश्चित करते हैं,
- (ग) उन्हें आवश्यक कार्य एवं दायित्व सौंपते हैं,
- (घ) इच्छित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अन्य विभागों से सहयोग करतेहैं। इसके साथ-साथ वे प्रथम पंक्ति के प्रबंधकों के कार्यों के लिएउत्तरदायी होते हैं।
प्रबंध के कार्य
प्रबंधको संगठन से सदस्यों से कार्यों के नियोजन, संगठन, निदेशन एवं नियंत्रणएवं निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठन के संसाधनों के प्रयोगकी प्रक्रिया माना गया है।नियोजन
यहपहले से ही यह निर्धारित करने का कार्य है कि क्या करना है, किस प्रकारतथा किसको करना है। इसका अर्थ है उद्देश्यों को पहले से ही निश्चित करनाएवं दक्षता से एवं प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए मार्ग निर्धारितकरना। सुहासिनी के संगठन का उद्देश्य है परंपरागत भारतीय हथकरघा एवंहस्तशिल्प की वस्तुओं को खरीदकर उन्हें बेचना। वह बुने हुए वस्त्र, सजावटका सामान, परंपरागत भारतीय कपड़े से तैयार वस्त्र एवं घरेलू सामान को बेचतेहैं। सुहासिनी इनकी मात्र, इनके विभिन्न प्रकार, रंग एवं बनावट के संबंधमें निर्णय लेती है फिर विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं से उनके क्रय अथवा उनके घरमें तैयार कराने पर संसाधनों का आवंटन करती है। नियोजन समस्याओें के पैदाहोने से कोई रोक नहीं सकता लेकिन इनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तथा यहजब भी पैदा होते हैं तो इनको हल करने के लिए आकस्मिक योजनाएँ बना सकतीहैं।संगठन
यहनिर्धारित योजना के क्रियान्वयन के लिए कार्य सौंपने, कार्यों को समूहोंमें बांटने, अधिकार निश्चित करने एवं संसाधनों के आवंटन के कार्य काप्रबंधन करता है। एक बार संगठन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विशिष्टयोजना तैयार कर ली जाती है तो फिर संगठन योजना के क्रियान्वयन के लिएआवश्यक क्रियाओं एवं संसाधनों की जांच करेगा। यह आवश्यक कार्यों एवंसंसाधनों का निर्धारण करेगा। यह निर्णय लेता है कि किस कार्य को कौन करेगा, इन्हें कहाँ किया जाएगा तथा कब किया जाएगा। संगठन में आवश्यक कार्यों कोप्रबंध के योग्य विभाग एवं कार्य इकाईयों में विभाजित किया जाता है एवंसंगठन की अधिकार शृंखला में अधिकार एवं विवरण देने के संबंधों का निर्धारणकिया जाता है। संगठन के उचित तकनीक कार्य के पूरा करने एवं प्रचालन कीकार्य क्षमता एवं परिणामों की प्रभाव पूर्णता के संवर्धन में सहायता करतेहैं। विभिन्न प्रकार के व्यवसायों को कार्य की प्रकृति के अनुसारभिन्न-भिन्न ढाँचों की आवश्यकता होती है। इसके संबंध में आप आगे केअध्यायों में और अधिक पढ़ेंगे।कर्मचारी नियुक्तिकरण
सरलशब्दों में इसका अर्थ है सही कार्य के लिए उचित व्यक्ति को ढूँढ़ना।प्रबंध का एक महत्त्वपूर्ण पहलू संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिएसही योग्यता वाले सही व्यक्तियों को, सही स्थान एवं समय पर उपलब्ध कराने कोसुनिश्चित करना है। इसे मानव संसाधन कार्य भी कहते हैं तथा इसमेंकर्मचारियों की भर्ती, चयन, कार्य पर नियुक्ति एवं प्रशिक्षण सम्मिलित हैं।इनफोसिस टेक्नोलॉजी, जो सॉफ्रटवेयर विकसित करती है, को प्रणालीविश्लेषणकर्त्ता एवं कार्यक्रम तैयार करने वाले व्यक्तियों की आवश्यकताहोती है जबकि लैबमार्ट को डिजाइनकर्त्ता एवं शिल्पकारों के टीम की आवश्यकताहोती है।निदेशन
निदेशनका कार्य कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करना, प्रभावित करना एवंअभिप्रेरित करना है जिससे कि वह सुपुर्द कार्य को पूरा कर सकें। इसके लिएएक ऐसा वातावरण तैयार करने की आवश्यकता है जो कर्मचारियों को सर्वश्रेष्ठढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करे। अभिप्रेरणा एवं नेतृत्व-निर्देशन केदो मूल तत्व हैं। कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने का अर्थ केवल एक ऐसावातावरण तैयार करना है जो उन्हें कार्य के लिए प्रेरित करे। नेतृत्व काअर्थ है दूसरों को इस प्रकार से प्रभावित करना, कि वह अपने नेता के इच्छितकार्य संपन्न करें। एक अच्छा प्रबंधक प्रशंसा एवं आलोचना की सहायता से इसप्रकार से निर्देशन करता है कि कर्मचारी अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें।सुहासिनी के डिजाइनकर्ताओं की टीम ने पलंग की चादरों के लिए सिल्क परभड़कीले रंगों के छापे विकसित किए। यद्यपि यह बहुत लुभावने लगते थे लेकिनसिल्क के प्रयोग के कारण आम आदमी के लिए यह बहुत अधिक महँगे थे। उनके कार्यकी प्रशंसा करते हुए सुहासिनी ने उन्हें सुझाव दिया कि इन सिल्क की चादरोंको वह दीपावली, क्रिसमस जैसे विशेष अवसरों के लिए सहेज कर रखें तथा उन्हेंनियमित रूप से सूती वस्त्रें पर छापें।नियंत्रण
मुख्य लेख : नियंत्रण (प्रबन्धन)
नियंत्रण को प्रबंध के कार्य के उस रूपमें परिभाषित किया है जिसमें वहसंगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संगठन कार्य के निष्पादन कोनिर्देशित करता है। नियंत्रण कार्य में निष्पादन के स्तर निर्धारित किएजाते हैं, वर्तमान निष्पादन को मापा जाता है। इसका पूर्वनिर्धारित स्तरोंसे मिलान किया जाता है और विचलन की स्थिति में सुधारात्मक कदम उठाए जातेहैं। इसके लिए प्रबंधकों को यह निर्धारित करना होगा कि सफलता के लिए क्याकार्य एवं उत्पादन महत्त्वपूर्ण हैं, उसका कैसे और कहाँ मापन किया जा सकताहै तथा सुधारात्मक कदम उठाने के लिए कौन अधिकृत है। सुहासिनी ने जब पाया किउसके डिजाइनकर्ताओं की टीम ने पलंग की वह चादर बनाई जो उनकी विक्रय के लिएनिश्चित मूल्य से अधिक महँगी थी तब उसने लागत पर नियंत्रण के लिए चादरहेतु कपड़ा ही बदल दिया।प्रबंधक के विभिन्न कार्यों पर साधारणतया उपरोक्त क्रम में ही चर्चा कीजाती है जिसके अनुसार एक प्रबंधक पहले योजना तैयार करता है; फिर संगठनबनाता है; तत्पश्चात् निर्देशन करता है; और अंत में नियंत्रण करता है।वास्तव में प्रबंधक शायद ही इन कार्यों को एक-एक करके करता है। प्रबंधक केकार्य एक दूसरे से जुड़े हैं तथा यह निश्चित करना कठिन हो जाता है कौन-साकार्य कहाँ समाप्त हुआ तथा कौन-सा कार्य कहाँ से प्रारंभ हुआ।
समन्वय, प्रबंध का सार है
मुख्य लेख : समन्वय
किसी संगठन के प्रबंधन की प्रक्रिया में एक प्रबंधक को पाँच एक दूसरे सेसंबंधित कार्य करने होते हैं। संगठन एक ऐसी पद्धति है जो एक दूसरे सेजुड़े एवं एक दूसरे पर आधारित उपपद्धतियों से बनी है। प्रबंधक को इन भिन्नसमूहों को समान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक दूसरे से जोड़ना होता है।विभिन्न विभागों की गतिविधियों की एकात्मकता की प्रक्रिया कोसमन्वय (coordination) कहते हैं।समन्वय वह शक्ति है जो, प्रबंध के अन्य सभी कार्यों को एक दूसरे सेबांधती है। यह ऐसा धागा है जो संगठन के कार्य में निरंतरता बनाए रखने केलिए क्रय, उत्पादन, विक्रय एवं वित्त जैसे सभी कार्यों को पिरोए रखता है।समन्वय को कभी-कभी प्रबंध का एक अलग से कार्य माना जाता है। लेकिन यहप्रबंध का सार है क्योंकि यह सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किएगए व्यक्तिगत प्रयत्नों में एकता लाता है। प्रत्येक प्रबंधकीय कार्य एक ऐसीगतिविधि है जो स्वयं अकेली समन्वय में सहयोग करती है। समन्वय किसी भीसंगठन के सभी कार्यों में लक्षित एवं अन्तर्निहित हैं।
संगठन की क्रियाओं के समन्वय की प्रक्रिया, नियोजन से ही प्रारंभ होजाती है। उच्च प्रबंध पूरे संगठन के लिए योजना बनाता है। इन योजनाओं केअनुसार संगठन ढाँचों को विकसित किया जाता है एवं कर्मचारियों की नियुक्तिकी जाती है। योजनाओं का क्रियान्वयन योजना के अनुसार ही यह सुनिश्चित करनेके लिए निर्देशन की आवश्यकता होती है। वास्तविक क्रियाओं एवं उनकीउपलब्धियों में यदि कोई मतभेद है तो इसका निराकरण नियंत्रण के समय कियाजाता है। समन्वय की क्रिया के माध्यम से प्रबंध का समान उद्देश्यों कीप्राप्ति के लिए उठाए गए कदमों में एकता को सुनिश्चित करने के लिएव्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रयत्नों की सही व्यवस्था करता है, समन्वय संगठन कीविभिन्न इकाइयों के भिन्न-भिन्न कार्यों एवं प्रयत्नों में एकता स्थापितकरता है। यह प्रयत्नों की आवश्यकता राशि, मात्र, समय एवं क्रमबद्धता उपलब्धकराता है जो नियोजित उद्देश्यों को न्यूनतम विरोधाभास, प्राप्त करने कोसुनिश्चित करता है।
समन्वय की परिभाषाएँ
- समन्वय कार्यदल में संतुलन बनाने तथा उसे एक जुट बनाए रखने कीप्रक्रिया है, जिसमें भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के बीच कार्य का सही-सहीविभाजन किया जाता है तथा यह देखा जाता है कि ये व्यक्ति मिलकर तथा एकता केसाथ अपना-अपना कार्य कर सकें। -ई. एफ. एल. ब्रैच
- समन्वय एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अधिकारी अपने अधीनस्थों केसामूहिक प्रयासों को एक व्यवस्थित ताने-बाने में बाँधता है तथा समानउद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य में एकता लाता हैय् -मैक फरलैंडफ्समन्वय अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्यों का इस प्रकार परस्पर मिलान करताहै कि प्रत्येक कर्मचारी के कार्य की गति, प्रगति और श्रेणी दूसरे कर्मचारीके कार्य की गति, प्रगति तथा श्रेणी से मेल खाये तथा आपस में मिलकर संस्थाके समान उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है। -थियो हेमैन
समन्वय की प्रकृति
उपरोक्त परिभाषाओं से समन्वय की निम्न विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-(क) समन्वय सामूहिक कार्यों में एकात्मकता लाता है- समन्वय ऐसेहितों को जो एक दूसरे से संबंधित नहीं हैं या एक दूसरे से भिन्न हैंउद्देश्य पूर्ण कार्य गतिविधि में एकता लाता है। यह समूह के कार्यों को एककेन्द्र बिंदु प्रदान करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि निष्पादन योजनाएवं निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हो।
(ख) समन्वय कार्यवाही में एकता लाता है- समन्वय का उद्देश्य समानउद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यवाही में एकता लाना है। यहविभिन्न विभागों को जोड़ने की शक्ति का कार्य करता है तथा यह सुनिश्चितकरता है कि सभी क्रियाएँ संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कीजाएँ। आपने पाया कि लैबमार्ट के उत्पादन एवं विक्रय विभागों को अपनेकार्यों में समन्वय करना होता है जिससे कि बाजार की माँग के अनुसार उत्पादनकिया जा सके।
(ग) समन्वय निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है- समन्वय कोई एक बार काकार्य नहीं है बल्कि एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। यह नियोजन सेप्रारंभ होता है एवं नियंत्रण तक चलती है। सुहासिनी ठंड के समय के लिएवस्त्रें के संबंध में जून के महीने में ही योजना बना लेती है। तत्पश्चात्वह पर्याप्त कार्यबल की व्यवस्था करती है। उत्पादन योजना के अनुसार ही इसकेलिए लगातार निगरानी रखती है उसे अपने विपणन विभाग को समय रहते बताना होगाकि वह विक्रय प्रवर्तन एवं विज्ञापन के प्रचार के लिए तैयार करें।
(घ) समन्वय सर्वव्यापी कार्य है- विभिन्न विभागों की क्रियाएँप्रकृति से एक दूसरे पर निर्भर करती हैं इसीलिए समन्वय की आवश्यकता प्रबंधके सभी स्तरों पर होती है। यह विभिन्न विभागों एवं विभिन्न स्तरों केकार्यों में एकता स्थापित करता है। संगठन के उद्देश्य बना विरोध आ सके, प्राप्त करने के लिए सुहासिनी को क्रय, उत्पादन एवं विक्रय विभागों केकार्यों में समन्वय करना होता है। क्रय विभाग का कार्य कपड़ा खरीदना है। यहउत्पादन विभाग की क्रियाओं के लिए आधार बन जाता है और अन्त में विक्रयसंभव हो पाता है। यदि कपड़ा घटिया गुणवत्ता वाला है या फिर उत्पादन विभागद्वारा निर्धारित विशिष्टताएँ लिए हुए नहीं है तो इससे आगे की बिक्री कम होजाएगी। यदि समन्वय नहीं है तो क्रियाओं में एकता एवं एकीकरण के स्थान परपुनरावृत्ति एवं अव्यवस्था होगी।
(ङ) समन्वय सभी प्रबंधकों का उत्तरदायित्व है- किसी भी संगठन मेंसमन्वय प्रत्येक प्रबंधक का कार्य है उच्च स्तर के प्रबंधक यह सुनिश्चितकरने के लिए कि संगठन की नीतियों का क्रियान्वयन हो, अपने अधीनस्थों के साथसमन्वय करते हैं। मध्यस्तर के प्रबंधक, उच्चस्तर के प्रबंधकों एवं प्रथमपंक्ति के प्रबंधकों, दोनों के साथ समन्वय करते हैं। यह सुनिश्चित करने केलिए कि कार्य योजनाओं के अनुसार किया जाए, प्रचालन स्तर के प्रबंधक अपनेकर्मचारियों के कार्यों में समन्वय करते हैं।
(च) समन्वय सोचा-समझा कार्य है- एक प्रबंधक को विभिन्न लोगों केकार्यों का ध्यानपूर्वक एवं सोच समझकर समन्वय करना होता है। किसी विभाग मेंसदस्य स्वेच्छा से एक दूसरे से सहयोग करते हुए कार्य करते हैं, समन्वय इससहयोग की भावना को दिशानिर्देश देता है। समन्वय के न होने पर सहयोग भीनिरर्थक सिद्ध होगा और बिना सहयोग के समन्वय कर्मचारियों में असंतोष को हीजन्म देगा।
इसलिए हम कह सकते हैं कि समन्वय, प्रबंध का पृथक से एक कार्य नहीं हैबल्कि यह उसका सार है। यदि कोई संगठन अपने उद्देश्यों को प्रभावी ढंग सेएवं कुशलता से प्राप्त करना चाहता है तो उसे समन्वय की आवश्यकता होगी। मालामें धागे के समान ही समन्वय प्रबंध के सभी कार्यों का अभिन्न अंग है।
समन्वय का महत्व
विभिन्नप्रबंधकीय कार्यों को एकीकृत करना व्यक्तियों एवं विभागों में पर्याप्तमात्र में समन्वयको सुनिश्चित करता है। जैसे समन्वय की समस्या के पैदाहोने के कारण बड़े पैमाने के संगठन में अंतर्निहित निरंतर परिवर्तन कमजोरअथवा निष्क्रिय नेतृत्व एवं जटिलताएं हैं। बड़े संगठनों में इस प्रकार कीजटिलताओं के समन्वय के लिए विशेष प्रयत्नों की आवश्यकता होती है।(क) संगठन का आकार-बड़े संगठनों में लगे बड़ी संख्या में लोगसमन्वय की समस्या को जटिल बना देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप मेंविशिष्ट है। तथा अपनी एवं संगठन की आवश्यकताओं को महसूस करता है। प्रत्येककी अपनी कार्य करने की आदतें हैं, अपनी पृष्ठभूमि हैं, परिस्थितियों सेनिपटने के प्रस्ताव/तरीके हैं तथा दूसरों से संबंध हैं। वैसे एक अकेलाव्यक्ति सदा बुद्धिमानी से कार्य नहीं करता है। उसके व्यवहार को न तो सदाठीक से समझा जाता है और न ही पूरी तरह से उसका पूर्वानुमान लगाया जा सकताहै। इसलिए संगठन की कार्य कुशलता के लिए यह अनिवार्य है कि व्यक्ति एवंसमूह के उद्देश्यों को समन्वय द्वारा एकीकृत कर दिया जाए।
(ख) कार्यात्मक विभेदीकरण- संगठन के कार्यों को बार-बार विभागों, प्रभागों, वर्गों आदि में बाँटा जाता है। समन्वय की समस्या इसलिए पैदाहोती है क्योंकि अधिकार क्षेत्रें का दृढ़ीकरण हो जाता है और उनके बीच केअवरोधक और भी अधिक मजबूत हो जाते हैं। कई बार यह इसलिए होता है क्योंकिकार्यों का वर्गीकरण युक्ति संगत नहीं होता या फिर प्रबंधक तर्क संगत मार्गन अपना कर अनुभव का मार्ग अपनाते हैं। ऐसे मामलों में संगठन में प्रभावीढंग से कार्य करने के लिए समन्वय आवश्यक है।
(ग) विशिष्टीकरण- आधुनिक संगठनों में उच्च स्तर का विशिष्टीकरणहै। विशिष्टीकरण का जन्म आधुनिक तकनीकों की जटिलताओं तथा कार्यों एवंइन्हें करने वालों की विविधता के कारण होता है। विशेषज्ञ सोचते हैं कि वेएक दूसरे को पेशे के आधार पर जाँचने के योग्य हैं लेकिन दूसरे लोगों के पासइस प्रकार के निर्णय का कोई पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। यदि विशेषज्ञोंको बिना समन्वय एक भूमंडलीय प्रबंधक के सामने चुनौती के कार्य करने कीअनुमति दे दी जाए तो परिणाम काफी मंहगे होंगे। इसीलिए संगठन में लगेविभिन्न विशेषज्ञों के कार्यों में समन्वय हेतु एक रचना तंत्र की आवश्यकताहै।
समन्वय प्रबंध का सार है। यह कुछ ऐसा नहीं है तकि जिसके लिए एक प्रबंधकआदेश दे। बल्कि यह तो वह चीज है जिसे एक प्रबंधक नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन नियंत्रण कार्यों को करते हुए प्राप्त करने काप्रयास करता है। अतः प्रत्येक कार्य समन्वय का अभ्यास है।
इक्कीसवीं शताब्दी में प्रबंध
संगठनएवं इनके प्रबंध में परिवर्तन आ रहा है। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियोंएवं देशों की सीमाएँ धुंधली पड़ रही हैं एवं संप्रेषण की नयी-नयी तकनीकोंके कारण विश्व को एक वैश्विक गाँव समझा जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय एवंअंतर संस्कृति संबंध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। आज का संगठन एक वैश्विक संगठनहै जिसका प्रबंध भूमंडलीय परिदृश्य में किया जाता है।सारांश में कह सकते हैं कि एक वैश्विक प्रबंधक वह है जिसके पास ‘हार्ड’ एवं ‘सॉफ्ट’ दोनों प्रकार का कौशल हैं। जो प्रबंधक विश्लेषण करना, व्यूहरचना करना, इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी का ज्ञान रखते हैं उनकी आजभी आवश्यकता है लेकिन विश्वव्यापी सफलता के लिए व्यक्तियों में टीम कैसेकार्य करती है, संगठन कैसे कार्य करते हैं एवं लोगों को किस प्रकार सेअभिप्रेरित कर सकता है, इस सबकी समझ का होना बहुत आवश्यक है।
उदाहरण के लिए जो प्रबंधक विभिन्न संस्कृतियों में पैठ रखता है वहपश्चिमी यूरोप, गैर अंग्रेजी बोलने वाले देश में कार्य कर सकता है फिरमलेशिया अथवा केन्या जैसे विकासशील देशों में जा सकता है और फिर उसेन्यूयार्क, यू- एस- ए- के कार्यालय में हस्तांतरित किया जा सकता है। वह इनतीनों स्थानों पर तुरंत प्रभावी ढंग से कार्य कर सकेगा।
वैश्विक प्रबंधक की भूमिका का विकास उसी प्रकार से हुआ है जिस प्रकार सेवैश्विक उद्योग एवं अर्थव्यवस्था का विकास हुआ है। यह एक परिभाषित व्यवसायके सन्दर्भ में एक आयामी भूमिका से बहुआयामी भूमिका में परिवर्तित हो गयाहै जिसके लिए तकनीकी कौशल, सॉफ्रट प्रबंध एवं कौशल एवं विभिन्न संस्कृतियोंको ग्रहण करना एवं सीखने के सम्मिश्रण की आवश्यकता होती है।