नरेश गोयल: बेहद शानदार टेक ऑफ़ से जेट एयरवेज़ की क्रैश लैंडिंग तक

जेट एयरवेज़ से अपने 26 साल पुराने रिश्ते ख़त्म करते समय जब नरेश गोयल ने सोमवार को अपने स्टाफ़ को एक भावुक खत लिखा तो उनके जेहन में अपने शुरूआती दिन ज़रूर आए होंगे.
1970 के दशक में वे दिल्ली के बंगाली मार्केट के तानसेन मार्ग के एक घर की बरसाती में रहते थे, वे कस्तूरबा गांधी मार्ग की एक ट्रैवल एजेंसी में काम करते थे, वो दफ़्तर अंसल भवन में था.
दरअसल, वो उनके रिश्ते के चाचा चरणदास गोयल का दफ्तर था. उसमें बैठने के लिए दो-तीन कुर्सियां भी नहीं होती थीं, पर नरेश गोयल दफ़्तर में कुर्सियों पर बैठने के लिए पंजाब के संगरूर से पटियाला के रास्ते दिल्ली नहीं आए थे.
नरेश गोयल को पटियाला में रहते हुए समझ आ गया था कि एयरलाइनों की टिकट बेचकर पैसा कमाया जा सकता है. वे पटियाला के बारादरी इलाके में भी एकाध ट्रेवल एजेंसी में काम कर चुके थे. पंजाब से 1960 और 1970 के दशकों में बड़ी तादाद में लोग ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में जा रहे थे.
बाद में यह ट्रेंड 1980 के दशक में खाड़ी की तरफ मुड़ गया था. नरेश गोयल को पता था कि दिल्ली में रहकर लंबी छलांग लगाना मुमकिन है इसलिए दिल्ली में वे चाचा जी के पास नौकरी करने लगे.
नाश्ता ऱिफ्यूजी मार्केट में
बंगाली मार्केट से कस्तूरबा गांधी मार्ग पहुंचने के रास्ते में रिफ्यूजी मार्केट से गुज़रना होता है इसलिए वे सुबह का नाश्ता इसी मार्केट के किसी ढाबे पर कर लिया करते थे. बंगाली मार्केट के मध्यवर्गीय रेस्तरां में नाश्ता करने भर का पैसा नरेश गोयल की जेब में नहीं था.
उन्हें कभी-कभार बंगाली स्वीट्स के मालिक लाला भीमसेन की पत्नी घर खाना खाने के लिए बुला लिया करती थीं, मृदुभाषी नरेश गोयल ने बंगाली मार्किट में रहते हुए तमाम दुकानदारों और अन्य लोगों से दोस्ती कर ली थी, दोस्ती करने और निभाने के उनके गुणों का उन्हें आगे चलकर भरपूर लाभ भी हुआ.

वायुदूत एयरलाइन के चेयरमैन रहे हर्षवर्धन कहते हैं, "नरेश गोयल ने मोटा पैसा तब कमाना चालू किया जब वे सिंगापुर एयरलाइंस के जनरल सेल्स एजेंट (जीएसए) बने, ये बातें 1980 के शुरूआती सालों की हैं. वो इससे पहले इराक़ और कुवैत एयरलाइंसों के जीएसए बन चुके थे. उन्हें विदेशी एयरलाइंस इसलिए अपना जीएसए बना रही थीं क्योंकि उनकी क्षमताओं से सब वाकिफ थे. फिर उन्हें एविएशन सेक्टर में सब जानते थे. अब वे चरणदास जी को छोड़ चुके थे. हर महीने 3-4 लाख के बिजनेस पर 50 हजार रुपये तक कमा रहे थे."
जाहिर है, उस दौर में 50 हजार तक हर महीने कमाना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी.
दोस्ती जेआरडी टाटा और पवार से
दक्षिण भारत और ख़ास तौर पर केरल के लोग काम-धंधे के लिए खाड़ी देशों का रुख करने लगे थे, वे मुंबई के रास्ते ही दुबई, बहरीन, रियाद, शरजाह और अबूधाबी जा रहे थे. नरेश गोयल को समझ आ रहा था कि अब दिल्ली में रहकर बात नहीं बनेगी. बड़ा खेल मुंबई में रहकर ही होगा, कुछ समय तक वो दिल्ली-मुंबई के बीच आते-जाते रहे.
कई बार वो सुबह मुंबई जाकर शाम को दिल्ली वापस आने लगे, इसी दौर में उन्होंने टाटा समूह के आइकनिक चेयरमेन जेआरडी टाटा से भी दोस्ती गांठ ली. वे शरद पवार से भी मिलने जुलने लगे. ये दोनों आगे चलकर उनके खूब काम भी आए, यानी वे मुंबई के रसूखदार लोगों की सर्किल का हिस्सा बन चुके थे.

नरेश गोयल के बिजनेस पर लंबे समय से पैनी नजर रखने वाले दिल्ली के चार्टर्ड एकाउंटेंट राजन धवन कहते हैं कि मुंबई के एलिट सर्किल में उनकी एंट्री इसलिए मुमकिन हो गई क्योंकि वहां का समाज दिल्ली के समाज से अधिक समावेशी है, दिल्ली में अगर आप साउथ दिल्ली की पॉश कॉलोनी या फ़ार्म हाउस में नहीं रहते तब समझ लीजिए कि आपको एक खास सर्किल में घुसने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ जाएंगे.
बहरहाल, अभी तक जिस नरेश गोयल ने ख़ासी अमीरी के बावजूद दिल्ली में अपना घर नहीं खरीदा था, उसने मुंबई शिफ्ट करने से पहले जुहू में एक फ्लैट खरीदा. उसके बाद वे मुंबईकर होते चले गए, उनका दिल्ली आना कम होने लगा लेकिन दिल्ली में उनका स्टाफ था. मुंबई में उन्होंने दिल्ली से भी ज़्यादा पैसे कमाए.
जेट एयरवेज़ की धमाकेदार शुरुआत

अब आ गया 1993. नरेश गोयल ने दो बोइंग 737 के साथ जेट एयरवेज़ की शुरुआत कर दी. जेट एयर के नाम से ट्रेवल एजेंसी चलाने वाले नरेश गोयल के मन की मुराद पूरी हो गई, यह देश की पहली प्राइवेट एयरलाइन थी.
इससे भी बड़ी बात ये हुई कि जेट एयरवेज़ का उदघाटन जेआरडी टाटा ने किया, ये अपने आप में बड़ी घटना थी. नरेश गोयल का मास्टरस्ट्रोक था. एक झटके में वे देश के कारोबारी संसार में पहचान बनाने में सफल हो गए, बरसाती में रहने वाले या रिफ्यूजी मार्केट के ढाबे पर खाने वाले नरेश गोयल एविएशन सेक्टर के महत्वपूर्ण ब्रैंड बन गए.
अब उन्हें कोई भटिंडा के भल्ला कॉलेज वाला कहने की हिमाकत नहीं करता था, दरअसल पंजाब में जिसकी डिग्री को लेकर संदेह होता है, उसके लिए कहते हैं कि "ये बंदा भल्ला कॉलेज, भटिंडा से पढ़ा है".
नरेश गोयल की सरपरस्ती में जेट एयरवेज़ के लिए 'सितारों से आगे जहां और भी है'वाली बात लागू हो रही थी, वे बुलंदियों को छू रहे थे. जेट एयरवेज़ ने 2002 में इंडियन एयरलाइंस को पीछे छोड़ते हुए देश की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन होने का गौरव हासिल कर लिया.
इस बीच, देश में हवाई जहाज से सफ़र करने वाले मुसाफिर बढ़ते जा रहे थे, नरेश गोयल अपनी जेट एयरवेज़ का विस्तार करना चाहते थे. वे मार्केट लीडर का खिताब किसी को देने के लिए तैयार नहीं थे पर शिखर पर रहने के लिए पूंजी की दरकार थी ताकि जेट एयरवेज़ के बेड़े में और हवाई जहाज जोड़े जा सकें, इसलिए वे मार्च 2005 में जेट एयरवेज का आईपीओ लेकर आए. उन्होंने जेट की 20 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेची, यहां तक सब ठीक रहा.
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नरेश गोयल के सितारे गर्दिश में आने लगे 2006 से, जब उन्होंने सहारा एयरलाइन को लगभग 2,250 करोड़ में खरीद लिया, उस सौदे में उन्हें 27 एयरक्राफ्ट और अंतरराष्ट्रीय रूट भी मिल गए, पर ये सौदा नरेश गोयल को ले डूबा.
वायुदूत के चेयरमैन रहे हर्षवर्धन मानते हैं कि उस दौरान नरेश गोयल को एक के बाद कई झटके लगे. जैसे सन 2005 से ही विमान ईंधन के दामों में तेज़ी आने लगी थी. सन 2008 में विश्वव्यापी मंदी के कारण उन्हें फॉरेन फंडिंग मिलनी बंद हो गई, बाज़ार में हवाई यात्री बढ़ रहे थे पर वे सस्ती टिकट लेने वाले लोग थे. वे दो हजार से तीन हज़ार रुपए तो ख़र्च कर सकते थे लेकिन उससे ज़्यादा नहीं".
एविएशन सेक्टर के कुछ जानकार ये भी मानते हैं कि जेट और सहारा के कर्मचारियों का मर्जर भी सही तरीके से नहीं हुआ, दोनों कंपनियों का वर्क कल्चर अलग था. उन्होंने अक्तूबर, 2008 में लगभग दस हजार कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया लेकिन उन्हें अपने फ़ैसले को बदलना पड़ा क्योंकि इतनी बड़ी छँटनी का अखिल भारतीय स्तर पर विरोध हुआ.
एविएशन मंत्रालय की सलाह या दबाव में उन्हें अपना फ़ैसला बदलना पड़ा यानी नरेश गोयल के रास्ते में अवरोध ही अवरोध आ रहे थे. इस बीच 2012 में इंडिगो ने उसके घरेलू बाज़ार के एकछत्र राज पर सेंध लगा दी, ये नरेश गोयल के लिए करारा झटका था. फिर भी वे हार कहाँ मानने वाले थे, इसी दौरान उन पर आरोप लगे कि जेट एयरवेज़ के रिश्ते माफ़िया सरगना दाऊद इब्राहीम से भी हैं.
किसने दिया बड़ा जीवनदान

संकट में फंसते जा रहे नरेश गोयल के लिए अब शरद पवार सामने आए. बताया जाता है कि यूपीए-दो में शरद पवार ने अपने दोस्त की हरसंभव मदद करने के लिए ही एविएशन मंत्रालय मांगा था, उस मंत्रालय का ज़िम्मा पवार के खासमखास प्रफुल्ल पटेल देखने लगे, इन दोनों के परोक्ष सहयोग से संयुक्त अरब अमीरात की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइंस एत्तिहाद एयरवेज़ ने 2013 में जेट की 24 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीद ली.
एतिहाद एयरवेज ने जेट एयरवेज़ को कुछ साल तो जीवनदान दिया पर उसकी सेहत सुधरी नहीं, उसका घाटा बढ़ने लगा. घरेलू विमानन बाज़ार पर राज करने वाली जेट एयरवेज़ को किफ़ायती विमानन कंपनियां जमकर चुनौती देने लगीं.
इन सब स्थितियों के कारण जेट एयरवेज़ भारी कर्ज़ और बढ़ते घाटे की चपेट में आ गई, उसकी उड़ानें रद्द होने लगीं और कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए भी कंपनी के सामने संकट खड़ा हो गया.
जेट को अपने कर्ज़ का भुगतान करने के लाले पड़ गए, अंत में, बैंकों को समाधान योजना के तहत जेट एयरवेज का नियंत्रण अपने हाथ में लेना पड़ा, इस तरह पंजाब से आसमान को छूने आए नरेश गोयल का सपना बिखर गया.
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