चने का झाड़
रवि अरोड़ा
कारगिल युद्ध के दिनो यानी नवम्बर 1999 की बात है । जिले के गाँवों में फ़ौजियों के लगातार शव पहुँच रहे थे । इसी बीच नौ नवम्बर को शास्त्री नगर के युवा सिख कैप्टन जीएस सूरी के शहीद होने का भी समाचार मिला । उनके घर से शमशान घाट तक धूमधाम से निकली शवयात्रा के साथ सैकड़ों सिख युवक भी शबद कीर्तन करते हुए चल रहे थे- जो लड़े दीन के हेत सूरा सोई सूरा सोई । कीर्तन इतना प्रभावी था कि शव यात्रा के साथ चल रहा हरेक व्यक्ति वीर रस से ओतप्रोत यह भजन गाकर अपनी देशभक्ति का परिचय दे रहा था । उनदिनो शहीदों के पार्थिव शरीर जिस भी गाँव, क़स्बे अथवा शहर में पहुँचे , देशभक्ति के गगनभेदी नारों से आकाश गूँज उठा । दुःख , आक्रोश और नफ़रत के उस माहौल में भी यह देख कर बेहद संतोष हुआ कि बेशक हम भारतीयों के राष्ट्रीय चरित्र में बेहद झोल हैं मगर देश की आन की बात हो तो हमारी देशभक्ति हिलोरे मारने ही लगती है । लद्दाख की गल्वाँ घाटी में चीनियों के हाथों हुई हमारे बीस जवानों की शहादत ने पुनः हमारे देशभक्ति के जज़्बे को आवाज़ दी है । नतीजा देश भर में चीन विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं और जगह जगह चीनी सामान की होली जलाई जा रही है । बड़ी संख्या में लोग बाग़ सोशल मीडिया पर चीनी उत्पादों के बहिष्कार की घोषणा कर रहे हैं । यह सब देख कर बेशक मन पुलकित हो रहा है मगर साथ ही यह सवाल भी दिमाग़ में कौंध रहा है कि क्या रातों रात चीन पर अपनी निर्भरता हम ख़त्म कर सकते हैं ? माना जनता के मन में आक्रोश है और वह एसा करने के लिए तैयार भी हो जाए मगर क्या हमारी सरकार के पास इसे अंजाम तक पहुँचाने की इच्छाशक्ति है ?
देश भर के क़िस्से एक तरफ़ , मैं तो अपने ही शहर की बात करता हूँ । दिल्ली-मेरठ आरआरटीसी करिडोर के लिए पाँच दशमलव छः किलोमीटर लम्बा टनल बनाने का ठेका एनसीआरटीसी ने चीन की कम्पनी शंघाई टनल इंजीनियरिंग कम्पनी को विगत बारह जून को दे दिया है । यह कम्पनी 1095 दिनो में यह काम पूरा करेगी और इसके बदले में हम उसे 1126 करोड़ रुपये का भुगतान करेंगे । हालाँकि इस काम के लिए ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किये गये थे और टेक्निकल बिड में पाँच कम्पनियाँ चयनित हुई थीं । मगर फ़ाईनेंशियल बिड में भारतीय कम्पनी एल एंड टी चीनी कम्पनी से 44 करोड़ से पिछड़ गई । एल एन टी ने 1170 करोड़ रुपये की बिड दी थी । सवाल यह है कि हमें वोकल फ़ोर लोकल के लिए कहने वाली ख़ुद मोदी जी की सरकार इसका कितना पालन कर रही है ? इतने बड़े प्रोजेक्ट में चवालिस करोड़ रुपये मूँगफली के दाने जितने हैं मगर उसके लिये भी सरकार ने चीन जैसे शत्रु देश की कम्पनी को ठेका देकर राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डाल दिया ?
मैं भली भाँति जानता हूँ कि चीन से हमारे आर्थिक सम्बंध इतने गहरे हो चुके हैं कि उन्हें रातों रात ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता । चीन हमारे यहाँ छः अरब डालर का निवेश कर चुका है । हमारी अधिकांश स्टार्टअप कम्पनियों में चीनी पैसा लगा है। आज हम मशीनरी, टेलीकाम , गेजेट्स, केमिकल, खाद से लेकर बिजली के उपकरणों तक पूरी तरह उस पर निर्भर हैं । दस में से आठ भारतीयों के हाथ में चीनी मोबाइल फ़ोन है और चीनी सामान की आमद आम भारतीय की रसोई और बेडरूम तक हो गई है । एसे में यक़ीनन चीन से बदला लेना का नायाब तरीक़ा उसके सामान का बहिष्कार ही है मगर मुसीबत यह है कि आम भारतीय को तो अभी तक यह भी नहीं पता कि कौन सा प्रोडक्ट चीनी है अथवा किस प्रोडक्ट के पीछे चीनी निवेश है ? क्या केवल पेटीएम , ओप्पो व वीवो ही हैं चीनी ? नहीं जनाब यहाँ तो जिस कम्पनी को देखो उसी में चीनी निवेश है । स्नैपडील, फ़्लिपकार्ट, ओला और मेक माई ट्रिप जैसी पचासों कम्पनियों के पीछे खड़े चीन के बाबत आम भारतीय जानता तक नहीं । बेशक चीन पर आयात की निर्भरता ख़त्म होने से भारत की तक़दीर बदल सकती है । उससे सौ अरब डालर के व्यापार में हमारे हाथ अस्सी अरब डालर का घाटा ही आता है मगर इसमें सारा दोष जनता का ही है क्या ? ग्लोबल टेंडर में चीन चालाकी कर अपने देश में दूसरे मुल्क की कम्पनियों को घुसने नहीं देता । यह काम हमारी सरकार क्यों नहीं करती ? क्यों अधिकांश बड़े ठेके चीनी कम्पनियों के खाते में जा रहे हैं ? मोदी जी केवल हमसे चीनी टीवी तुड़वाने और मोबाइल फुड़वाने से काम नहीं चलेगा । आप भी कुछ करो । केवल हमें चने के झाड़ पर चढ़ा कर मज़ा लेने से चीन का कुछ नहीं बिगड़ेगा ।