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सूरीनाम में भारतवंशी राष्ट्रपति
सूरीनाम और गुयाना को लघु भारत कहा जाता है। इन्हें भारत के बाहर ‘भारत’ भी बोल सकते हैं। जहां सूरीनाम में भारतवंशी चंद्रिका प्रसाद संतोखी को देश राष्ट्रपति चुन लिया गया है, वहीं गुयाना में भारतवंशियों को उनके हकों से वंचित किया जा रहा है। पर पहले बात सूरीनाम की। भोजपुरी भाषी संतोखी ने पूर्व सैन्य तानाशाह देसी बॉउटर्स की जगह ली है, जिनकी नेशनल पार्टी ऑफ सूरीनाम (एनपीएस) संसदीय चुनावों में हार गई है।
संतोखी को नेशनल एसेंबली ने राष्ट्रपति के रूप में सर्वसम्मति से चुन लिया। वे देश के न्यायमंत्री व प्रोग्रेसिव रिफॉर्म पार्टी (पीआरपी) के नेता रहे हैं।
पीआरपी मूल रूप से भारत वंशियों का प्रतिनिधित्व करती है। पीआरपी को सूरीनाम में यूनाइटेड हिंदुस्तानी पार्टी भी कहा जाता था। धाराप्रवाह भोजपुरी बोलने वाले संतोखी के पूर्वज गिरमिटिया बन भोजपुरी अंचल से सूरीनाम गए थे। कहना ना होगा कि एक गिरमिटिया समाज से जुड़े संतोखी की सफलता की कहानी सिद्ध करती है कि भारतवंशियो ने सूरीनाम में किन बुलंदियों को छूना शुरू कर दिया है। संतोखी सूरीनाम के मुख्य पुलिस आयुक्त रह चुके हैं। भारत और सूरीनाम के संबंध 150 साल पुराने हैं जब भारतीय श्रमिकों को लेकर पहला जहाज सूरीनाम पहुंचा था। भोजपुरी भाषा दोनों देशों को जोड़ती है जिसे सूरीनाम में भारतीय मूल के लोगों ने जिंदा रखा है।
असल में, सूरीनाम और गुयाना के साथ-साथ मारीशस, त्रिनिडाड और फीजी को लघु भारत ही कहा जा सकता है। इधर बसे बड़ी तादाद में भारतवंशी भोजपुरी बोलते हैं। यहां बड़ी संख्या में हिन्दू रहते हैं। सूरीनाम की आबादी में 37 फीसदी हिस्सा हिंदुस्तानी और 27.4 फीसदी हिस्सा हिंदुओं का है। इसकी राजधानी पारामारिबो है। सूरीनाम का समाजबहुसांस्कृतिक है, जिसमें अलग-अलग जाति, भाषा और धर्म वाले लोग करते हैं। सूरीनाम के भारतवंशियों में ज्यादातर भोजपुरिया हैं। भारतवंशियों के रोजगार की भाषा भले ही जिस देश के नागरिक हैं वहाँ की हो, परन्तु उनके आपसी संवाद की भाषा के रूप में उनके पुरखों द्वारा सहेज कर अपने साथ ले जायी गयी भाषाओं को आधार बनाकर बनी भाषा ही है।
कब खड़ा हुआ भारत के साथ सूरीनाम
पिछले साल सूरीनाम के उपराष्ट्रपति माइकल अश्विन अधीन भारत आए थे। तब तक जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया गया था। हालांकि तब मलेशिया और तुर्की जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने का विरोधकर रहे थे, तब सूरीनाम ने कहा था कि सूरीनाम दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में 'दखल को बढ़ावा'नहीं देता। एक तरह से अधीन ने भारत के स्टैंड का खुलकर समर्थन किया था। इस बीच,सूरीनाम की चाहत है कि भारतीय कंपनियां सूरीनाम में निवेश करें। खासतौर पर , कृषि और पर्यटन दो ऐसे बड़े क्षेत्र हैं जहां दोनों देशों के बीच सहयोग की प्रचुर संभावनाएं हैं।
गुयाना में जूझते भारतवंशी
जहां संतोखी के सूरीनाम के राष्ट्रपति निर्वाचित होने से भारत खुश होगा, वहीं अब भी गुयाना में भारतवंशी जूझ रहे हैं। कैरिबियाई टापू देश गुयाना में राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है। गुयाना में विगत मार्च को हुए संसद के चुनावों में मतगणना में भारी गड़बड़ी हुई । इसका नुकसान भारतीय मूल के लोगों के समर्थन से खड़ी पीपल्स प्रोग्रेसिव पार्टी-सिविक (पीपीपीसी) को हुआ है। इसकी स्थापना गुयाना के पहले भारतवंशी राष्ट्रपति छेदी जगन ने की थी। फिलहाल इधर के भारतवंशी अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। भारतवंशियों के संरक्षक के रूप में स्थापित हुए थे छेदी जगन। छेदी जगन के पिता जगन और मां जगाओनी उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से गुयाना ले जाए गए थे। उनके पिता और माँ के साथ उनकी दो दादियों और चाचा भी गुयाना लाये गये थे | उनके पिता गन्ने के खेतों में मज़दूरी करते और छेदी जगन 11 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उन्होंने गिरमिटिया का संघर्ष करीब से देखा था।
वे 1961 में गुयाना के प्रधान मंत्री चुने गये। स्वतंत्रता के बाद 1992-1997 में वे गुयाना के राष्ट्रपति बने। पर उनकी मृत्यु के बाद भारतवंशी बिखरते गए। इसका ही नतीजा है कि वे गुयाना की सियासत में कमजोर स्थिति में है। इस तरफ वहां के गुयाना के भारतवंशियों को सोचना होगा।
भारत के विपरीत गुयाना में मतदान अभी बैलेट पेपर से ही होता है। वहां पर अभी ईवीएम मशीनें नहीं आईं हैं। राष्ट्पति डेविड ग्रेगनर पर आरोप है कि उनके इशारों पर ही मतगणना के समय गड़बड़ हुई। गुयाना मामलों के जानकार कहते हैं कि गुयाना में अब भारतवंशी राजनीतिक रूप से बिखर गए हैं। वे पहले एक दल विशेष के साथ ही खड़े होते थे। इसके चलते वहां पर भारतवंशी बेहतर स्थिति में थे।
गुयाना का इतिहास रहा है कि यहां पर मतदान के समय भारतवंशी मुख्य रूप से (पीपीपीसी) को और अफ्रीकी-गुयाना मूल की जनता पीपल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) के हक में ही वोट देते हैं। वैसे पीएनसी में डोनाल्ड रामोतार जैसे भारतवंशी नेता भी हैं। इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि सारे भारतवंशी पीपीपीए के साथ ही रहते हैं। मौजूदा विवाद तब शुरू हुआ जब मतदान के बाद पीएनसी के नेतृत्व वाले गठबंधन को विजयी घोषित कर दिया गया। इस नतीजे का विपक्ष, ज्यूडशरी और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने कसकर विरोध किया। उनका कहना था कि नतीजे सही नहीं हैं। इनका दावा है कि मतगणना के समय गड़बड़ी की गई। नतीजों के बाद से गुयाना में पीपीपी के समर्थक सड़कों पर उतर आए हैं। पीपीपी की तरफ से इस आँदोलन का नेतृत्व भारतवंशी इरफान अली कर रहे हैं।
दस लाख से भी कम आबादी वाले देश में भारतवंशी 50 फीसद के आसपास है। इन्हें ब्रिटिश सरकार 1817 से लेकर 1920 तक इधर के गन्ने के खेतों में मजदूरी कराने के लिए लेकर आई थी। ब्रिटेन का उपनिवेश था गुयाना। वह गुयाना में काम करने के लिये अपने अफ्रीकी आदि देशों के अन्य उपनिवेशो से भी मज़दूर लेकर आए थे। अत: आज के गुयाना में ज्यादातर भारतीय और अफ्रीकी मूल के ही लोग हैं।
गुयाना में कच्चे तेल के भंडार
गुयाना के घटनाक्रम पर पूरी दुनिया की निगाहें है क्योंकि इधर कच्चे तेल के अकूत भंडार मिले हैं। इस कारण इस मुल्क की किस्मत बदलने वाली है। कहा जा रहा है कि गुयाना निकट भविष्य में संसार के दस सबड़े बड़े तेल उत्पादक देशों में शामिल हो जाएगा। गुयाना में कच्चे तेल के 8 अरब बैरल तेल के भंडार का अनुमान है। यह सच में बहुत ही बड़ा आंकड़ा है। गुयाना में तेल के भंडार एक्समोबाइल नाम की कंपनी ने खोजे हैं।