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दिल्ली के उजड़ने बसने की दास्तां / नलिन चौहान


दिल्ली हिंदी अकादमी की पत्रिका "इन्द्रप्रस्थ भारती"की जनवरी, 2020 अंक में प्रकाशित "दिल्ली के उजड़ने-बसने की कहानी"शीर्षक वाला मेरा एक लेख.

भारतीय इतिहास में दिल्ली का उल्लेख महाभारत काल से ही मिलता है। महाभारत काल में दिल्ली का नाम इन्द्रप्रस्थ था। ऐसे इस शहर के इतिहास का सिरा भारतीय महाकाव्य महाभारत के समय तक जाता है, जिसके अनुसार, पांडवों ने इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया था। उल्लेखनीय है कि उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ तक दिल्ली में इंद्रप्रस्थ नामक गाँव हुआ करता था। पाँच प्रस्थों में एक इन्द्रप्रस्थ के अस्तित्व का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। अन्य चार प्रस्थ-पानीपत, सोनीपत, बागपत और तिलपत थे। इन्हीं पाँचों स्थानों पर प्रसिद्ध महाभारत का युद्ध लड़ा गया था। जातकों के अनुसार, इंद्रप्रस्थ सात कोस के घेरे में बसा हुआ था। पांडवों के वंशजों की राजधानी इंद्रप्रस्थ में कब तक रही यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता किंतु पुराणों के साक्ष्य के अनुसार परीक्षित तथा जनमेजय के उत्तराधिकारियों ने हस्तिनापुर में भी बहुत समय तक अपनी राजधानी रखी थी।

दूसरी शताब्दी के ’टालेमी’ के विवरण में ट्राकरूट पर मौर्य शासकों द्वारा बसाई गई नगरी 'दिल्ली'नाम से उल्लिखित है। बाद में मौर्य, गुप्त, पाल आदि अनेक राजवंशों का दिल्ली पर शासन रहा। दिल्ली शहर की स्थापना के सन्दर्भ में कई कथाएँ प्रचलित हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में कराये गये खुदाई में जो भित्तिचित्र मिले हैं, उनसे इसकी आयु ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व का लगाया जा रहा है, जिसे महाभारत के समय से जोड़ा जाता है, पुरातात्विक रूप से जो पहले प्रमाण मिलते हैं उन्हें मौर्य-काल (ईसा पूर्व 300) से जोड़ा जाता है। मौर्यकाल के पश्चात लगभग 13 सौ वर्ष तक दिल्ली और उसके आसपास का प्रदेश अपेक्षाकृत महत्वहीन बना रहा।

उल्लेखनीय है कि रिज पर सुरक्षित तरीके से बसी पहले की अधिकांश बस्तियां-लालकोट, देहली-ए-कुना, महरौली, जहांपनाह, तुगलकाबाद-शहर के दक्षिण में स्थित थी। दिल्ली के दो प्रमुख प्राकृतिक स्थलों, ’रिज’ और 'यमुना'ने यहां की बस्तियों, शाही स्थलों और शहर की सामाजिक और आर्थिक संस्कृति के उन्नयन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

थानेश्वर के सम्राट हर्ष के साम्राज्य के छिन्न भिन्न होने के पश्चात उत्तरी भारत में अनेक छोटी मोटी राजपूत रियासतें बन गईं और इन्हीं में 12 वीं शती में पृथ्वीराज चौहान की भी एक रियासत थी, जिसकी राजधानी दिल्ली बनी। दिल्ली के जिस भाग में क़ुतुब मीनार है वह अथवा महरौली का निकटवर्ती प्रदेश ही पृथ्वीराज के समय की दिल्ली है। वर्तमान योगमाया का मंदिर मूल रूप से इसी चौहान सम्राट का बनवाया हुआ कहा जाता है। एक प्राचीन जनश्रुति के अनुसार, चौहानों ने दिल्ली को तोमरों से लिया था जैसा कि 1327 ईस्वी के एक अभिलेख से सूचित होता है, यह भी कहा जाता है कि चौथी शती ईस्वी में अनंगपाल तोमर ने दिल्ली की स्थापना की थी। इन्होंने इंद्रप्रस्थ के क़िले के खंडहरों पर ही अपना क़िला बनवाया।

https://nalin-jharoka.blogspot.com/2020/07/story-of-delhi-through-ages.html

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