दिनेश श्रीवास्तव:
दोहें"धैर्य"
दस लक्षण हैं धर्म के, प्रथम धैर्य का नाम।
धैर्य सदा धारण करें, ज्यों पुरुषोत्तम राम।।-१
सदा धैर्य को धारिए, कभी न बनें अधीर,
सुख-दुख में समदर्शिता, रखते केवल वीर।।-२
धीर- वीर-गंभीर जो,कर जाते हैं काम।
उनका ही होता सदा,यहाँ जगत में नाम।।-३
जीवन का पहिया चले, धूरी धैर्य सशक्त।
धैर्य बिना जीवन कहाँ, मानव रहे अशक्त।।-४
राम कृष्ण या बुद्ध हों, महावीर सम वीर।
विपदा का जब काल था, बने न कभी अधीर।।-५
जीवन में रखिए सदा,धैर्य धीरता आप।
संजीवन बूटी यही, मिटे सभी संताप।।-६
विपदा आयी है बड़ी, निकल रही है आह।
धैर्य अगर टूटा यहाँ,होगा विश्व तबाह।।-७
विपदा के इस काल में, मानव है जब तंग।
धीर पुरुष बन जीतिए, 'कोरोना'से जंग।।-८
संयम,साहस,धीरता,शुचिता संव्यवहार।
'कोरोना'के रोग पर,इनसे करें प्रहार।।-९
धैर्यशीलता मनुज का, सद्गुण एक महान।
होती विपदा काल में, इस गुण की पहचान।।-१०
तालाबंदी हो गया,प्रतिष्ठान सब बंद।
धीरज रख कर मानिए,सरकारी प्रतिबंध।।-११
धीरज का आया यही,यहाँ परीक्षण काल।
सरकारी अनुदेश पर,उठे न कभी सवाल।।-१२
अक्षरशः पालन करें,कुछ दिन की है बात।
बाद अँधेरी रात के,आता सुखद प्रभात।।-१३
धारित करती धारिणी, धरा जगत का भार।
धरती की यह धीरता, उपकृत है संसार।।-१४
धीरज के इस काल में,पड़े न साहस मंद।
कलम सदा चलती रहे,घर दरवाजे बंद।।
'कोरोना'से मुक्त हो,स्वछ रहे परिवेश।
धैर्य न टूटे आपका,विनती करे 'दिनेश'।।-१६
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद
कैरोना वायरस-कारण और निदान
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एक 'कॅरोना'वायरस,जग को किया तबाह।
निकल रही सबकी यहाँ, देखो कैसी आह।।-1
विश्वतंत्र व्याकुल हुआ,मरे हजारों लोग।
आपातित इस काल को,विश्व रहा है भोग।।-2
खान-पान आचरण ही,इसका कारण आज।
रक्ष-भक्ष की जिंदगी,दूषित आज समाज।।-3
योग-साधना छोड़कर,दुराचरण है व्याप्त।
काया कलुषित हो गई, मानस शक्ति समाप्त ।।-4
स्वसन तंत्र का संक्रमण,करता विकट प्रहार।
शीघ्र काल-कवलित करे,करता है संहार।।-5
ये विषाणु का रोग है,करता शीघ्र विनास।
रोगी से दूरी बने,रहें न उसके पास।।-6
हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
ये विषाणु, इसका सदा,शीघ्र फैलना काम।।-7
हो बुखार खाँसी कभी,सर्दी और ज़ुकाम।
हल्के में मत लीजिए,लक्षण यही तमाम।।-8
भोजन नहीं गरिष्ठ हो,हल्का हो व्यायाम।
रहें चिकित्सक पास में,करिए फिर विश्राम।।-9
तुलसी का सेवन करें,श्याम-मिर्च के साथ।
पत्ता डाल गिलोय का,ग्रहण करें नित क्वाथ।।-10
करें विटामिन 'सी' सदा,अक्सर हम उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई रोग।।-11
रहना अपने देश मे,अनुनय करे 'दिनेश'।
प्यारा अपना देश है,जाना नहीं विदेश।।-12
आएँ अगर चपेट में,रखिये धीरज आप।
वैद्य दवा के साथ ही,महा मृत्युंजय जाप।।-13
दिनेश श्रीवास्तव
गाज़ियाबाद
दिनेश श्रीवास्तव: गीतिका
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चिंता चिता समान
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चिंता ज्वाला बन करे, नित प्रति दग्ध शरीर।
चिंता चिता समान है,अति उपजाए पीर।।
पंथी करता क्यों यहाँ, पथ की चिंता आज।
मिलता उसको है यहाँ, लिखी गई तकदीर।।
क्या लेकर आए यहाँ, जाओगे सब छोड़।
फिर तुम किसकी चाह में,होते यहाँ अधीर।।
नश्वर जीवन है यहाँ, पुनर्जन्म है सत्य।
चिंतित हैं फिर किस लिए,राजा,रंक, फ़क़ीर।।
जीवन मे किसको मिला,सब कुछ यहाँ जहान।
गया सिकंदर लौट कर,खाली हाथ शरीर।।
चिंतित हो चिंतन करे,मानव प्रज्ञाहीन।
चिंता में व्याकुल यहाँ, पीटे व्यर्थ लकीर।।
कर्मशील बनकर रहो,चिंतामुक्त 'दिनेश'।
सत्य यही सब कह गए, गीता,कृष्ण,कबीर।।
दिनेश श्रीवास्तव: बाल-कविता
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बापू ने जो राह दिखाई,
साफ सफाई करना भाई।
रोग व्याधियाँ दूर रहेंगी,
मोदी ने भी अलख जगाई।।
नए नए ये रोग निराले,
सुने नहीं थे,देखे भाले।
इसके कारण विश्व काँपता,
'कोरोना'को कौन सम्हाले।।
"स्वच्छमेव जयते"का नारा,
नारा यही हमारा प्यारा।
इससे सारे रोग भगेंगे,
यही हमारा बने सहारा।।
'कोरोना'को दूर भगाएँ,
साफ सफाई को अपनाएँ।
बापू के संदेश जगत को,
एक बार फिर से समझाएँ।।
सभी प्रश्न का एक है उत्तर,
धोना होगा हाथ निरंतर।
गर्म गर्म पानी को पीना,
इसका यह अचूक है मंतर।।
कभी न इससे है घबराना,
भीड़ भाड में कहीं न जाना।
दूर दूर से हाथ जोड़ना,
नहीं किसी को गले लगाना।।
नीबू और संतरा खाना,
मिले आँवला उसे चबाना।
लेकर शस्त्र विटामिन 'सी'का,
'कोरोना'को आज हराना।।
दिनेश श्रीवास्तव: दोहे-
"कोरोना से बचाव"
हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
यही हमारी सभ्यता,सुबह मिलें या शाम।।-१
प्रियजन भगिनी या सुता,गले न मिलिए आप।
दूर रहें सब प्रेमिका,छोड़ प्रेम का ताप।।-२
प्रक्षालन हो हाथ का,साबुन से भरपूर।
प्रियजन को भी कीजिये,धोने को मजबूर।।-३
करें विटामिन 'सी'सदा,भोजन में उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई रोग।।-४
भीड़ भाड़ लगता जहाँ,वहाँ न जाएँ आप।
मिल सकता है आप को,कोरोना संताप।।-५
काली मिर्च गिलोय का,तुलसी अदरक साथ।
सेंधा नमक मिलाइए, बना पीजिए क्वाथ।।-६
सेवन प्रतिदिन कीजिए,नीबू एक निचोड़।
और आंवला स्वरस भी,काम करे बेजोड़।।-७
अपनी शक्ति बढ़ाइए, फिर प्रहार पुरजोर।
कोरोना भी हारकर,भगे मचाते शोर।।-८
अक्ष भक्ष को छोड़कर,भोजन शाकाहार।
करें निरंतर आप फिर,रोगों का संहार।।-९
बहुत जरूरी हो अगर, बाहर निकलें आप।
मास्क लगाकर निकलिए,करते शिव का जाप।।-१०
दिनेश श्रीवास्तव
गीत
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अक्ष भक्ष की धारणा,करते हैं व्यभिचार।
यही राक्षसी वृत्तियाँ,छोड़ो मेरे यार।।
मानव करता जा रहा,अपने को ही अंत।
कथनी करनी भेद से,नहीं अछूता संत।।
ढोंग प्रदर्शन को सदा,रहता है तैयार।
यही राक्षसी-----------------------।।
कुदरत के कानून को,तोड़ रहे सब लोग।
तरह तरह की व्याधियाँ,भोग रहे सब लोग।।
कुदरत भी तैयार है,करने को प्रतिकार।
यही राक्षसी--------------------।।
निष्कंटक जीवन बने,व्यर्थ मचे क्यों शोर।
मुड़कर फिर से देखिए,इस प्रकृति की ओर।।
दोहन इसका रोकिए,बने न ये लाचार।
यही राक्षसी---------------------।।
कोरोना का रोग भी,फैला है जो आज।
लगता कुदरत ही यहाँ, हमसे है नाराज।।
नष्ट भ्रष्ट हमने किया,कुदरत का शृंगार।।
यही राक्षसी--------------------।।
दिनेश श्रीवास्तव: दोहे
"धैर्य"
दस लक्षण हैं धर्म के, प्रथम धैर्य का नाम।
धैर्य सदा धारण करें, ज्यों पुरुषोत्तम राम।।-१
सदा धैर्य को धारिए, कभी न बनें अधीर,
सुख-दुख में समदर्शिता, रखते केवल वीर।।-२
धीर- वीर-गंभीर जो,कर जाते हैं काम।
उनका ही होता सदा,यहाँ जगत में नाम।।-३
जीवन का पहिया चले, धूरी धैर्य सशक्त।
धैर्य बिना जीवन कहाँ, मानव रहे अशक्त।।-४
राम कृष्ण या बुद्ध हों, महावीर सम वीर।
विपदा का जब काल था, बने न कभी अधीर।।-५
जीवन में रखिए सदा,धैर्य धीरता आप।
संजीवन बूटी यही, मिटे सभी संताप।।-६
विपदा है आई बड़ी, निकल रही है आह।
धैर्य अगर टूटा यहाँ,होगा विश्व तबाह।।-७
विपदा के इस काल में, मानव है जब तंग।
धीर पुरुष बन जीतिए, 'कोरोना'से जंग।।-८
धैर्यशीलता मनुज का, सद्गुण एक महान।
होती विपदा काल में, इस गुण की पहचान।।-९
धारित करती धारिणी, धरा जगत का भार।
धरती की यह धीरता, उपकृत है संसार।।-१०
दिनेश श्रीवास्तव: अपील
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सुन सारे!कहाँ से आवत हवे रे घूम के?
जब मना बा त का जरूरत बा एने वोने घुमला के।बुझात नइखे का।पूरा देश परेशान बा आ तोहार मटरगस्ती चालू बा।
सुन ले सुमेरवा!कान खोल के-
थेथरई मत कर न त टास्क फोर्स पकड़ लेई तब का करबे?घरवे में बैठला के काम बा।
आपो सभे कान खोल के सुन लेयीं और गाँठ बाँध लेयीं-
लबर लबर कर के समान नहीं खरीदिये।दुकान भागल नहीं जा रहा है।
बढ़िया से हाथ गोड धो के बिस्तर पर पड़े रहिए।हाथ त कई बार सबुनाइये।मन घबराए त बी बी सी लंदन घरहि में बैठ के सुन लीजिए नाहीं त घरवे में जोगीरा गाईये।बहरा जायके कौनो काम नइखे।
घर के लईकन आ बुढ़ऊ क हाथ पैर बांध के घरहि में रखिये।
भोरे खरिहान जाना है त अकेलही जाईये।
खयिनी अकेलहिं ठोकिये और अकेलही खाइये।केहुसे न त माँगिये और न दीजिए।
कोरोना भुतहा रोग नहीं है।केहू ओझा सोखा के पास मत जाइए।
बुखार खाँसी सर्दी ज़ुकाम पहिलहुँ होखे।घबराए के नइखे।हँ कई दिन से होखे त डॉक्टर बाबू के पास जरूर जाईये।
बाकी भगवान पर भरोसा रखिये।कुछु ना होई।
हाँ, मोदी क कहना मान के एक दिन 22 के घरहि में अपने को बंद कर लीजिए।
🙏
दिनेश श्रीवास्तव:
"जनता कर्फ्यू"
जनता कर्फ्यू का करें,अभिनंदन सब लोग।
दूर भगेगा जानिए,कोरोना का रोग।।
कोरोना का रोग,बैठकर घर में रहिए।
कुछ दिन का ये कष्ट,इसे हँसकर अब सहिए।।
करता विनय दिनेश, धर्म है सबका बनता।
मोदी जी की बात,सभी अब माने जनता।।
दिनेश श्रीवास्तव:
वायरस-चेन
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तोड़ दीजिए चेन को,हो जाएँगे मुक्त।
घातक है जो वायरस,हो जाएगा सुस्त।
हो जाएगा सुस्त,यहाँ फैलाव रुकेगा।
जाएगा ये हार,और फिर यहाँ झुकेगा।।
कोई आये पास,हाथ को जोड़ लीजिए।
यही वायरस चेन, इसे अब तोड़ दीजिए।।
दिनेश श्रीवास्तव:
गीतिका-
सफल रहे अभियान
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जहाँ नहीं कुछ हाथ में,ईश्वर का हो ध्यान।
वही शक्ति देगा हमे,और बचेगा प्रान।।
अभी शेष है देश में,तरह तरह के शस्त्र।
अभी कृष्ण का चक्र है,अभी राम का बान।।
विश्व जगत व्याकुल हुआ,वैज्ञानिक सब फेल।
सभी धार्मिक जगत का,व्यर्थ हुआ सब ज्ञान।।
संत पुरोहित थक गए,मुल्ले सभी फ़क़ीर।
आज चिकित्सा जगत का,करना है सम्मान।।
अहर्निशं सेवामहे, लगे चिकित्सक नर्स।
बजे तालियाँ आज फिर,उनका ही हो गान।।
छोड़ छाड़ सब आज फिर,लेकर चम्मच-थाल।
उनको भी दे दीजिए,थोड़ी सी मुस्कान।।
अँधियारा तो क्षणिक है,पुनःउजाली रात।
खंडित करना है यहाँ, अँधियारे का मान।।
टूटेगा अब आज यह,महासंक्रमण चेन।
जन जन का होगा यहाँ,निश्चित ही कल्यान।।
हारेगा यह एक दिन, मन में है विश्वास।
कोरोना का बाप भी,'मोदी'का फरमान।।
संकट की यह बात है,और संक्रमण- काल।
करता विनय 'दिनेश'है,सफल रहे अभियान।।
दिनेश श्रीवास्तव
२२ मार्च २०२०
६.४५ प्रातः
ओ