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मेरे प्रिय / मनु लक्ष्मी मिश्रा

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मेरे प्रिय
 मुझसे मेरे दिल का अब तुम हाल न पूछो
ढाये हो कितने ही सितम पर उन दर्दों का
सिलसिलेवार तुम मुझसे बयान न पूछो
मेरे प्रिय ..................

कैसे ये वीरान हुआ तेरे मेरे रिश्तों का उपवन
कौन सा शिक़वा था मुझसे और किसने की   मेरी मुखालफत
कैसे हूँ जिन्दा अबतक अब तुम ये सवाल न पूछो
मेरे प्रिय ..........   ............
तुमसे मिलकर मानो खुद से मिलना हो जाता है
जब याद तुम्हारी आती है मन जाने कैसा हो जाता है
कितना समाये हो मुझमें तुम अब ये बात न पूंछो
मेरे प्रिय ..........................
कितना झाँक चुके हो तुम इस दर्दे दिल के आँगन में
जाने कितनी ही पाबन्दी तुमने डाली इन पावों में
इन सूखे अधरों की तुम अब प्यास न पूछो
मेरे प्रिय .........................
शब्द कहे थे गूंज उसी की अब भी मुझको बहकाती है
सिर्फ नाम तुम्हारा काफी है और याद तेरी महकाती है
उन शब्दों के अहसासों का अब विश्वास न पूछो
मेरे प्रिय ..................
मैं क्यूँ न तुम्हारी हो पायी क्यूँ साल रही ये तन्हाई
कैसे बीते ये सुख-दुःख के पल क्यूँ और किसी को न बता पायी
 इस हृदय वेदना की तड़पन का अब राज न पूछो
मेरे प्रिय.........................
प्यार तुम्हारा वफ़ा तुम्हारी इसी में खुश थी मैं तो हरपल
तेरे बदन की भीनी खुशबु में था भीगा सारा तनमन
इस मधुर छुअन के स्पंदन का मखमली अहसास न पूछो
मेरे प्रिय.....................
कहने वाले क्या क्या कहते है नहीं मुझे उसकी चिंता
बस नजरों से अपनी न गिराना नहीं तो मैं सवरूँगी कैसे
मेरी इन आशाओं में ही छुपे हुए अरमान न पूछो
मेरे प्रिय................
जब भी देखा मेरी आँखों में अक्स खुद ही का पाया है
थी अपूर्ण फिर पूर्ण तुम्ही से ये घर  हमने जो बसाया है
अपना ये घर कब मकाँ हुआ अब इसकी दास्तान न पूछो
मेरे प्रिय..................
इक दिन प्यार तुम्हारा लेकर जाऊंगी भगवन के पास
मैं छोडूंगी इस दुनिया को और हो जाउंगी कविता की प्यास
मेरी इन बंद आँखों में फिर छुपा हुआ तुम प्यार न पूंछो
मेरे प्रिय मुझसे मेरे दिल का तुम अब हाल न पूंछो...

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