आख़िर कहाँ रुकी है कृपा !
रवि अरोड़ा
पता नहीं क्यों पिछले कई दिनो से निर्मल बाबा की बहुत याद आ रही है । आप समझ गये न कौन सा निर्मल बाबा ? जी हाँ वही , कृपा कहाँ रुकी हुई है , बताने वाला । लाल अथवा हरी चटनी , पीज़ा अथवा बर्गर खिला कर भक्तों के संकट हरने वाला वही बाबा जो भारतीय जनमानस के भोलेपन का फ़ायदा उठा कर अरबपति बन गया । उनदिनो जब इस बाबा के कार्यक्रम टीवी पर बहुत आते थे , देश के करोड़ों लोगों की तरह मेरा एक क़रीबी मित्र भी मनोरंजन की गरज से उन्हें बहुत देखता था ।मित्र बड़े चटकारे लेकर बाबा के कार्यक्रम के बारे में मुझे भी बताता था । एक बार उसने बताया कि बाबा ने कार्यक्रम में अपने भक्तों से कहा कि अपने पर्स में दस का नोट रखो और पर्स का मुँह मेरी ओर कर दो , मैं यहीं से भक्तों के पर्स में कृपा डाल दूँगा । चूँकि बाबा का कार्यक्रम देश भर में देखा जाता था अतः उसने कहा कि जो भी उसका कार्यक्रम टीवी पर देख रहे हैं , वे सभी अपने पर्स में दस का नोट रख कर उसका मुँह टीवी की ओर कर लें और मैं उन सभी लोगों पर भी कृपा कर दूँगा । अब मुझे मालूम नहीं कि टीवी देख रहे कितने लोगों ने अपने अपने पर्स बाबा की ओर किये होंगे मगर मुझे यह फ़ार्मूला जंच गया । यही वजह है कि जिस दिन कोरोना संकट के चलते देश में बीस लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा हुई है मैं तभी से अपना पर्स टीवी की ओर करके बैठा हूँ । क्या पता कब कृपा हो जाये ?
अपना अर्थशास्त्र बहुत कमज़ोर है मगर फिर भी यह ज़रूर पता है कि पैकेज की इस घोषणा में उपभोक्ता को सीधे सीधे केवल 2. 99 लाख करोड़ यानि 14 परसेंट पैसे ही मिलने हैं । अब इसमें से किसको कितने मिले यह अभी मुझे ख़बर नहीं है । इस पैकेज में से 9. 06 लाख करोड़ यानि 43 फ़ीसदी धन को केवल बैंकों को ही भविष्य में क़र्ज़ा देने के लिए मिलना है । उद्योगों और किसानों के पास 6. 75 लाख करोड़ अर्थात 32 परसेंट पैसा क़र्ज़ के रूप में जाना है मगर वह भी अभी बँट नहीं पा रहा । इसके अतिरिक्त 1. 47 लाख करोड़ यानि 7 परसेंट धन टीडीएस स्थगित करने में ख़र्च होगा और केवल 63 हज़ार करोड़ यानि 3 फ़ीसदी पैसा आधारभूत ढाँचा तैयार करने में लगना है ।
पता नहीं यह कितना सच है अथवा कितना नहीं मगर अनेक अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि यह पैकेज नहीं बजट था और इसके लिए सरकार को अपनी जेब से कुछ नहीं निकालना । इस कथित पैकेज में उन घोषणाओं को भी जोड़ दिया गया है जो पहले से ही बजट में शामिल थीं । वे कहते हैं कि इस बजट में राजकोषीय हिस्सा है ही नहीं जिसे सरकार को अलग से वहन करना होता । यह तो लगभग पूरा मौद्रिक है और बैंकों के माध्यम से जाएगा और सूद सहित वापिस आएगा । बेशक सरकार की दरियादिली यह है कि उसने तीन लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ बैकों को सरकार की गारंटी पर बाँटने को कहा मगर उसपर भी बैकों ने अभी तक कान नहीं धरे हैं । ले देकर सवा महीने में लगभग पच्चीस हज़ार करोड़ बैंकों ने क़र्ज़ के रूप में बाँटे हैं मगर वह भी पहुँच वालों को ही मिले । आरएसएस का श्रमिक मोर्चा भारतीय मज़दूर संघटन भी इस बात पर सरकार से नाराज़ है । बेशक बीस लाख करोड़ की यह सच्चाई मुझ जैसों का दिल तोड़ती है मगर फिर उम्मीद सी रहती है कि क्या पता कोई कृपा मुझ जैसों पर भी हो ही जाये ।
लाल हरी वाले टोटके से प्रभावित होकर मैंने टाली-थाली बजाने को भी कुछ वैसा ही समझा और उसे पूरी श्रद्धा से उसे निभाया । कृपा के लिये पीज़ा-बर्गर खाने जैसी ही दीया जलाने की सलाह मुझे लगी और वह काम भी कर डाला मगर पता नहीं फिर भी मुझ पर अभी तक कृपा नहीं हो रही । बिजली-पानी, हाउस टैक्स, मकान-गाड़ी की किश्त व क्रेडिट कार्ड के जुर्माने किसी में भी तो कुछ रियायत मेरे हाथ नहीं आई । हे राजनीति के निर्मल बाबाओं कुछ पता तो चले कि आख़िर कृपा कहाँ रुकी हुई है ?