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रवि अरोड़ा की नजर में

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कुछ याद उन्हें भी कर लो

रवि अरोड़ा

मानना पड़ेगा मोदी जी को । बहुत अच्छा भाषण देते हैं । आधे पौने घंटे तक बिना कहीं अटके अथवा कुछ दोहराये , सिलसिलेवार श्रोताओं को प्रेरणा देना आसान काम नहीं है । हालाँकि मैं जानता हूँ कि इस तरह का भाषण देते समय उनके सामने टेली प्रॉम्पटर डिवाइस होती है और जब हमें टीवी स्क्रीन पर लगता है कि वे कैमरे यानि दर्शकों की ओर देख कर बात कर रहे हैं , उस समय वे डिवाइस को देख रहे होते हैं । अमेरिकी संसद में हुए उनके अंग्रेज़ी में एतिहासिक भाषण के समय यह डिवाइस सुर्ख़ियो में आई थी । इस डिवाइज़ का ही कमाल था कि बहुत अच्छी अंग्रेज़ी न जानने के बावजूद वे धाराप्रवाह अंग्रेज़ी वहाँ बोल सके । ख़ैर वे बिना डिवाइस के भी बहुत अच्छा भाषण देते हैं , यह सारी दुनिया मानती है । कल भी उनका राष्ट्र के नाम सम्बोधन भी ज़ोरदार था ।

हालाँकि कोरोना संकट के दौरान इससे पूर्व के उनके चार भाषणों के मुक़ाबले कल का सम्बोधन मुझे थोड़ा कमज़ोर अवश्य लगा । लाखों-करोड़ों रुपयों की भाषा न समझने वाला आम भारतीय इसका कोई विशेष अर्थ भी नहीं निकाल सका ।कुल मिला कर लोगों की समझ में बस यही आया कि उन्हें गर्व करना है । अब गर्व किस बात पर करना है , यह मोदी जी ने ढंग से बताया ही नहीं । दस-दस बीस-बीस रुपयों के लिए परेशान आदमी को भला दो सौ लाख करोड़ की बात समझ आती भी तो कैसे ? वैसे मैं अपने मन की कहूँ तो उनका भाषण मुझे तो बहुत अच्छा लगा । एसे अवसर पर किसी प्रधानमंत्री को एसी प्रेरणादाई बातें ही करनी चाहिये । मेरे पक्का विश्वास है कि यदि वह राजनीति में नहीं आए होते तो अवश्य ही जाने माने मोटीवेटर होते । बस इस बात का ज़रूर दुःख हुआ कि प्रधानमंत्री ने उन करोड़ों लोगों की तो बात ही नहीं की जो इन दिनो सड़कों और रेल की पटरियों पर मारे मारे फिर रहे हैं । उन सैकड़ों लोगों को तो श्रधांजलि दी ही नहीं जो कोरोना नहीं वरन सरकार की मूर्खता के चलते मारे गए । उन सैकड़ों डाक्टरों , स्वास्थ्य कर्मियों, सफ़ाई कर्मचारियों और पुलिस कर्मियों का भी ज़िक्र नहीं किया जो अपना फ़र्ज़ निभाते हुए कोरोना की भेंट चढ़ गए । जब किसी को जुखाम भी नहीं हुआ था तब ताली-थाली और अब जब वे संसाधनों के अभाव में रोज़ाना मर रहे हैं , तब उनका ज़िक्र भी नहीं ? सॉरी मोदी जी ! आपसे यह उम्मीद नहीं थी ।

मोदी जी के कल के सम्बोधन से यह तो अब स्पष्ट हो गया कि तीन-तीन लॉकडाउन आम लोगों को क़ोरोना से बचाने के लिए नहीं वरन महामारी से मुक़ाबले के लिए सरकार द्वारा संसाधन जुटाने के लिए किया गया था । यदि एसा नहीं था तो अब जब पिच्छतर हज़ार लोग बीमारी के चपेट में हैं और ढाई हज़ार लोग मर चुके हैं , तब सब कुछ खोला जा रहा है और जब पाँच सौ मरीज़ भी नहीं तब तब आम आदमी पर घर से बाहर निकलने ही लाठियाँ बरसाईं और उससे उट्ठक बैठक लगवाईं ? वैसे मोदी जी यह तैयारी तो जनवरी में ही शुरू कर देते जब केरल में पहला मरीज़ मरा था ? ट्राम्प की आवभगत के चक्कर में क्यों विदेशियों को भारत आने दिया और विश्व स्वास्थ्य संघटन की चेतावनी की ओर भी ध्यान नहीं दिया ?  चलिए जब इतना लेट हो ही गए थे तो दस पाँच दिन और इंतज़ार कर लेते लॉकडाउन के लिए । काहे देश को हर बार चौंकाते हैं ? मज़दूरों के लिए अब भी तो बस और ट्रेन चलानी पड़ रही हैं , यह काम लॉक डाउन से पहले हो जाता तो क्या आफ़त आ जाती ? मोदी जी आर्थिक पैकेज देना अच्छी बात है मगर कम से कम इसमें भी इन करोड़ों भूखे नंगे लोगों के लिए कोई प्रावधान कर लेते । आपकी वित्त मंत्री सीतारमण भी आपकी तरह गोल गोल घुमा कर आज निकल गईं । मुआफ़ करना मोदी जी वाक़ई बात कुछ जमी नहीं ।
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