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10 में 10 कम 90 साल की नयी दिल्ली

 नब्बे की नई दिल्ली,आज है बर्थ डे


आज हम सबकी नई दिल्ली हो गई 90 साल की। ये उमंग और संभावनाओं से लबरेज है। आज ही के दिन यानी 13 फरवरी 1931 को ब्रिटेन के भारत में वायसराय ल़ार्ड इरविन ने इसका उदघाटन किया था।उदघाटन से जुड़े कार्यक्रम 9 फरवरी से 15 फरवरी 1931 तक धूमधाम से चले थे।

 तो दिल्ली दरबार में 12 दिसंबर, 1911 को देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली में शिफ्ट करने के फैसले के 20 वर्षों के बाद नई दिल्ली का उद्घाटन हुआ।


अगर होता इसका नाम दिल्ली साउथ

भारत की नई राजधानी को नया नाम इसके विधिवत उदघाटन से पहले 31 दिसंबर, 1926 को मिला। नई दिल्ली नाम पर मोहर लगने से पहले इंपीरियल दिल्ली, रायसीना और दिल्ली साउथ जैसे नामों पर भी विचार हुआ था। वायसराय लॉर्ड इरविन ने नई राजधानी के नए नाम नई दिल्ली पर मोहर लगा दी। वे नाम में दिल्ली रखने के पक्ष में थे। ये जानकारी राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध दस्तावेजों में दर्ज है। नए नाम पर वायसराय के निर्णय लेने के बाद सरकारी अधिसूचना जारी हुई।


 जो यहां आया उसे गले लगाया दिल्ली ने

तो दिल्ली का सतत विकास होता रहा। दिल्ली आगे बढ़ती रही। इधर जो आया उसे दिल्ली ने गले लगाया।दिल्ली ने कभी किसी के साथ जाति, धर्म, सूबे के नाम पर भेदभाव नहीं करती। यहां कोई बाहरी नहीं होता। आजादी के बाद नई दिल्ली में नई-नई इमारतों, खेल के मैदानों, अस्पतालों, बगीचों वगैरह का निर्माण करना था। आजादी के फौरन बाद लगभग एक साथ तीन प्रमुख सरकारी इमारतें सुप्रीम कोर्ट, विज्ञान भवन और अशोक होटल का निर्माण पूरा हुआ। 1955 में अशोक होटल और विज्ञान भवन बने। तब तक राजधानी में कोई स्तरीय सरकारी होटल या विशाल हॉल नहीं था। इसलिए ही इन्हें बनाया गया था।


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स 1956 में बना। एम्स भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर के विजन का परिणाम है। एम्स की स्थापना के एक लगभग एक दशक के बाद 1967 में डा. राजेन्द्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र स्थापित हुआ।  एम्स दिल्ली और देश की सेवा करने में सबसे आगे है। एम्स भले ही दिल्ली में है. पर इसमें रोगी सारे देश से आते हैं। सबको बेहतरीन सुविधाएं मिलती हैं।


 आईआईटी से जेएनयू


दिल्ली के लिए 1950 का दशक बेहद अहम था। इस दौरान आईआईटी, दिल्ली का निर्माण 1959 में शुरू हुआ और इधर कक्षाएं 1961में चालू हुईं । आईआईटी का डिजाइन तैयार करने की जिम्मेदारी प्रो.जे.के.चौधरी को मिली थी।आईआईटी से दूर नहीं है जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू)। यह 1969 में बननी शुरू हो गई। इधर कक्षाएं 1971 में चालू हुईं। बेशक राजधानी में नई इमारतों के निर्माण में हबीब रहमान,मानसिंह एम राणा, जोसेफ स्टाइन जैसे नौजवान और उत्साह से लबरेज वास्तुकारों का गजब का योगदान रहा। हबीब रहमान कलकता से दिल्ली आए थे। उन्होंने इधर आर.के.पुरम, आईएनए, सरोजनी नगर की सरकारी बाबुओं की कालोनियों से लेकर कई सरकारी भवनों के डिजाइन तैयार किए। उन्होंने 1961 में रविन्द्र भवन का डिजाइन बनाया। उन्होंने ही आईटीओ पर स्थित एजीसीआर बिल्डिंग, इंद्रप्रस्थ भवन,संसद मार्ग पर डाक तार भवनऔर चिड़ियाघर (1959) के भी डिजाइन भी बनाए।


 ( उन्होंने ही  Hindustan Times House का भी डिजाइन बनाया था)।


दिल्ली मिल्क स्कीम ( डीएमएस) 1959 से और मदर डेयरी 1973 सेदिल्ली को दूध पिला रही है।


 नेहरु पार्क और बुद्ध जयंती पार्क भी बनाए गए। यानी राजधानी का चौतरफा विकास होता रहा । आप इन दोनों पार्कों को विश्व स्तरीय पार्कों की श्रेणी में रख सकते हैं। नेहरु पार्क की लैड स्केपिंग नई दिल्ली नगर पालिका के वास्तुकारों ने और बुद्ध जयंती पार्क ( 1956) की लैंड स्केपिंग मानसिंह एम राणा ने तैयार की थी। लोधी गार्डन की 1968 में नए सिरे से लैंड स्केपिंग हुई। बुद्ध जयंती पार्क भगवान बुद्ध के निर्वाण के 2500 वें वर्ष के स्मरणोत्सव के समय तैयार किया गया था।राणा ने तीन मूर्ति परिसर में नेहरु मेमोरियल लाइब्रेयरी ( 1968) बाल भवन(1953), बुद्ध जयंती पार्क (1956), शांति वन समाधि (1964), नेहरु तारामंडल (1980) का भी डिजाइन बनाया था।दिल्ली विकास प्राधिकरण ( डीडीए)का 1957 में गठन हुआ। डीडीए की बदौलत दिल्ली में दर्जनों कॉलोनियों के प्लाट काटकर लोगों को दिए गए। इसने हजारों फ्लैट, पार्क, स्टेडियम वगैरह भी बने।


नई दिल्ली के आगे बढ़ने की कहानी लिखी जाएगी तो एशियाड-82 और कॉमनवेल्थ खेल 2012 का जिक्र कैसे नहीं होगा। यहां इन दोनों विश्व स्तरीय खेल आयोजनों के दौरान बने तमाम स्टेडियम, फ्लाईओवर. होटल वगैरह। अब राजधानी की शान है जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम, इंदिरा गांधी स्टेडियम,करणी सिंह शूटिंग रेंज वगैरह। 


दिल्ली के विकास और विस्तार का सफर जारी है। इस सफर को आसान किया है दिल्ली मेट्रो रेल ने 2002 से। अब नई दिल्ली का फिर से चेहरा बदलने जा रहा है। सरकार नई संसद  से लेकर समूचे सेंट्रल विस्टा की सूरत बदलेगी। नई दिल्ली के दिल को सेंट्रल विस्टा कहा जाता है। इन्हें देख-देखकर दिल्ली की कम से कम चार पीढ़ियां बढ़ी हुईं। दिल्ली के सिंबल भी बदल रहे हैं । कभी लाल किला, कुतुब मीनार और कनॉट प्लेस यहां के सबसे सशक्त सिंबल थे। अब अक्षरधाम मंदिर और अपनी मंजिल की तरफ बढ़ती मेट्रो रेल है दिल्ली के महत्वपूर्ण प्रतीक। दिल्ली बढ़ती रहेगी, बदलती रहेगी।

Navbharatimes , 13 February 2021 को छपे लेख के सम्पादित अंश।

Vivek Shukla


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