जहां अकेले राइफलमैन ने 72 घंटे तक चीनी सैनिकों से लोहा लिया
संजय सिंह
चीन द्वारा भारत पर 20 अक्टूबर, 1962 को किए गए आक्रमण में देश की शर्मनाक पराजर हुई थी। भारतीय सेना के पास उस वक्त कारगर हथियार तो दूर की कौड़ी थी, जवानों के पैरों में जूते तक नहीं थे। फिर भी तकरीबन एक माह तक (21 नवम्बर, 1962 को लड़ाई खत्म हुई थी) चले इस युद्ध में कई स्थानों पर भारतीय सैनिकों ने सीमित संसाधनों के बावजूद अदम्य साहस, देशभक्ति और जज्बे की शानदार इबारत लिखी और दुश्मन का मुंहतोड़ जवाब दिया।
वर्ष 1962 की लड़ाई देश के दो सेक्टरों में लड़ी गई। चीनी सैनिकों ने सबसे पहले पूर्वोत्तर सेक्टर में तवांग (उत्तरांचल) की तरफ से आक्रमण किया। फिर उनका निशाना पश्चिमी सेक्टर का चुसूल और लेह बना। अरुणाचल की तरफ से जब चीन की लाल सेना ने आक्रमण किया, तो वहां 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सीमांत क्षेत्र की नूरानांग पहाड़ी (तेजपुर से तवांग रोड पर लगभग 425 किलोमीटर दूर) और आसपास के इलाकों का सुरक्षा दायित्व तब गढ़वाल रेजीमेंट की चौथी बटालियन पर था। इस स्थान तक पहुंचने के लिए तवांग-चू नदी को पार करना पड़ता है।
इस इलाके में जब सर्दियां अपने चरम पर थीं, तो ठीक उसी वक्त चीनी सेना ने 17 नवम्बर, 1962 को पौ फटते ही छह से अधिक बार हमला कर दिया था। वहां तैनात लांस नायक गोपाल सिंह गुसाई, लांस नायक त्रिलोकी सिंह और रायफल मैन जसवंत सिंह अपनी सूझबूझ, बहादुरी और युद्ध कौशल का परिचय देते हुए भारत माता की रक्षा के लिए साथी जवानों के साथ आगे बढ़े और चीनी आक्रमणकारियों को ललकारा, लेकिन चीनी सैनिकों की संख्या बहुत ज्यादा थी और वह अचानक भारी झुंड में टूट पड़ते। एक चीनी सैनिक मरता तो दूसरा उनके स्थान पर तेजी के साथ नमूंदार हो जाता और हमला जारी रखता। नतीजा यह हुआ कि हमारे जवान एक-एक कर देश के लिए शहीद होते रहे। भारतीय सेना की सपोर्टिग लाइन पूरी तरह से कटी हुई थी। लिहाजा चीनी सैनिकों से लोहा ले रहे भारतीय जांबाजों को पीछे से कोई सपोर्ट भी नहीं मिल पा रही थी। लांस नायक त्रिलोक शहीद हो गए। लायंस नायक गोपाल सिंह गुसाई के हाथ में गोलियां लग गई और वे जख्मी हो गए।
अब अकेले रायफलमैन जसवंत सिंह रावत ने मोर्चा संभाल लिया। वहां पर पांच बंकरों पर मशीनगन लगाई गई थी। रायफलमैन जसवंत छिपकर और पेट के बल लेटकर दौड़ लगाते और पांचों बंकरों से दुश्मन पर फायर करते। जसवंत ने दुश्मन को अपनी बहादुरी, चतुराई, फुर्ती और सूझबूझ से खूब छकाया। चीनी सेना समझती रही कि पांचों बंकरों में भारतीय सैनिक मौजूद हैं और जीवित हैं। गोलियां खत्म होने लगीं तो जसवंत सिंह को मौत आसन्न लगने लगी। फिर भी उन्होंने बचे-खुचे हथियारों और अग्नेयास्त्रों से आखिरी सांस तक भारत माता की रक्षा का जज्बा ठंडा नहीं होने दिया। वह भूखे-प्यासे 72 घंटे तक यानी कि तीन दिन तीन रात तक अकेले दम चीनी सैनिकों से लड़ते रहे और उन्हें रोके रखा। उन्होंने तिरंगे की शान रखी और शहीद हो गए। लांस नायक गोपाल सिंह गुसाई तीन महीने तक चीन की कैद में रहे।
भारत सरकार ने बाद में जसवंत सिंह रावत को मरणोपरांत महावीर चक्र और गोपाल सिंह गुसाई को वीर चक्र से सम्मानित किया। नूरानांग की पहाड़ियों में अभी भी गढ़वाल रेजीमेंट की बहादुरी के किस्से गूंजते हैं। नूरानांग की लड़ाई में कुल 162 जवान शहीद हुए, 264 कैद कर लिए गए और 256 जवान प्रतिकूल मौसम में तितर-बितर हो गए।
(लांस नायक गोपाल सिंह से संजय सिंह की बातचीत पर आधारित)