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टीवी न्यूजचैनलोो का आत्मसंघर्ष





प्रस्तुति- हंस राज पाटिस सुमन                
                         

    
       


भारत में टेलीविजन पत्रकारिता अपनी चरम सीमा पर है। टेलीविजन ने कुछ ही दशकों में पत्रकारिता को एक नई दिशा दी है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रेडियो की हमेशा से ही एक सशक्त पहचान रही है और वर्तमान में न्यू मीडिया नए आयाम गढ़ रहा है, इसी के बीच टेलीविजन पत्रकारिता लगातार खुद को सशक्त करती नजर आती है। टीवी समाचार की बात करें तो हमारे देश में हिंदी समाचार चैनलों की अपनी एक अलग पहचान है। इसके श्रोता अपेक्षाकृत अंग्रेजी न्यूज चैनलों से अधिक हैं। टीवी में समाचार प्रसारण के कई पहलू हैं।
टेलीविजन समाचार प्रसारण में दूरदर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा की गई। पहली बार दूरदर्शन प्रसारण के लंबे अतंराल के बाद नियमित समाचार प्रसारण की शुरूआत 1965 से हुई थी जिसमें हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाएं भी शामिल थीं। 2003 में दूरदर्शन 24 घंटे के समाचार चैनल के रूप में स्थापित किया गया। चौबीस घंटे समाचार बुलेटिनों के प्रसारण के अलावा व्यवसाय, खेल-कूद, स्वास्थ्य, कला और संस्कृति से संबंधित अनेक कार्यक्रमों का नियमित रूप से प्रसारण किया जाता है ।
आज टेलीविजन या समाचार पत्र कहा जाता है। ज्ञान और सूचना के स्त्रोत को दृष्टिगत रखते हुए समाचार पत्र का मुख्य कार्य पाठक को जानकारी देना तथा उसका मनोरंजन करना बताया जाता है। समाचार पत्र के लिए मनोरंजन शब्द बड़ा व्यापक है। पाठक किसी लिंग, आयु, श्रेणी, व्यवसाय अथवा रूची वर्ग का हो सकता है। वैसे भी टेलीविजन में सभी के लिए रूचिकर सामग्री हो-यही मनोरंजन शब्द से अभिप्रत है। साहित्य की विभिन्न विधाओं, उपन्यास-कथा, कविता, संस्करण, जीवनी आदि-बाल जगत, महिला जगत, युवा जगत, वृद्धावस्था, विज्ञान, फिल्म, दूरदर्शन, रंगमंच, संगीत, नृत्य व अन्य कलाओं से जुड़ी समूची पठन सामग्री मनोरंजन का ही अंग कहा जा सकता है। समाचार यानि न्यूज की चर्चा के चलते जानकारी तथा सूचना देने के पक्ष तक ही सीमित रहते हुए यही कहा जा सकता है कि इस पक्ष के भी दो अंग है। एक शुद्ध समाचार तथा दूसरा समाचार के हमारे समाज, देश व समूची मानवता पर पड़े या पड़ सकने वाले प्रभाव का आकलन, विवेचन तथा उस विषय में जनमत तैयार करने का प्रयास है।
बदलती दुनिया, बदलते सामाजिक परिदृश्य, बदलते बाजार, बाजार के आधार पर बदलते शैक्षिक-सांस्कृतिक परिवेश और सूचनाओं के अम्बार ने समाचारों को कई कई प्रकार दे डाले हैं। कभी उंगलियों पर गिन लिये जाने वाले समाचार के प्रकारों को अब पूरी तरह गिना पाना संभव नहीं है। एक बहुत बड़ा सच यह है कि इस समय सूचनाओं का एक बहुत बड़ा बाजार विकसित हो चुका है। इस नये नवेले बाजार में समाचार उत्पाद का रूप लेते जा रहे हैं। समाचार पत्र हों या चैनल, हर ओर समाचारों को ब्रांडेड उत्पाद बनाकर परोसने की कवायद शुरू हो चुकी है। खास और एक्सक्लूसिव बताकर समाचार को पाठकों या दर्शकों तक पहुंचाने की होड़ ठीक उसी तरह है, जिस तरह किसी कम्पनी द्वारा अपने उत्पाद को अधिक से अधिक उपभोक्ताओं तक पहुंचाना।
समाचार के परम्परागत स्त्रोतों में आज भी रेडियो व टीवी का प्रमुख स्थान बना हुआ है। बहुत पहले से रेडियो का इस्तेमाल स्त्रोत के रूप में होता आया है। रेडियो से मिले एक या दो पंक्तियों के समाचार पाकर उसे विस्तृत रूप से प्राप्त कर समाचार पत्र में प्रस्तुत कर देने की कवायद बहुत दिनों से होती आई है।
खबरिया चैनल भी समाचार पत्रों के लिये स्त्रोत का कार्य करते हैं। कभी कभी तो दूर-दराज के समाचारों को टीवी से प्राप्त करके उसे स्थानीयता से जोड़ा जाता है। छोटे समाचार पत्र टीवी के समाचारों और फोटो को प्राप्त करके ही खुद के पृष्ठ भरा करते हैं। वास्तव में जहां समाचार पत्र के संवाददाता नहीं हैं, वहां का टीवी ही सबसे बड़ा स्त्रोत तो है ही, वहां भी महत्वपूर्ण है जहां संवाददाताओं की फौज है। ऐसा इसलिये कि कभी कभी समाचार टीवी से ही पता चलते हैं और तब समाचार पत्रों के संवाददाता घटना स्थल पर पहुंचते हैं या फिर येन केन प्रकारेण उस समाचार का विस्तृत रूप प्राप्त करते हैं। सच यह भी है कि कभी कभी समाचार पत्रों से मिली खबर पर टीवी संवाददाता सक्रिय होते हैं और सजीव विजुअल्स की सहायता से उसे प्रस्तुत करते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मी़डिया एक दूसरे के पूरक हैं।
समाचार संकलन
समाचारों का मार्केट तैयार करने की बात बड़ी तेजी से सामने आ रही है। कुछ नया करके आगे निकल जाने की होड़ में लगभग सभी समाचार पत्र और चैनल शामिल हैं। यही वजह है कि बीसवीं सदी के अंतिम दशक से समाचारों के प्रकारों की फेहरिस्त लगातार बढती नजर आ रही है। इंटरनेट के प्रयोग ने इस फेहरिस्त को लम्बा करने और सम्यक व अद्यतन जानकारियों से लैस करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सच तो यह है कि इंटरनेट ने भारत के समाचार पत्रों को विश्व स्तर के समाचार पत्रों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। सर्वाधिक गुणात्मक सुधार व विकास हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में देखने को मिला है।
समाचार के कई प्रकार हैं। घटना के महत्व, अपेक्षितता, अनपेक्षितता, विषय क्षेत्र, समाचार का महत्व, संपादन हेतु प्राप्त समाचार, प्रकाशन स्थान, समाचार प्रस्तुत करने का ढंग आदि कई आधारों पर समाचारों का विभाजन, महत्ता व गौणता का अंकन किया जाता है। तथा उसके आधार पर समाचारों का प्रकाशन कर उसे पूर्ण, महत्वपूर्ण व सामयिक बनाया जा सकता है।
बीसवीं सदी के अंतिम दशक में हुए सूचना विस्फोट ने समाचार स्त्रोतों का जखीरा ला खड़ा किया है। पुराने प्रचलित स्त्रोतों पर से निर्भरता हटती चली गयी और इंटरनेट के माध्यम से वह सब कुछ कम्प्यूटर स्क्रीन पर प्रस्तुत होने लगा, जिसके लिये संवाददाताओं को लम्बे समय तक चलने वाली कवायद करनी पड़ती थी। इंटरनेट के आगमन के पूर्व समाचार पत्रों के लिये समाचार प्राप्ति के निम्नलिखित ३ स्त्रोत होते थे -
१. ज्ञात स्त्रोत
समाचार प्राप्ति के वे स्त्रोत जिनकी आशा, अपेक्षा, अनुमान पहले से होता है समाचार प्राप्ति के ज्ञात स्त्रोत कहलाते हैं।
पुलिस स्टेशन, ग्राम पालिका, नगर पालिका, अस्पताल, न्यायालय, मंत्रालय, श्मशान, विविध समितियों की बैठकें, सार्वजनिक वक्तव्य, पत्रकार सम्मेलन, सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं के सम्मेलन, सभा-स्थल पर कार्यक्रम आदि समाचार के ज्ञात स्त्रोत हैं।
२. अज्ञात स्त्रोत
समाचारों के वे स्त्रोत जिनकी आशा व अपेक्षा नहीं होती और जहां से समाचार आकस्मिक रूप से प्राप्त होते हैं समाचार प्राप्ति के अज्ञात स्त्रोत कहलाते हैं।
संवाददाता द्वारा सामाजिक चेतना, तर्कशक्ति, ज्ञान, अनुभव और दूरदृष्टि के बल पर एकत्रित किये जाने वाले असंगत, अप्रतीक्षित, आकस्मिक घटनाओं आदि से सम्बंधित समाचार, समाचार प्राप्ति के अज्ञात स्त्रोत हैं।
३. पूर्वानुमानित स्त्रोत
समाचार प्राप्ति के वे स्त्रोत जिनके सम्बंध में पहले से अनुमान लगाया गया हो समाचार के पूर्वानुमानित स्त्रोत कहलाते हैं।
गंदी बस्तियों में फैलने वाली बीमारियों, महामारियों, शिक्षा संस्थानों में होने वाली घपलेबाजियों, कल-कारखानों में मजदूरों द्वारा अपनी मांगों को लेकर होने वाली हड़तालों, तालेबंदियों, निकट भविष्य में होने वाली मूसलाधार बरसातों में धाराशायी होने वाली बहुमंजिली जीर्ण-शीर्ण इमारतों, फसलों व मौसम से सम्बंधित समाचार पूर्वानुमानित होते हैं।
इक्कीसवीं सदी में दिख रहा है सब कुछ संस्कृति के विकसित होने और आम आदमी के बीच साक्षरता बढने के साथ बढी जानने के अधिकार के प्रति जागरुकता ने न केवल संवाददाताओं के मानसिक बोझ को हल्का कर दिया बल्कि वह सब कुछ आसानी से उपलब्ध कराना शुरू कर दिया, जिसके लिये खोजी पत्रकारिता का सहारा लेना शुरू कर दिया गया था।
यह अनायास हुआ नहीं कहा जाएगा कि भ्रष्टाचार के वे मामले भी चुटकियों में प्रकाश में आने लगे, जिसमें प्रधानमंत्री से लेकर अदने से अधिकारी भी लिप्त होते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री को कटघरे में ला खड़ा करने और घोटाले का पर्दाफाश होने पर कई मंत्रियों को त्यागपत्र देने की खबरें अब आम हो चुकी हैं। इलेक्ट्रानिक चैनलों के छिपे कैमरे ने वह सब कुछ दिखाना शुरू कर दिया है, जिसकी शिकायत को हवा में उड़ा देने की तरकीवों में लोग माहिर हो चुके थे। ऐसी खबरों का प्रकाशन होने लगा है, जिन्हें कभी राष्ट्रहित में प्रकाशित न करने की दुहाई देकर संवाददाताओं को लाचार कर दिया जाता था। तहलका द्वारा किया गया सेना में भ्रष्टाचारके मामलों का उजागर होना इसी का उदाहरण है।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इक्कीसवीं सदी में सूचना क्रांति की धमक के साथ प्रवेश करने वाला पाठक या दर्शक इतना अधिक जिज्ञासु हो चुका है कि समय बीतने से पहले वह सब कुछ जान लेना चाहता है, जो उससे जुड़ा है और उसकी रुचि के अनुरूप है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि समाचारों के परम्परागत स्त्रोतों और नये उभरते स्त्रोतों के बीच सार्थक समन्वय स्थापित करके वह सब कुछ समाचार के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाए, जो डिमांड में है। यहां कुछ समाचार स्त्रोतों की चर्चा की जा रही है।
स्थानीय समाचार
गांव या कस्बे, जहां से समाचार पत्र का प्रकाशन होता हो, विद्यालय या अस्पताल की इमारत का निर्माण, स्थानीय दंगे, दो गुटों में संघर्ष जैसे स्थानीय समाचार, जो कि स्थानीय महत्व और क्षेत्रीय समाचार पत्रों की लोकप्रियता को बढाने में सहायक होने के कारण स्थानीय समाचार पत्रों में विशेष स्थान पाते हों, स्थानीय समाचार कहलाते हैं। समाचार यदि लोगों से सीधे जुड़े होते हैं तो उसकी प्रसार व प्रचार की स्थिति बहुत अधिक मजबूत हो जाती है। इधर कई समाचार पत्रों ने अपने स्थानीय संस्करण प्रकाशित करने शुरू कर दिये हैं। ऐसे में दो से सात पृष्ठ स्थानीय समाचारों से भरे जा रहे हैं। यह कवायद स्थानीय बाजार में अपनी पैठ बनाने की भी है, ताकि स्थानीय छोटे छोटे विज्ञापन भी आसानी से प्राप्त किये जा सकें। स्थानीय समाचार में जन सहभागिता भी सुनिश्चित की जाती है, ताकि समाचार पत्र को लेग अपनी ही आवाज का प्रतिरूप मान सकें। कई समाचार पत्रों ने अपने स्थानीय कार्यालय या ब्यूरो स्थापित कर दिये हैं और वहां संवाददाताओं की कई स्तरों वाली फौज भी तैनात कर रखी है।
समाचार चैनलों में भी स्थानीयता को महत्व दिया जाने लगा है। कई समाचार चैनल समाचार पत्रों की ही तरह अपने समाचारों को स्थानीय स्तर पर तैयार करके प्रसारित कर रहे हैं। वे छोटे छोटे आयोजन या घटनाक्रम, जो समाचारों के राष्ट्रीय चैनल पर बमुश्किल स्थान पाते थे, अब सरलता से टीवी स्क्रीन पर प्रसारित होते दिख जाते हैं। कुछ शहरों में स्थानीय केबल समाचार चैनल भी शुरु हो गये हैं, और बहुत लोकप्रिय सिद्ध हो रहे हैं। यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में स्थानीय स्तर पर समाचार चैनल संचालित करने की होड़ मचने वाली है।
प्रादेशिक या क्षेत्रीय समाचार
जैसे जैसे समाचार पत्र व चैनलों का दायरा बढता जा रहा है, वैसे वैसे प्रादेशिक व क्षेत्रीय समाचारों का महत्व भी बढ रहा है। एक समय था कि समाचार पत्रों के राष्ट्रीय संस्करण ही प्रकाशित हुआ करते थे। धीरे धीरे प्रांतीय संस्करण निकलने लगे और अब क्षेत्रीय व स्थानीय संस्करण निकाले जा रहे हैं।
किसी प्रदेश के समाचार पत्रों पर ध्यान दें तो उसके मुख्य पृष्ठ पर प्रांतीय समाचारों की अधिकता रहती है। प्रांतीय समाचारों के लिये प्रदेश शीर्षक से पृष्ठ भी प्रकाशित किये जाते हैं। इसी तरह से पश्चिमांचल, पूर्वांचल या फिर बुंदेलभूमि शीर्षक से पृष्ठ तैयार करके क्षेत्रीय समाचारों को प्रकाशित किया जाने लगा है। प्रदेश व क्षेत्रीय स्तर के ऐसे समाचारों को प्रमुखता से प्रकाशित करना आवश्यक होता है, जो उस प्रदेश व क्षेत्र की अधिसंख्य जनता को प्रभावित करते हों। कुछ समाचार चैनलों ने भी क्षेत्रीय व प्रादेशिक समाचारों को अलग से प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है।
राष्ट्रीय समाचार
देश में हो रहे आम चुनाव, रेल या विमान दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा बाढ, अकाल, महामारी, भूकम्प आदि रेल बजट, वित्तीय बजट से सम्बंधित समाचार, जिनका प्रभाव अखिल देशीय हो, राष्ट्रीय समाचार कहलाते हैं। राष्ट्रीय समाचार स्थानीय और प्रांतीय समाचार पत्रों में भी विशेष स्थान पाते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर घट रही हर घटना दुर्घटना समाचार पत्रों व चैनलों पर महत्वपूर्ण स्थान पाती है। देश के दूर-दराज इलाके में रहने वाला सामान्य सा आदमी भी यह जानना चाहता है कि राष्ट्रीय राजनीति कौन सी करवट ले रही है, केन्द्र सरकार का कौन सा फैसला उसके जीवन को प्रभावित करने जा रहा है, देश के किसी भी कोने में घटने वाली हर वह घटना जो उसके जैसे करोड़ों को हिलाकर रख देगी या उसके जैसे करोड़ों लोगों की जानकारी में आना जरूरी है।
सच यह है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रचार प्रसार ने लोगों को समाचारों के प्रति अत्यधिक जागरुक बनाया है। पल प्रति पल घटने वाली हर बात को जानने की ललक ने कुछ औरकुछ और प्रस्तुत करने की होड़ को बढावा दिया है। सच यह भी है कि लोगों में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने की ललक ने समाचार पत्रों की संख्या में तेजी से वृद्धि की है। एक तरफ इलेक्ट्रानिक मी़डिया से मिली छोटी सी खबर को विस्तार से पढाने की होड़ में शामिल समाचार पत्रों का रंग रूप बदलता गया, वहीं समाचार चैनलों की शुरूआत करके इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अपने दर्शकों को खिसकर जाने से रोकने की कवायद शुरू कर दी। हाल यह है कि किसी भी राष्ट्रीय महत्व की घटना-दुर्घटना या फिर समाचार बनने लायक बात को कोई भी छोड़ देने को तैयार नहीं है, न इलेक्ट्रानिक मीडिया और न ही प्रिंट मीडिया। यही वजह है कि समाचार चैनल जहां राष्ट्रीय समाचारों को अलग से प्रस्तुत करने की कवायद में शामिल हो चुके हैं, वहीं बहुतेरे समाचार पत्र मुख्य व अंतिम कवर पृष्ठ के अतिरिक्त राष्ट्रीय समाचारों के दो-तीन पृष्ठ अलग से प्रकाशित कर रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय समाचार
ग्लोबल गांव की कल्पना को साकार कर देने वाली सूचना क्रांति के बाद के इस समय में अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को प्रकाशित या प्रसारित करना जरूरी हो गया है। साधारण सा साधारण पाठक या दर्शक भी यह जानना चाहता है कि अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव का परिणाम क्या रहा या फिर हालीवुड में इस माह कौन सी फिल्म रिलीज होने जा रही है या फिर आतंकवादी सरगना बिन लादेन कहां छिपा हुआ है। विश्व भर के रोचक रोमांचक को जानने के लिये अब हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के पाठकों और दर्शकों में ललक बढी है। यही कारण है कि यदि समाचार चैनल दुनिया एक नजर में या फिर अंतर्राष्ट्रीय समाचार प्रसारित कर रहे हैं तो हिन्दी के प्रमुख अखबारों ने अराउण्ड द वर्ल्ड, देश विदेश, दुनिया आदि के शीर्षक से पूरा पृष्ठ देना शुरू कर दिया है। समाचार पत्रों व चैनलों के प्रमुख समाचारों की फेहरिस्त में कोई न कोई महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समाचार रहता ही है।
कई चैनलों व समाचार पत्रों ने विश्व के कई प्रमुख शहरों में, खासकर राजधानियों में, अपने संवाददाताओं को नियुक्त कर रखा है। समाचार पत्रों के विदेशी समाचार वाले पृष्ठ को छायाचित्रों सहित इंटरनेट से तैयार किया जाता है। बहुतेरे समाचार विदेशी समाचार एजेंसियों से प्राप्त किये जाते हैं। कई फ्री-लांसिंग करने वाले यानी स्वतंत्र पत्रकारों व छायाकारों ने अपनी व्यक्तिगत वेबसाइट बना रखी है, जो लगातार अद्यतन समाचार व छायाचित्र उपलब्ध कराते रहते हैं। इंटरनेट पर तैरती ये वेबसाइटें कई मायनों में अति महत्वपूर्ण होती है। सच यह है कि जैसे जैसे देश में साक्षरता बढ रही है, वैसे वैसे अधिक से अधिक लोगों में विश्व भर को अपनी जानकारी के दायरे में लाने की होड़ मच गई है। यही वजह है कि समाचार से जुड़ा व्यवसाय अब अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को अधिक से अधिक आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करने की होड़ मंस शामिल हो गया है।
संवाददाता
किसी भी समाचार पत्र या चैनल के लिये सबसे महत्वपूर्ण व कारगर समाचार स्त्रोत उसका संवाददाता होता है। स्वयं द्वारा नियुक्त संवाददाताओं द्वारा संग्रहित जानकारियों पर समाचार पत्र या चैनल को अधिक विश्वास होता है। इसलिये किसी कवरेज पर गये संवाददाता की रिपोर्ट को प्राथमिकता दी जाती है और उस कवरेज से जुड़ी जारी होने वाली विज्ञप्ति को नकार दिया जाता है।
कई बड़े समाचार पत्रों और चैनलों में संवाददाताओं की वैविध्यपूर्ण लम्बी चौड़ी फौज होती है। समाचारों की विविधता के हिसाब के ही संवाददाताओं को नियुक्त किया जाता है। राजनीतिक दलों के लिये अलग अलग संवाददाताओं का होना, शिक्षा-संस्कृति, साहित्य, खेल, अर्थ, विज्ञान, फैशन, न्यायालय, सरकारी कार्यालयों, पुलिस और अपराध आदि विषयों व विभागों की खबरों के लिये अलग-अलग संवाददाताओं का होना अब अपरिहार्य सा हो गया है। एक ओर जहां भूमण्डलीकरण और नई बाजार व्यवस्था में स्वयं को फिट करने के लिये प्रमुख देशों के प्रमुख नगरों में संवाददाता रखे जा रहे हैं, वहीं निरंतर बढ रही साक्षरता के चलते समाचारों के बाजार में अपना कब्जा बनाने के लिये छोटे छोटे गांवों और पिछड़े बाजारों में भी संवाददाता नियुक्त किये जा रहे हैं।
ऐसे में संवाददाताओं की यह जिम्मेदारी हो गयी है कि वे स्वयं को सौंपे गये स्त्रोतों यानी राजीनीतिक दल, स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय, तकनीकी संस्थान, अस्पताल, सरकारी कार्यालयों, न्यायालय, बाजार, पुलिस आदि को खंगालते रहें और लागातार समाचारों को विविधता के साथ प्रस्तुत करते रहें। एक अच्छे अखबार व चैनल में अस्सी प्रतिशत समाचार उसके अपने संवाददाताओं द्वारा खोजे गये, तैयार किये गये और प्रस्तुत किये गये होते हैं।
न्यूज एजेंसी
संवाददाताओं के बाद सबसे अधिक प्रयोग में आने वाला समाचार स्त्रोत न्यूज एजेंसियां हैं। देश विदेश की कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिये समाचार पत्र व चैनलों को इन्हीं पर निर्भर रहना पड़ता है। छोटे और कुछ मझोले समाचार पत्र तो पूरी तरह इन्हीं पर निर्भर होते हैं। देश के दूरदराज इलाकों व विदेशों के विश्वसनीय समाचार प्राप्त करने का यह सस्ता व सुलभ साधन है।
अपने देश में प्रमुख रूप से चार राष्ट्रीय न्यूज एजेंसियां काम कर रही हैं। ये हैं यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया (यूएनआई), प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई), यूनीवार्ता और भाषा। यूएनआई और पीटीआई अंग्रेजी की न्यूज एजेंसी हैं, जबकि यूनीवार्ता व भाषा इन्हीं की हिन्दी समाचार सेवाएं हैं। इनके अतिरिक्त कई अन्य समाचार, विचार और फीचर एजेंसियां हैं, जिनका उपयोग मुख्य रूप से समाचार पत्रों द्वारा किया जा रहा है। बढती प्रतिद्वंदिता के चलते अब विदेशों के समाचारों के लिये विभिन्न विदेशी भाषाओं की न्यूज व फोटो एजेंसियों का भी सहारा लिया जा रहा है।
इंटरनेट
बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में कम्प्यूटर के प्रयोग और नये नये साफ्टवेयरों के कमाल ने समाचार पत्रों को ही नहीं, बल्कि समाचार पत्रों के दफ्तरों तथा समाचार को एकत्र करने वालों, सम्पादन करने वालों और उन्हें सजा-संवारकर कर प्रस्तुत करने वालों व उनकी सोच को भी बदल डाला। दूसरी ओर पाठकों की अपनी अभिरुचि व उनकी अपनी सोच में भी बहुत बड़ा बदलाव आया है। इसके चलते समाचार पत्र निरंतर बदलते रहने पर मजबूर हुए हैं। इस बदलाव को गति देने का कार्य किया है इंटरनेट ने, जिसने समाचारों को न केवल अद्यतन बनाने में सहयोग किया है,बल्कि देश विदेश के ताजातरीन समाचारों को सहजता से उपलब्ध कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सच कहा जाये तो इंटरनेट और इंट्रानेट ने समाचार पत्रों व उनके कार्यालयों की शक्ल ही बदलकर रख दी है। एक ही यूनिट से कई कई ताजा संस्करण निकलना और वह भी रंगीन पृष्ठों के साथ, बहुत ही आसान हो गया है। बहुतेरे समाचारों के इंटरनेट संस्करण भी निकाले जा रहे हैं। वेब दुनिया में विचरते इन समाचार पत्रों के संस्करणों ने न केवल दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है, बल्कि पूरी दुनिया को सोलह से बीस पृष्ठों वाले समाचार पत्र में प्रस्तुत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
जहां तक इंटरनेट के समाचार स्त्रोत के रूप में प्रयोग होने की बात है, तो यहां कहा ही जा सकता है कि इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के प्रारम्भ में ही कई समाचार पत्रों ने इंटरनेट के भरोसे ही देशविदेश का पूरा पृष्ठ ही देना शुरू कर दिया था। सबसे बड़ी बात यह कि जिन विजुअल्स के लिये समाचार पत्र व पाठक तरसते रहते थे, वे सब अब बहुत ही आसानी से उपलब्ध होने लगे हैं। इंटरनेट ने विदेशी समाचारों व फोटो के लिये अब एजेंसियों पर निर्भरता लगभग समाप्त कर दी है। देश विदेश के कई स्वतंत्र पत्रकार व फोटोग्राफर अपने द्वारा तैयार समाचारों और फोटों को एजेंसियों की अपेक्षा इंटरनेट के माध्यम से अधिक त्वरित गति से उपलब्ध करा रहे हैं। आज जिस संवाददाता व फोटोग्राफर की अपनी वेबसाइट नहीं है, उसे बहुत पिछड़ा हुआ माना जा रहा है। यही वजह है कि अब पत्रकारों के लिये कम्प्यूटर साक्षरता के साथ-साथ नेटवर्क साक्षरता अनिवार्य होती जा रही है।
विज्ञप्तियां
समाचारों का बहुत बड़ा स्त्रोत विज्ञप्तियां ही होती हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि समाचार पत्र के पृष्ठों को भरने के लिये ताजा समाचार उपलब्ध ही नहीं होते, ऐसे में कार्यालय में पहुंची विज्ञप्तियां यानी प्रेस नोट ही वरदान साबित होती हैं। प्राय: विज्ञप्तियां दो प्रकार की होती हैं सामान्य और सरकारी विज्ञप्तियां।
सामान्य विज्ञप्तियां किसी शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, खेल, आर्थिक, तकनीकी आदि के संस्थान, स्वयंसेवी संगठन, क्लब और संस्थाओं, राजनीतिक दल, श्रमिक-कर्मचारी संगठन, सामान्य जन आदि से भेजी जाती हैं। समाचार पत्रों में उपलब्ध स्थान का बहुत बड़ा हिस्सा इन्ही विज्ञप्तियों से भरा जाता है। समाचार पत्रों के कार्यालय में बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो अथ विज्ञप्ति दाता तेरी जय हो कथन के ही पोषक होते हैं।
सरकारी विज्ञप्तियां विभिन्न सरकारी कार्यालयों द्वारा या तो सीधे या फिर सूचना कार्यालय के माध्यम से कार्यालयों में पहुंचायी जाती हैं। केन्द्र व प्रदेश सरकार के मंत्रियों के कार्यक्रमों व उनके वक्तव्यों से जुड़े समाचारों की विज्ञप्तियां सूचना विभाग के माध्यम से ही प्राप्त होती है। समाचार पत्रों में एक चलन सा है कि सरकारी संस्थानों या अर्धसरकारी उपक्रमों द्वारा सीधे या फिर सूचना विभाग द्वारा जारी विज्ञप्तियों को जस का तस छाप दिया जाता है।
होना यह चाहिए कि विज्ञप्तियों से अपने समाचार पत्र की भाषा, शैली व प्रस्तुतिकरण के आधार पर समाचार तैयार किये जाएं। यह मानकर चलना चाहिए कि अच्छे पाठक हमेशा संवाददाताओं द्वारा लिखे व प्रस्तुत किये गये समाचारों को ही पढना चाहते हैं। विज्ञप्तियों को सिरे से खारिज कर देने की प्रवृत्ति बहुतों में देखने को मिलती है। कई संवाददाता विज्ञप्तियों की एक लाइन पकड़कर पूरा का पूरा एक्सक्लूसिव समाचार तैयार कर लेने में कामयाब हो जाते हैं और उन्हें बाइलाइन यानी समाचार पर नाम भी मिल जाता है। कुशल संवाददाता विज्ञप्तियों को सतर्क होकर पढता है और न केवल रुचिकर समाचार बनाता है, बल्कि इनसेट और बाक्स भी तलाश लेता है।

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