अमेरिका और चीन: युद्ध के मुहाने
खबर है कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में घुस आए अमेरिका के एक जंगी जहाज को खदेड़ दिया है। यह भी कि अमेरिका ने चीन के इस दावे का खंडन किया है और इलाके में बमवर्षक विमानों को भेजा है। कहना ही होगा कि जिस समय दुनिया कोरोना से लड़ते हुए अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है, ऐसे समय चीन और अमेरिका उसे किसी महायुद्ध में भी धकेलने के लिए आतुर दिखाई दे रहे हैं।
सयानों की मानें तो कोरोना के बहाने इन दोनों महायोद्धाओं के बीच शीत युद्ध कभी का छिड़ भी चुका है। चीन पर आरोप है कि उसने कोरोना के बारे में पूरी दुनिया को गलत और अधूरी सूचनाएँ देकर गुमराह किया। चीन के पास इसके जवाब में अपने तर्क हैं। लेकिन अमेरिका तो खुद को खुदाई फौजदार मानता है। उसे चीन को दंडित करने का जुनून चढ़ गया लगता है। इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति पहले तो कोरोना को चीनी महामारी घोषित करते हैं, फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन का पैसा बंद करते हैं और अंततः यह रहस्योद्घाटन करते हैं कि चीन उन्हें पुनः राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। उनके इस बयान का असली निहितार्थ यह है कि कोरोना संकट को ठीक से न सँभाल पाने के कारण उन्हें राष्ट्रपति के रूप में अपनी वापसी खतरे में पड़ी दिखाई देने लगी है, इसलिए चुनाव जीतने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसके लिए वे आजकल हर किसी को हड़काने में लगे हुए हैं। उन्हें इसकी चिंता नहीं है कि अगर चीन के साथ युद्ध छिड़ा, तो दुनिया का क्या होगा। उन्हें इस वक़्त राष्ट्रपति के आसन्न चुनाव के अलावा शायद कुछ नहीं दिखाई दे रहा! दूसरी तरफ चीन भी दूध का धुला नहीं। उसके लिए भी कोरोना महामारी 'संकट कम और अवसर अधिक' है। अवसर अपनी सामरिक ताकत बढ़ाने का। अचरज नहीं कि जिस समय तमाम देश कोरोना विश्वमारी को नकेल डालने के पैंतरे खोज रहे हैं, चीन युद्धाभ्यास कर रहा है। यही वजह है कि इन दोनों बड़े युद्धप्रिय देशों के बीच तनाव इन दिनों तेजी से चरम की ओर बढ़ रहा है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की सदर्न थिएटर कमान के प्रवक्ता सीनियर कर्नल ली हुआमिन ने कहा है कि अमेरिका ने अपनी उकसाने वाली हरकत से अंतरराष्ट्रीय कानूनों की धज्जियाँ उड़ाई हैं और चीन की संप्रभुता तथा उसके सुरक्षा हितों का गंभीर उल्लंघन किया है। लेकिन, चीनी भाई, तुम्हीं कौन से कम हो? भला किससे छिपा है कि तुम फिलीपींस में मूँगे के बने द्वीपों के ऊपर कंक्रीट डाल रहे हो और उन्हें रिसर्च स्टेशनों में बदल रहे हो? पर शायद अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे! हाँ, आप दोनों की इस तनातनी का कोरोना से दुनिया की लड़ाई पर ज़रूर बेहद खराब असर होगा।
गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर में अमेरिका और चीन का आमना सामना फिलहाल टल भले ही गया हो, खत्म नहीं हुआ है। आज नहीं तो कल, यानी कोरोना संकट से उबरते ही वह फिर उभरेगा, क्योंकि अमेरिका और यूरोप के तमाम देश कोरोना के लिए चीन को जिम्मेदार मानते हैं। उनका यह मानना निराधार भी नहीं है कि चीन ने उनसे इस संकटकाल में धूर्त और कपटी कारोबारी की तरह व्यवहार किया है। इसलिए वे मौका मिलते ही उसे सबक सिखाना चाहेंगे ही। बेशक ऐसे किसी सबक के लिए अभी उपयुक्त समय नहीं है, लेकिन आगामी राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र डोनाल्ड ट्रंप चीन पर अपने हमले बंद नहीं कर सकते। चीन के साथ किसी भी तरह की नरमी डोनाल्ड ट्रंप के लिए निजी स्तर पर घातक होगी। इसलिए यह तनाव अभी और बढेगा।
बेशक, भारत को भी सजग रहना होगा। 000।।
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