: ढूढते विश्राम काहिल कहलाते
खुसुरपुसुर कर दिशा भटकाते
धीर वीर धुरंधर जन को जानिए
रचते नित नवल इतिहास मानिए
आत्मानंद
: खेल रिश्तों का है
मेल पुश्तों का है
बना रहे यूं ही ये
जीवन किश्तों है
आत्माएं हाथ बार बार
क्षोडें नहीं निज द्वार
स्पर्श किसी करें
दो मीटर दूरी स्वीकार
आत्मानंद
मुक्ति भाव लिये हम जिएं जीवन
प्रतिक्षण ईश का हो अभिनन्दन
धर्म धारें आधार । हो इंसानियत
पूर्ण समर्पण करें तन मन धन
आत्मानंद
काल करोना द्वार खड़ा निजात मिले युक्ति करो ना
प्रकृति प्रकोप कारण जिसका अब इससे डरो ना
पर्यावरण संतुलन हेतु प्रीत धरो ईश वंदना है उपाय
मानो संत जन की वाणी बेमतलब अब मरो ना
आत्मानंद
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