Quantcast
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

‘भावनाओं को ठेस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं’


 शनिवार, 22 सितंबर, 2012 को 17:53 IST तक के समाचार
Image may be NSFW.
Clik here to view.

फ़िल्म का विश्व भर में विरोध हो रहा है.
फिल्म का मामला हो या फिर कार्टून का, इन्हें बनाने वालों का तर्क है ये अभिव्यक्ति का आज़ादी का मामला है और विरोधी कहते हैं कि ये भावनाओं के साथ खिलवाड़ है. इस मुद्दे पर बीबीसीपाठकों ने खुलकर राय रखी है.
हाल ही में इस्लाम पर बनी एक फ़िल्म जिसमें कथित तौर पर मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ़ अपमानित भाषा का इस्तेमाल किया गया है, सारी दुनियां में हंगामा मचा हआ है.
'इनोसेंस ऑफ़ मुस्लिम्स' नाम की इस फ़िल्म को लेकर कई देशों में हुए हिंसात्मक प्रदर्शनों के दौरान कुछ लोगों को अपनी जानें भी गंवानी पड़ीं.
इस तरह की फिल्मों या वैसे कार्टून जिन्हें कुछ लोगों ने भड़काऊ कहा, के समर्थकों का तर्क है ये अभिव्यक्ति का आजा़दी का मामला है और हर किसी को अपनी बात रखने का पूरा पूरा हक़ है.
विरोधी कहते हैं कि ये भावनाओं के साथ खिलवाड़ है और ये इस्लाम के खिलाफ पश्चिमी देशों की साजिश है.

बीबीसी पाठकों की राय

बीबीसी पाठकों ने इस मुद्दे पर फ़ेसबुक पर खुलकर राय रखी है.
जावेद आलमकहते हैं ,"हमारी आज़ादी वहीं पर खत्म होती है जहां पर दूसरे की नाक शुरु होती है."
अभिषेक बंसलकहते हैं, "मेरी आज़ादी मैं तय करुंगा ना कि कोई धर्म हालांकि हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए."
संजय नागोंडेकहते हैं," मैं किसी धर्म विशेष में विश्वास नहीं रखता, मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है.किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं हो सकती.फ़िल्म में ऐसे नहीं दिखाना चाहिए."
संजय चौधरीकहते हैं कि अभिव्यक्ति का मतलब ये नहीं कि किसी भी धर्म के बारे में कुछ भी विचार फ़िल्म में शामिल कर लिए जाएं. वैसे मैं इस बारे में ज्यादा नहीं जानता हूं बीबीसी से ही मालूम हुआ है.
सलीम खान समेजाकहते हैं, "किसी का भी हो उसका अपमान करना गलत है ,मेरा मानना है जो देश इस्लाम की बुराई या अपमान करते है उनका अन्त करीब आ गया है अल्लाह सबसे बड़ा है हमे अल्लाह पर विश्वास है वो ज़रुर मुसलमान की दुखी आत्मा की सुनेगा."
अंशु कबीरकहते हैं, "अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नही कि आपका जो मन करे वही करे.विरोध करना आप का हक है पर सवाल ये बनता है विरोध का तरीका क्या हो ?क्या हम किसी को मारकर या गाली दे कर इसे सही साबित कर सकते है ? आतकंवाद के नाम पर पहले इस्लाम को बदनाम किया फिर आगे भी वही काम कर रहे है .पर तथाकथित इस्लामी चरमपंथी भी इसे बे मतलब का हवा देते है जैसे किसी को मारने की धमकी या इस्लाम पर हमला कहते है."
विवेक सरोजकहते हैं, "इस्लाम को छोड अन्य धर्मो के खिलाफ भी टिप्पणी या विवाद सामने आते है पर उसका उचित जवाब या उसके खिलाफ प्रदर्शन किया जाता है.लेकिन इस्लाम के नाम पर अन्य समुदाय को प्रताडित करना उचित नही.यह हिंसक प्रदर्शन इस्लाम के प्रति लोगो का नजरिया बदल रहा है,यह मत अभिव्यक्ति का दुरूपयोग है."
मुकेश कुमारकहते हैं, "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ -साथ कुछ दायित्व भी होते है.लोगों को दूसरों की भावना का सम्मान करना सीखना चाहए.अपनी अभिव्यक्ति को लोग धार्मिक मामलो से ही क्यों उजागर करते है ? क्या हक है कि लोग दूसरे की आस्था को ठेस पहुंचाए. अगर ईसा मसीह पर ऐसी फिल्म कोई मुसलमान बनाये तो क्या उनकी आस्था को ठेस नहीं पहुंचेगी.अगर ऐसा था तो दी विंची कोड पर बबाल क्यों मचाया था.यह साजिश है मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को भड़काओ और उसको साबित करो कि यह कट्टर कौम है जो अमन चैन से नहीं रह सकती है"

इससे जुड़ी और सामग्रियाँ



Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>