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दिनेश श्रीवास्तव की कुछ कविताएं

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दिनेश श्रीवास्तव:

               कुण्डलिया
               -------------

                    ( १)

पाकर काया ब्रह्म से, न्यायधीश का काम।
कायथ-कुल के देवता, शत शत तुम्हें प्रणाम।।
शत-शत तुम्हें प्रणाम, लेखनी असि-मसि धारी।
रहते हैं चित्रांश, सदा प्रभु के आभारी।।
करता विनय दिनेश, कृपा दे दो तुम आकर।
हो जाएँ हम धन्य, बुद्धि सन्मति को पाकर।।

                      ( २)

काया से अवतरित हो, लिए ब्रह्म से ज्ञान।
पाप-पुण्य का वह सदा, लेते हैं संज्ञान।।
लेते हैं संज्ञान, न्याय के पथ पर चलते।
कर लेते हैं ज्ञान, पाप जिनके उर पलते।।
कहता सत्य दिनेश, सदा उनकी ही माया।
'चित्रगुप्त'है नाम, ब्रह्म की निर्मल काया।।

                     (३)

गाता सकल जहान है, संचालक जो सृष्टि।
उनके ही गुणगान को, मिली अलौकिक दृष्टि।।
मिली अलौकिक दृष्टि, पाप फिर क्यों छिप पाता।
पाप-पुण्य का भेद, प्रगट निश्चित हो जाता।
बने न्याय के देव, वही हैं भाग्य विधाता।
यह 'दिनेश'दिन रात, उन्हीं का है गुण गाता।।

                 दिनेश श्रीवास्तव
                 ग़ाज़ियाबाद
                 9411047353
[17/05, 23:10] Ds दिनेश श्रीवास्तव: ग़ज़ल
              दिनेश श्रीवास्तव


बसर जिंदगी हम किए जा रहे हैं।
 ज़हर जिंदगी का पिए जा रहे हैं।।-१

वो गुमनाम देखो कहर ढा  रहा है,
कहर को मगर हम सहे जा रहे हैं।-२

अभी शेष है दर्द की इंतिहा भी,
मगर  लाश ही हम गिने जा रहे हैं।-३

भजन राधिका के तो गाते हैं हम सब,
मगर उर्वशी को जिए जा रहे हैं।-४

मुकम्मल कभी काम करते नहीं वह,
मगर बस हिदायत दिए जा रहे हैं।-५

किया था जिन्हें पत्थरों के हवाले,
वही ज़ख्म मेरे सिए जा रहे हैं।-६

अभी  और कुछ दिन वे घर में बिताएँ,
अभी से किधर को भगे जा रहे हैं।-७

अभी शाम है कल सहर भी तो होगी,
बुलाओ उन्हें क्यूँ चले जा
रहे हैं।-८

               दिनेश श्रीवास्तव
                ग़ाज़ियाबाद
[17/05, 23:10] Ds दिनेश श्रीवास्तव: "गीता-महात्म्य"

सेनाओं के मध्य में,रथारूढ़ संवाद।
धारा गीता ज्ञान से,शांत हुआ प्रतिवाद।।-१

शतक सात कुल श्लोक हैं,लिए ज्ञान विस्तार।
जन साधारण के लिए,किये व्यास उपकार।।-२

अष्टादश अध्याय में,गीता का संदेश।
भक्ति भाव से हो रहा,प्रसरित देश विदेश।।-३

भगवत गीता मर्म तो,गीता में ही व्यक्त।
मिल जाता सब कुछ यहाँ, नहीं शेष अव्यक्त।।-४

परम दिव्य साहित्य का,यजन मनन पुनि ध्यान।
चिंताओं से मुक्त हो,पाता आत्मिक ज्ञान।।-५

लौकिक भौतिक लालसा,आध्यात्मिक हो प्यास।
शांत सभी होते यहीं,मिलता यहीं उजास।।-६

प्रश्नोत्तर को ढूँढिये, पाएँगे संकाश।
समाधान होगा सदा,होंगे नहीं निराश।।-७

त्रयपथगा प्रभु शीश से,सखा श्याम मुख ज्ञान।
ज्ञान गीत गीता बनी,गंगा सम सम्मान।।-८

उपनिषदों का सार है, गो सम गीता ज्ञान।
दुग्धामृत करिए सदा, गीता का पयपान।।-९

अष्टादश अध्याय में,सिमटा गीता ज्ञान।
भक्ति,कर्म,सन्यास का,हो जाता संज्ञान।।-१०

ज्ञान और विज्ञान का,निहित इसी में योग।
ओमकार इसमें निहित,करिए इसका भोग।।-११

गीता देता है हमें, देहि देह का ज्ञान।
मिलता हमको है यहीं,आत्मतत्त्व संज्ञान।।-१२

अवगाहन करिए सदा,गीता गंगा ज्ञान।
सब धर्मों को छोड़कर,कृष्ण सखा को जान।।-१३

गायत्री गीता सदा,और गाय से प्रेम।
इससे मिलता है हमे, सदा कुशलता क्षेम।।-१४

मंदिर मस्ज़िद छोड़कर,सब गुरुद्वारे धाम।
चलो चलें जीवन करें, अब 'गीता'के नाम।।-१५

            @ दिनेश श्रीवास्तव
             ग़ाज़ियाबाद
[17/05, 23:12] Ds दिनेश श्रीवास्तव: "सैनिक"


आजादी मिलती नहीं,हमें कभी खैरात।
अक्षुण रखना है इसे,वीरों की सौगात।।-१

शीश कटाकर है किया,आज़ादी का काम।
परमवीर सैनिक तुम्हें,शत शत बार प्रणाम।।-२

पुनर्जन्म के बाद भी,इस मिट्टी की गोद।
इसी भाव की भावना,सैनिक करता मोद।।-३

सरहद पर लड़ते सदा,शीश कटाते वीर।
अरि का माथा कुचलकर,सीना देते चीर।।-४

सैनिक मेरे देश के,सरहद पहरेदार।
शीश कटाने के लिए,रहते हैं तैयार।।-५

लिए तिरंगा हाथ में,हो जाता कुर्बान।
कफ़न तिरंगा में तभी,सैनिक पाता मान।।-६

रहता सैनिक है यहाँ, तत्पर सदा प्रयाण।
लिए शीश को हाथ में,अर्पण करने प्राण।।-७

सदा सुरक्षित है यहाँ, ये सारी आवाम।
 देश तुम्हारे हाथ में,सैनिक तुम्हें सलाम।।-८

कभी कड़कती धूप में,सर्दी कभी प्रचंड।
सीमा पर सैनिक खड़ा,मेरा देश अखंड।।-९

चौकस सैनिक जब यहाँ, सीमा पर दिन रात।
कैसे कर सकता भला,दुश्मन तब आघात।।१०

छेद भेद विच्छेद कर,काटो अरि का शीश।
हर हर का नारा लगे,महादेव जगदीश।।-११

पुनर्जन्म होगा यहाँ, बार बार इस देश।
सैनिक के ही रूप में,लेगा जन्म दिनेश।।-१२

               @दिनेश श्रीवास्तव
                  ग़ाज़ियाबाद


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