दिनेश श्रीवास्तव: गीता महात्म्य
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परम दिव्य साहित्य है,भगवतगीता लेख।
पढ़ें नित्य इसको सभी,पावन यही प्रलेख।।-१
सखा,शिष्य या भक्त हों,ज्ञानी योगी रूप।
भक्ति भाव चिंतन करें,दिखता कृष्ण स्वरूप।।-२
मूल्यवान कोई नही,इससे अधिक विलेख।
ज्ञान संपदा निहित है,व्यास लिखित आलेख।।-३
आओ गीता शरण मे,अन्य शास्त्र को छोड़।
अक्षर अक्षर ज्ञान से,जीवन को दो मोड़।।-४
गीता अमृत ज्ञान है,प्रभु वाणी से युक्त।
भवसागर की मैल से,शीघ्र करे ये मुक्त।।-५
गीता गंगाजल करें,अवगाहन इक बार।
शोक मोह से शीघ्र ही,देगा यही उबार।।-६
उपनिषदों का सार है,गीता गाय समान।
कृष्ण दूहते गाय को,भक्त करें रसपान।।-७
पुत्र देवकी गान ही,गीता का है ज्ञान।
गीता सम कोई नही,दूजा शास्त्र महान।।८
कर्म,ज्ञान या भक्ति का,पावन है संयोग।
गीता में ही निहित है,यह पुरुषोत्तम योग।।-९
अति पवित्र इस ग्रन्थ में,यदुनंदन संदेश।
पालन इस संदेश का,सविनय करे 'दिनेश'।।
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद
[26/01, 06:54] Ds दिनेश श्रीवास्तव: हिंदी ग़ज़ल
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कहाँ आज गणतंत्र हमारा?
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कहाँ आज गणतंत्र हमारा,कैसे गाऊँ गीत।
चिंता यही गिरेगी कैसे,नफ़रत की ये भीत।।
ईश्वर भी हैं बँटे यहाँ पर,ख़ुदा और जगदीश।
पेश अक़ीदत करता कोई,कहीं भक्ति संगीत।।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,कहते भाई भाई।
बाँटा इनको राजनीति ने,कभी न बनते मीत।।
झंडा ऊँचा रहे हमारा,विजयी विश्व तिरंगा भी।
खींच रहे हैं टाँग मगर,इक दूजे के विपरीत।।
संविधान है एक हमारा,झंडा भी है एक।
भाषा 'हिंदी'नहीं राष्ट्र की,वर्ष अनेकों बीत।।
रहते हैं हम यहाँ देश मे,खाते इसका अन्न।
पर पसंद आता है हमको,पाकिस्तानी रीत।।
सोने की चिड़िया था भारत,सर्वाधिक सम्पन्न।
गौरव गाथा पढ़ना है तो,देखो ज़रा अतीत।।
राष्ट्र भक्ति का नारा देते,थोथे हैं आदर्श।
तोड़ फोड़ कर भारत माँ से,दिखलाते हैं प्रीत।
केसरिया में काला धब्बा,लाल न बने सफ़ेद।
इस 'दिनेश'के साथ मिलो तुम,कटुता करो व्यतीत ।।
जय हिंद🇮🇳
दिनेश श्रीवास्तव
[27/01, 07:41] Ds दिनेश श्रीवास्तव: दोहे
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मधुमय भारतवर्ष
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पिकानंद मधुमास या,कामसखा ऋतुराज।
मधुमाधव स्वागत करूँ, हे रतिप्रिय!मैं आज।।-१
अब वसंत का आगमन,धरती हुई विभोर।
नाच रही है साँझ भी,नाच रही है भोर।।-२
नवगति नवलय छंद से,गाती कुदरत गीत।
कोना कोना भर गया,नवरस का संगीत।।-३
कलमकार भी अब करें,अक्षर से शृंगार।
कामदेव रति का मिलन, लिखें अनूठा प्यार।।-४
कला कांति सौंदर्य का,देता शुभ संदेश।
जीवन मे हो आपके,वासंतिक परिवेश।।-५
खिले फूल अब चमन में,भौंरे गाते गीत।
कुहू कुहू कोयल करे,अब आ जाओ मीत।।।-६
ऊष्मा भी अब धूप की,देता यह अहसास।
निश्चित मेरा कंत भी,लाएगा मधुमास।।-७
पंचसरों की कामना,करते सभी सहर्ष।
शब्द,गंध,मधुरस मिले, चरम रूप उत्कर्ष।।-८
पीत पुष्प अर्पित करूँ,पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती,करना कृपा अशेष।।-९
यह 'दिनेश'भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।-१०
सबके घर आँगन दिखे,सौ वसंत सा हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा, मधुमय भारत वर्ष।।-११
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद
[27/01, 15:21] anami sharan: दोहे
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मधुमय भारतवर्ष
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पिकानंद मधुमास या,कामसखा ऋतुराज।
मधुमाधव स्वागत करूँ, हे रतिप्रिय!मैं आज।।-१
अब वसंत का आगमन,धरती हुई विभोर।
नाच रही है साँझ भी,नाच रही है भोर।।-२
नवगति नवलय छंद से,गाती कुदरत गीत।
कोना कोना भर गया,नवरस का संगीत।।-३
कलमकार भी अब करें,अक्षर से शृंगार।
कामदेव रति का मिलन, लिखें अनूठा प्यार।।-४
कला कांति सौंदर्य का,देता शुभ संदेश।
जीवन मे हो आपके,वासंतिक परिवेश।।-५
खिले फूल अब चमन में,भौंरे गाते गीत।
कुहू कुहू कोयल करे,अब आ जाओ मीत।।।-६
ऊष्मा भी अब धूप की,देता यह अहसास।
निश्चित मेरा कंत भी,लाएगा मधुमास।।-७
पंचसरों की कामना,करते सभी सहर्ष।
शब्द,गंध,मधुरस मिले, चरम रूप उत्कर्ष।।-८
पीत पुष्प अर्पित करूँ,पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती,करना कृपा अशेष।।-९
यह 'दिनेश'भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।-१०
सबके घर आँगन दिखे,सौ वसंत सा हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा, मधुमय भारत वर्ष।।-११
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद
[27/01, 15:27] anami sharan: दोहे
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मधुमय भारतवर्ष
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पिकानंद मधुमास या,कामसखा ऋतुराज।
मधुमाधव स्वागत करूँ, हे रतिप्रिय!मैं आज।।-१
अब वसंत का आगमन,धरती हुई विभोर।
नाच रही है साँझ भी,नाच रही है भोर।।-२
नवगति नवलय छंद से,गाती कुदरत गीत।
कोना कोना भर गया,नवरस का संगीत।।-३
कलमकार भी अब करें,अक्षर से शृंगार।
कामदेव रति का मिलन, लिखें अनूठा प्यार।।-४
कला कांति सौंदर्य का,देता शुभ संदेश।
जीवन मे हो आपके,वासंतिक परिवेश।।-५
खिले फूल अब चमन में,भौंरे गाते गीत।
कुहू कुहू कोयल करे,अब आ जाओ मीत।।।-६
ऊष्मा भी अब धूप की,देता यह अहसास।
निश्चित मेरा कंत भी,लाएगा मधुमास।।-७
पंचसरों की कामना,करते सभी सहर्ष।
शब्द,गंध,मधुरस मिले, चरम रूप उत्कर्ष।।-८
पीत पुष्प अर्पित करूँ,पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती,करना कृपा अशेष।।-९
यह 'दिनेश'भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।-१०
सबके घर आँगन दिखे,सौ वसंत सा हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा, मधुमय भारत वर्ष।।-११
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद
[29/01, 10:17] Ds दिनेश श्रीवास्तव: वसंत पंचमी
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पीत पुष्प अर्पित करूँ, पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती, करना कृपा अशेष।।
यह 'दिनेश'भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।
सब के घर आँगन दिखे,सौ वसंत का हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा,मधुमय भारत वर्ष।।
वसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामना।
दिनेश श्रीवास्तव
[05/02, 07:33] Ds दिनेश श्रीवास्तव: कुण्डलिया
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(१)
करना वंदन ईश का,सदा झुकाना शीश।
शरणागत पर फिर कृपा,करते हैं जगदीश।।
करते हैं जगदीश,नहीं फिर दुविधा होती।
शंका होती दूर, चदुर्दिक सुविधा होती।।
करता विनय 'दिनेश',ध्यान उर में है धरना।
करके मन को शुद्ध,ईश वंदन है करना।।
(२)
भाया मुझको कब कहाँ,आया यहाँ वसंत।
करे ठिठोली पूछता,कहाँ हमारा कंत।।
कहाँ हमारा कंत, पूछता है वह जबसे।
प्रियतम गए विदेश,पूछता है वह तबसे।।
विरहन का वो दर्द,बढ़ाने देखो आया।
अब तो फूटी आँख, नहीं हमको है भाया।।
(३)
पूजा वृक्षों की करें,वे ही हैं आराध्य।
वही हमारी साधना,वही हमारे साध्य।।
वही हमारे साध्य,धरा वृक्षों से भरना।
यही हमारा कर्म,धर्म है हमको करना।।
कहता यहाँ'दिनेश',नहीं कारण है दूजा।
यही हमारे देव,वृक्ष की करनी पूजा।।
(४)
इससे बढ़कर कौन है,परम जगत का मित्र।
वृक्षरोपण से अधिक,तीरथ कौन पवित्र।।
तीरथ कौन पवित्र,यहाँ धरती पर इतना।
धरती का श्रृंगार,सदा करने से जितना।।
जीवन का अस्तित्व,आज कायम है जिससे।
कोई नहीं दिनेश!मित्र है बढ़कर इससे।।
दिनेश श्रीवास्तव
गाज़ियाबाद
[08/02, 11:17] Ds दिनेश श्रीवास्तव: कुण्डलिया
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विषय------पानी
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(१)
पानी का संग्रह करें,बूँद बूँद का मूल्य।
बिन पानी जीवन कहाँ,पानी तो बहुमूल्य।।
पानी तो बहुमूल्य, नष्ट मत करना भाई।
ये प्रकृति की देन,इसी में रहे भलाई।।
करता विनय 'दिनेश',सुनाता यही कहानी।
समझो इसका मूल्य,व्यर्थ मत करना पानी।।
( २)
पानी बिन ब्याकुल रहें,जीव जंतु संसार।
दोहन इसका रोकिए,बूंद बूंद से प्यार।।
बूंद बूंद से प्यार,सदा करना ही होगा।
सबके मन मे बात,यही धरना ही होगा।।
कहता यहाँ दिनेश,सभी की राम कहानी।।
व्यर्थ धरा पर रोज,बहाते जाते पानी।।
(३)
पानी हो या वृक्ष हो,करना मत संहार।
दोनो ही इस जगत में,धरती का शृंगार।।
धरती का शृंगार, वृक्ष का रोपण करना।
पानी का भी खूब,यहाँ संपोषण करना।।
करता विनय'दिनेश',सुनो अब उसकी वानी।
यहाँ लगाकर वृक्ष,बचाना होगा पानी।।
दिनेश श्रीवास्तव
[14/02, 10:25] Ds दिनेश श्रीवास्तव: वतन से प्यार है अपना,वतन दिलदार है अपना,
वही महबूब अपना है,वही तो यार है अपना।
धरा अपनी गगन अपना,ये भारत देश अपना है,
इसी से इश्क़ है मुझको,यही संसार है अपना।।
प्रेम दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
दिनेश श्रीवास्तव
[09/03, 13:48] Ds दिनेश श्रीवास्तव: "होली"पर रंग-विरंगे
दोहे
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कभी न करिए रंग को,होली में बदरंग।
नशा छोड़कर खेलिए,तजिए पीना भंग।।-१
सबसे सुंदर है यहाँ, चढ़े प्रीत का रंग।
द्वेष घृणा ही देश को,करता है बदरंग।।-२
रँगिए अपने आप को,सदा श्याम के रंग।
खेलें होली आप फिर,राधा-रानी संग।।-३
साली सलहज साथ में,साले पर भी रंग।
सराबोर कर दीजिए,बचे न कोई अंग।।-४
साले को चोरी छिपे,पिला दीजिए भंग।
फिर सलहज के साथ मे,खेलें खुलकर रंग।।-५
शृंगारिक परिवेश में,उद्दीपन हो भाव।
तब अनंग के रंग का,होता प्रबल प्रभाव।।-६
यही प्रीत की रीत है,रंगों का त्योहार।
दुश्मन को भी दीजिए,निज बाहों का हार।।-७
भेज पड़ोसी देश में,भारत से कुछ रंग।
कहिए उनसे अब यहाँ, छोड़ें करना जंग।।-८
किसने क्या है कह दिया,शांत समूचा हाल।
बिन गुलाल ही हो गया,गाल कहाँ से लाल।।?-९
नेता जी भी लग रहे,रँग में रँगे सियार।
गिरगिट बनने को सदा,रहते हैं तैयार।।-१०
क्या करना मुझको यहाँ, लेकर हाथ गुलाल।
'कोरोना'ने कर दिया,सबको है बेहाल।।-११
अपने ही हाथों मलें,अपने हाथ गुलाल।
सेल्फी लेकर भेजिए,फिर अपने ससुराल।।-१२
गुझिया पापड़ देखकर,इठलाता मोमोज।
खड़ा अकेले हाट में,देता सेल्फी पोज।।-१३
केसरिया के साथ में,हरा,श्वेत का रंग।
विजयी विश्व बनाइए,अरि हो जाएँ दंग।।-१४
मन को पावन कीजिए, दिल को करें न तंग।
कभी किसी के रंग में,पड़े न कोई भंग।।-१५
ले गुलाल मत घूमिए,कर से करें प्रणाम।
देता यही दिनेश है,सबको अब पैगाम।।-१६
दिनेश श्रीवास्तव
[10/03, 12:37] Ds दिनेश श्रीवास्तव: "खेलें होली - होली आज"
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मन के मैल मिटाकर कर आओ!
खेलें होली- होली आज।
दिल के वैर भुलाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।
सदियों से जो रहा यहाँ पर,
बहती आयी है रसधारा।
करुणा प्रेम दया की अबतक,
बहती अविरल रही त्रिधारा।
इसमें आज नहाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।
धरती नभ आकाश सितारे,
सभी हमारे और तुम्हारे।
समरसता का पाठ पढ़ाते,
लगते सबको प्यारे-प्यारे।
सबको गले लगाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।
नदिया पर्वत झरने जंगल,
करते रहते सबका मंगल।
एक भाव से प्यार लुटाते,
नहीं सोचते कभी अमंगल।
मंगल भाव जगाकर आओ!
खेलें होली-होली आज।
दिल के वैर भुलाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।
होली की अनंत शुभकामनाएँ।
दिनेश श्रीवास्तव
गाजियाबाद
[13/03, 18:14] Ds दिनेश श्रीवास्तव: कॅरोना वायरस-कारण और निदान
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एक 'कॅरोना'वायरस,जग को किया तबाह।
निकल रही सबकी यहाँ, देखो कैसी आह।।-1
विश्वतंत्र व्याकुल हुआ,मरे हजारों लोग।
आपातित इस काल को,विश्व रहा है भोग।।-2
खान-पान आचरण ही,इसका कारण आज।
रक्ष-भक्ष की जिंदगी,दूषित आज समाज।।-3
योग-साधना छोड़कर,दुराचरण है व्याप्त।
काया कलुषित हो गई, मानस शक्ति समाप्त ।।-4
स्वसन तंत्र का संक्रमण,करता विकट प्रहार।
शीघ्र काल-कवलित करे,करता है संहार।।-5
ये विषाणु का रोग है,करता शीघ्र विनास।
रोगी से दूरी बने,रहें न उसके पास।।-6
हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
ये विषाणु, इसका सदा,शीघ्र फैलना काम।।-7
हो बुखार खाँसी कभी,सर्दी और ज़ुकाम।
हल्के में मत लीजिए,लक्षण यही तमाम।।-8
भोजन नहीं गरिष्ठ हो,हल्का हो व्यायाम।
रहें चिकित्सक पास में,करिए फिर विश्राम।।-9
तुलसी का सेवन करें,श्याम-मिर्च के साथ।
पत्ता डाल गिलोय का,ग्रहण करें नित क्वाथ।।-10
करें विटामिन 'सी' सदा,अक्सर हम उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई रोग।।-11
रहना अपने देश मे,अनुनय करे 'दिनेश'।
प्यारा अपना देश है,जाना नहीं विदेश।।-12
आएँ अगर चपेट में,रखिये धीरज आप।
वैद्य दवा के साथ ही,महा मृत्युंजय जाप।।-13
दिनेश श्रीवास्तव
गाज़ियाबाद
[15/03, 15:06] Ds दिनेश श्रीवास्तव: गीतिका
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चिंता चिता समान
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चिंता ज्वाला बन करे, नित प्रति दग्ध शरीर।
चिंता चिता समान है,अति उपजाए पीर।।
पंथी करता क्यों यहाँ, पथ की चिंता आज।
मिलता उसको है यहाँ, लिखी गई तकदीर।।
क्या लेकर आए यहाँ, जाओगे सब छोड़।
फिर तुम किसकी चाह में,होते यहाँ अधीर।।
नश्वर जीवन है यहाँ, पुनर्जन्म है सत्य।
चिंतित हैं फिर किस लिए,राजा,रंक, फ़क़ीर।।
जीवन मे किसको मिला,सब कुछ यहाँ जहान।
गया सिकंदर लौट कर,खाली हाथ शरीर।।
चिंतित हो चिंतन करे,मानव प्रज्ञाहीन।
चिंता में व्याकुल यहाँ, पीटे व्यर्थ लकीर।।
कर्मशील बनकर रहो,चिंतामुक्त 'दिनेश'।
सत्य यही सब कह गए, गीता,कृष्ण,कबीर।।
दिनेश श्रीवास्तव
[17/03, 10:12] Ds दिनेश श्रीवास्तव: बाल-कविता
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बापू ने जो राह दिखाई,
साफ सफाई करना भाई।
रोग व्याधियाँ दूर रहेंगी,
मोदी ने भी अलख जगाई।।
नए नए ये रोग निराले,
सुने नहीं थे,देखे भाले।
इसके कारण विश्व काँपता,
'कोरोना'को कौन सम्हाले।।
"स्वच्छमेव जयते"का नारा,
नारा यही हमारा प्यारा।
इससे सारे रोग भगेंगे,
यही हमारा बने सहारा।।
'कोरोना'को दूर भगाएँ,
साफ सफाई को अपनाएँ।
बापू के संदेश जगत को,
एक बार फिर से समझाएँ।।
सभी प्रश्न का एक है उत्तर,
धोना होगा हाथ निरंतर।
गर्म गर्म पानी को पीना,
इसका यह अचूक है मंतर।।
कभी न इससे है घबराना,
भीड़ भाड में कहीं न जाना।
दूर दूर से हाथ जोड़ना,
नहीं किसी को गले लगाना।।
नीबू और संतरा खाना,
मिले आँवला उसे चबाना।
लेकर शस्त्र विटामिन 'सी'का,
'कोरोना'को आज हराना।।
दिनेश श्रीवास्तव
[19/03, 11:11] Ds दिनेश श्रीवास्तव: दोहे-
"कोरोना से बचाव"
हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
यही हमारी सभ्यता,सुबह मिलें या शाम।।-१
प्रियजन भगिनी या सुता,गले न मिलिए आप।
दूर रहें सब प्रेमिका,छोड़ प्रेम का ताप।।-२
प्रक्षालन हो हाथ का,साबुन से भरपूर।
प्रियजन को भी कीजिये,धोने को मजबूर।।-३
करें विटामिन 'सी'सदा,भोजन में उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई रोग।।-४
भीड़ भाड़ लगता जहाँ,वहाँ न जाएँ आप।
मिल सकता है आप को,कोरोना संताप।।-५
काली मिर्च गिलोय का,तुलसी अदरक साथ।
सेंधा नमक मिलाइए, बना पीजिए क्वाथ।।-६
सेवन प्रतिदिन कीजिए,नीबू एक निचोड़।
और आंवला स्वरस भी,काम करे बेजोड़।।-७
अपनी शक्ति बढ़ाइए, फिर प्रहार पुरजोर।
कोरोना भी हारकर,भगे मचाते शोर।।-८
अक्ष भक्ष को छोड़कर,भोजन शाकाहार।
करें निरंतर आप फिर,रोगों का संहार।।-९
बहुत जरूरी हो अगर, बाहर निकलें आप।
मास्क लगाकर निकलिए,करते शिव का जाप।।-१०
दिनेश श्रीवास्तव
[19/03, 19:03] Ds दिनेश श्रीवास्तव: गीत
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अक्ष भक्ष की धारणा,करते हैं व्यभिचार।
यही राक्षसी वृत्तियाँ,छोड़ो मेरे यार।।
मानव करता जा रहा,अपने को ही अंत।
कथनी करनी भेद से,नहीं अछूता संत।।
ढोंग प्रदर्शन को सदा,रहता है तैयार।
यही राक्षसी-----------------------।।
कुदरत के कानून को,तोड़ रहे सब लोग।
तरह तरह की व्याधियाँ,भोग रहे सब लोग।।
कुदरत भी तैयार है,करने को प्रतिकार।
यही राक्षसी--------------------।।
निष्कंटक जीवन बने,व्यर्थ मचे क्यों शोर।
मुड़कर फिर से देखिए,इस प्रकृति की ओर।।
दोहन इसका रोकिए,बने न ये लाचार।
यही राक्षसी---------------------।।
कोरोना का रोग भी,फैला है जो आज।
लगता कुदरत ही यहाँ, हमसे है नाराज।।
नष्ट भ्रष्ट हमने किया,कुदरत का शृंगार।।
यही राक्षसी--------------------।।
दिनेश श्रीवास्तव
[20/03, 08:58] Ds दिनेश श्रीवास्तव: निर्भय दिवस
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निर्भय दिवस मनाइए
खुश होइए
निर्द्वंद होकर
सो जाइये।
क्योंकि
दरिंदे सो गए
चिरंतन नींद में।
अब कभी नहीं
होगा बलात्कार,
बहू बेटियों का
होगा सत्कार।
नहीं मरेंगी बेटियाँ अब
लेकिन भ्रूण हत्या
रुकेगी कब?
हत्या तो हत्या है,
चाहे पेट में या
सड़क पर।
फाँसी का विकल्प
केवल और केवल
होता है संकल्प
हत्या न करने का
पेट मे या सड़क पर।।
दिनेश श्रीवास्तव