Quantcast
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

रवि अरोड़ा की नजर से.....


कर कुछ भी सकते हैं

रवि अरोड़ा

यह दिसम्बर 1991 की बात है ।  प्रदेश में भाजपा की पहली सरकार थी । कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और पहली बार एक स्थानीय विधायक के रूप में बालेश्वर त्यागी राज्य मंत्री बने थे । उन्ही दिनो लोनी में एक उपचुनाव में पुलिस वालों ने दैनिक जागरण के संवाददाता विष्णु दत्त शर्मा पर जीप चढ़ा कर उन्हें कुचलने का प्रयास किया । विष्णु दत्त का क़सूर यह था कि उन्होंने पुलिस को बूथ कैप्चरिंग करवाते हुए देख लिया था । मामले से नाराज़ होकर जिले भर के पत्रकार श्री त्यागी जी के निवास के बाहर धरने पर बैठ गए । उन दिनो शैलजा कांत मिश्र ग़ाज़ियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक थे । पत्रकारों  की माँग थी कि एसएसपी धरनास्थल पर आयें और बाल बाल बचे पत्रकार विष्णु दत्त से पुलिस की ओर से मुआफ़ी माँगे । मगर एसएसपी ने इसे अपनी तौहीन समझा और कहा कि मैं वहाँ नहीं जाऊँगा , जिसे बात करनी हो वह मेरे पास आए । विवाद बढ़ता देख भाजपा के अनेक स्थानीय और राज्य स्तर के नेताओं ने एसएसपी से धरना स्थल पर जाने का अनुरोध किया मगर वे टस से मस नहीं हुए । बालेश्वर त्यागी ने भी पत्रकारों के समक्ष उनसे यह अनुरोध किया । इस पर एसएसपी इस शर्त पर तैयार हुए कि मैं धरना स्थल पर नहीं आपके घर के भीतर आऊँगा और शर्त यह होगी कि आपके समेत भाजपा का कोई नेता वहाँ मौजूद नहीं होगा । तय शर्त के अनुरूप जब शैलजा कांत मिश्र आये तो सीधा मंत्री जी के घर के भीतर चले गए और जाकर मंत्री जी की ही कुर्सी पर बैठ गए । चूँकि एसएसपी वहाँ तक तो आए ही थे अतः हम सभी पत्रकार भीतर गए और तब जाकर ही उनसे सुलह सफ़ाई हुई । उस दिन अहसास हुआ कि विधायिका नहीं कार्यपालिका ऊपर होती है और पुलिस कप्तान के आगे मंत्री विधायक की  भी कोई हैसियत नहीं । यह अहसास केवल उस समय ही नहीं हुआ वरन हर बार तब हुआ जब जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनती है ।

पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या से बेशक ख़ूब हो हल्ला हो रहा हो । तीन दिन से पूरा मीडिया जगत इसे लेकर ग़ुस्से में है और तमाम टीवी चैनल्स व अख़बार इसकी कवरेज से रंगे हुए है और प्रदेश सरकार भी सुरक्षात्मक स्थिति में है । घबराई सरकार पीड़ित परिवार के लिए तरह तरह की घोषणाएँ कर रही है मगर स्थानीय पुलिस फिर भी अपनी टेढ़ी चाल चलने से बाज़ नहीं आ रही । मृतक पत्रकार और उसके परिवार को बदनाम कर पुलिस इस हत्या को अब आपसी रंजिश का परिणाम बताने में लग गई है । हत्यारों के साथ साथ विक्रम जोशी , उनके भाई व उनके परिजनो के ख़िलाफ़ भी रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है । साबित करने का प्रयास किया जा रहा कि यह सट्टेबाज़ी को लेकर हुए विवाद का मामला था और इसमें दोनो पक्ष बराबर के दोषी हैं । पता नहीं यह कितना सत्य है मगर कहा तो यही जा रहा है कि ये रिपोर्ट हत्या के बाद पिछली तारीख़ों में पुलिस ने लिखीं ताकि अपने ऊपर आए दबाव को कुछ कम किया जा सके ।

ग़ाज़ियाबाद में एक पुलिस कप्तान आये थे जय नारायण सिंह । उन्होंने अपराध कम करने का एक नायाब फ़ार्मूला निकाला था । उसके अनुरूप लूटपाट की किसी शिकायत पर पुलिस पीड़ित को लेकर घटना स्थल पर जाती और लूटपाट के पूरे घटनाक्रम का एक्शन रिप्ले करती और हर सूरत साबित कर देती कि पीड़ित झूठ बोल रहा है और एसी कोई लूटपाट हुई ही नहीं । कई मामलों में तो पीड़ित को ही यह कह कर जेल भेज दिया कि उसने पुलिस को गुमराह कर झूठी रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश की । पुलिस के इस फ़ार्मूले का असर यह हुआ कि अपराध होने के बावजूद लोगबाग़ पुलिस के डर से रिपोर्ट ही नहीं लिखवाते थे । नतीजा सरकारी रिकार्ड में अपराध का ग्राफ़ गिरने लगा । इसी रौशनी में देखते हुए मैं सोच रहा हूँ कि यदि हत्यारे विक्रम की हत्या कर उनकी लाश अपने साथ ले जाते तो शायद पत्रकार के परिजन और उनके तमाम हमदर्द सीसीटीवी फ़ुटेज के बावजूद यह साबित ही नहीं कर पाते कि उनकी हत्या हो गई है । पुलिस तो इसे अवैध सम्बन्ध अथवा विवाहेत्तर रिश्तों जैसी किसी कहानी में पिरो देती और कह देती कि वे प्रेमिका समेत फ़रार हैं । अब यूपी पुलिस है इतना तो कर ही सकती है ।

Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>