क्या पत्रकारिता साहित्य की उपेक्षा कर रही है?
गोविंद सिंह। साहित्य और पत्रकारिता के बीच एक अटूट रिश्ता रहा है। एक ज़माना वह था जब इन दोनों को एक-दूसरे का पर्याय समझा जाता था। ज्यादातर पत्रकार साहित्यकार थे और ज्यादातर साहित्यकार पत्रकार। पत्रकारिता में प्रवेश की पहली शर्त ही यह हुआ करती थी कि उसकी देहरी में कदम ...
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पत्रकारीय लेखन के प्रकार : तथ्य से विचार तक
सुभाष धूलिया। तथ्य, विश्लेषण और विचार समाचार लेखन का सबसे पहला सिद्धांत और आदर्श यह है कि तथ्यों से कोई छेड़छाड़ न की जाए। एक पत्रकार का दृष्टिïकोण तथ्यों से निर्धारित हो। तथ्यात्मकता, सत्यात्मकता और वस्तुपरकता में अंतर है। तथ्य अगर पूरी सच्चाई उजागर नहीं करते तो वे सत्यनिष्ठï तथ्य ...
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जनसंपर्क का भविष्य व चुनौतियां
देवाशीष प्रसून। इंटरनेट और मोबाइल जैसे नए माध्यमों को प्रादुर्भाव और इसके इस्तेमाल में हुई बढ़ोतरी के बाद जनसंपर्क का भविष्य भी ज़्यादा से ज़्यादा तकनीकोन्नमुख हो गया है। हमेशा से ज़रूरत यह रही है कि इस माध्यम के द्वारा जनसंपर्क के लिए भेजे जाने वाले लाखों ई-मेल संदेशों में ...
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ट्विटर पर जरा संभलकर
मधुरेन्द्र सिन्हा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्वीटर इन दिनों खूब चर्चा में है। सुपरस्टार सलमान खान को अदालत ने सजा क्या सुनाई, इस पर तो जैसे भूचाल आ गया। हजारों लोग ट्वीटर पर आकर अपने-अपने विचार व्यक्त करने लगे। इतनी बड़ी बात पर विचारों में टकराव होना स्वाभाविक है लेकिन इस ...
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मीडिया के बदलते आयाम
आलोक वर्मा। आज पूरी दुनिया में शायद एक थी ऐसी जगह ढूंढ पाना मुश्किल होगा जहां मीडिया और संचार के तमाम माध्यम अपनी पैठ न चुके हों। हम कहीं भी जाएं, किसी से भी मिल-मीडिया और संचार के माध्यम हमे अपने आस-पास नजर आ ही जाते हैं। मीडिया के कई ...
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…तो, क्या आप भी विज्ञान लेखक बनना चाहते हैं?
देवेंद्र मेवाड़ी। संपादकीयः अगर आप समाचारपत्र में काम करते हैं तो संपादक आपसे विज्ञान के किसी ज्वलंत या सामाजिक मुद्दे पर तत्काल संपादकीय लिखने की अपेक्षा कर सकते हैं। संपादकीय ऐसे मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी है। इससे समाचारपत्र द्वारा उस वैज्ञानिक विषय या घटना को दिए गए महत्व का भी ...
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कहाँ होती है असली ख़बर?
क़मर वहीद नक़वी। एक पत्रकार में सबसे बड़ा गुण क्या होना चाहिए? बाक़ी बातें तो ठीक हैं कि विषय की समझ होनी चाहिए, ख़बर की पकड़ होनी चाहिए, भाषा का कौशल होना चाहिए आदि-आदि। लेकिन मुझे लगता है कि एक पत्रकार को निस्सन्देह एक सन्देहजीवी प्राणी होना चाहिए, उसके मन ...
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कम होती लड़कियां और मीडिया रिपोर्टिंग
अन्नू आनंद। पिछले करीब पांच दशकों से लड़कियों के घटते अनुपात के मसले पर कवरेज का सिलसिला जारी है। 80 के दशक में अमनियोसेंटसिस का इस्तेमाल लिंग निर्धारण के लिए शुरू हुआ तो अखबारों में इस तकनीक के दुरूपयोग संबंधी खबरें आने लगी। इससे पहले देश के कुछ विशेष हिस्सों ...
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संचार की बुलेट थ्योरी : अतीत एवं वर्तमान का पुनरावलोकन
डॉ॰ राम प्रवेश राय। जन संचार के सिद्धांतों को लेकर अक्सर ये बहस चलती रहती है कि ये पुराने सिद्धांत व्यवहार मे महत्वहीन साबित होते है और पत्रकारिता शिक्षण मे इन सिद्धांतों पर अधिक ज़ोर नहीं देना चाहिए। ऐसा ही एक सिद्धांत है बुलेट या हाइपोडर्मिक निडल थ्योरी इसको एक ...
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नेट न्यूट्रेलिटी पर हंगामा क्यों?
भूपेन सिंह। हाल के दिनों में नेट न्यूट्रेलिटी को लेकर काफी हंगामा रहा है। नेट न्यूट्रैलिटी की मांग सड़क से लेकर संसद तक उठी है। दिल्ली, चैन्नई और बेंगलौर में नेट न्यूट्रैलिटी लागू करने के लिए प्रदर्शन हुए हैं तो संसद में भी इस मामले में सवाल-जवाब हुए हैं। मुनाफा ...
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नेपाल त्रासदी में भारतीय मीडिया
आशीष कुमार ‘अंशु’। भारतीय मीडिया को लेकर नेपाल से आ रही खबरों से यह जाहिर था कि मीडिया में जो कुछ आ रहा है, उसे देखकर नेपाल के लोग भारतीय मीडिया के प्रति आक्रोश में हैं। क्या नेपाल के लोगों का यह गुस्सा वास्तव में भारतीय मीडिया से था, या ...
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हिंदी पत्रकारिता की सदाबहार गलतियां
डॉ. महर उद्दीन खां। पत्रकारिता के माध्यम से पाठकों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए अन्य भाषाओं के शब्दों के प्रयोग को अनुचित नहीं कहा जा सकता मगर उन का सही प्रयोग किया जाना चाहिए। देखने में आता है कि जाने अनजाने या अज्ञानता वष कई उर्दू और अंग्रेजी शब्दों ...
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