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नया गीत /दीपाली जैन





नया गीत
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ए री सखी सुन साजन को अब दूजी कोई भाये रे
याद रहे जग सारा लेकिन,याद न मेरी आये रे
जैसे बिन फूलों के उपवन वैसी बिन साजन बिरहन
जीवित हूं पर प्राण नहीं है कोई उन्हें बतलाये रे

सुन री सखी सुन क्या सौतन के केश घने घुंघराले हैं
क्या दोनों नैना ऐसे जैसे मदिरा के प्याले हैं
दो अधरों के कुंज सखी क्या मनमोहन मतवाले हैं
गोरी काया से सज्जित क्या यौवन के उजियाले हैं
अगर नहीं तो फिर क्या है जो पी का जी भरमाये रे
जीवित हूँ..

सुन री सखी सुन क्या सौतन मुझसे भी मीठा बोले है
क्या लगता है क्या मूंई बातों में मिसरी घोले है
क्या उनके मन तक जाती हर बात बिना मुख खोले है
जाने ऐसा क्या है जिस पर प्रियतम का मन डोले है
क्यों मुझसे भी अच्छी लागे, कोई मुझे समझाए रे
जीवित हूँ ....

राह निहारूँ, बांह पसारूं , घर आंगन का द्वार बुहारूं
नैनों से बहते गंगाजल से , प्रियतम के पांव पखारूं
सुलझाई लट फिर सुलझाऊँ , उनके मन सा रूप संवारूं
उन तक मेरी आह न पहुंचे , सारी सारी रैन पुकारूं
बस इक अंतिम दर्शन पाकर , ये जोगन मर जाये रे
जीवित हूँ.....

दीपाली जैन

।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।





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