और लो अब ऋषि कपूर भी
रवि अरोड़ा
उस दिन बेहद ठंड थी । अचानक ख़बर मिली की आज टेलीविजन पर बॉबी फ़िल्म दिखाई जाएगी । वही बॉबी जो उस दौर के हम टीन एजर्स का ख़्वाब थी । जेब में इतने पैसे नहीं होते थे कि सिनेमाघर में जाकर चुपके से वह फ़िल्म देख आते और घर वालों ने वह फ़िल्म यूँ नहीं दिखाई कि बड़े होते बच्चों को एसी फ़िल्म क़तई नहीं देखनी चाहिये थी । देश में एमर्जेंसी ताज़ी ताज़ी हटी थी और बड़े लोग बताते थे कि इंदिरा गांधी का अब तख़्ता पलटने वाला है । उम्र इतनी नहीं थी कि राजनीति को समझता मगर यह ज़रूर पता था कि आज दिल्ली में कांग्रेस के विरोध में कोई बड़ी रैली होनी है और उसमें लोग न जायें इसलिए ही टेलिविज़न पर बॉबी दिखाई जा रही है । उन दिनो दूरदर्शन के अलावा और कोई चैनल होता नहीं था और दूरदर्शन को मनोरंजन से पता नहीं क्या चिड़ थी कि केवल बुधवार को चित्रहार कार्यक्रम के नाम पर पाँच सात गाने और इतवार को छः बजे कोई पुरानी सड़ी सी फ़िल्म दिखा कर जय राम जी की कर लेता था । मगर वह दिन कुछ और ही था और उस दिन टीवी पर बॉबी जैसी शाहकार फ़िल्म आनी थी सो मोहल्ले का एक भी बच्चा और किशोर टेलिविज़न के आगे से हिला तक नहीं । ऋषि कपूर को पहली बार तब ही देखा था और वह भी चौदह इंच की ब्लैक एंड व्हाइट स्क्रीन पर ।
बॉबी फ़िल्म क्या थी हम जैसे टीन एजर्स के सपनों का फ़िल्मांकन था । अट्ठारह साल के ऋषि कपूर और सोलह साल की डिम्पल कपाड़िया वह सब करते दिखे तो पहले मम्मी डैडी की उम्र के लोग फ़िल्मों में करते दिखते थे । मेरी उम्र के किशोरों को पहली बार पता चला कि अब हम भी बच्चे नहीं रहे , बड़े हो रहे हैं । एसा होता भी भला क्यों नहीं , टीन एजर्स की भावनाओं को पहली बार ही तो फ़िल्माया गया था । और टीन एजर्स के आइकन उनके आदर्श थे ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया । ख़ैर कुछ साल बाद पता चला कि ऋषि कपूर श्री 420 और मेरा नाम जोकर में बाल कलाकार के रूप में भी थे । मेरा जोकर फ़िल्म के घाटे को पूरा करने के लिए ही बॉलीवुड के पहले शो मैन राजकपूर ने अपने मँझले बेटे चिंटू यानि ऋषि कपूर को लेकर बॉबी बनाई और आज से 47 साल पहले तीस करोड़ रुपये कमाए जो उस समय का एसा रिकार्ड था जिसे टूटने में काफ़ी वक़्त लगा । बेशक बॉबी में राजकपूर ने ऋषि को चांस दिया मगर उसके बाद ऋषि ने बॉलीवुड में अपनी जो जड़े बनाईं उसका श्रेय उनकी मेहनत और ज़बरदस्त एक्टिंग को ही जाता है । पहला चांस तो राज कपूर ने अपने सबसे छोटे बेटे राजीव कपूर को भी दिया था मगर वे तो नहीं चल पाये । उनके चाचा शशि कपूर ने भी अपने बच्चों संजना , कुणाल और करन कपूर को स्टार बनाने की बहुत कोशिश की मगर टेलेंट का तो कोई विकल्प हो ही नहीं सकता ना । फ़िल्म इंडस्ट्री में बेशक स्टार पुत्र पुत्रियों को लेकर तमाम तरह की बातें की जाती हैं मगर मैदान में ऋषि कपूर जैसे वही तो जम पाते हैं , जिनमे कुछ दम ख़म होता है ।
बेशक ऋषि कपूर ने कभी कोई सामाजिक बदलाव मार्का फ़िल्म नहीं की मगर समाज तो फिर भी उनके पीछे ही चला । उन्होंने जो छोटी मोटर साइकिल फ़िल्म में चलाई हमने बॉबी मोटर साइकिल कह कर दसियों साल उसे चलाया । उन्ही की नक़ल में बाल बढ़ाये , जाली वाली बानियान पहनी और पाँच फ़ुटा मफ़लर गले में लटकाया । बाक़ी का तो पता नहीं मगर आज जो पचास से सत्तर साल का हिंदुस्तानी आदमी है वह कहीं न कहीं ऋषि कपूर को ही फ़ॉलो करता नज़र आता है । ड्रेस सेंस , स्टाइल , मौक़े-बेमौके नाचने गाने की अदा , बिंदास हाव भाव और बढ़ते वज़न के प्रति लापरवाही को लेकर जाने अनजाने हम उनकी ही तो नक़ल कर रहे होते हैं । मगर अब जब अगली बेंच पर बैठा ऋषि अपनी कॉपी एग्जामनर को थमा कर क्लास से बाहर चला गया है तो हमारा सदमे में आना लाज़मी है । अब किसकी नक़ल करेंगे ?