नोएडा में मुश्किल है एफआईआर लिखा पाना… नोएडा के पुलिस अफसर कागज दुरुस्त रखने, अपराध कम दिखाने के चक्कर में एफआईआर ही नहीं लिख रहे हैं. पुलिस कमिश्नरेट बनने के बावजूद नोएडा में आम आदमी के लिए न्याय पा लेना पहले जैसा ही मुश्किल बना हुआ है. जनता के पैसे पर पुलिस अफसरों की लंबी चौड़ी फौज नोएडा में कुर्सी तोड़ रही है और घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला एक एफआईआर दर्ज कराने के लिए दर दर भटक रही है. पीड़ित महिला तो कैमरे पर भी साफ तौर पर आरोप लगाती है कि नोएडा पुलिस रिश्वतखोर है. उसका आरोप है कि उसके पति ने ठीकठाक पैसे दे दिए हैं इसलिए पुलिस वाले एफआईआर नहीं लिख रहे हैं. यही कारण है कि बड़े से बड़ा पुलिस अफसर उसकी बात सुन कर भी कुछ नहीं कर पा रहा है क्योंकि रुपये ने सबके हांथ बांध दिए हैं.
नोएडा में महिला उत्थान के लिए एक अलग महिला पुलिस अफसर है. वह भी कान में तेल डालकर सोई है. लॉ एंड आर्डर दुरुस्त करने के लिए एक अलग से आईपीएस अफसर तैनात है. वह भी इधर उधर की बातें कर सबको टरकाता रहता है. नोएडा के अलग अलग इलाकों के लिए अलग अलग डीसीपी की तैनाती है लेकिन ये लोग भी अप्लीकेशन पर चिड़िया बिठाकर छुट्टी पा लेते हैं. वो अप्लीकेशन यहां वहां फाइलों में इस उस टेबल पर चक्कर काटती रहती है और आखिर में थानेदार के टेबल के नीचे पड़े डस्टबिन का हिस्सा बन जाती है.
उत्तराखंड की रहने वाली डाक्टर अर्चना की कहानी यह बताने के लिए पर्याप्त है कि नोएडा में किस तरह से पुलिस सिस्टम काम कर रहा है....
पूरी कहानी जानें... इसके बाद इसे शेयर-फारवर्ड भी करें ताकि एक पीड़िता की मदद के लिए दबाव बनाया जा सके... ध्यान रखें, जब सिस्टम बिकाऊ-कमाऊ हो जाता है तो जनता को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है, एकजुट होकर.... वरना आज उसकी बारी तो कल तेरी बारी...
https://www.bhadas4media.com/noida-police-commissionerate-ka-haal/
*कृपया नीचे दिए गए ट्वीट लिंक पर जाकर इसे रीट्वीट करें, अफसरों को टैग करें और डाक्टर अर्चना के एफआईआर लिखवाने के अभियान में मदद करें*
https://twitter.com/yashbhadas/status/1361613043050770435