**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- सत्संग के उपदेश- भाग 2- कल का शेष-
भगवत गीता में एक जगह पर यह मजमून निहायत खूबसूरती के साथ बयान किया गया है फरमाया है:- "ऐ अर्जुन! सब द्रव्यों यानी पदार्थों के यज्ञों की निस्बत ज्ञान का यज्ञ श्रेष्ठ है क्योंकि जितने भी कर्म किए जाते हैं उन सब का फल या परिणाम ज्ञान ही होता है। यह ज्ञान तो गुरु के चरणों में गिरकर यानी उनका दीन शिष्य बन कर , उनसे प्रश्न पूछकर यानी जिज्ञासु होकर उनकी सेवा करके हासिल कर । तत्वदर्शी यानी आत्मज्ञानी गुरु तुझको वह ज्ञान उपदेश करेंगे" ( भगवत गीता अध्याय 4 श्लोक 33-34)
भगवदगीता को आमतौर पर हिंदू भाई पंचम वेद मानते हैं और रामायण से उतरकर हिंदुस्तान में जिस पवित्र पुस्तक का सबसे ज्यादा प्रचार है वह भगवतगीता ही है ।
अगर इस पवित्र पुस्तक में श्रद्धा रखने वाले भाई श्लोकों के अर्थ पर तवज्जुह दें तो उन्हें साफ मालूम होगा कि और सब यज्ञों के मुकाबले, जिनमें हिंदू भाई बड़ी श्रद्धा रखते हैं ,ज्ञान का यज्ञ सबसे श्रेष्ठ है और उनके लिए मुनासिब है कि आग जलाकर उसमें घी व दूसरी सामग्री होम करने के बजाय ज्ञानयज्ञ के रचने का इंतजाम करें और हस्बफर्मान कृष्ण महाराज के यह यज्ञ ज्ञान किसी तत्वदर्शी गुरु के चरणों में गिरकर उनकी सेवा करके हासिल करें।
जाहिर है कि कृष्ण महाराज की इस हिदायत पर अमल कर सकता है जिसको जिंदा और सच्चे तत्वदर्शी गुरू मिलें। हैं जरा निष्पक्ष गौर करने पर मालूम होगा कि गुरु भक्ति के मुताबिक संतमत और कृष्ण महाराज की तालीम बिल्कुल एक है और इसलिए अगर संतमत में सब देवी देवताओं की पूजा याद कर लो और वेद आदि शास्त्रों की लिस्ट से हटा कर जिंदा और पूरे गुरु की तलाश के लिए जोर दिया जाता है तो यह तालीम हिंदू भाइयों को हिंदू मदद से हटाने वाली नहीं है बल्कि उन्हें उनके बुजुर्गों के बताए हुए रास्ते पर जिससे वे अब कोसों दूर पड़े हैं दोबारा डालने वाली है यह बयान पढ़कर बाज भाई जो संतमत की तालीम से पूरी बात नहीं रखते वह कह सकते हैं कि हम तस्लीम करते हैं तो जिंदा के सच्चे गुरु की तलाश करनी चाहिए लेकिन खुद राधास्वामी मत के लोग भी तो सच्चे गुरु की तलाश नहीं करते राधास्वामी मत में जो महापुरुष गुरु माने जाते हैं हरचंद उनके रहने की बहुत अच्छी थी लेकिन जब कि उन्होंने वेद शास्त्र नहीं पढ़े और उनको संस्कृत विद्या पर हासिल नहीं था तो कैसे ग्रुप डी के अधिकारी हो सकते हैं वगैरा-वगैरा जय हो कि एतराज करने वालों का ख्याल की दावेदारी शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ के अधिकारी नहीं हो सकता बिल्कुल व्यर्थ है एतराज करते हैं खुद वेद शास्त्रों का लेकिन अपने दिल में प्राचीन पवित्र पुस्तकों के अजीब गरीब ख्याल आते हैं भाई जरा तकलीफ उठा कर खुद वेद शास्त्रों का काला करें तो उनका एतराज आपसे दूर हो जावे
उपनिषदों में जा वजह से ग्रुप में तलाश के लिए हिदायत दी गई है चुनांचे कठोपनिषद में एक जगह पर आता है उठो जागो और चुने हुए गुरुओं से उपदेश हासिल करो विद्वान यानी ऋषि लोग कहते हैं कि यह रास्ता छुरे की धार सा तेज है तो चलने के लिए कठिन और दुर्गम है ।"अलावा इसके मनुस्मृति के दूसरे अध्याय में गुरु की महिमा व सेवा के मुतअल्लिक़ मुफस्सिल हिदायते दर्ज हैं। लिखा है :-"जो शिष्य शरीर के समाप्ति यानी मरने तक गुरु की सेवा करता है वह ब्रह्म के अविनाशी स्थान में प्राप्त होता है यानी मरने के बाद ब्रह्म में लीन हो जाता है ।(श्लोक 244)
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- 25 ,26 अक्टूबर 1932- मंगलवार, बुधवार :- पटना में नुमाइश के मुतअल्लिक अनेक मुश्किलें हो रही है । माल के लिए रेल का किराया कितना ज्यादा तलब किया जाता है कि सिवायपप जबरदस्त क्षति के कोई नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं रहती। इंतजामत नुमाइश के मुतअल्लिक़ भी बिहारी भाइयों को जिस कदर तकलीफ उठानी पड़ेगी उसका ख्याल करके तबीयत मुर्झाई होती है लेकिन चूँकि बिहारी भाई नुमाइश के लिए अत्यंत इच्छुक है इसलिए सब कुछ बर्दाश्त करना पड़ता है।।
दया से अब मेरी तबीयत अच्छी है। बहुत कुछ तकलीफ दूर हो गई है। एक भाई ने कराची से दवा भेजी है । लेकिन अब दवा निष्फल है। इसलिए पार्सल वापस कर दिया गया।।
सुई बनाने की कल में सख्त नाकामयाबी रही । अब तीसरी योजना सोची जा रही है।पहली दोनो योजनायें गलत निकली। कलों के मामले में हम लोग महज नौसिखिया है इसलिये गलती पर गलती करते है। सच पूछो तो सिवाय मालिक की दया के भरोसे के हमारे पास कुछ भी नही है। न इल्म है, न तजर्बा, न रुपयि पैसा। दया ही के भरोसे पर हाथ पाँव चलाते हैं । जब मालिक को मंजूर होगा तभी कोई मुफीद नतीजा बरामद होगा।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[6/11, 04:38] +91 97176 60451: *
🌹🌹हुजूर राधास्वामी दयाल की अपार दया व मेहर से आज इस पवित्र पोथी (सतसंग के उपदेश भाग-1,2 व 3) का अंतिम बचन है। आज ये पूरी हुई। हम सब मिलकर हुजूर राधास्वामी दयाल के चरनों में प्रार्थना करते है कि टाइपिंग करते वक्त हमसे जाने आनजाने कोई त्रुटि हुई हो तो वो दाता दयाल हम सबको क्षमा करें। राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय।।🌹🌹*
[6/11, 04:38] +91 97176 60451: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग-1-कल से आगे-( 19) जो लोग की बुद्धिमान और विद्यावान है और अपनी विद्या और बुद्धि और जाहिरी ब्यौहार की सफाई का मन में मान और अहंकार रखते हैं, उनके दिल में गुरु की कदर बहुत कम है। वे गुरु को बतौर उस्ताद यानी विद्या गुरु समझते हैं और जब वे मामूली परमार्थ की किताबें और पोथियाँ आप पढ़ और समझ सकते हैं , तो उनको ऐसे गुरु की भी जरूरत नहीं होती और सतगुरु की महिमा और बुजुर्गी की तो उनको बिल्कुल खबर नहीं है। गुरु और सतगुरु और विद्या गुरु उनकी नजर में बराबर है, यानी विद्या गुरु से ज्यादा उनका दर्जा वे नहीं मानते हैं। सबब इसका यह है कि वे अंतरी परमार्थ से बिल्कुल नावाकिफ है और न संतों और सतगुरुओं की बानी और बचन, जिनमें अंतरमुख अभ्यास से ऊँचे दर्जे का जिक्र है, उन्होंने देखे या पढे हैं और न उनमें उनको भाव आता है , क्योंकि उनके मतलब को अपनी विद्या और बुद्धि की ताकत से नहीं समझ सकते। और भेदी और संत मत के जानकार से पूछना और समझना ऐसी बानी और बचन का अहंकार करके नहीं चाहते हैं । और असल में उनको ऊँचे और सच्चे परमार्थ का खोज भी नहीं है और जो कोई उनको ऐसे बचन सुनावे तो प्रतीति थी नहीं लाते और सुनाने वाले को नादान या भरम में भूला हुआ समझते हैं ।. 🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻**