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मोदी कि लेह यात्रा से जगी उम्मीदें / राकेश थपलियाल

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प्रधानमंत्री मोदी की लेह यात्रा से जगी (शहादत के बदले की ) उम्मीद / राकेश थपलियाल


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लेह-लद्दाख क्षेत्र में कार्य कर चुके कुछ पूर्व सैनिक अधिकारी यह दावा कर रहे थे कि इस विषम परिस्थितियों वाले क्षेत्र की वास्तविक स्थिति की जानकारी को नई दिल्ली तक नहीं पहुंचाया जाता है। केन्द्र सरकार को सही स्थिति पता लगानी होगी तभी कुछ हो सकेगा वरना तो यही सब चलता रहेगा और हम अपने ‘हाथबंधे’ सैनिकों की शहादत पर आंसू बहाते रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व सैनिकों की इस मांग की गंभीरता को सम­झते हुए अचानक खुद लेह पहुंचकर वास्तविक स्थिति का जायजा लेकर यह जता दिया है कि वे सुनी सुनाई बातों पर नहीं बल्कि आंखों देखी पर यकीन रखते हैं। उनके इस कदम से न केवल सैनिकों का हौसला बढ़ा बल्कि पूरे देशवासियों को में यह भरोसा भी जागा कि सरकार का मुखिया देश की सुरक्षा मजबूत करने के के साथ-साथ चीन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है।
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राकेश थपलियाल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


किसी की शादी होने वाली थी, किसी को अपनी नवजात बच्ची का मुख देखना था। किसी ने फोन पर स्थिति सामान्य बताते हुए अपने माता-पिता, पत्नी और बच्चों से, जल्दी ही घर लौटने का वादा किया था। आखिर वो उस गलवान घाटी में देश की सीमा की रक्षा करने में तैनात थे जहां वर्षों से गोली नहीं चली थी। चीन के साथ भारत सरकार ने इस बाबत सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर रखे हैं। ऐसे में किसी सैनिक की जान जाने का खतरा तो नहीं था। अगर दो देशों के बीच सेना के गोली न चलाने की पुरानी संधि हो, उस जगह भारत और चीन की सेना के बड़े अधिकारियों के बीच बातचीत चल रही हो, नई दिल्ली और बीजिंग में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और राजदूतों के स्तर पर भी वार्ता चल रही हो और ऐसे में रात के अंधेरे में अचानक दोनों देशों के सैनिक सीमा पर ऐसे भिड़ें कि हाथापाई, धक्का मुक्की, कंटीली तारों से लिपटे डंडों, नुकीले पत्थरों की मार और नदी में गिरने से बीस सैनिक शहीद हो जाएं। यह अविश्वसनीय सा है। परमाणु शक्ति रखने वाले आधुनिक हथियारों से लैस एशिया के दो सबसे ताकतवर देशों के बीच ये कैसा युद्ध हुआ? इसमें शहीद हुए सैनिकों के परिवार वाले इसे पचा नहीं पा रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि सीमा पर जो हालात थे उसकी सही तस्वीर सामने नहीं आ रही है। लेह-लद्दाख क्षेत्र में कार्य कर चुके सेना के कुछ पूर्व अधिकारी यह दावा कर रहे थे कि इस विषम परिस्थितियों वाले क्षेत्र की वास्तविक स्थिति की जानकारी को नई दिल्ली तक नहीं पहुंचाया जाता है। केन्द्र सरकार को  सही स्थिति पता लगानी होगी तभी कुछ हो सकेगा वरना तो यही सब चलता रहेगा और हम अपने ‘हाथबंधे’ सैनिकों की शहादत पर आंसू बहाते रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व सैनिकों की इस मांग की गंभीरता को सम­झते हुए अचानक खुद लेह पहुंचकर वास्तविक स्थिति का जायजा लेकर यह जता दिया है कि वे सुनी सुनाई बातों पर नहीं बल्कि आंखों देखी पर यकीन रखते हैं। उनके इस कदम से न केवल सैनिकों का हौसला बढ़ा बल्कि पूरे देशवासियों को में यह भरोसा भी जागा कि सरकार का मुखिया देश की सुरक्षा मजबूत करने के के साथ-साथ चीन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। प्रधानमंत्री को लेह में देखने के बाद शहीदों के परिवार के सदस्यों में यह उम्मीद तो जगी है कि 20 सैनिकों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी लेकिन वे क्या चाहते हैं? यह जानना और उसके हिसाब से कदम उठाना भी जरूरी है। शहीदों के परिवार की तरफ से एक सुर में यह मांग उठ रही है कि ‘बदला लिया जाना चाहिए’,  ‘मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए’, ‘र्इंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए’।
राजनेताओं से लेकर आम व्यक्ति तक इस बारे में अपनी बिन मांगी सलाह दे रहे हैं कि चीन के साथ क्या किया जाना चाहिए? लेकिन इन सब से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं उन माता-पिता, पत्नी भाई-बहन और बच्चों के विचार जिन्होंने अपना बेटा, पति, भाई और पिता को खोया है। इन सभी का एक सुर में कहना है कि चीन से सैनिकों की शहादत का बदला लिया जाना चाहिए। इसके बिना शहीदों की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी और इनके परिवार वालों के अंदर धधक रही दुख और इंतकाम की ज्वाला भी शांत नहीं हो पाएगी पर इससे क्या फर्क पड़ता है? चीन के साथ क्या किया जाए? यह तो सरकार की सोच पर निर्भर है। हमारा केन्द्रीय नेतृत्व क्या कोई ऐसा ठोस कदम उठाएगा जिससे शहीदों की शहादत का बदला लिया जा सके? मोदी ने लेह में सैनिकों के बीच पहुंचकर चीन के खिलाफ कड़ी सैनिक कार्रवाई किए जाने की उम्मीद को बढ़ा दिया है।
केन्द्र की सत्ता में आने से पूर्व वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी 56 इंच की छाती बताते हुए एक सैनिक के बदले दुश्मन सैनिकों के दस सिर लाने का वादा देश से किया था। देशवासियों को भरोसा है कि मोदी सरकार से चीन को इस हरकत का करारा जवाब मिलेगा। यही वजह है कि बिहार में एक शहीद सैनिक की विधवा बिलखते हुए कह रही थीं ‘मोदी चीन को उसके घर में घुस कर मारो, सर्जिकल स्ट्राइक करो, मेरे पति की मौत का बदला लो’। एक शहीद के पिता कह रहे थे ‘मैं पूरे परिवार को सेना में
भेजने के लिए तैयार हूं। इस बार कुछ करना होगा।’ वक्त की जरूरत यह कि शहीदों के परिवारवालों के आंसू सूखने से पहले ऐसा कुछ होना चाहिए जिससे उन्हें कुछ तसल्ली मिल सके। वरना कहीं ऐसा न हो कि वे अपने बच्चों को देश की सेना में भेजने से रोकने लगें।
देश के बीस जांबाजों की शहादत के बीच चीन की आर्थिक कमर तोड़ने के लिए सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं। ये कदम जरूरी हैं पर शहीदों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं है। चीन चीनी माल के बहिष्कार की मांग पूरे देश में उठ रही है और अनेक जगहों पर इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। चीन के प्रति विरोध पूरे देश में उग्र हो रहा है। सोशल मीडिया पर आम लोग चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान छेड़े हुए हैं। देश के अनेक हिस्सों में पूर्व सैनिक भी चीनी सामान की होली जलाते दिख रहे हैं। इन सैनिकों का खून इस कदर खोल रहा है कि ये बिना वेतन के सेना में शामिल होकर बॉर्डर पर मोर्चा संभालने को तैयार हैं। इन्होंने मोदी सरकार के मंत्री रामदास आठवले तो चीनी भोजन और चीनी रेस्त्रां के बहिष्कार और बंद करने की बात कह चुके हैं। ये सब बातें सुनने में भले ही कुछ सुकून देनी वाली लगें पर असलियत में तो शांति तभी मिलेगी जब चीन पर जवाबी हमला किया जाएगा लेकिन राजनीति के जानकार इस तथ्य को जानते  हैं कि ऐसा कर पाना इतना आसान नहीं होगा जितना कि लग रहा है। चीन को पस्त करने के लिए कूटनीति भी जरूरी है और सैनिक कार्रवाई भी। देश के हर कोने से यह विचार आ रहे हैं कि चीन बेहद चतुर, धूर्त और धोखेबाज दुश्मन है। इसे हमारे देश के आम नागरिक से लेकर राजनेता और सैनिकों सभी जानते और स्वीकरते हैं। फिर भी अगर हम उसके साथ वार्ता के जाल में फंसे रहेंगे तो वह हमे इसी तरह से धोखा देता रहेगा। इतिहास से सबक लेकर वर्तमान हालात को देखते हुए सैनिक कार्रवाई से लेकिन राजनीतिक कूटनीति के जरिए ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे भविष्य में चीन
भारत की तरफ आंख उठाने की हिमाकत न कर सके। अब समय हिंदी चीनी भाई भाई के नारे  से काफी आगे निकलकर हिंदी-चीनी बाय-बाय कहने का आ गया है।
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Rakesh Thapliyal
9810308653
7011442313

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