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मनु लक्ष्मी मिश्रा की एक कविता

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'ज़रा तो ठहर ज़िन्दगी
फटा दामन सी लेने दे
कुछ तो कर मेहरबानी
मुझे  भी  जी  लेने  दे,
ज़रा तो ठहर ज़िन्दगी.

माना कि हँस रही हूँ
सुन मेरे अन्तर की तान
क़तरा-क़तरा रिस रही हूँ
उर का रूदन तो जान,
अधर दिखते हैं तुझे बस
जो सदा चहकते रहते हैं
चुप  रह  कर  भी  देख
ये  कुछ  कहते  रहते  हैं;

ठहर जा ऐ ज़िन्दगी
पहर तो अगला आने दे
निष्ठुर न बन इतनी
सहर मन की छाने दे,
मुझे भी जी लेने दे:

रात  हो  गहरी  कितनी
दिया अभी तो जलने दे
बात तुझसे बहुत करनी
तेल अभी तो चलने दे,
जानती हूँ एक दिन
प्रस्थान का अवसर होगा
मानती हूँ उस दिन
प्रारब्ध  द्वार  पर  होगा;

थोड़ा ठहर बस ज़िन्दगी
ज़हर तू अभी न दे
जल रही जीवन-बाती
क़हर की सदी न दे,
मुझे भी जी लेने दे

ज़रा तो ठहर ज़िन्दगी
फटा दामन सी लेने दे !"



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