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रवि अरोड़ा की नजर से......





ये आसानियाँ

रवि अरोड़ा.

इंसान बड़ा करामाती जीव है । मुसीबत में भी अपने मतलब का कुछ ढूँढ ही लेता है । शायद यही वजह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं दुनिया के तमाम बड़े नेता अपने नागरिकों का आह्वान कर रहे हैं की आपदा को अवसर में बदलने का प्रयास करें । यक़ीनन निजी तौर पर करोड़ों-अरबों लोग एसे प्रयास कर भी रहे होंगे मगर सम्पूर्ण कार्य क्षेत्र की बात करें तो एसे प्रयास कम ही दिखाई पड़ रहे हैं । अपवाद है तो केवल आईटी क्षेत्र , जिसकी तो जैसे लाटरी ही लग गई है । लॉक़डाउन के समय में तमाम बंदिशों के चलते दुनिया भर की आईटी इंडस्ट्रीज़ को अपने कर्मचारियों को घर से ही काम कराना पड़ा । लगभग तीन महीने तक यही प्रक्रिया चलने पर भी इन कम्पनियों के काम में जब कोई असर नहीं पड़ा तो दुनिया भर की आईटी इंडस्ट्रीज़ की जैसे आँखें खुल गईं । इन कम्पनियों के मालिकान हैरान हैं कि इतने सालों में काल सेंटरों और बीपीओज में अरबों रुपये उन्होंने क्यों बर्बाद किये ? काल सेंटर और बीपीओ में एक व्यक्ति की सीट की लागत पंद्रह से बीस हज़ार रुपये मासिक आती है । स्टाफ़ को घर से लाने ले जाने और चाय-पानी व अन्य सुविधाओं को जोड़ लें तो कर्मचारी के कुल वेतन से अधिक ख़र्च ऊपर से हो जाता है । लॉक़ डाउन में ये ख़र्चे न के बराबर हुए और काम की गुणवत्ता भी प्रभावित नहीं हुई । नतीजा दुनिया भर का आईटी सेक्टर अब नया रूप लेता दिख रहा है जहाँ अब अधिकांश कर्मी वर्क फ़्रोम होम के साँचे में ढाल कर तैयार किए जाएँगे ।

अपने मुल्क की बात करें तो भारत में बंगलुरू , चेन्नई, गुरुग्राम, मुंबई, पुणे व नोयडा जैसे शहरों की चकाचौंध आईटी सेक्टर की वजह से ही है । खुदरा, बैंकिंग, बीमा, दूरसंचार, आटो, फ़ार्मा, आवभगत और वित्त क्षेत्र के जो तमाम फ़ोन हम दिन भर सुनते हैं , वे इन्हीं शहरों से ही आते हैं । तीस साल से कम उम्र के अविवाहित व शिक्षित लड़के लड़कियों में इन नौकरियों का सबसे अधिक क्रेज़ है । बेशक लॉक़डाउन में इन बड़े शहरों में युवा पीढ़ी की यह रौनक़ फीकी दिखाई पड़ी मगर आईटी कंपनीज की तो जैसे बल्ले बल्ले ही हो गई । लॉक़डाउन के समय का किराया अधिकांश जगह मुआफ़ हो गया और परिवहन व बिजली समेत तमाम अन्य ख़र्चे भी बच गये । इसी से प्रेरणा लेकर अब अधिकांश बीपीओ और काल सेंटर अपने कार्यालय छोटे कर रहे हैं । हज़ार सीट वाले पाँच सौ और पाँच सौ सीट वाले दो-ढाई सौ सीट का कार्यायल तैयार करवा रहे हैं जहाँ कर्मी एक दिन घर से और एक दिन आफिस से काम करेंगे । छोटे खिलाड़ी केवल काँफ़्रेस एरिया और मैनेजमेंट के ही कुछ लोगों के दफ़्तरों को छोड़ कर बाक़ी सिटिंग एरिया पूरी तरह ख़ाली कर रहे हैं और अपने स्टाफ़ को घर से ही काम करने को कह रहे हैं ।

 हालाँकि आने वाले समय में इसके सामाजिक दुष्परिणाम भी हो सकते हैं मगर आज की तारीख़ में तो स्टाफ़ भी ख़ुश है कि चलो आने जाने का समय बचा । एक सर्वे के अनुरूप देश के आईटी सेक्टर में पचास लाख से अधिक लोग काम करते हैं और आने वाले समय में भी इनमे से अधिकांश लोग अपने घरों से ही काम करेंगे , एसा अनुमान लगाया जा रहा है । भारत में इसकी पहल करने वालों में जेनपेक्ट, डब्ल्यूडब्ल्यूएस, आईबीएम, टीसीएस और दक्ष जैसे बड़े धुरंधर भी हैं । हालाँकि सॉफ़्टवेयर इंडस्ट्रीज़ में यह कल्चर पहले से ही था मगर लॉक़डाउन के बाद यहाँ भी यही दोहराया जा रहा है । आने वाले समय में हर वह काम जो कम्प्यूटर पर घर से हो सकता है , वहाँ भी यह सब कुछ देखने को मिलेगा । बेशक आपदा में अवसर की इस नई पहल से आसानियाँ हवाओं में बिखरेंगी मगर यह  आसानियाँ अपने साथ और क्या कुछ लाएँगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता ।

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