रावलपिंडी का एक कोना मुंबई में
मुंबई का पाकिस्तान के शहर रावलपिंडी से रिश्ता है। ये सुन-पढ़कर हैरानी हो सकती है। पर संबंध तो है। इस रिश्ते को अटूट बनाता है एक गुरुद्वारा । इसका नाम है गुरुद्वारा धन पोठवार । ये सांताक्रूज वेस्ट में है।
धन पोठवार रावलपिंडी शहर से लगा एक गांव है। वहां सिखों की आबादी खासी थी। देश का बंटवारा हुआ तो उस धन पोठवार गांव के सिख और हिन्दू भारत आ गए। कुछ ने मार्च, 1947 के बाद से ही भारत के हिस्से के पंजाब में आना चालू शुरू कर दिया था। तब वहां पर भीषण कत्लेआम हुआ था। उसके जवाब में जालंधर में खूब इंसानियत शर्मसार हुई थी।
स्वीडन में बस गए पाकिस्तानी चिंतक और इतिहासकार प्रो. इश्तिआक अहमद ने अपनी किताब The Punjab Bloodied, Partitioned and Cleansed में लिखा है कि पंजाब में सबसे पहले दंगे रावलपिंडी शहर और उसके आसपास के गांवों में ही भड़के थे।
खैर, धनपोठवार के बहुत से लोग आगे चलकर मुंबई में भी बसे। उनके मुंबई में पैर जमने लगे तो उन्होंने स्थापित किया अपने गांव के नाम पर गुरुद्वारा धन पोठवार । धनपोठवार के ही रहने वाले थे रैनबैक्सी फार्मा के फाउंडर चेयरमेन भाई मोहन सिंह।
अपने हाल के मुंबई प्रवास के दौरान एक सिख मित्र से बात की। उन्होंने बताया कि इसे धन पोठवार से आए परिवारों ने ही स्थापित किया था। मुंबई के महत्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक है। बाबा नानक के जन्म दिन पर विशाल नगर कीर्तन यहां से शुरू होता है। लंगर तो चलता ही है।
कोविड काल के कारण इस गुरुद्वारे के बाहर से ही दर्शन किए। अगली मुंबई यात्रा में इसके अंदर जाकर मत्था टेकने की इच्छा है।
गुरुद्वारे के बाहर कुछ सिख आपस में हिन्दी में बातचीत कर रहे थे। सब 45 की उम्र से कम के थे। उनकी हिन्दी में मराठी की महक आ रही थी। उनकी बातचीत को सुनकर ख्याल आया कि अब नौजवान पीढ़ी को रावलपिंडी की पोठवारी पंजाबी तो नहीं आती होगी। आखिर भाषा धरती की होती है। भाषा का संबंध धर्म से नहीं होता।
आखिर में एक बात और। दिल्ली में रावलपिंडी से आए हिन्दुओं और सिखों ने न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी बनाई थी।
विवेक शुक्ला / NBT