'मेरे साजन हैं उस पार, मुझे ले चल पार ...'
शनिवार, 2 फ़रवरी, 2013 को 07:11 IST तक के समाचार
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गल्फ में काम कर रहे पुरूषों से शादी करने वाली महिलाएं लंबे इंतजार को अभिशप्त हैं
केरल के मुस्लिम-बहुल मल्लापुरम जिले के कोट्टेकल इलाके में जश्न का माहौल है.
तालियां बजा-बजा कर लड़कियां शादी के गीत गा रहीं हैं और इनके बीच सज धज कर बैठी है दुल्हन जो जल्द ही विदा हो जाएगी.मगर शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े का ये साथ बहुत दिनों का नहीं है. बस दो हफ़्तों के भीतर दूल्हा दूर खाड़ी के किसी देश वापस चला जाएगा और कोट्टेकल के इस गांव में दुल्हन सिर्फ उसका इंतज़ार करते हुए अपने दिन गुज़ारगी.
ये इंतजार एक साल का भी हो सकता है या उससे ज्यादा भी.
दुल्हन नाबालिग है मगर समाज के रस्म और रिवाज के हिसाब से शादी के लायक हो चुकी है. भले शादी उसकी मर्ज़ी से हो या मर्जी के खिलाफ. उसे तो समाज की मर्ज़ी के हिसाब से चलना है.
घुट घुट कर जीना
मल्लाप्पुरम जिला परिषद् की उपाध्यक्ष सुजाता का कहना है कि ये प्रथा कई साल से चली आ रही है और समाज को लगता है कि लड़कियों की शादी जल्द ही हो जानी चाहिए.Image may be NSFW.
Clik here to view."शादी के बाद इनका साथ सिर्फ चंद दिनों का ही होता है. फिर लड़का खाड़ी देश अपनी नौकरी पर चला जाता है और फिर वो कब आएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. दो सालों के बाद आएगा भी तो सिर्फ पंद्रह दिनों या एक महीने के लिए."
सुजाता, मल्लाप्पुरम जिला परिषद् की उपाध्यक्ष
सुजाता कहतीं हैं,"शादी के बाद इनका साथ सिर्फ चंद दिनों का ही होता है. फिर लड़का खाड़ी देश अपनी नौकरी पर चला जाता है और फिर वो कब आएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. दो सालों के बाद आएगा भी तो सिर्फ पंद्रह दिनों या एक महीने के लिए."
सुजाता का कहना है कि समाज में पुरानी प्रथा चली आ रही है कि पंद्रह साल की होते होते ही लड़कियों की शादी कर दी जाए. समाज सोचता है कि पंद्रह साल की उम्र से ज्यादा होने पर लड़की के लिए दूल्हा मिलना मुश्किल हो जाता है.
खाड़ी में काम करने वाले युवक यहां की पहली पसंद हैं. यानी ये सबसे योग्य वर समझे जाते हैं. अपने देश या अपने राज्य में नौकरी करने वाले उनसे कमतर माने जाते हैं. माना जाता है कि खाड़ी देश में काम करने वाले ज्यादा पैसे कमाते हैं. इसलिए इनकी मांग ज्यादा है.
तनाव और त्रासदी
बदलते ज़माने के साथ ये प्रथा समाज के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है क्योंकि ऐसी लड़कियां अब मानसिक रोगी हो रही हैं. मलाप्पुरम के एक सरकारी अस्पताल में मेरी मुलाक़ात साजिदा नाम की लड़की से हुई जिसका सात साल का बेटा है.Image may be NSFW.
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मल्लापुरम में खाड़ी देशों में काम करने वाले दुल्हे की बहुत मांग है
उसने एक लड़के को जन्म दिया मगर इसी दौरान पति की कंपनी की मालिकों ने कोई आरोप लगाकर उसे जेल भेज दिया. पिछले छह सालों से वो जेल में है. पिछले आठ साल में साजिदा अपने पति के साथ सिर्फ 15 दिन ही रह पाई.
अब वो मानसिक तनाव से गुज़र रही है.
18 साल की आयशा फातिमा की कहानी कुछ अलग सी है. वो कहती हैं कि शादी के बाद जो पैसा दहेज़ के रूप में दिया गया उसे लेकर उसका पति खाड़ी के किसी देश नौकरी के लिए चला गया. फिर उसने संपर्क ही ख़त्म कर दिया.
समाज के दबाव के बावजूद वो उसका हालचाल नहीं लेता. आयशा की शादी को दो साल हो चुके हैं. अब उसकी मानसिक स्थिति भी ठीक नहीं है.
समृद्धि की कीमत
आयशा के पिता अब्दुल करीम कहते हैं कि उनकी बेटी गुमसुम रहती है. वो अब उसका इलाज मनोचिकित्सक से करवा रहे हैं.मल्लाप्पुरम के जाने माने वकील शमसुद्दीन कहते हैं कि लड़के अमूमन पत्नी को अपने साथ इसलिए नहीं ले जाते हैं क्योंकि वहां वो ज्यादा से ज्यादा मेहनत करना चाहते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा पैसा बचाया जा सके. फिर पैसे जमा कर वो अपना मकान बनाते हैं.
"ज़िन्दगी की जद्दोजेहद में दांपत्य जीवन को ताख पर रख कर ही सब कुछ किया जाता है."
शमसुद्दीन, वकील
साजिदा और आयशा केरल के मल्लापुरम में रहने वाली उन लड़कियों में से हैं जिनकी खुशियों का गला उनके व्यस्क होते ही घुट गया. समाज, बिरादरी और परिवार के सम्मान की खातिर इन्हें अपने सपनों की कुर्बानी देनी पड़ी. और इसके बदले में इन्हें मिली तो सिर्फ तन्हाई. अरब सागर के उस पार उनके साजन और वो इस पार.
ये अपना दुख ना तो किसी को बता सकती हैं और ना ही समाज से कोई शिकायत ही कर सकती हैं. आज ये मानसिक रोगियों का जीवन जीने को मजबूर हो गई हैं.