शगूफा, कौतुक और वो / रवि अरोड़ा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने बहुत अच्छी पहल की है । हाल ही में उन्होंने देश के जाने माने खिलाड़ियों और कुछ चुनिंदा हस्तियों से फ़िटनेस पर बातचीत की और उनकी सेहत का राज़ जाना । भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली से उन्होंने दिल्ली के छोले-भटूरों पर चर्चा की तो मॉडल और सिने-अभिनेता मिलिंद सोमन से उनकी माँ के एक्सरसाइज सम्बंधी वीडियो पर तस्करा किया । बक़ौल मोदी जी यह वीडियो उन्होंने चार बार देखा है। पैरालिंपियन खिलाड़ी देवेंद्र झाझरिया से मोदी जी ने उनकी कंधे की चोट पर बातचीत की तो न्यूट्रीशियन रजुता दिवेकर से दूध-हल्दी, स्वामी शिव ध्यानम सरस्वती से योग और कश्मीर की फ़ुटबॉलर अशफाँ से जाना कि वे क्रिकेटर धोनी से कितनी प्रभावित हैं ? सबसे रोचक बातचीत मोदी जी और विराट कोहली के बीच ही हुई जिसमें मोदी जी ने कोहली से पूछा कि वे थकते क्यों नहीं ? विराट के यो यो टेस्ट और मिलिंद से उनकी उम्र सम्बंधी उनका हँसी मज़ाक़ भी मनमोहक रहा । इसी बातचीत की रौशनी में कुछ ख़याली पुलाव आज मन में पक रहे हैं । हालाँकि ऐसा कदापि सम्भव नहीं मगर फिर भी कल्पना कर रहा हूँ कि यदि मोदी जी ने कभी किसी दिन आंदोलनरत देश के किसानों, अपने गाँवों को लौट चुके श्रमिकों , लॉक़डाउन के चलते बेरोज़गार हो गए युवाओं और काम-धाम ठप होने के कारण भूखे मर रहे छोटे दुकानदारों और कारोबारियों को फ़ोन किया तो उनकी यह बातचीत कैसी होगी ? अब ज़ाहिर है कि पुलाव ख़याली है तो हवा हवाई ही होगा । वास्तविक थोड़ा ही हैं तो पक कर सामने ही आ जाये ।
कल्पना कीजिये कि मोदी जी यदि किसी किसान से बात करते तो क्या वे पूछते कि भाई क्यों रेलगाड़ियाँ रोक रहे हो, क्यों चक्का जाम कर रहे हो ? आपके नाम पर संसद में तीन विधेयक जो मैं लाया हूँ उसका अम्बानियों-अडानियों से कोई लेना देना नहीं है ? क्या वे किसी श्रमिक से पूछते कि शहर से अपने गाँव वह पैदल कितने दिन में पहुँचा था और रास्ते में उसके कितने साथी भूख-प्यास से मरे ? क्या वे कभी किसी व्यापारी से जानना चाहेंगे कि छः महीने से जो काम धंधा बंद है तो उसका गुज़ारा कैसे चल रहा है ? बेरोज़गार हुए किसी युवा से यदि मोदी जी वीडियो काँफ़्रेस करते तो क्या कहते कि भाई आत्महत्या का ख़याल दिल में मत लाना और कुछ ऊट पटाँग सोचने से पहले अपने घर वालों का भी ध्यान कर लेना ? किसी ठेली-पटरी वाले को यदि वे फ़ोन करते तो क्या पूछते कि भाई आजकल दाल-रोटी का जुगाड़ हो भी पा रहा है या नहीं ?
चलिये ख़यालों की दुनिया से लौट आता हूँ और स्वीकार कर लेता हूँ कि मोदी जी ऐसे लोगों से कभी बात नहीं करेंगे । मगर पता नहीं क्यों मन करता है कि काश मोदी जी ऐसा करते । खिलाड़ियों और सेलीब्रिटीज के साथ उन्हें कभी आम लोगों की भी याद आती । मोरों को दाना खिलाने के साथ साथ वे आदमियों के दाना-पानी का भी जुगाड़ करते । चाटुकारों और अपने सपनों के संसार से बाहर आकर कभी देखते कि कैसे मुल्क तबाह हो रहा है । काश कोई मोदी जी को बता पाता कि मुल्क केवल विराट कोहलियों और अक्षय कुमारों से ही नहीं तैयार होता । केवल अम्बनियों और अडानियों को बना कर ही देश नहीं बनेगा । मशीन को सारे पुर्ज़े चाहिये । छोटे भी और बड़े भी । छोटे पुर्ज़े नाज़ुक हैं सो उन्हें अधिक देखभाल चाहिये । मगर पता नहीं क्यों मोदी जी को ये पुर्ज़े नहीं दिखते । उनकी टूट फूट की आवाज़ें उनके कानों तक नहीं पहुँचतीं । चलिये जाने दीजिये और कल्पना कीजिये कि अब मोदी जी का अगला शगूफा क्या होगा ? अगली बार वे क्या कौतुक करेंगे ?