प्रस्तुति- कृति शरण
बीबीसी रेडियो फोर की एक टीम आँकड़ों और सांख्यिकी पर नज़र रखती है. इस टीम से अक्सर उन दावों की जांच करने के लिए कहा जाता है जिसके बारे में रेडियो श्रोताओं के लिए यक़ीन करना मुश्किल होता है.
रेडियो टीम ने ऐसे ही चार दावों की पड़ताल करने की कोशिश की.क्या दुनिया के 85 सबसे अमीर लोगों के पास दुनिया की सबसे गरीब आधी आबादी के बराबर पैसा है?
इस आंकड़े का जिक्र वाशिंगटन पोस्ट से लेकर सीएनएन तक में किया जाता है.
यह आँकड़ा ब्रिटिश स्वंयसेवी संस्था ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट से लिया गया है. जब इसने बहुत सारे लोगों का ध्यान खींचा तो संस्था ने ब्रिटेन के लिए एक और आंकड़ा जारी किया.
इन आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन के पाँच सबसे अमीर परिवारों के पास सबसे ग़रीब 20 फ़ीसदी आबादी के मुकाबले अधिक संपत्ति है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इन आँकड़ों की गणना कैसे की गई?
आंकड़ों का खेल
ऑक्सफैम जीबी में शोध विभाग के प्रमुख रिकॉर्डो फ़्यूएंट्स-नीवा ने क्रेडिट स्विस बैंक की तरफ से जारी ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2013 के आँकड़ों पर विचार किया.ब्रिटेन के आंकड़े भी इसी तरह निकाले गए. इसके लिए क्रेडिट स्विस के आंकड़ों और फोर्ब्स की लिस्ट को आधार बनाया गया.
फ़्यूएंट्स-नीवा कहते हैं, "इसे हम मानते हैं, सभी इसे मानते हैं, इसमें कुछ कमियां भले ही हैं लेकिन ये सबसे बेहतर है."
कितना वाजिब है ये तर्क?
ऑक्सफैम की तुलना में एक दिक्कत है. जानेमाने अर्थशास्त्री एंथोनी शोर्राक्स कहते हैं कि कम संपत्ति का ये मतलब नहीं है कि आप गरीब हैं.पश्चिमी देशों में कुछ लोग जो संपत्ति के लिहाज से 50 प्रतिशत की सीमारेखा पर हैं, हो सकता है कि वो वास्तव में गरीब न हों. हो सकता है कि वो ब्रिटेन के स्नातक हो लेकिन कर्ज के बोझ से दबे हो और उनके पास कोई संपत्ति न हो, या वो एक युवा पेशेवर हो, जिसने अपनी पूरी आमदनी खर्च कर दी है.
स्वीडन की गुटेनबर्ग यूनीवर्सिटी की प्रोफेसर डायड्री मैकक्लोस्की के मुताबिक एक गलत धारणा ये भी है कि इन धनकुबेरों के पास इतनी अधिक संपत्ति है कि ये आधी दुनिया को गरीब बना देते हैं.
वो बताती हैं कि अगर आप 85 सबसे धनी लोगों के पूरे धन को ले लें और गरीबों में बांट दें तो प्रत्येक व्यक्ति की संपत्ति में केवल 500 डालर का इजाफा होगा.
क्या अफ्रीका में दस लाख मसाई लोग हैं?
जनसंख्या अध्ययन विषय की एसोसिएट प्रोफेसर डा. अर्नेस्टीना कोस्ट बताती हैं कि ये आंकड़ा 1998 के एक शोधपत्र में मिलता है, लेकिन इसके लिए जरूरी सबूत वहां नहीं दिए गए हैं.
इन आंकड़ों पर इसलिए संदेह होता है क्योंकि केन्या मसाई लोगों की जनगणना करता है लेकिन तंजानिया में ऐसा नहीं होता.
केन्या की जनगणना के मुताबिक 2009 में वहां करीब 84 लाख लोगों ने खुद को मसाई बताया. कुछ लोग इन आंकड़ों पर संदेह कर सकते हैं. कई मसाई लोग जनगणना के खिलाफ रहते हैं और वो अपने बच्चों की संख्या नहीं बताते हैं.
इसलिए दस लाख वाला आंकड़ा बिना किसी प्रमाण के कई सालों से चल रहा है. हो सकता है कि इसमें बहुत अधिक अंतर न हो, लेकिन हम इस बारे में ठीक से नहीं जानते हैं.
क्या ये सही है कि चौथाई अमरीकियों को ये नहीं पता है कि पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाती है?
संस्था के लिए सर्वेक्षण करने वाले टॉम डब्ल्यू स्मिथ कहते हैं कि सर्वेक्षण के ज्यादातर सवालों का सही जवाब देने के लिए वैज्ञानिक तथ्यों को समझना और उन्हें याद रखना जरूरी था. लेकिन अगर कोई बाहर जाता है और देखता है कि सूरज हर दिन पूरब में उगता है और पश्चिम में डूब जाता है तो आमतौर पर एक गैर-वैज्ञानिक राय यही होगी कि हो सकता है कि सूरज पृथ्वी के चक्कर लगाता हो.
यूरोपीय देशों में बड़ी संख्या में लोग सही जवाब नहीं दे पाए. भारत और मलेशिया में हुए सर्वेक्षणों में भी कुछ ऐसा ही रुझान देखा गया.
क्या ये सही है कि आस्ट्रेलिया में आधे तस्मानिया के लोगों को सही से पढ़ना या लिखना नहीं आता?
साक्षरता के आंकडे 15 से 64 साल के व्यस्कों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर आधारित हैं.ये सर्वेक्षण 2012 में किया गया. इस सर्वेक्षण में एक से शुरू करके पांच स्तर दिए गए. माना गया कि कम से कम तीन स्तर हासिल करने वाले लोग आधुनिक अर्थव्यवस्था का सामना कर सकते हैं.
इस सर्वेक्षण में आधे तस्मानियावासी लेबल तीन तक नहीं पहुंच सके. लेकिन आस्ट्रेलिया के सांख्यिकी ब्यूरो के डां ब्रूस काल्डवेल के मुताबिक इसका ये मतलब नहीं है कि वो अनपढ़ है या गुणाभाग भी नहीं कर सकते हैं.
ये नतीजे आस्ट्रेलिया औसत के मुकाबले थोड़ा ही कम है. वो बताते हैं कि तस्मानिया की आबादी की औसत उम्र अधिक है और सर्वेक्षण में पाया गया है कि 35 साल के बाद टेस्ट में स्कोर घटने लगता है.
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