भोली सी सूरत हाथो मे केतली
दूर खड़ा चिल्लाए!! चाय-चाय, !!
मेरी नज़र से तुम देखो तो
चोर नज़र वो आए.!!हाय-हाय!!
सूट भी महंगा! बूट भी महंगा,
काजू की रोटी खाये!!हाय-हाय!!
नाम फकीरा! काम जगीरा!
घिस-घिस चन्दन लगाए! हाय-हाय!!
बक-बक करता बहुत बातूनी
हाथ भी खूब घुमाएं!!हाय-हाय!!
कहता कुछ, और करता कुछ है।
सबको दिया भरमाए!!हाय-हाय!!
अच्छे दिन के सपने दिखाकर
दिन है बुरे दिखाए!हाय-हाय!!
रंग बदलने में है माहिर
गिरगिट भी शरमाए!!हाय-हाय!!
देश नही दूंगा बिकने
गिन-गिन सब बिकता जाए!हाय-हाय!!
महंगाई की मार बढी है
जनता जुमला खाएं!!हाय-हाय!!
भड़की है जनता, समझ न आये
डर के मारे दाढ़ी दिया बढ़ाए!हाय-हाय!!
लगता है निकलेगा फकीरा
अपना झोला उठाए!!हाय-हाय!!
"विनोद विमल बलिया।"
[12/19, 22:24] +91 95323 87122: ये जो भैस जी को चरते हुए देख रहे है ।कभी लालू जी और मुलायम जी के साथ साथ मेरी भी सवारी का काम कर चुकी है।और लोग भी सवारी (चरते समय पीठ पर बैठना बचपन में)किये होंगे।
खैर इससे कोई मुद्दे वाली बात नहीं निकलती।अब बात करते है मुद्दे की।
आज मैंने यह छवि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाके में लिया।इस छवि में भैस जी के गले में इनके रखवाले भाई ने एक जुगाड़ बांध रखा है।इसे देख कर मैंने सोचा कि माननीया भैस जी के साथ ये ज्यादती हुई है।
आखिर क्यों।
पास में ही इनके स्वामी विराजमान थे ।जिज्ञाशावश मैंने पूछ ही लिया।
भईया:-इ भैस जी के गले में क्या बांध रखे हो इनको कितनी परेशानिया उठानी पड़ रही है।
उन्होंने बिना लाग-लपेट के लालू स्टाइल में बहुत ही सीधे ढंग से जबाब दिया।
"मैं इनकी हर तरह से देखभाल करता हूँ।नहलाता हूँ , चारा पानी देता हूँ। फिर भी इ अपना असली रूप दिखाने लगती है।इसलिए इनको काबू में रखने के लिये ये सब जुगाड़ करना ही पड़ता है
अब मुझे भी कुछ कुछ समझ आ चुका था।
मन मस्तिस्क में विचार आया। देश की जनता (किसान/मजदूर)भी तो इन कर्णधारों नेताओं और पूंजीपतियो का कितना ख्याल रखती है फिर भी इ लोग भैस जी की तरह मनमानी करते है।
अब देखिये न! आए दिन ये कर्णधार लोग अपने मन मनमानी किये रहते है।
क्या इनके लिए "भैस जी" की तरह इनके गले में भी बांधने के लिये कोई जुगाड़ नहीं है क्या? जो इनको काबू में रख सके।
खैर जो भी हो मैं तो बस ऐसे ही सोच रहा था। "नेता जी"लोग "भैस जी"थोड़े न होते है जो उनके गले में जुगाड़ बांध दे।
" विनोद विमल बलिया।"
[12/19, 22:29] +91 95323 87122: उल्लू नही दिखते
भई आज-कल तो
अब उल्लू भी,
कम ही दिखते है
पेड़ो पर।।
शायद उनके भी तो
दिन अच्छे आ गए,
तभी तो जमे है,
मंत्रीजी के डेरों पर।।
वो शांतिदूत कबूतर भी
कहाँ दिखते है अब तो
चुगते हुए चावल के दाने
और घुटर- घू करते मुडेरों पर।।
मोर भी तो अब नहीं दिखते
सावन में अपने सतरंगी पंख फैलाये
शायद वे भी खो गए है अब
नीरो के चैन की बंसी के टेरों पर।।
"विनोद विमल बलिया।"
[12/19, 22:33] +91 95323 87122: अरहर के टाटी ! गुजराती बा ताला!!
अरहर के टाटी !
गुजराती बा ताला!!
पहरा बा गेट पर !
माल टाट फाड़ जाला!!
कइले जवन भी सब!
सब उल्टा हो जाला!!
बाहर से ठीक-ठाक!
भीतर भईल दिवाला!!
तनकी ना! पूरा बा !
गड़बड़ घोटाला!!
गिनती ना होला !
बस गिनल हो जाला!!
केहू कहे लागे कि !
दाल में बा काला!!
हमरा त सब दाल!
करिए (काला)बुझाला!!
बुझल-समुझल! ना!
इनकर केहू बावाला!!
झांसा दिखाई बसके!
आपन झोरी भराला!!
इनकर इलाज बस!
अब एकही बुझाला!!
अगली बार जड़ द!
तू बारहमासी ताला!!
"विनोद विमल बलिया।"
[12/19, 23:14] +91 95323 87122: नया-नया चौधराना है !
पगड़ी बाँधे धोती खोल,
नंगा करके बजावे ढोल,
नया-नया चौधराना है
लूट का माल छुपाना है
अपनी ढपली, उसका राग
खेलो होली खूब गाओ फाग
तब तो, मिल जाता था साग
अब देखो तो आग ही आग
वो था पानी तू तो आग
फूटी किस्मत,लूटा भाग
उसने बांटा, तुमने काटा
वो था बिच्छू , तू है नाग
जला के आशा, करम जलाया
दीप जला कर, वहम फैलाया
ऊँख समझ गज उठाया नाग
सुला के अब तू , कहता जाग
"विनोद विमल बलिया।"