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दो कविताएं /

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1 स्वांग -- पूनम  झा 


स्वांग"/ पूनम झा

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नेता 

हाथ जोड़ -जोड़ जनता से 

वादे करके चुनाव जीत जाते हैं,

चुनाव जीत नेता बनकर

जनता की ही नहीं सुनते हैं,

वादे भूल बादशाह बनकर

अपनी कुर्सी के इर्द गिर्द ही मंडराते हैं ।

फिर भी ये जनता के भला चाहने वाले बतलाते हैं ।

*

पुलिस वाले अपनी वर्दी का 

 रौब खूब दिखाते हैं,

लूट-पाट, चोरी-डकैती, बलात्कार

दिन-दहाड़े जब होते हैं,

घूस लेकर इन्हें भी ये छोड़ देते हैं,

कुछ ऐसे भ्रष्टाचारी रक्षक

सारे वर्दी वाले की छवि

मिट्टी में मिला देते हैं ।

फिर भी ये रक्षक कहलाते हैं ।

*

 बाबा का भेष धारण कर

भक्ति भाव खूब दिखाते हैं,

चमत्कार दिखा-दिखाकर लोगों को 

अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं,

पढ़े-लिखे व्यक्ति भी मूरख बन

इन बाबाओं के चंगुल में फंस जाते हैं,

पोल खुलती तो ये पकड़े जाते हैं ,

फिर भी लोगों से ये पूजे जाते हैं ।

*

साधू के भेष में

जाने कितने ही चोर नजर आते हैं,

समाज को 

अपनी भोली-भाली बातों से 

ये खूब ठगा करते हैं,

फिर भी 'अतिथि देवो भव:'कहाये जाते हैं ।

*

पाई-पाई का रखता है हिसाब

चाहे बाहर हो या हो घर-परिवार,

'चमरी जाए तो जाए, पर दमरी न जाए,

ऐसे होते हैं ये साहूकार,

मिलावट करने में तो ये गुरु होते हैं,

फिर भी सच्चाई की कसमें खाते हैं ।

यहाँ भांति-भांति के लोग खूब स्वांग रचाते हैं ।

--पूनम झा :


2


 बेचना / राम सवरूप दीक्षित 

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बेचना 

उनके लिए 

एक क्रिया भर है 

जो वे कर रहे हैं 

क्योंकि उन्हें दिखाना है करके 

वो सब 

जो न हुआ आज तक 

बेचने को किसी ने नहीं लिया इस तरह 

 कि बेचने को बनाया जाए 

एक गरिमामय शब्द

कि बेचने को लगे 

कि उसे बरता जा रहा बहुत कायदे कानून के साथ

कि वह देश में किसी भी भाषा के 

किसी भी दूसरे शब्द से 

बहुत न्यारा है

और कि इससे पहले 

कितना उपेक्षित सा पड़ा था वह

शब्दकोश में दुबका सा

वे उसे वहाँ से निकालकर 

भर रहे उसमें ऐसे अर्थ 

कि लोग एकबारगी चीख उठे

एक साथ 

कि अरे हुजूर 

ये क्या कर रहे हैं आप 

क्यों आमादा हुए जा रहे बेचने को लेकर

कि अगर बेचने में ही लगे रहेंगे 

तो फिर और क्या बचेगा भाषा में

बेचने को बचाकर ही तो बचाये रखा हमने 

अब तक खुद को 

भाषा को देश को 

और अर्थ को भी

बेचने की आजादी कहीं भारी न पड़ जाए 

पर अपने हुजूर तो ठहरे 

आखिर हुजूर ही 

बोले 

चीजें बेची न जाएं 

तो जुड़ता जाता है कबाड़

कबाड़ से निकलती है

नकारात्मक ऊर्जा

जो घातक है देश के लिए 

समय आ गया है 

कि   बेच दिया जाय 

सारा पुराना कबाड़ 

और देश में 

देश की जनता में 

किया जाय

सकारात्मकता का संचार

बेचने को खुशी है 

कि आखिर वह आ ही गया 

लंबे समय बाद ही सही 

देश के काम ll


राम स्वरुप दीक्षित 


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