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गुरुद्वारों में उत्तराखंड / विवेक शुक्ला

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 गुरुद्वारों में उत्तराखंड / विवेक शुक्ला

 

गुरुद्वारा सीसगंज से बाहर चांदनी चौक की हलचल को देखते हुए ज्ञानी हरनाम सिंह अपने घर एक के बाद एक फोन कर रहे हैं। उनकी बातचीत को सुनकर समझ आ रहा है कि वे देव भूमि  में ग्लेशियर फटने की भयानक घटना से दुखी हैं। उनके पास काशीपुर, नैनीताल,ऊधमसिंह नगर वगैरह से फोन आ भी रहे हैं।

 बातचीत विशुद्ध हिन्दी में हो रही है। दूरभाष संवाद सोचने को विवश करता है कि गुरुद्वारा सीसगंज के मुख्यग्रंथी देवभूमि की हालिया  घटना से इतने विचलित और आहत क्यों हैं? उदास लग रहे  ज्ञानी जी बताते हैं कि उनका परिवार उत्तराखंड के काशीपुर जिले से है। उनका पंजाब से कोई लेना–देना नहीं है।उनके बुजुर्ग पंजाब छोड़कर देवभूमि में बस गए थे।

 ज्ञानी जी राजधानी के गुरुद्वारों में उत्तराखंड से संबंध रखने वाले सबद कीर्तन गाने वाले,तबला बजाने वाले और अन्य  कर्मियों की तेजी से बढ़ती आबादी की नुमाइंदगी करतेहैं। दिल्ली के गुरुद्वारों में यह नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। अब इनमें उत्तराखंड के नौजवान बड़ी संख्या में कामकाज के लिए आने लगे हैं। इन्हें गुरुद्वारों में ही घर मिल जाता हैं। इनके बच्चों को खालसा स्कूलों में आराम से एडमिशन मिल जाता है। फीस भी सांकेतिक ही होती है। इसलिए इन्हें दिल्ली सूट करती हैं।

 कुछ साल तक ईस्ट दिल्ली के एक गुरुद्वारे में सेवादार के रूप में काम करने के बाद नैनीताल के रहने वाले दलजिंदर सिंह ने अब साउथ दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुद्वारा बाला साहिब को ज्वाइन कर लिया है। इधर गुरुहरिकिशन जी रहे हैं। दलजिंदर को बाला साहिब गुरुद्वारा कपाउंड में दो कमरे का फ्लैट मिल गया है। उनकी दोनों बेटियां इंडिया गेट के गुरु हरिकिशन स्कूल में पढ़ने लगीं है। मतलब उनकी जिंदगी चढ़दी कला पर है। 

वे  आजकल गाजीपुर में आंदोलकारी किसानों के लिए लंगर सेवा में लगे हुए हैं। इधर दिन रात लंगर और चाय वगैरह की व्यवस्था गुरुद्वारा बाला साहब से ही हो रही है। पूर्व सांसद त्रिलोचन सिंह भी मानते हैं कि राजधानी के लगभग सभी गुरुद्वारों में उत्तराखंड की उपस्थिति नजर आने लगी है। ये सब सिख धर्म का अध्ययन करने के बाद दिल्ली या फिर देश के अन्य भागों के गुरुद्वारों में अपनी सेवाएं देते हैं। 

  एक दौर में जम्मू के पूंछ के सिख नौजवान पंजाब और दिल्ली के गुरुद्वारों में सेवाएं देने के लिए आया करते थे। अब ज्ञानी हरनाम सिंह की फोन पर चल रही लंबी बातचीत समाप्त हो गई है। वे बड़े गर्व से बताने लगते हैं कि हमारे उत्तराखंड में गुरुद्वारा नानकमत्ता में बाबा नानक देव जी भी आए थे। ये पवित्र स्थल रुद्रपुर-टनकपुर रूट पर है। उधर, श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पूजा- अर्चना की थी । इनके अलावा भी उत्तराखंड में सैकड़ों गुरुदवारे हैं। तो गुरुघर तो देव भूमि भी है।

 उत्तराखंड से आकर दिल्ली के गुरुद्वारों में काम करने वाले नौजवान गुरुमुखी तो जानते हैं। पर वे आपसी संवाद हिन्दी में करते हैं। कुछेक दिल्ली में चंदेक साल काम करने के बाद मलेशिया,सिंगापुर,थाईर्लैंड वगैरह के गुरुद्वारों  को ज्वाइन कर लेते  हैं। 

कुछ वहां पर ही बस जाते हैं, कुछ वापस लौट आते हैं। वापस आने वाले ट्रांसपोर्ट वगैरह की लाइन से जुड़ जाते हैं। अपनी टैक्सियां खरीद कर चलाने या चलवाने लगते हैं। उनकी टैक्सियां एक से दो और दो से चार होती रहती हैं। आखिर गुरु के बंदों पर गुरु की मेहर तो होनी ही है।

Navbharatimes ( Saddi Dilli)11 February 2021

Vivek Shukla


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