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कविता / सीमा मधुरिमा

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कुछ जिद्दी औरतें ---

होती हैं इसी समाज में कुछ चंचल सी जिद्दी औरतें भी --
जो नहीं चलती निर्धारित मानदंडों पर -
जिन्हें पसंद हैं तेज चलने के साथ ही तेज बोलना भी -
जिन्हें समारोहों में भीतर औरतों के लगाए जमघट नहीं भाते --
जो जाकर बैठती हैँ आदमियों के ठीक बीच में
और अपनी राय देती फिरती हैं हर चर्चा में --
उन्हें कोई चुप नहीं करा सकता चिल्लाकर --
स्कूटी की जगह मोटरसाइकिल चलाती हैं वो ..
साड़ी , सूट की जगह पैंट शर्ट पहनती हैं वो -
और मन मर्जी से उठती हैं ज़ब नींद छोड़ देती साथ ..
ये चंचल सी जिद्दी औरतें ---
ज़ब कभी भा जाता कोई पुरुष ..जो जगह बना लेता उनके दिल के भीतर कहीं गहरे में ..तो संकोच नहीं करतीं ...
ज़ाहिर कर देती हैं दिल के जज्बात वैसे ही जैसे पुरुष कर देते ज़ाहिर ..
पर वो पुरुष नहीं हैं ....वो फिर भी स्त्री हैं ..
संवेदना से भरपूर ..
ज़ब कभी पड़ जाती प्रेम में ये चंचल जिद्दी सी औरतें ...
डूब जाती हैं प्रेम के गहरे समुन्दर में --
वो जानती हैं प्रेम के समुन्दर से अपने लिए मोटी कैसे चुनना हैं ...
ये चंचल जिद्दी सी औरतें --=
जिनकी चर्चा हुआ करतीं है अन्य स्त्रियों के बीच --
अन्य स्त्रियाँ इन्हें स्त्री मानने से इंकार करतीं हैं ...
वो इन्हें नाम देती हैं अर्ध पुरुष का ....
पर इन चंचल जिद्दी सी औरतों पर कोई फर्क नहीं पड़ता इन सबसे --
वो किसी भी फर्क से परे होती हैं ...
इसीलिए ही तो वो होती हैं चंचल सी जिद्दी औरतें lll

सीमा"मधुरिमा"
लखनऊ !!!

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