क्यों पटौदी खानदान रहा त्यागराज मार्ग पर/ विवेक शुक्ला
हालांकि राजधानी के त्यागराज मार्ग में कोई पटौदी हाउस नहीं है, पर मंसूर अली खान पटौदी, उनकी पत्नी शर्मिला और इन दोनों के बच्चे यहां के एक शानदार सरकारी बंगले में लंबे समय तक रहे।
मंसूर अली खान पटौदी की आज ( 22 सितंबर) पुण्यतिथि है। दरअसल इफ्तिखार अली खान पटौदी सीनियर की 1951 में एक पोलो मैच के दौरान दुर्घटना होने के कारण मौत हो गई थी।
तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मंसूर अली खान पटौदी की मां श्रीमती साजिदा सुल्तान के नाम पर त्यागराज मार्ग में एक बंगला आवंटित कर दिया। साजिदा सुल्तान को समाज सेविका के कोटे से बंगला मिला। इधर ही पटौदी लेकर आए शर्मिला को अपनी बहू बनाकर। साजिदा सुल्तान की साल 2003 में मृत्यु के बाद पटौदी परिवार को उस बंगले को खाली करना पड़ा।
हालांकि कहने वाले तो कहते हैं कि पटौदी साहब ने हरचंद कोशिश की थी कि बंगला उनकी पत्नी शर्मिला के नाम पर आवंटित हो जाए। एक बात और। दिल्ली में Pataudi हाउस दरिया गंज और अशोक रोड के पीछे हैं ।
कनॉट प्लेस और पटौदी हाउस का रिश्ता
हरियाणा में स्थित पटौदी हाउस और अपने कनॉट प्लेस का एक करीबी संबंध है। दरअसल दोनों को रोबर्ट टोर रसेल ने डिजाइन किया था।
कहते हैं कि इफ्तिखार अली खान पटौदी क्नॉट प्लेस के डिजाइन से इस कद्र प्रभावित हुए थे कि उन्होंने निश्चय किया कि उनके महल का डिजाइन रसेल ही तैयार करेंगे।
रसेल ने पटौदी हाउस का डिजाइन बनाते हुए भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। महल के आगे बहुत से फव्वारे लगे है। फव्वारों क साथ ही गुलाब के फुलों की क्यारियां हैं, जिधर बेशुमार गुलाब के फुलों से सारा माहौल गुलजार रहता है। महल के भीतर भव्य ड्राइंग रूम के अलावा सात बेडरूम,ड्रेसिंग रूम और बिलियर्ड रूम भी है।
सारे महल का डिजाइन बिल्कुल राजसी अंदाज में तैयार किया गय़ा। इसका डिजाइन तैयार करते वक्त रसेल को आस्ट्रेलिया के आर्किटेक्ट कार्ल मोल्ट हेंज का भी पर्याप्त सहयोग मिला। रसेल ने ही सफदरजंग एयरपोर्ट, वेस्टर्न कोर्ट और तीन मूर्ति को भी डिज़ाइन किया था।
जामिया में नवाब पटौदी कहाँ
मंसूर अली खान पटौदी अबजामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में भी है। जामिया के जिस क्रिकेट स्टेडियम का पहले नाम भोपाल ग्राउंड था, वह अब मंसूर अली खान स्टेडियम कहलाता है। इसकी पवेलियन का नाम वीरेंदर सहवाग पर है । सहवाग जामिया से है । भोपाल की रियासत ने जमीन जामिया को दान में दी थी।
इस बीच, नवाब साहब ने दिल्ली क्रिकेट को एक झटके में छोड़ दिया था। वे जब 1960 के आसपास दिल्ली के रणजी ट्रॉफी में कप्तान थे, तब उन्होंने हैदराबाद का रुख कर लिया था। फिर वे हैदराबाद कीटीम से अपने मित्र एम.एल.जयसिम्हा की अगुवाई में खेलते रहे। कुछ साल पहले पटौदी
साहब का फिरोजशाह कोटला में 'हालऑफफेम' बनाया गया है। पर ये सवाल तो पूछा ही जाएगा कि उन्होने दिल्ली से खेलना क्यों छोड़ा था? हालांकि वे यहां पर ही रहते थे।
बेशक पटौदी जुझारू क्रिकेटर थे। भारत का कप्तान बनने से चंद माह पहले एक कार हादसे में उनकी दायीं आँख की रोशनी जाती रही थी। पर पटौदी ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक आँख से बल्लेबाजी करते हुए टेस्ट मैचों में 6 शतक और 16 अर्धशतक ठोके।
वे जब बल्लेबाजी करते थे तब उन्हंो दो गेंदें अपनी तरफ आती हुई दिखती थीं। इन दोनों के बीच कुछ इंचों की दूरी भी रहती थी। पर पटौदी ने हमेशा उस गेंद को खेला जिसे उन्हें खेलना चाहिए था।
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