हिंदी साहित्य का विधागत इतिहास/हिन्दी रेखाचित्र का इतिहास
रेखाचित्र का अर्थ : ‘रेखाचित्र’ शब्द अंग्रेजी के 'स्कैच'शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। जैसे ‘स्कैच’ में रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु का चित्र प्रस्तुत किया जाता है, ठीक वैसे ही शब्द रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके समग्र रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। ये व्यक्तित्व प्रायः वे होते हैं जिनसे लेखक किसी न किसी रूप में प्रभावित रहा हो या जिनसे लेखक की घनिष्ठता अथवा समीपता हो।
आरंभिक युग
रेखाचित्र को स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने का श्रेय पद्म सिंह शर्मा कृत ‘पद्म पराग’ को दिया जा सकता है। ‘पद्म पराग’ में संस्मरणात्मक निबंधों और रेखाचित्रों का संकलन है। इन रेखाचित्रों में समकालीन महत्वपूर्ण लोगों को विषय बनाया गया है। पद्म सिंह शर्मा से प्रभावित होकर श्रीराम शर्मा, हरिशंकर शर्मा और बनारसीदास चतुर्वेदी आदि ने रेखाचित्र लिखने आरंभ किए। श्रीराम शर्मा के रेखाचित्रों का प्रथम संग्रह ‘बोलती प्रतिमा’ शीर्षक से सन् 1937 में प्रकाशित हुआ। इसकी विशेषता यह है कि इसमें समाज के निम्नवर्ग के पात्रों का सजीव चित्रण हुआ है।
बनारसीदास चतुर्वेदी के रेखाचित्रों की शैली सरस और व्यंग्यपूर्ण है। रेखाचित्र के स्वरूप के बारे में इन्होंने सैद्धांतिक विवेचन भी किया है। इनका कथन है कि, ‘‘जिस प्रकार एक अच्छा चित्र खींचने के लिए कैमरे का लैंस बढ़िया होना चाहिए और फिल्म भी काफी कोमल या सैंसिटिव, उसी प्रकार साफ चित्रण के लिए रेखाचित्रकार में विश्लेषणात्मक बुद्ध तथा भावुकतापूर्ण हृदय दोनों का सामंजस्य होना चाहिएऋ पर-दुःखकातरता, संवेदनशीलता, विवेक और संतुलन इन सब गुणों की आवश्यकता है।’’ निस्संदेह बनारसीदास चतुर्वेदी के लेखन में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ हम देख सकते हैं। राष्ट्रीयता की भावना के साथ-साथ वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को इनके रेखाचित्रों में देखा जा सकता है। इनके रेखाचित्र ‘हमारे साथी’ और ‘प्रकृति के प्रागंण’ नामक ग्रंथों में संकलित हैं।