Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

एक और नरसंहार / मनोहर कुमार जोशी

$
0
0





मानगढ़ शताब्दी वर्ष- 17 नवम्बर1913- 2013


       *मनोहर कुमार जोशी

                जनजातिय लोगों में सामाजिक जागृति एवं स्वातंत्र्य चेतना का बिगुल बजाने वाला शहीदी धाम मानगढ़ इस वर्ष शताब्दी वर्ष मना रहा है। यह स्थान राजस्थान में बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 70किलोमीटर दूर आनन्दपुरी के समीप स्थित है।

      17नवम्बर 1913में लोकश्रद्धा के महानायक गोविन्द गुरू के नेतृत्व में यहां आयोजित सम्प सभा में एकत्रित हुये हजारों श्रद्धालु जनजातियों पर रियासती और अंग्रेजी फौज ने तोप व बंदूकों से कहर बरपाते हुये 1500से अधिक बेगुनाह जनजातियों को मौत के घाट उतार दिया था। उनकी स्मृति में शताब्दी वर्ष आयोजित किया जा रहा है।

            शताब्दी वर्ष के शुभारंभ पर 17नवम्बर को यहां कल्पवृक्षों का रोपण किया जायेगा तथा 25हजार से अधिक श्रीफलों की आहूति दी जायेगी। शताब्दी वर्ष को देखते हुये राजस्थान सरकार ने मानगढ़ धाम के विकास के लिये पांच करोड़ रूपये आवंटित किये हैं। राज्य सरकार मानगढ़ पहाड़ी से जनजाति में जागरण का शंखनाद करने वाले गोविन्द गुरू द्वारा किये गये समाज सुधार के कार्यों एवं उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं तथा मानगढ़ धाम पर हुये बर्बर नरसंहार को लेकर ‘‘शहादत के सौ साल‘‘ पुस्तक प्रकाशित कर रही है।

            1919में हुये जलियावाला बाग हत्याकाण्ड से करीब छह साल पहले 17नवम्बर 1913को मानगढ़ पहाड़ी पर हुआ क्रूर, बर्बर एवं दिल -दहला देने वाला नरसंहार भले ही इतिहास में अपेक्षित स्थान प्राप्त नहीं कर पाया, मगर राजस्थान गुजरात और मध्यप्रदेश के इस सरहदी दक्षिणी अंचल के लाखों लोगों में स्वाभिमान एवं देश-प्रेम जागृत करने वाले लोक क्रांति के प्रणेता गोविन्द गुरू के प्रति आज भी आदर और आस्था कायम है।  

      इतिहासकारों की मानें तो 19वीं शताब्दी के उत्‍तरा़र्द्ध में एक ऐसा जननायक जन्मा, जिसने जनजातियों में समाज सुधार का प्रचण्ड आंदोलन छेड़ कर लाखों भीलों को भगत बनाकर सामाजिक जनजागृति एवं भक्ति आंदोलन के जरिये आजादी की अलख जगाई। साथ ही भीलों के सामाजिक सुधार के अनेक कार्य किये। वस्तुतः यह अंग्रेजी शासन के खिलाफ स्वाधीनता का आंदोलन था।

            जनजातिय लोगों को संगठित करने वाले गोविन्द गुरू का जन्म 20दिसम्बर 1858में डूंगरपुर जिले के बांसिया गांव में बंजारा परिवार में हुआ था। बताया जाता है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती के उदयपुर प्रवास के दौरान गोविन्द गुरू उनके सानिध्य में रहे थे तथा उनसे प्रेरित होकर गोविन्द गुरू ने अपना सम्पूर्ण जीवन सामाजिक कुरीतियों, दमन व शोषण से जूझ रहे जनजातिय समाज को उबारने में लगाया था। इसके लिये उन्होंने 1903में सम्प सभा अर्थात मेल मिलाप नामक संगठन बनाया था। इसके माध्यम से जनजातीय समाज में शिक्षा, एकता, बंधुत्व और संगठन का प्रचार-प्रसार किया।

अंध-विश्वास और कुरीतियों को दूर कर बेगार जैसी अन्यायपूर्ण घृणित-प्रथा का विरोध शुरू किया और आजादी की अलख जगाई। जनजाति के लोगों को पाठशालाओं का संचालन कर शिक्षित करने का काम किया। इनके नेतृत्व में मानगढ़ धाम इन गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बना। नतीजन जनजातिय भीलों में निडरता एवं देशप्रेम जागृत होने लगा।

            समाज सुधार के कार्यों से घबरा कर यहां के सामंतों को स्वतंत्र भील राज्य के गठन का डर सताने लगा और उन्होंने अनेक आरोप लगाते हुये अंग्रेजी फौज की मदद ली और 17नवम्बर 1913को इसी मानगढ़ पहाड़ी पर सामाजिक सुधार और धार्मिक अनुष्ठानों में जुटे हजारों जनजातियों पर ब्रिटिश नायक कर्नल शटन के आदेश पर हमला कर दिया। रियासती व अंग्रेजी फौज ने पूरी पहाड़ी को घेर कर तोप तथा बंदूकों से जिस बर्बरता और क्रूरता पूर्वक संहार किया, उसके आगे जलियावाला बाग हत्याकाण्ड की भीषणता भी फीकी नजर आती है। इस हत्याकाण्ड में सैकड़ों बेगुनाह मारे गये। पांव में गोली लगने से गोविन्द गुरू भी घायल हो गये।

      उन्हें गिरफ्तार कर अहमदाबाद तथा संतरामपुर की जेल में रखा गया और गंभीर आरोप लगाते हुये फांसी की सजा सुनाई गई। हालांकि बाद में सजा को आजीवन कारावास में बदला गया व अंत में सजा को और कम करते हुये, उन्हें 1923में रिहा कर दिया। रिहा होने के बाद गुरू फिर समाज- सुधार के कार्य में लग गये। अक्टूबर 1931में गुजरात के पंचमहल जिले के कम्बोई गांव में इनका निधन हो गया, लेकिन उनकी बनाई सम्प सभाएं अब भी कायम हैं तथा धूंणियां अब भी मौजूद हैं। मानगढ़ की धूणी पर प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर गुरू के जन्म दिन पर मेला लगता है, जिसमें हजारों आदिवासी आते हैं।

            भीलों में स्वाधीनता की अलख जगाने वाले गुरू की धूणी मानगढ़ नरसंहार के बाद बंद कर दी गयी थी तथा उस क्षेत्र को प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन उनके शिष्य जोरजी भगत ने आजादी के बाद 1952में वहां फिर से यज्ञ कर धूणी पुनः प्रज्वलित की, जो आज भी चालू है। वर्तमान में इस स्थान पर हनुमान, वाल्मिकी, भगवान निष्कलंक, राधाकृष्ण, बाबा रामदेव, राम-लक्ष्मण-सीता एवं गोविन्द गुरू की मूर्तियां स्थापित हैं। गुजरात एवं राजस्थान सरकार ने यहां दो सामुदायिक भवन भी बना रखे हैं। आनन्दपुरी से मानगढ़ धाम तक जाने के लिये 14किलोमीटर पक्की सड़क बनी हुई है, लेकिन गोविन्द गुरू ने यहां के हजारों जनजाति लोगों के जीवन में बदलाव का जो सपना देखा था, वो आज भी अधूरा है, जिसे पूरा करना बाकी है।

******
* लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

वि‍.कासोटि‍या/अंबुज/सुरेन्‍द्र-284


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>