हम सबके अतिप्रिय हिन्दी के लेखक, चिंतक, सम्पादक राजेन्द्र यादव जी पर केंद्रित 'पूर्वकथन' (अक्टूबर 2020) के वृहद् विशेषांक के लिए प्रिय मित्र व 'पूर्वकथन'के युवा संपादक कामरेड सुभाष सिंगाठिया को अग्रिम बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ !
सुभाष भाई इस विशेषांक में शामिल रचनाकार मित्रों के चित्र-परिचय अपनी टिप्पणी के साथ दे रहे हैं ताकि 'पूर्वकथन'के पाठकों को उनका प्राथमिक परिचय मिल सके.
इसी क्रम में आज सुभाष भाई ने अपनी टिप्पणी के साथ मेरा परिचय तैयार कर (शेयर आप्शन में गड़बड़ी की वजह से) मेरे मैसेंज़र पर भेजा है. आपसे साझा कर रहा हूँ. आभार कामरेड !
🎨 राजेंद्र यादव/कथा और विमर्श का ‘दिल्ली दरबार’ : अभिषेक कश्यप
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‘#पूर्वकथन’ का #राजेंद्र_यादव_विशेषांक'
(अक्टूबर, 2020), #संपादक_सुभाष_सिंगाठिया
अभिषेक कश्यप हमारे समय के उन महत्त्वपूर्ण युवा रचनाकारों में से हैं जिनके रचनात्मक खाते में बेहतरीन कहानियाँ और उपन्यास दर्ज हैं। इनकी रचनात्मकता में से गुजरते हुए पाठक सरपट नहीं दौड़ सकता बल्कि वह कदम-कदम पर सोचते, विचारते, ठिठकते और कथानक से संवादधर्मिता निभाते हुए चलता है- और यह वह असमाप्त संवादधर्मिता है जिसका नैरंतर्य रचना की समाप्ति तक बिना किसी हड़बड़ी के सहजता के साथ बना रहता है। यह इनकी कहानी और उपन्यास के सधे हुए ताने-बाने और संजीदा कथानक के तराशे हुए शिल्प का ही कमाल है। वे अपनी इस रचनात्मकता में जीवन-संघर्ष के आंतरिक प्रश्नों से रूबरू होते हुए समाज के यथार्थ को पहचानने के लिए बेचैन दिखाई देते हैं- और यही बेचैनी उनकी रचनाओं की खूबसूरती है। उल्लेखनीय है कि कथाकार अभिषेक हमारे समय में उपस्थित उन तमाम घटकों पर सूक्ष्म दृष्टि रखते हैं जो समय के सामने प्रश्न बनकर खड़े हैं। वे अपने समय को बारीकी से देखने वाले बेहद सचेत कथा चितेरे हैं। यही वजह है कि अभिषेक समय के नेपथ्य में छिपे प्रश्नों को रेखांकित करते हुए सहजता के साथ हमारे सामने ले आते हैं और उसी सहजता के साथ ही अपने कथा-कर्म की रचना-प्रक्रिया के दौरान उसमें संंवेदना का 'टच'देते चले जाते हैं जो कहानी को पाठक से जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है और जाहिर है कि पाठक इसी संवेदना के लिए कहानी से जुड़ता है।
उल्लेखनीय है कि अभिषेक कश्यप के राजेंद्र जी से बेहद आत्मीय और और घनिष्ठ संबंध रहे हैं और उन्होंने राजेंद्र जी के व्यक्तित्व को बहुत करीब से जाना है।
* अभिषेक कश्यप की दृष्टि में राजेंद्र यादव
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यह सोच कर आज भी अचरज होता है कि उस दौर में जब विराट पूँजी से संचालित 'टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ समूह से प्रकाशित ‘दिनमान’, 'सारिका’, ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ सरीखी तमाम बड़ी साहित्यिक/साँस्कृतिक पत्रिकाएँ या तो बंद हो गईं थीं या मृतप्राय थीं, तब राजेंद्र जी ने कथा-सम्राट प्रेमचंद की बंद पड़ी पत्रिका ‘हंस’ को प्रकाशित करने और अखिल भारतीय स्तर पर उसे प्रसारित करने का जोखिम आखिर क्यों उठाया ? वह भी तब, जब अक्षर प्रकाशन की हालत खस्ता थी ! अक्षर से पुस्तकों का प्रकाशन भी बंद करना पड़ा था।
खैर, एक बार शुरू हुई तो फिर तमाम बाधाओं और विपरीत स्थितियों के बावजूद 'हंस’ की यात्र अवरुद्घ नहीं हुई … चलती, आगे बढ़ती रही और राजेंद्र जी के निधन के बाद आज भी जारी है।
‘हंस’ का आगाज़ करते हुए क्या राजेंद्र जी ने कल्पना की होगी कि यह सफर एक ऐतिहासिक सफर साबित होगा ? कि ‘हंस’ न केवल कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में स्थापित करने में अपनी स्वर्णिम भूमिका निभाएगा बल्कि अपने समय-समाज के कई ज्वलंत विमर्श को, हाशिये पर पड़ी आवाज़ों को साहित्यिक विमर्श के केंद्र में स्थापित कर देगा ?
निश्चय ही यह सब राजेंद्र जी की दृष्टि-संपन्नता, पारदर्शिता, अनुशासन और संसाधनों के मामले में उनके चुस्त रवैये की वजह से ही संभव हो पाया।
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* अभिषेक कश्यप का कथा-साहित्य :
राजेंद्र यादव द्वारा संपादित बहुप्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ के 'अगस्त 2000'अंक में मात्र 23 साल की उम्र में अभिषेक कश्यप की लंबी कहानी 'खेल’ प्रकाशित हुई, जिसके जरिये नयी सदी में हिंदी कथा-साहित्य में नवलेखन का जबरदस्त आगाज़ हुआ।
राजेंद्र यादव के शब्दों में- "अभिषेक कश्यप की विशेषता है कि लाचारी तथा बेबसी के ही किसी कोण का चित्रण करते हुए वह अपने आप को दोहराते नहीं और विषयवस्तु में गुँजाइश के बावजूद अपनी संवेदना को आँसुओं की धारा में बहने से रोकते हैं। वस्तुत: उनकी कहानियाँ किसी व्यक्ति विशेष की दुखांतिका के बारे में नहीं होतीं बल्कि उन स्थितियों से गुजरते हुए उन्हें तटस्थ और विश्लेषणात्मक बना देती है, जिन्हें व्यक्ति के बस के बाहर किन्हीं आदर्श ताकतों ने रचा है।’’
विख्यात कवि-कथाकार उदय प्रकाश कहते हैं - ‘‘अभिषेक अपनी कहानियों में एक लगभग अँधेरे भविष्य की ओर बढ़ते देश के युवाओं के अंतर्मन की जटिलताओं को रचनात्मक अभिव्यक्ति देते हुए एक भयावह यथार्थ से हमारा परिचय कराते हैं।’’
दैनिक ‘हमारा महानगर’ में सरिता शर्मा : ‘‘अभिषेक घटनाओं के कलात्मक विश्लेषण में सिद्घहस्त हैं। उनके कथा-साहित्य का दायरा बहुत व्यापक है।’’
साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका ‘माटी’ में अनुराधा गुप्ता : ‘‘अभिषेक कश्यप की चर्चित कहानी ‘सबसे अच्छी लड़की’ में सिर्फ भाषा के कटाव की तीक्ष्णता ही नहीं, दृष्टि का पैनापन भी है। रूपक और बिम्बों के साथ चलती इस कहानी की सबसे बड़ी विशेषता कथ्य का अनोखापन, कहन का जुदा अंदाज-ए-बयां और उस पर सबसे बड़ी बात पाठकीय रोचकता। ‘सबसे अच्छी लड़की’ के तौर पर स्त्री के बोल्ड और अलहदा रूप से परिचय कराने के लिए लेखक को साधुवाद !’’
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अभिषेक कश्यप के पहले उपन्यास ‘हम सब माही’ पर चंद प्रतिक्रियाएँ :
सुप्रसिद्घ कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार असगर वजाहत के शब्दों में - ‘‘अभिषेक कश्यप का उपन्यास ‘हम सब माही’ एक ऐसी पीढ़ी का उपन्यास है, जो इक्कीसवीं सदी में युवा हुई है। इस पीढ़ी को समझने, इसकी आकांक्षाओं, प्रेम संबंध, सामाजिकता और प्रतिरोध को जानने, समझने में यह उपन्यास महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’’
प्रतिष्ठित उपन्यासकार, फिल्मकार और प्रबंधनविद् शरत कुमार कहते हैं - ‘‘अभिषेक चाहे उपन्यास को एक लंबी कहानी मानें, सत्य तो यही सामने आया है कि एक यशस्वी और अति प्रशंसित कहानीकार ने उपन्यास के कहीं अधिक अनुशासित और श्रमसाध्य माध्यम में अपना स्थायी स्थान बना लिया है। नयी आर्थिक परिस्थितियों से जनित युवा स्त्रियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के भावनात्मक पहलुओं को समझने और प्रस्तुत करने का गहरा प्रयास लेखक ने बहुत सफलतापूर्वक किया है।’’
‘हंस’ कथा-मासिक में चर्चित युवा आलोचक अनिल अनलहातु : ‘‘अभिषेक कश्यप का पहला उपन्यास ‘हम सब माही’ हिंदी उपन्यास की लंबी परंपरा में इसलिए भी याद रखा जाएगा कि इसने स्त्री-पुरुष संबंधों की सारी रुमानियत को, एकनिष्ठता और पवित्रता-बोध को एकाएक एक झटके में ही धवस्त ही नहीं, नेस्तनाबूद कर दिया है। प्रेम की चली आ रही पुरानी संकल्पनाओं और एहसासों को तोड़ती-फोड़ती यह कथा स्त्री-पुरुष को बिल्कुल व्यावहारिक धरातल पर बगैर किसी हिप्पोक्रेसी के सहज, संकोचमुक्त सम्बन्धों का उत्सव मनाती प्रतीत होती है। … यह उपन्यास क्षणवाद को जीने और उत्सव मनाने की अप्रतिम कथा है।’’
राजस्थान पत्रिका : ‘‘अपने पहले उपन्यास ‘हम सब माही’ की भूमिका में अभिषेक कहते हैं - ‘उपन्यास को मैं एक लंबी कहानी मानता हूँ। उपन्यास खत्म होने के बाद एक हुक-सी उठती है ! रूह के भीतर बैठी ‘चाहना’ आश्चर्य से मुँह फाड़े सुन रही है माहियों के किस्से। अनुभूति के सागर में गोते लगाती कामना पूछ रही है पाठकों से - "सच्ची सच्ची बोलो, तुम्हारे मन में ऐसे प्यार की चाह नहीं उपजी कभी ?’’
‘प्रभात खबर’ में मंजुला उपाध्याय ‘मंजुल’ : ‘‘कोई शक नहीं कि ‘हम सब माही’ डूब कर लिखा गया उपन्यास है, जो पाठकों को एक अलग, अनूठी दुनिया में ले जाता है … जी चाहता है, यह उपन्यास कभी समाप्त न हो। यह कथा यूँ ही चलती रहे। कभी खत्म न हो !’’
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* अभिषेक कश्यप का रचना संसार
* प्रकाशित कृतियाँ :
‘खेल’ (कथा-संग्रह, 2007), ‘सबसे अच्छी लड़की’ (कथा-संग्रह, 2013), ‘हम सब माही’ (उपन्यास, 2016), ‘देखते परखते हुए’ (समीक्षा/आलोचना, 2017), ‘नोटबुक’ (कथेतर गद्य, 2017), ‘चित्र संवाद’ (समकालीन भारतीय कलाकारों के साक्षात्कार, 2018), ‘कलाकार का देखना’ (चित्रकार अखिलेश से बातचीत, 2018), ‘कला वार्ता’ (कलाकारों के साक्षात्कार व कला समीक्षा, 2020), ‘साहित्य संवाद’ (साहित्यिक आलेख, 2020)।
* अंग्रेजी में अनूदित-प्रकाशित कृतियाँ :
- ‘Chitra Samvaad’ (Conversation with contemporary India Artist, 2019)A
- ‘Jogen’ (Life and works of eminent Indian Artist Jogen Chowdhury, 2019).
* संपादित पुस्तकें :
'कविता का लोकतंत्र’ (सुपरिचित कवयित्री व एक्टिविस्ट सुश्री रमणिका गुप्ता की कविताओं के मूल्यांकन पर केंद्रित, 2008), ‘उम्मीद होगी कोई’
(सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री सरूप ध्रुव की गुजरात दंगा-पीड़ितों के अनुभवों पर आधारित पुस्तक, 2009), ‘अनामिका : एक मूल्यांकन’ (प्रसिद्घ कवयित्री सुश्री अनामिका के कृतित्व पर केंद्रित, 2013), ‘शब्द संसार’ (विख्यात पत्रकार व राज्यसभा के उप-सभापति श्री हरिवंश के आलेखों का
संकलन, 2016), ‘जोगेन’ (सुप्रसिद्ध चित्रकार श्री जोगेन चौधरी पर केंद्रित, 2018), ‘कला की दुनिया में’ (जाने-माने कवि, कला-समीक्षक श्री प्रयाग शुक्ल का कला-लेखन समग्र, 2019), ‘छोटी-छोटी मुलाकातें’ (प्रसिद्ध मीडियाकर्मी श्री शरद दत्त द्वारा किए गए साक्षात्कारों का वृहद् संचयन, 2019)।
* अनूदित पुस्तकें :
रस्किन बांड की दो पुस्तकों ‘स्ट्रेंज मैन, स्ट्रेंज प्लेसेज और ‘द ग्रेट क्राइम स्टोरीज’ का हिंदी अनुवाद क्रमश: ‘अजीबोगरीब लोग, अजीबोगरीब जगहें’, ‘अपराध कथाएं’ शीर्षक से पुस्तकाकार प्रकाशित, 2009। सुचेता महाजन की पुस्तक ‘एजुकेशन फॉर सोशल चेंज’ का अनुवाद ‘सामाजिक बदलाव के लिए शिक्षा’ नेशनल बुक ट्रस्ट, नयी दिल्ली से पुस्तकाकार प्रकाशित, 2009।
* साहित्यिक सम्मान :
- साल 2006 में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने देश के 13 ‘ऑलमोस्ट फेमस’ युवा लेखकों में चुना।
- कथा-संग्रह ‘खेल’ पर सांस्कृतिक संस्था एसएएमएमएफ (उत्तर प्रदेश) का पहला ‘युवा कथा सम्मान’ (2010)।
- शैक्षिक संस्था ‘कॉलेज टू कैंपस’ का ‘राइटर ऑफ द ईयर’ पुरस्कार (2015)।
* पत्रकारिता :
-सहायक संपादक, ‘नया ज्ञानोदय’ ( नयी दिल्ली, भारतीय ज्ञानपीठ की मासिक पत्रिका)।
- फीचर संपादक, ‘दस दिन’ (नयी दिल्ली, हिंदी की पहली दस दिनी पत्रिका)।
- मुख्य उप संपादक, ‘राज सरोकार’ (नयी दिल्ली, मासिक राजनैतिक पत्रिका)।
- सहायक संपादक व मैगजीन एडिटर ‘दैनिक पायनियर’ (लखनऊ) सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य।
- खबरिया चैनलों पर केंद्रित प्रतिष्ठित मासिक साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’
के बहुचर्चित विशेषांक (जनवरी 2007) के अतिथि सहायक संपादक।
* लेखन-प्रकाशन :
साहित्य, कला-संस्कृति, राजनैतिक-सामाजिक विषयों पर करीब 1000 आलेख, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षाएं, रिपोर्ताज और दो दर्जन कहानियां प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कुछ कहानियां अंग्रेजी, उड़िया, तमिल, तेलुगु में अनूदित-प्रकाशित।
* विशिष्ट गतिविधियाँ :
- संस्थापक निदेशक, ‘धनबाद उत्सव’ (27-29 सितंबर 2013/27-28 सितंबर 2014, धनबाद, झारखंड)।
- संयोजक, ‘हमारा भारत उत्सव’ (02-03 दिसंबर 2012, धनबाद, झारखंड)।
- संयोजक, ‘समाज, प्रशासन व इंडस्ट्री के आंतरिक संबंध और झारखंड का सर्वांगीण विकास’ (राष्ट्रीय सेमिनार, 02-03 दिसंबर 2012, धनबाद, झारखंड)।
- डीपीएस बोकारो (झारखंड) में आयोजित झारखंड राज्य के पहले अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव ‘दृश्यम’ (22-23 अप्रैल 2015/21-23 अक्टूबर 2019/19-20 जनवरी 2018) के संस्थापक निदेशक।
- संयोजक व ज्यूरी सदस्य, ‘कृष्ण पक्ष’, चारकोल कला कार्यशाला सह चित्र प्रतियोगिता (डीपीएस बोकारो, 28-29 नवंबर 2019, बोकारो, झारखंड)।
- संयोजक व ज्यूरी सदस्य, ‘कृष्ण पक्ष’, चारकोल कला कार्यशाला सह चित्र प्रतियोगिता (आइआइटी, धनबाद, 05-06 दिसंबर 2019, धनबाद, झारखंड)।
- संयोजक व ज्यूरी सदस्य, ‘कृष्ण पक्ष’, चारकोल कला कार्यशाला सह चित्र प्रतियोगिता (केएसजीएम कॉलेज, धनबाद, 19-20 दिसंबर 2019, धनबाद, झारखंड)।
- डीपीएस, चास (बोकारो, झारखंड) में आयोजित झारखंड राज्य के पहले बाल कला मेला ‘आकार आर्ट फेस्ट’ (07-09 नवंबर 2019) के निदेशक।
- डीपीएस बोकारो (झारखंड) में आयोजित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर केंद्रित राष्ट्रीय कला-शिविर व चित्र-प्रदर्शनी ‘रंग स्मृति’ (27-30 जनवरी 2020) के क्यूरेटर ।
* अभिषेक कश्यप : एक नज़र
-03 अक्टूबर, 1977 को गोपालगंज (बिहार) के कमलाकांत कररिया गाँव में जन्में अभिषेक विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग से वाणिज्य मे स्नातक हैं।
कथाकार, पत्रकार, कला समीक्षक, क्यूरेटर और संस्कृतिकर्मी अभिषेक कश्यप साहित्य, कला-संस्कृति, सिनेमा, समाज और राजनैतिक संबंधी विषयों पर निरंतर लेखन में रत हैं। इसके साथ-साथ साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, शास्त्रीय संगीत, नृत्य और दृश्य कलाओं में गहरी रुचि रखते हैं।
* संप्रति :
- पूर्वी भारत के पहले कला मेला ‘धनबाद आर्ट फेयर’ के संस्थापक निदेशक।
- भारतीय कलाकारों के साक्षात्कारों पर केंद्रित हिंदी की पहली मासिक पत्रिका ‘प्रोफाइल’ और त्रैमासिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका ‘हमारा भारत संचयन’ का संपादन।
- समूह चित्र-प्रदर्शनी शृंखला ‘द्वादशी’ के क्यूरेटर।
- ‘नयी किताब प्रकाशन समूह’ (नयी दिल्ली) के सलाहकार संपादक।
- ‘अनन्य प्रकाशन’ (नयी दिल्ली) की ‘फास्ट फिक्शन शृंखला’ के शृंखला संपादक।
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🌹 'पूर्वकथन'के राजेंद्र यादव जी पर केंद्रित इस महत्त्वपूर्ण विशेषांक के लिए राजेंद्र जी के सम्यक् मूल्यांकन को लेकर लिखने वाले हिंदी जगत के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों में अभिषेक कश्यप से पहले इस स्तंभ में अब तक हमारे समय के महत्त्वपूर्ण रचनाकार राजाराम भादू, सुधा अरोड़ा, अल्पना मिश्र, वंदना राग, डाॅ. भरत प्रसाद, कविता, गीताश्री, डाॅ दिनेश कुमार, और राकेश बिहारी और विपिन चौधरी का परिचय करवा चुके हैं।