उद्योगपति संजय डालमिया के कई सांस्कृतिक एवं सामाजिक सरोकार हैं जिनके बारे में विस्तार से उनका पोस्ट लिखते वक्त ज़िक्र किया जाएगा। इस समय सिने अभिनेता दिलीप कुमार के चित्रों की प्रासंगिकता बताने से है।
संजय डालमिया की एक संस्था है आर्गेनाईजेशन ऑफ अंडरस्टैंडिंग एंड फर्टेर्निटी (ओयूएफ) जो 1982 में स्थापित की गई थी। इसका उद्देश्य था कला, संस्कृति उद्योग और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच सांप्रदायिक सौहार्द्र और राष्ट्रीय एकीकरण की भावना विकसित करना।
इसी संस्था के अंतर्गत 1982 में ही रामकृष्ण जयदयाल सद्भावना पुरस्कारों को देने का निर्णय लिया गया। इस संस्था का मकसद ऐसे पत्रकारों और लेखकों को सम्मानित करना था जो समाज के विभिन्न वर्गों में राष्ट्रीय एकता के साथ परस्पर समझदारी और भाईचारे की भावना विकसित करने की दिशा में लेखन कार्य करते हों।
शुरुआत चार पुरस्कारों से की गई, हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू और एक क्षेत्रीय भाषा से। बाद में क्षत्रीय भाषाओं की संख्या बढ़ा दी गयी। साथ ही एक ऐसी स्वयंसेवी संस्था को सम्मानित करने का फैसला भी लिया गया जो मानवता के उत्थान की दिशा में क्रियाशील हों। इन पुरस्कृत लोगों का सम्मान करने के लिए एक विशेष अतिथि को आमंत्रित किया जाता था। वह देश का राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, किसी समाचारपत्र का संपादक, न्यायधीश या अन्य विशिष्ट या अति विशिष्ट व्यक्तिहो सकता है।
इसका फैसला संस्था के चेयरमैन संजय डालमिया और ओयूएफ की महासचिव श्रीमती नफीस खान करती थीं। दिलीप कुमार के नाम पर सहमति होने के बाद नफीस खान ने उनसे संपर्क कर आमंत्रित किया था।
पुरस्कृत पत्रकारों, लेखकों औऱ स्वयंसेवी संस्था के नामों का चयन लोगों से प्राप्त सुझावों के आधार पर चयन समिति करती है। चयन समिति में मैं भी शामिल हूं। चयनित लोगों की घोषणा चेयरमैन संजय डालमिया या तो प्रेस कांफ्रेंस कर के करते हैं अथवा मीडिया को प्रेस रिलीज जारी कर दी जाती है। एक भव्य समारोह में पुरस्कार वितरण होता है जिसमें सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ साथ मीडिया को आमंत्रित किया जाता है।
समारोह से एक दिन पहले संजय डालमिया अपने निवास पर डिनर देते हैं जिस में मुख्य अतिथि, पुरस्कृत विद्वान, चयन समिति के सदस्य आदि शामिल होते हैं। मुझे भी कुछ विशेष दायित्व सौंपे जाते हैं।
मुख्य अतिथि दिलीप कुमार की अगुवानी मुझे ही करनी थी। जब वह अपनी बेगम सायरा बानो के साथ डालमिया हाउस पहुंचे तो मैंने'वेलकम 'कह कर हाथ बढ़ाया तो उन्होंने मुझे टोकते हुए कहा ,'एह नहीं कह सकदे सी, जी आया नूं।असी यार एह वेलकम वेलकम सुनदे सुनदे थक गए हां, साडी ऐनी सोहणी मादरी ज़ुबान है खौरे असी ओ क्यों नहीं बोलदे। 'संजय डालमिया से मिलने से पहले दिलीप साहब ने मुझे ताकीद कर दी कि वह मुझसे पंजाबी में ही बात करेंगे।
वहां और जो पंजाबी भाषी हों उन्हें भी मैं बता दूं। मैंने दिलीप साहब और उनकी बेगम सायरा बानो का संजय डालमिया से तआरुफ़ कराया। दोनों बड़े गर्मजोशी से मिले। उनके भाई अनुराग डालमिया से भी आत्मीयता से मिले।नफीस खान साहिबा से तो वह कई बार मिल चुके थे।
पुरस्कृत लोगों में हिंदी के मनोहर श्याम जोशी, अंग्रेज़ी की सीमा मुस्तफा, उर्दू के जमना दास अख्तर, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विनोद दुआ आदि शामिल थे। सभी लोगों से बड़ी मोहब्बत से गुफ्तगू की। जब मैंने उनसे पूछा, 'कोल्ड या हॉट'जवाब मिला 'हार्ड नहीं है क्या'। ज़ोर का ठहाका। 'पेशे खितमत है स्कॉच सर।'आप मुझसे सिर्फ पंजाबी में ही बात करेंगे। 'जो हुकम जनाब दा। '
विनोद तुसी वी ते पंजाबी ओ। 'अब वह विनोद दुआ से पंजाबी में बतियाने लगे। बीच बीच में दूसरे लोगों से कह भी जाते कि 'मुम्बई में हम मातृ भाषा बोलने को तरस जाते हैं।'दिलीप साहब को बताया गया कि जमना दास अख्तर भी पंजाबी हैं तो खुश होकर बोले, 'आज तो मैं बहुत अमीर हो गया हूं।'
बीच में बोले, उठो बात करते हैं। हम दोनों एक तरफ खड़े हो गये। बोले, 'पिछछो किथे दे ओ', मैंने बताया, 'रावलपिंडी'।'तद ही ऐनी सोहणी पंजाबी बोलदे हो। ' उन्होंने बताया कि मेरे और सुनील दत्त के बीच एक करार है। हफ्ते में एक बार हम दोनों जरूर मिलेंगे और सिर्फ पंजाबी में ही बातचीत करेंगे। 'लोग हमारी तरफ देख रहे थे। उनकी बेगम भी कनखियों से झांक जाती थीं।
दिलीप साहब फिर सब के बीच आ कर बैठ गए और संजय डालमिया से बोले जितना लुत्फ आज यहां आपके घर आकर आ रहा है, ऐसा कम ही मय्यसर होता है। फिर श्रीमती नफीस खान की तरफ मुखातिब होकर बोले, 'बेहद शुक्रिया आपका।'संजय डालमिया ने अपने इस पुरस्कार समारोह बाबत जानकारी दी। बाद में सभी लोगों से दिलीप साहब खूब घुलमिल गये और बीच बीच में विनोद दुआ और जमना दास अख्तर से पंजाबी में बातचीत कर लेते थे।
डिनर भी दिलीप कुमार बड़े चाव से खा रहे थे। संजय डालमिया और उनके भाई हरेक के पास जाकर खाने के बारे में पूछ रहे थे, और खाना लेने का इसरार कर रहे थे। दिलीप साहब और सायरा बानो से बातचीत करते हुए खाने के मुतालिक भी पूछ लेते। संजय डालमिया और उनका परिवार अपने मेहमानों की तरफ पूरी तवज्जो देता है।
डालमिया परिवार बेशक़ बहुत अच्छा मेजबान है। जब मैंने दिलीप साहब को थोड़ा खाली देखा तो पहुंच गया और पूछा कि शूटिंग करते वक़्त पंजाबी एक्टर मिलते होंगे, उनका जवाब था, एक तो मैं फिल्में नहीं के बराबर करता हूँ और दूसरे हरेक से खुला नहीं जाता।
'विधाता 'फ़िल्म में शम्मी कपूर के साथ मस्ती की, हम दोनों ने बड़ी मस्ती से गाना गाया। जब पंजाबी में बात करता तो शम्मी कपूर कुछ लफ्ज़ पंजाबी में बोलने के बाद हिंदी या अंग्रेज़ी बोलने लग जाता। मैं उसे कहता कि जब तक तुम्हारी बीवी गीता बाली ज़िंदा थी तुझे दबा कर रखे हुए थी और घर में तुम लोग अच्छी खासी पंजाबी बोला करते थे।
उसके निधन के बाद लगता है पंजाबी उसी के साथ चली गयी। गीता बाली का नाम सुनते ही वह मायूस हो जाता है अपना यार। फिर मैं कहता, ' 'हाथों की चंद लकीरों का सब खेल है बस तकदीरों का 'सुनते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाया करती और बड़ी मोहब्बत से मेरी तरफ देखते। अलबत्ता राज कपूर बहुत अच्छी पंजाबी बोलता था। मैंने जब दिलीप साहब को बताया कि मैं दो बार पेशावर हो आया हूं और उनके पुश्तेनी घर के पास से मेरा साथी लेकर गुजरा था तो यह सुनकर वह बहुत खुश हो गये।
पुरस्कार वितरण समारोह में भी दिलीप कुमार अपनी बेगम सायरा बानो के साथ तशरीफ़ लाये। मैं जब उन्हें बैज लगा रहा था तो उनसे डिनर वाले प्रोग्राम के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि 'न सिर्फ वह प्रोग्राम ही तहज़ीबयाफ्ता था बल्कि संजय जी बहुत ही ज़हीन इंसान हैं।
कमाल की सोच है उनकी, मैं खासा मुतासिर हुआ। 'बैज मैं दिलीप साहब को लगा रहा था , न जाने कितनी नज़रें मुझे घूरे जा रही थीं। दिलीप साहब आज भी सबके पसंदीदा हीरो हैं, इसमें कोई शक नहीं। जब वह मंच पर पहुंचे तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हाल गूंज उठा। बड़ी इज़्ज़त के साथ दिलीप साहब ने लोगों को पुरस्कार दिये।
अपनी बुलंद आवाज़ में जब उन्होंने पुरस्कार प्राप्त करने वाले लोगों को बधाई देते हुए कहा कि अलग अलग भाषाओं में काम करने वाले लोग मुल्क की बहबूदी, तरक्की, एकता औऱ भाईचारे के सुर अपने अपने तरीके से आमजन के आगे रखते हैं तो उससे पता चलता है देश में आपसी विश्वास की जड़ें कितनी गहरी हैं।
देश में यह पैगाम भी जाता है कि हम लोग जुदा जुदा खांचों में नहीं बंटे हुए हैं। हम लोग उस माला की तरह हैं जिस में फूल तो कई रंगों के हैं लेकिन खुशबू सबकी एक है। इस समय ज़रूरत है इंसानी रिश्तों और उनके मूल्यों को समझने की, समाज के आर्थिक व सामाजिक मसलों को जानने की, मुल्क में खुशगवार माहौल पैदा करने की, जातपांत और भाषाई नफरत से दूरी बनाए रखने की, ऐसी सोच औऱ समझ अगर हम आम लोगों में पैदा करने में कामयाब हो जाते हैं तो न केवल देश विकास के मार्ग पर आगे बढ़ेगा बल्कि हमारी अपनी पत्रकार की कलम भी ताकतवर होगी। दिलीप कुमार बहुत ही ओजस्वी वक्ता हैं।
उनकी भाषा और उसे पेश करने की शैली लोगों को बांध कर रखती है। दिलीप साहब ने संजय डालमिया की सोच और उनके सांस्कृतिक तथा सामाजिक सरोकारों की तारीफ की। समारोह की समाप्ति के बाद भी दिलीप कुमार से मिलने वालों की लाइन लग गयी। आज 25 बरस के बाद भी दिलीप साहब से मुलाकात की खुशबू मेरे ज़हन में बरकरार है।
शुक्रिया दिलीप कुमार जी।