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पहाड़ के पेले / विवेक शुक्ला

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गढ़वाल हीरोज के पेले


केसर सिंह नेगी रोज अपनी साइकिल पर ही सरोजनी नगर से नेताजी नगर और लोदी कॉलोनी से राउज एवेन्यू जैसी सरकारी बाबुओं की कॉलोनियों में पहुंच जाया करते थे। वे वहां देवभूमि से दिल्ली आकर बसे लोगों से इधर एक फुटबॉल क्लब शुरू करने की संभावनाओं को तलाशते। केसर सिंह से राउज एवेन्यू में केदार सिंह बिष्ट के घर तमाम लोग मिलते। उन्हें हर जगह पॉजिटिव रिस्पांस मिलने लगा। नतीजा ये हुआ कि सन 1953 में दिल्ली में गढ़वाल हीरोज क्लब स्थापित हो गया। तब से गढ़वाल हीरोज राजधानी में बसे लाखों पहाड़ियों  का सबसे सशक्त प्रतीक के रूप में उभरा। उसके बाद गढ़वाल हीरोज के अंबेडकर स्टेडियम में होने वाले हर मैच में सैकड़ों  दर्शकों की उपस्थिति तय होने लगी। पहले तो दिल्ली का इतना फैलाव नहीं हुआ था, इसलिए सूचनाएं आपस में ही दे दी जाती थी। अब गढ़वाल हीरोज के मैचों

 की सूचना व्हाट्सएप मैसेज से दे दी जाती। जब उसका मैच होता है, तब स्टेडियम में गढ़वाल का परम्परागत संगीत ढोल दमाऊ बजने लगता है। सारा वातावरण गढ़वालमय हो जाता है।  ये अपने तमाम काम छोड़कर अपनी टीम की सपोर्ट में पहुंच जाते हैं। गढ़वाल हीरोज ने अपनी पहचान एक जुझारू टीम के रूप में बनाई। इसका डीसीएम, डुरंड जैसे टुर्नामेंटों और दिल्ली फुटबॉल लीग में  कुल मिलाकर ठोस प्रदर्शन  रहा है। गढ़वाल हिरोज 2010 में डुरंड कप के क्वार्टर फाइनल में पहुंची थी। इस क्रम में उसने दिल्ली की फेवरेट जेसीटी फगवाड़ा टीम को भी मात दी थी। उस मैच को देखने के लिए मानो सारा सेवा नगर,राउज एवेन्यू, विनोद नगर, अलीगंज पहुंच गया था। गढ़वाल हीरोज ने 2013  में

दिल्ली सीनियर डिवीजन फुटबाल लीग चैंपियन जीती  थी।गढ़वाल हीरोज के प्रति प्रवासी उत्तराखंडियों की निष्ठा विचलित नहीं होती। हालांकि कई बार उनकी टीम ने कई बार अपेक्षित प्रदर्शन नहीं भी किया है। पर मामला गढ़वाल शब्द से जुड़ा है। गढ़वाल हीरोज के बेहतरीन खिलाड़ियों

का जिक्र होगा तो सुखपाल सिंह बिष्ट ( जो बीएसएफ के भी कप्तान रहे), ओम प्रकाश नवानी, राजेन्द्र सजवान, गुमान सिंह, जगदीश रावत, विजय राम ध्यानी, राजेन्द्र अधिकारी, कुलदीप रावत, हरेन्द्र नेगी, रग्गी बिष्ट,आरएस रावत, दिगंबर सिंह,भट्ट, स्व.माधवा नंद और लक्ष्मण बिष्ट जैसे उम्दा खिलाड़ियों का नाम तो लेना होगा।

इन सबका अपने फैंस के बीच मुकाम पेले,मैसी या माराडोना से कम नहीं रहा है। इन्हें मैच तो तो छोडिए इनकी आईआईटी कैंपस, मोती बाग या मिन्टो रोड के प्रेस ग्राउंड में होने वाली प्रैक्टिस को देखने के लिए भी दूर-दूर से इनके शैदाई पहुंचते रहे हैं।

गढ़वाल हीरोज में फुटबॉल की बारीकियां सीखे दर्जनों खिलाड़ियों ने दिल्ली और अन्य नामवर टीमों को दर्जनों खिलाड़ी दिए हैं। गढ़वाल हीरोज का मतलब ये नहीं है इससे सिर्फ देवभूमि से संबंध रखने वाला ही खेलेगा।

इससे हाल के सालों में कुछ नाइजीरियाई भी खेलते रहे हैं। इस बीच, अब लगभग 90 साल के हो रहे दीवान सिंह गढ़वाल हीरोज की गतितिविधियों की जानकारी क्लब के सक्रिय पदाधिकारियों अनिल नेगी या मगन पटवाल से लेते रहते हैं।
लेख 2 जुलाई को पब्लिश हुआ।

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