इन दिनों कई बार मुझे खालिस्तान समर्थकों के रिकॉर्डेड मैसेज भेजे जा रहे हैं। खालसा पंथ की स्थापना दिवस को मोहरा बना कर एक बार फिर देश के सिखों को जिस अंदाज में बरगलाने की कोशिश हो रही है वह भयावह है। बुझी हुई आग को चिंगारी देने की कोशिशों में आखिर कौन सी शक्तियां लगी हैं ? आखिर गोल्डन टेंपल के ग्रंथी ने खालिस्तान के समर्थन में आवाज़ मिलाने की क्यों कोशिश की? केंद्र सरकार को इनके सूत्र मिलाकर तुरंत सजग होना चाहिए। पीएम के आंतरिक सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल इससे निपटने की रणनीति जरूर बना रहे होंगे! बनाना भी चाहिए।
देश के अंदर कोरोना का हमला है। देश के बाहर नेपाल, चीन पाकिस्तान सरीखे पड़ोसी आँखें तरेर रहे हैं। भारत के पंजाब, हरियाणा, हिमाचल,राजस्थान और जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान के पख़्तून, बलोचिस्तान, सिंध को मिलाकर सिखों का मुल्क खालिस्तान बनाने का सपना बुनने वाली शक्तियों ने पहले ही देश से इंदिरा गांधी जैसी प्रधानमंत्री छीनी है। हवाई जहाज़ पर बम से हमला कर तीन सौ से ज्यादा लोगों को बेवजह मौत दिया है। वे अब फिर सिर उठा रहे हैं। कनाडा, इटली और ब्रिटेन जैसे देशों से इनके आंदोलन को खादपानी दिया जा रहा है। पंजाब सरकार ने ऐसे कुछ तत्वों को पकड़ा तो पता चला कि इनको पाकिस्तान की ISI से भी शह मिल रहा है।
मगर ये भी सच है कि खालिस्तानी सोच को भारत के सिखों ने कभी तवज्जो नहीं दिया। सिखों के महान गुरुओं को पवित्र शब्दवाणी में याद करते हुए, उनकी ऐतिहासिक क़ुरबानियों के प्रति सच्ची श्रद्धा व्यक्त करते हुए हर सिख उसी सांस में राम, रहीम, कृष्ण को भी सिमर करता है। जपता है। शब्दवाणी में गुरुओं को याद करते हुए एक लाइन है - ऐसे गुरु को बल - बल जाइये... महान गुरुओं की परम्परा को सिखों से जोड़ते हुए मैं कहूंगा - ऐसे सिख नू बल - बल जाइये...
कोरोना काल हो या देश पे आया अन्य विपरीत काल, हमारे सिख भाई उन पर "काल"बन कर टूटे हैं। देश की खातिर। समाज की बुनावट को बचाने हर वर्ग के साथ बल - बल गए हैं। "अपनो"की खातिर। लंगर की सेवा हो। आवास की सेवा हो। गुरु प्रसाद की सेवा हो। प्याऊ की सेवा हो। सिख संगत अतुलनीय है। वंदनीय है। वो किसी विध्वंसक, उपद्रवी ताकतों को देश में जड़ जमाने का मौका नहीं देंगे, गुरुओं की धरती को किसी अपवित्र आचरण से बदनाम नहीं होने देंगे, देश को विश्वास है।
बोले सो निहाल, सत् श्री अकाल
वाहे गुरु जी द खालसा
वाहे गुरु जी द फतेह