आपातकाल-जब चौधरी साहब के भाषण से लखनऊ-दिल्ली हिल गयी
‘आपातकाल का दुरुपयोग किया जा रहा है। अनेक नेताओं को बिना वजह गिरफ्तार कर लिया गया है। फौजदारी या इसी तरह के अन्य कानूनों पर निर्भर रहने वाली सरकार जो प्रेस और साहित्य की आवाज को दबाती है, हजारों संस्थाओं पर रोक लगाती है, मुकदमा चलाए बिना लाखों लोगों को जेल में बंद कर देती है ऐसी सरकार है जिसका अस्तित्व में बने रहना उचित नहीं।‘
यह बात चौधरी चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के भीतर 23 मार्च 1976 को कही। वो आपातकाल का वह दौर था जब लोगों के मुंह बंद थे। तब वे विधानसभा में नेता विपक्ष थे और ढाई घंटे सदन में जो कुछ कहा उसे सुन कर तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से लेकर तमाम दिग्गज और मीडिया के लोग सन्न थे। वे जेल से छूट कर आए थे और विपक्ष की ओर से अकेले जो भाषण दिया, उसने दिल्ली और लखनऊ दोनों को हिला दिया और संसदीय इतिहास का अनूठा दस्तावेज भी बना। अदालतों, जन प्रतिनिधियों और प्रेस की आजादी सब पर पहरा था। ऐसा आतंक था कि आपातकाल के खिलाफ बोलने का कोई साहस नही करता था। लेकिन चौधरी साहब ने यह साहस किया।
( यह पोस्ट साझा करते हुए मैं अपने मित्रों से जानना चाहूंगा कि सदनों में अगर किसी विपक्षी नेता ने ऐसा और कहींं कहा हो और उनकी जानकारी में हो तो उस जानकारी से वे मुझे अवगत कराएंगे। )
कैराना के सांसद रहने के दौरान हुकुम सिंह जी ने मुझे सेंट्रल हाल में यह किस्सा सुनाया था मैने बाद में उत्तर प्रदेश विधान सभा से और जानकारियां हासिल की। हुकुम सिंह उस दौरान कांग्रेस में थे और उत्तर प्रदेश सरकार में संसदीय कार्य मंत्री थे। उन्होंने मुझे बताया था कि उस सत्र में विपक्ष के सारे नेता जेलों में थे। हमें लगा कि बिना विपक्ष के सदन का मतलब है क्योंकि हम किसके लिए भाषण दें और किसे जवाब दें। लेकिन चौधरी चरण सिंह ने जिस तरह पूरी सरकार का हिला कर रख दिया तो मुझे लगा कि अब इनको फिर जेल जाने से कोई रोक नहीं सकता।
चौधरी चरण सिंह 1937 के बाद से चालीस साल तक उत्तर प्रदेश विधान सभा में रहे। उत्तर प्रदेश की राजनीति में रहते हुए राष्ट्रीय नेता बने। दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और लंबे समय तक मंत्री रहे। उन्होंने गैर कांग्रेसी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिशें कीं। 1974 के विधान सभा चुनाव में उनके 104 विधायक जीते थे। लेकिन आपात काल के दौरान 25 जून, 1975 को उनको गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया। बाद में वे ही थे जिन्होंने श्रीमती इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी का आदेश देने का साहस किया। 28 जुलाई, 1979 को वे प्रधानमंत्री बने तो राजनीतिक समर्थन के लिए इंदिराजी को धन्यवाद करने नहीं गए और कहा कि वे उस व्यक्ति के घर कैसे जा सकते हैं जिसने देश में आपात स्थिति लगायी और हजारों लोगो को जेल भेजा।
आज बहुतों के संस्मरण देख रहा हूं तो मन में कई सवाल उठते हैं। हमारी दो पीढियां ऐसी आ गयी हैं जिसने आपातकाल नहीं देखा। लेकिन लोकतंत्र को समझते हैं और उसके प्रति खतरों से वाकिफ भी हैं। वे उन लोगों के बारे में भी जानते हैं जिन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए बलिदान दिया लेकिन उनको भी जानते हैं जो नाखुन कटवा कर शहीद का खिताब पा गए। बाकी मीडिया पर टिप्पणी इसके साथ नहीं करूंगा। क्योंकि मीडिया पर हमला अधिकतर राज्यों में अपने तरीेके से जारी है। उऩको घेरने के लिए कोई आपातकाल नहीं चाहिए।
(C) अरविंद कुमार सिंह