**गूजरी बोली की पहली गजल**
आज सोचा कि एक ग़ज़ल उस बोली में लिखूं जिसे हम अपने गांव और घर में बोलते हैं। प्रयास कितना कामयाब रहा यह तो आप ही बताएंगे :
यू कहौं कौ न्याव, यू तौ गरदमगरदा होरौ है।
है भवर मै नाव, यू तौ गरदमगरदा होरौ है।
दाल दोसै पार हो गई, प्याज बी सौ की किलो,
आलू दस के पाव, यू तौ गरदमगरदा होरौ है।
दूध लदकै रेल मै दिल्ली चलौ जावै है सब,
गूजर पीरे चाय, यू तौ गरदमगरदा होरौ है।
उनके घर मै अब विदेशी कुत्ते पाले जारे हैं,
जो पालै हे गाय, यू तौ गरदमगरदा होरौ है।
बैठकै कुर्सी पै अपणो घर भरने की सोचै है,
जाको लगजा दाव, यू तौ गरदमगरदा होरौ है।
आजकल के बालकन कौ अपणे मा अर बाप सू,
है बुरौ बरताव, यू तौ गरदमगरदा होरौ है।
पढी लिखी बेटीन की बी कदर कम कर राखी है,
बेटान के बढरे भाव, यू तौ गरदमगरदा होरौ है।
संसद है या कव्वा बैठे कीकरन के पेड़ पै,
कररे काव काव यू तौ गरदमगरदा होरौ है।
◆राजकुमार भाटी