काफी पुरानी बात है शायद 1972 की। शीला औऱ ठाकुर प्रसाद झुनझुनवाला मुंबई से दिल्ली आए थे। ठाकुर प्रसाद को हम लोग टीपी भाई साहब कहा करते थे। संस्कृति प्रेमी इस युगल जोड़ी का परिचय पहचान का दायरा दिल्ली में भी था लेकिन शीला जी पत्रकारिता का माहौल खासा मिस किया करती थीं। मुंबई में वह'धर्मयुग'में काम करती थीं। मेरा इन लोगों के यहां आना जाना था। एक दिन शीला जी ने फोन करके बताया कि सेंट्रल न्यूज़ एजेंसी के पुरी साहब 'अंगजा'नाम की एक महिला पत्रिका निकलना चाहते हैं और उन्होंने मुझे यह दायित्व सौंपा है। मैं चाहती हूं कि इस काम में आप मेरी सहायता करें। मैंने तुरंत हामी भर दी क्योंकि'दिनमान'में उन दिनों स्ट्राइक चल रही थी। वह दौर हड़तालों का था। आये दिन अखबारों के दफ्तरों में हड़ताल हो जाया करती थी।मैं भी खाली था। व्यस्त रहने का मौका मिल गया। शुरू शुरू में वह अपने घर से ही पत्रिका का संपादन किया करती थीं। मैं ज़्यादातर लिखने का काम करता। उन लोगों के अपने भी संपर्क सूत्र थे। इसलिए सामग्री का अभाव नहीं था।
एक दिन शीला जी ने बताया कि हमें मॉरिशस के नवनियुक्त हाई कमिश्नर रविंद्र घरभरण की पत्नी पद्मा घरभरण का इंटरव्यू करना है, कुछ प्रश्न आप तैयार कर लें, कुछ मैं बनाती हूं, बाद में पूरी प्रश्नावली तय कर लेंगे। प्रश्न तैयार कर हम लोग उनसे मिलने के लिए अशोक होटल पहुंच गए। उन दिनों घरभरण दम्पति वहीं रहती थी। रविंद्र घरभरण ने बड़ी गरिमा से हमारा स्वागत किया। थोड़ी देर में पद्मा जी भी तशरीफ़ ले आयीं। बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व। हाथ जोड़ कर हम दोनों को नमस्कार किया। प्रारंभिक शिष्टाचार के बाद प्रश्नों का सिलसिला शुरू हुआ।उन्हें हिंदी बोलने में कुछ दिक्कत महसूस हो रही थी इसलिए रविन्द्र उनकी मदद कर रहे थे। बाद में पता चला कि पद्मा जी के माता पिता का संबंध तमिलनाडु स था इसलिए हिंदी बोलने में उन्हें परेशानी हो रही थी जबकि रविंद्र भोजपुरी भी बोल लेते थे। काफी देर तक यह बातचीत चली। उनसे भारत मॉरिशस के संबंधों पर चर्चा हुई, स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं के योगदान पर बात हुई, समाज और देश की प्रगति में महिलाओं की भूमिका के बारे में पूछा, शिक्षा, संस्कृति और समाज सेवा के रोल की जानकारी भी ली गयी। मतलब यह कि हर कोण को कवर करने का प्रयास किया गया। 'अंगजा'यह प्रवेशांक बहुत पसंद किया। पत्रिका चल निकली। घरभरण दम्पति के टीपी भाई साहब और शीला जी बहुत करीब आ गए। जितने भी सांस्कृतिक कार्यक्रम होते घरभरण दम्पति की शिरकत यकीनी होती।कई प्रोग्राम तो घरभरण दम्पति के ग्रेटर कैलाश स्थित निवास पर भी हए। कुछ बरसों बाद'अंगजा'का प्रकाशन बन्द हो गया। घरभरण दम्पति स्वदेश लौट गयी।
पहले टीपी भाई साहब और बाद में राजेंद्र अवस्थी का निधन हो गया।रविन्द्र घरभरण देश के पहले उपराष्ट्रपति बने। टीपी भाई साहब के निधन पर मुझ से फ़ोन पर बात कर संवेदना भी व्यक्त की थी। बाद में उनका भी निधन हो गया। शीलाजी ने टीपी भाई साहब की याद में 'टी पी झुनझुनवाला फाउंडेशन'का1 गठन किया है जो हर बरस एक गरिमापूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करती हैं जिस में समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों को सम्मानित किया जाता है। इस1चित्र में दायें से मनहर चौहान, त्रिलोक दीप, राजेन्द्र अवस्थी, टी .पी.
झुनझुनवाला, उनकी बेटी नीहारिका तथा दो महिलाओं के बीच शीला हैं। कभी कभी पुरानी यादें शेयर कर लेने सुकून ही मिलता है और रिश्तों की गरिमा और मर्यादा का भी एहसास होता है। कह सकते हैं, 'याद आ रही है तेरी याद आ रही है .......'