यशस्वी प्रधानमंत्री और विद्वान कांग्रेसी नेता पं नरसिंह राव जी को कृतज्ञ राष्ट्र सौवे जन्मदिन पर नमन कर रहा है ।
भारत को आर्थिक मज़बूती देने की नींव रखनेवाले नरसिंह राव सन 1938, निज़ाम के हैदराबाद में उस्मनिया यूनिवर्सिटी के एक छात्र को कॉलेज प्रशासन “वन्दे मातरम्” कहने के लिए मना करता है, लेकिन वो 17 साल का वो छात्र नहीं मानता, तेलुगु भाषी उस छात्र को लगता है कि मातृ भूमि को प्रणाम करने से कोई उसे क्यों रोके, प्रशासन नहीं मानता और उस छात्र को यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया जाता है...बाद में वो अपनी LLB की पढ़ाई नागपुर आकर पूरी करता है और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेता है...
वो छात्र कोई और नहीं बल्कि पी वी नरसिम्हा राव थे, वही नरसिम्हा राव जिन्हें इस समय प्रधानमंत्री बनाया गया जब वो राजनीति से सन्यास ले चुके थे, और सन्यास से वापस आकर वो लगभग कंगाली की स्थिति में आ चुके एक देश को तरक़्क़ी के इस रास्ते पर ले जाता है जिस पर चलकर आज हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बन चुके हैं, येवही नरसिम्हा राव थे जिन्होंने देश से लाइसेन्स राज ख़त्म किया, ये वही नरसिम्हा राव थे जिन्होंने आज़ादी बाद पहली बार Israel से अफ़िशियल सम्बंध स्थापित किए, इज़्रेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी।
जब 1994 में पाकिस्तान यूनाइटेड नेशन में भारत के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाया, और अमेरिका bhi उस समय पाकिस्तान के साथ खड़ा था, तब नरसिम्हाराव ने सलमान ख़ुर्शीद के साथ विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को देश का प्रतिनिधि बनाकर भेजा, ये apne आप में एक अभूतपूर्व निर्णय था, जिसके पीछे मंशा ये थी कि दुनिया को ये मेसेज दिया जाए कि पाकिस्तान और कश्मीर के मामले में भारत एकजुट है, उनकी रणनीति काम आइ, सलमान ख़ुर्शीद और अटल बिहारी वाजपेयी की जोड़ी ने पाकिस्तान के प्रस्ताव का एसा मुँहतोड़ जवाब दिया कि पाकिस्तान अपनीनिश्चित हार देखकर प्रस्ताव ही वापस ले लिया...
राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नरसिम्हा राव देश के एकमात्र प्रधानमंत्री थे जिन्हें उस समय निर्विरोध चुना गया..
हर हिंदू के मन में यह मानता है कि बाबरी ढाँचा गिराने में इनका बड़ा ‘योगदान’ था..
देश के ऐसे महान सपूत पूर्व प्रधानमंत्री की आज स्वर्ण जयंती है, भगवान श्रीराम के भक्त उनको नमन वंदन अभिनंदन करते है