[ *इतिहास याद रखेगा*
*इस दिन को*
*जब पूरा संसार*
*डगमगा रहा था*
*तब*
*हिंदुस्तान जगमगा रहा था*
1
: जब जब मैं इस तरह की पोस्ट पढ़ती हूँ , मुझे दो वर्ष पूर्व घटी अपने जीवन की दर्दनाक घटना याद आती है .यह घटना मेरी बेटी से जुड़ी है.इस समय यह प्रासंगिक नहीं है पर इसका सन्दर्भ इन बातों से जुड़ता है.
दो वर्ष पूर्व मेरी बेटी अक्षरधाम (दिल्ली )के सामने दुर्घटना ग्रस्त होगई,एक टांग का घुटने से लेकर एड़ी तक मांस फट कर दो तरफ़ झूल गया ,सारा शरीर छिल गया ,गर्दन झटका लगने से एक तरफ़ झुक गई.धूल धूप मक्खियों के बीच अपने बहते खून को देखती वह असहनीय दर्द कोझेलती आधा घंटा पड़ी रही.कैसे ,किसने उसे पास के नर्सिगहोम पहुँचाया यह अलग कहानी है .
मैं जो इस समय कहना चाह रही हूँ नर्सिंगहोम से प्रारम्भ होती है.वहां के डाक्टरों ने हालत देखकर हॉस्पिटल लेजाने को कहा.मेरे दामाद सीधे अपॉलो हॉस्पिटल दौड़े ,वहाँ डॉक्टर ने कहा -इलाज होजाएगा पर कितने दिन रहना पड़ेगा हम नहीं कह सकते.एक महीना से तीन महीने सोच लें.सोचने का समय कहाँ था ?समय था जीवन रक्षा का . आठदिन बाद सब लोगों ने रुकी साँस छोड़ी -जीवन बच गया .
अब दूसरी -चिंता टांग बच जाए .
परिवार के लोग हाय हाय करते हॉस्पिटल जाते और आते.पर दो व्यक्ति दृढ़ थे ,एक मेरा दामाद ,उसने अपनी प्राइवेट कंपनी से लम्बा अवकाश लेलिया ,जॉब की चिंता नहीं की .अपने दो छोटे बच्चों की चिंता नहीं की.
पैसे की चिंता नहीं की.
दूसरे थे अपॉलो के डा. उनसे हम पूछते -कब तक ठीक होगी ? हमेशा एक ही उत्तर देते -मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ .पर कह नहीं सकता कब और कितना ठीक होगा .
एक दिन उन्होंने मेरी बेटी से कहा -तुम ठीक होना चाहती हो तो किसी से मत मिलो,यह वेल्ले हैं.काम मुझे और तुम्हें करना है.बाहर वाले लोग आगे क्या होगा ऐसी चिंता करतेहैं.हमें आज क्या करना है ,यह सोचना है.रोज एक नई चुनौती सामने आएगी ,हम दोनों को उसका सामना करना है.
सच में रोज़ नई चुनौती आती.जांघ से लेकर पैर की उँगली तक रूई,दवाईऔर पट्टी बदली जाती .उस प्रक्रिया के दर्द की कल्पना करते आज भी मन काँप जाता है.
दो महीने बाद पट्टी खोलकर एक छड़ी पकड़ा कर कहा -बस आठ दिन सहारा लेना .
उसके बाद कहा-अपने जॉब पर लौट जाओ.घर में मत बैठना.अपने को अपंग मत बनाना.
लड़की ठीक से चल नहीं पाती थी ,पैर काँपते थे. हम जैसे बहुत थे ,कहते -हाय हाय क्या होगा ! कल की दुश्चिंताओं में घिरे हम,आज की चुनौती से बचना चाहते हैं .
यह तो एक युवा लड़की की एक टांग का सवाल था और अब पूरी मानवता अनिश्चितता की स्थिति में है !! तब भी आप आशा का एक दीप अपने मन की देहरी पर नहीं रख सकते ?
अपने मन की दुश्चिंता दूसरों पर डाल कर क्यों अंधेरा फैला रहे हैं ?
मत करिए प्रधानमंत्री पर विश्वास.पर दूसरे आप पर विश्वास करें ,इस समय ऐसा कोई चमत्कार करिए न !
कल की मत सोचिए ,आज क्या करना है ?
[06/04, 00:11] +91 98711 36501: मोदी जी के आह्वान पर जनता जिस कदर जुनूनऔर जोश से भरी दिखती है उसके लिए अभूतपूर्व , अविश्वसनीय, असाधारण जैसे शब्द मायने नहीं रखते, ताली -थाली के बाद अंधकार मे प्रकाश की लौ 9 मिनट तक देश को आलोकित कर गयी, सलाम प्रधानमंत्री जी.....
किसी ने सटीक टिप्पणी की थी कि ऐसी संकट की घड़ी में विधाता की कृपा से जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री हैं तो फिर गम की बात नहीं। यह शख्स युग दृष्टा है और इसे अविचलित रह कर बडी से बडी चुनौती का सफलता के साथ सामना करने का वह विरल गुण है जो शायद ही किसी अन्य में दिखा हो।
कैसे निराशा में भी आशा का संचार किया जा सकता है,'निस्संदेह यह हुनर नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का वैशिष्ट्य है। कैसे देश को एकजुट किया जा सकता है, एकता के सूत्र में बांधा जा सकता है, यह कोई इस अनथक परिश्रमी प्रधानमंत्री से सीखे।
आप देखिए न, 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दौरान ताली और थाली का करतब देशवासियों की थाती बन गया। रविवार पांच अप्रैल को देश के राष्ट्रपति से लेकर सेवक बाबूलाल तक को आतुरता के साथ इन्तजार था रात नौ बजे का कि कैसे वो घर की बत्तियां बुझा कर दीये जलाए नौ मिनट तक।
हो सकता है कि एक खास समुदाय के कुछ सिरफिरे अपवाद हो अन्यथा एक अरब से ज्यादा ने नौ मिनट वही किया जो मोदी जी चाहते थे।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सपरिवार दीया जलाया जबकि दूसरे जितने भी केंद्रीय मंत्री थे, सबने अपने घरों में दीये जलाए।
एकबारगी नहीं लगा कि देश या जगत पर कोरोना वायरस के भयावह संक्रमण का साया है। संदेह हुआ कि चैत्र में दीपावली कैसे मनाई जा रही है। मुंबई जो दिन में घोस्ट टाउन (भुतहा शहर) लग रहा था, वही रात्रि में उसकाआसमान जुगनुओं सरीखा दिख रहा था। लग रहा था मानो तारे जमीन पर उतर आए हो ।
शाम सात बजे से ही जब क्षितिज पर कालिमा का राज हो रहा था, तब देश को प्रकाशमान करने की तैयारी तेज हो गई। दीये और मोमबत्ती से लैस लोग कुछ ज्यादा तैयारी को लेकर व्यग्र थे क्योंकि दीये को साफ कर उसमें तेल का संचार करना था जबकि मोमबत्ती को पैकेट से निकालने के बाद कैसे हाथों में लेना है, यह तय करने का रिहर्सल हो रहा था। मोबाइल और टार्च वाले आराम से थे क्योंकि उनके पास रेडिमेड व्यवस्था थी। पूरे देश में लग रहा था कि गोया दीपावली की तैयारी हो रही थी। लोग कई दिन से दीये खरीदने लगे थे। इस चक्कर में क्वारंटीन का पालन भी नहीं हुआ। वैसे यह भी कम दिलचस्प नहीं था कि कभी चीनी झालर कुम्हारों के घरों को प्रकाशोत्सव में अंधेरा कर दिया करती रही थी। उन्ही प्रजापतियों के दिन फिर गये। नये दीये बनाने के लिए चाक देरी तक चली। नयो के साथ पुराने भी बिक गए।
यूपी के सीएम योगी ने मोमबत्ती जलाकर पीएम के आह्वान का स्वागत किया तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने भी दीया जलाया। क्या खास और क्या आम, सबने उत्साह से भाग लिया। सोशल डिस्टेंसिंग भी की गई। इतना ही नहीं अति उत्साह में पटाखे भी फोड़े गए।
हम सभी ने एक कभी न भूलने वाली नौ मिनटों की रात देखी।वो भी बिना चायनीज झालर के दीवाली मनाई गई ।
किसी ने कितनी सामयिक टिप्पणी की - इतिहास याद रखेगा
इस दिन को
जब पूरा संसार
डगमगा रहा था
तब हिंदुस्तान जगमगा रहा था
।