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बनिके अइलैं चुड़िहारी सुनिए ना /मनु लक्ष्मी मिश्र

 "अपने किरदार पर डालकर परदा इक़बाल 

हर शख़्स कह रहा है ज़माना ख़राब है "    


मीडिया में ,अखबारों में ,फेसबुक में तमाम मुद्दों पर कौन कितना बढ़िया लिखता है होड़ लगी है ,कौन सी पार्टी किस जाति के कितने वोटों को अपनी तरफ आकर्षित कर अगली सरकार बनायेगी ,दूसरी पार्टी के अच्छे कामों को नज़रंदाज़ करना ,अन्य पार्टियों का सत्ता पार्टी में केवल कमी देखना और विपक्ष को कैसे धराशायी करें ये शगल हो गया है ।आज गोरक्षा बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ है ,अरे गाय तो हमारी माता है ,ये निबंध हम छुटपन से लिखते आये हैं ।बचपन में हमारे क्लास का हर बच्चा चाहे हिंदू हो ,मुसलमान हो या ईसाई यही लिखता था ।बल्कि मुझे याद है कि हम केवल यही जानते थे कि जो राम -कृष्ण को मानता है वह हिंदू ,जो अल्लाह  को मानता है वो मुस्लिम और येशु को मानने वाला ईसाई ।सब आपस में दोस्त ।हमें बचपन में पढ़ाया गया है कि अल्लामा इकबाल ने तराना-ए-हिंद ''सारे जहां से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा''लिखा था।सुरैया तैयब जी ने तिरंगा को वह रूप दिया, जो हम आज देखते हैं।''

मादरे-वतन भारत की जय''का नारा 1857 में अज़ीम उल्लाह खान ने दिया था।

                हम चार भाई बहन हैं ,हमारे सामान्य आमदनीवाले  पिता जी जो बहुत कर्मठ  है और थे ,उन पर अपने परिवार के साथ साथ अपने  भाईयों तथा गाँव के कृषि आधारित रिश्तेदारों का गुरुतर दायित्व था ,माँ दिन भर घर के कामकाज के साथ हम भाई बहनों के झगड़ों को सुलझाने के साथ प्रतिदिन हमें मानवता का पाठ पढ़ाती थीं ।

            मैं बचपन में बहुत शैतान थी ।पढ़ाई बिलकुल नही करती थी पर याद बहुत जल्दी होता था । एक वाकया याद आ रहा है कि कक्षा 5 में पढ़ती थी हमारी क्लास का मानीटर मोटा तगड़ा लड़का सलमान था ,वह बात करने वाले बच्चों में रोज मेरा नाम लिखता था ,सच कह रही हूँ कभी कभी दूसरी लड़कियां या लड़के मुझसे बात करते तब भी मेरी शिकायत टीचर से करता था,फिर मुझे हाथ ऊपर करके बेंच के ऊपर एक पीरियड खड़े रहना पड़ता ,कभी मैडम जी मुर्गा भी बना देतीं ।कभी सलमान पे बड़ा गुस्सा आता ,कभी मज़ा आता कि अच्छा है पढ़ना नहीं पड़ रहा ।एक दिन बैठे बैठे एक वाक्य बन गया ,"सलमान मुसलमान जूता मारो तान तान ",पता चला छुट्टी के समय मानीटर से प्रताड़ित बच्चों ने इसे उस दिन का महावाक्य बना लिया ,सलमान कुछ अपने जैसे तन्दुरुस्त बच्चों के साथ आया और बोला ओय पंडिताईन तेरी चुटिया कहाँ है ,मैंने कहा बुद्धू चुटिया लड़कियों की नही लड़कों की होती है ।फिर उसने कहा मैं टीचर से तुम्हारी शिकायत करूँगा ।मैंने कहा कर देना मोटू मैं तुमसे डरती नही हूँ ।पर सच में बहुत डर लगा ।नींद नही आ रही थी ,घर जाकर धीरे से मम्मी को सब रामकहानी बताया ,मम्मी ने प्यार से समझाया बेटा किसी को कोई ऐसा शब्द नही कहना चाहिए जो उसे हर्ट करे ,सब धर्म समान होते हैं ।कल जाकर उससे माफी मांग लेना ।लेकिन मम्मी वह तो मेरे ही बराबर का है उससे माफी कैसे मांगूगी ।माफी तो बड़ों से माँगते हैं । मम्मी बोलीं बेटा जो गलती करता है उसे माफी माँगना चाहिए चाहे बड़ा हो या छोटा ।दूसरे दिन प्रेयर के तुरंत बाद मैंने सलमान से माफी मांगी तो  उसने कहा मुझे भी माफ कर दो ,मानीटर होने के नाते मुझे भी निष्पक्षता रखनी चाहिए ।आज़ का समय होता तो बवाल हो गया होता कैसे हिंदू मुस्लिम सूचक शब्दों का प्रयोग हुआ ।मेरी बचपन की एक सहेली थी रेशमा ,उसकी अम्मी को पता था कि हम पंडित हैं और शुद्ध शाकाहारी हैं तो वे मेरे लिए अलग से सिवईं और पकौड़े बनाती थीं वाओ कितना यमी होता था ,आज भी याद करके मुँह में पानी आ जाता है ।हमने तो हिंदू मुसलमान जाना ही नहीं केवल इंसान जाना ।

             बरसात के मौसम का बचपन में  क्या आनंद हुआ करता था । स्कूल से लौटते समय अगर बरसात हो रही है तो बस्ते को पन्नी से लपेटकर कि कापी किताब बच जाये वरना मार से भी तगड़ी डाँट पड़ेगी ,जिधर घुटने भर पानी होता उधर से ही छपछप करके पानी में भीगने का मज़ा ही स्वर्गिक आनंद प्रदान करता था ।सावन आते ही नीम के पेड़ों पर पटरा डालकर झूले पड़ जाते थे ।नागपंचमी की तैयारी घर घर शुरू हो जाती थी ।चुड़िहारिन घर घर जाकर कजरी गाने लगती थीं :

   एक दिन छल कइलै हो मुरारी सुनिए 

   बनिके अइलैं चुड़िहारी सुनिए ना 

                आज हम फ़ादर्स डे ,मदर्स डे ,फ्रैंडशिप डे आदि मनाते हैं पर अपनी विरासत को भूल गये हैं कि हम भारतीयों का हर दिन उत्सव है।

            "सोने की थाली में जेवना परोसो हो                      

रामा जेवना न जेवै हमार बलमा 

           तो पते की बात है कि हम भारतीय चाहे जिस धर्म ,समाज ,वर्ण ,वर्ग से आते हैं हमारी पहचान हमारी विरासत सहयोग में है फूट में नही ,प्रेम में है नफ़रत में नहीं वरना टुकड़े होते देर न लगेगी ।

            जय हिंद जय भारत


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